अब कि बार /अरे ओ फागुन
मन का आँगन रंग -रंग कर जाना
युगों -युगों से भीगी नहीं बासंती चोली
रही सदा ही सुनी -सुनी मेरी होली
पुलकन सिहरन अंग अंग भर जाना .../..
अजब हवा हे मन के मोसम बहक रहे हे
दावानल सम अधर पलाशी दाहक रहे हे
बरसा कर रति रंग दंग कर जाना ....
बरसों बाद प्रवासी प्रियतम घर आयेगें
मेरे विरह नयन लजाते सकुचायेगें a
तू पलकों में मिलन भंग भर जाना ....
मन का आँगन रंग -रंग कर जाना
युगों -युगों से भीगी नहीं बासंती चोली
रही सदा ही सुनी -सुनी मेरी होली
पुलकन सिहरन अंग अंग भर जाना .../..
अजब हवा हे मन के मोसम बहक रहे हे
दावानल सम अधर पलाशी दाहक रहे हे
बरसा कर रति रंग दंग कर जाना ....
बरसों बाद प्रवासी प्रियतम घर आयेगें
मेरे विरह नयन लजाते सकुचायेगें a
तू पलकों में मिलन भंग भर जाना ....
कृष्णा कुमारी
(अपने कविता सग्रह से )
(अपने कविता सग्रह से )
2 comments:
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपको भी होली की शुभकामनाएं।
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