स्तन कैंसर
स्तन कैंसर स्त्रियों का सबसे भयावह कैंसर है और स्त्रियों में कैंसर से मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। प्रारंभिक अवस्था में यह लक्षणहीन रोग है, कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती है। क्योंकि यह बहुत ही कुटिल रोग है, चुपचाप दबे पांव आता है, धीरे-धीरे पैर फैलाता है, शुरू में स्तन और आसपास के लसिका-पर्वों (Lymph Nodes) पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है, शरीर की रक्षाप्रणाली को कमजोर करता है और संवेदनशील स्थानों पर अपनी सेना और युद्ध-पोत तैनात करता है। इस तरह पूरी तैयारी होने के बाद ही यह युद्ध का बिगुल बजाता है। परन्तु स्वपरीक्षण, सोनोग्राफी, चिकित्सकीय परीक्षण, मेमोग्राफी, सुई द्वारा जीवोति-जाँच (Fine Needle Aspiration Biopsy) द्वारा हम इस रोग को प्रारंभिक अवस्था में चिन्हित कर सकते हैं। बिलकुल प्रारंभिक अवस्था में इस रोग का शल्य द्वारा पूर्ण उपचार (Complete Cure) संभव है।
स्तन कैंसर के उपचार द्वारा हम सूक्ष्म स्थलान्तर रोग (micrometastatic disease) अर्थात स्तन और स्थानीय लसिका-पर्व को लांघ कर बाहर निकल चुकी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं और इस रोग की मृत्यु दर में 35-70% कमी ला सकते हैं। पिछले दो दशकों में इस रोग पर बहुत अनुसंधान हुए हैं और रोग को समझने, बेहतर उपचार खोजने की दिशा में काफी प्रगति हुई है। (ध्यान रहे अर्बुद, कार्सिनोमा और कैंसर पर्यायवाची हैं)
स्तन की संरचना
स्तन स्त्री की छाती के अग्रभाग में वक्षपेशी (pectoralis major muscle) के ऊपर अवस्थित दो गोलाकार दुग्ध उत्पादन इकाइयां होती हैं, जो प्रसव के बाद शिशु के पोषण हेतु अमृततुल्य दुग्ध का स्राव करती हैं। यह स्त्री का सबसे सुन्दर अंग है और सभी स्त्री-पुरुष इसकी और आकर्षित रहते हैं, जिसका एक विशेष मनोवैज्ञानिक कारण है। उनका अवचेतन मन जानता है कि जीवन के प्रारम्भिक दौर में उनकी क्षुधा इन्हीं के द्वारा शान्त होती थी और इन्हीं से मिली दूग्ध-शक्ति से आज वे इतने बड़े हो पाये हैं।
स्तन एक जटिल अंग है जिसमें 15-20 खण्ड (lobes) होते हैं। हर खण्ड एक अंगूर के गुच्छे की तरह होता है। हर खण्ड में 20-40 उपखण्ड (lobules) होते हैं जो विशिष्ठ होर्मोन (प्रोलेक्टिन) के प्रभाव से दुग्ध का स्राव करते हैं। उनसे जुड़ी दुग्ध-नलिकाएं होती हैं, कई दुग्ध नलिकाएं अंगूर के डंठल की तरह मिल कर बड़ी नलिकाएं (Lactiferous ducts) बनाती हैं जो दुग्ध को स्तनाग्र तक पहुँचाती हैं। लगभग 10 बड़ी दुग्ध नलिकाएँ होती हैं। स्तन में पर्याप्त वसा और संयोजी ऊतक भी होते हैं, जो स्तन को कोमल और सुडौल बनाते हैं। स्तन के मृदु ऊतकों को संयोजी ऊतक से बना डारियों से बने झूले जैसा कूपर्स लिगामेंट ऊपर उठा कर रखता है। स्तन के बाहर कैंद्र में एक घुण्डी जैसे संवेदनशील संरचना होती है जिनमें दुग्ध बाहर निकलता है। इसको स्तनाग्र (Nipple) कहते हैं। स्तनाग्र के चारों तरफ की चक्राकार त्वचा को आभाचक्र (Areola) कहते हैं। यहाँ स्वेद और मोंटगोमेरी ग्रंथिया होती है। आभाचक्र और स्तनाग्र का रंग हल्के गुलाबी से गहरा भूरा होता है।
व्यापकता
पिछले 25 वर्षों में स्तन कैंसर की व्यापकता बढ़ी है, जिसका मुख्य कारण आहारशैली में बदलाव, नैदानिक विधाओं का विस्तार, प्रजनन की उम्र में बदलाव और व्यायाम में कमी है। विश्व में कैंसर की व्यापकता बढ़ी है लेकिन इसके उपरान्त भी विकसित देशों में इससे होने वाली मृत्यु दर में कमी आई है। यह रोग पुरुषों को भी हो सकता है।
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी का अनुमान है कि दुनिया में हर साल 1.4 मिलियन स्त्रियों को यह कैंसर होता है। अमेरिका में हर आठ स्त्रियों में एक को यह कैंसर होता है। भारत में हर 14 स्त्रियों में एक को यह कैंसर होता है।
विभिन्न श्रेणी के स्तन कैंसर की व्यापकता इस प्रकार है।
· आक्रामक नलीय कैंसर (Infiltrating ductal carcinoma) सबसे आम है और इसकी दर 75% है।
· खण्डीय कैंसर स्वस्थानी (lobular carcinoma in situ ) की दर 2.8% है।
· आक्रामक लोब्यूलर कैंसर (Infiltrating Lobular Carcinoma) की दर आक्रामक कैंसर की 15% के बराबर है।
· नलीय कैंसर (Tubular Carcinoma) की दर 1-2% है।
· पेपिलरी कार्सिनोमा वृद्ध स्त्रियों में होता है और इसकी दर 1-2% है।
· स्तन का पजेट्स रोग (Pagets Disease) की दर 1-4% है और यह उम्र के छठे दशक में ज्यादा होता है।
फलानुमान (Prognosis)
फलानुमान को निम्न घटक प्रभावित करते हैं।
· कक्षीय लसिकापर्व (Axillary lymph node) में कैंसर का फैलाव
· अर्बुद का आकार
· लसिका या रक्तवाहिका पथ में कैंसर का फैलाव
· रोगी की उम्र
· ऊतकीय श्रेणी (Histologic grade)
· ऊतकीय उपश्रेणी (e.g. tubular, mucinous [colloid], papillary)
· इस्ट्रोजन या प्रोजेस्ट्रोन निर्भरता (ER/ PR status)
· HER2 स्थिति
· HER2 जीन संवर्धन और / या अतिअभिव्यक्ति (gene amplification और / या overexpression)
कक्षीय लसिकापर्व (Axillary lymph node) में कैंसर के फैलने का सीधा तात्पर्य है कि कैंसर अन्य अंगों तक फैल चुका है। जिन रोगियों में लसिकापर्व (Axillary lymph node) में कैंसर का फैलाव नहीं हुआ है, उनकी 10 वर्षीय जीवन दर 70% होती है और 5 वर्षीय पुनरानृत्ति दर (Recurence rate) 19% होती है। यदि कैंसर ने लसिकापर्वों पर कब्जा कर लिया है तो रोगियों में 5 वर्षीय पुनरानृत्ति दर इस प्रकार होती है।
· 1-3 कैंसरग्रस्त लसिकापर्व - 30-40%
· 4-9 कैंसरग्रस्त लसिकापर्व – 44-70%
· 10 से अधिक कैंसरग्रस्त लसिकापर्व – 72-82%
फलानुमान सम्बंधी जानकारी चिकित्सक को उपचार सम्बंधी निर्णय लेने में मदद करती है। अर्बुद (tumor) के ऊतकीय वर्गीकरण (histological grade), इस्ट्रोजन या प्रोजेस्ट्रोन निर्भरता और HER2 स्थिति के आंकलन से फलानुमान किया जाता है। कैंसर के विभिन्न चरणों में 5 वर्षीय जीवन दर इस प्रकार होती है।
· चरण 0 – 99-100%
· चरण I – 95-100%
· चरण II – 86%
· चरण III – 57%
· चरण IV – 20%
प्रस्तुतिकरण (Presentation)
इतिहास (History)
स्तन कैंसर प्रारंभिक अवस्था में प्रायः लक्षणहीन होता है। बड़ी गांठें भी प्रायः दर्द-रहित होते हैं। सिर्फ 5% रोगी ही दर्द की शिकायत करती हैं। परिवार में मां, बहन या बुआ को स्तन कैंसर होना एक जोखिम घटक माना जाता है।
निम्न कैंसर रोगों की उपस्थिति स्तन कैंसर के जोखिम को बढ़ाती है।
o पूर्व में स्तन कैंसर
o अण्डाशय कैंसर
o एन्डोमेट्रियल कैंसर
o नलीय कैंसर स्वस्थानी (Ductal carcinoma in situ DCIS)
o खण्डीय कैंसर स्वस्थानी (Lobular carcinoma in situ LCIS)
· हाइपरप्लेसिया
· जटिल फाइब्रोऐनोमा
· व्यासीय क्षत-चिन्ह (Radial scar)
· पेपिलोमेटोसिस
· स्क्लीरोजिंग ऐडीनोसिस
· माइक्रोग्लेंड्यूलर ऐडीनोसिस
गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर स्तन कैंसर का जोखिम कम करता है।
शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)
कई बार स्तन में गांठ बहुत छोटी होती है और महसूस नहीं हो पाती है, तब निम्न लक्षण कैंसर की संभावित उपस्थिति को दर्शाते हैं।
o स्तन के आकार और आमाप में बदलाव
o त्वचा का अन्दर धंसना या अन्य बदलाव जैसे त्वचा का मोटा होना, सूजन या लाल हो जाना
o स्तनाग्र का अन्दर धंस जाना या अन्य बदलाव जैसे छाले हो जाना, रक्त का रिसाव होना
o स्तनाग्र के किसी एक छ्द्र से रक्त का रिसाव होना
o कक्ष (Axilla) में गांठ बढ़ जाना
स्तन का परीक्षण करते समय रोगी को बाहें फैला कर खड़ा करें और निम्न बातों पर गौर करना जरूरी है।
· स्तन में गांठ या आकार में बदलाव
· स्तनाग्र का अन्दर धंसना
· शिराओं का फूलना
· छाले होना
· पजेट रोग
· सूजन या स्तन की त्वचा का सन्तरे के छिलके की तरह हो जाना (peau d'orange)
कभी-कभी परिस्पर्शन में स्तन में गाठों की प्रकृति का अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल होता है परन्तु निम्न गुणों पर ध्यान देना जरूरी है।
o कठोरता
o गांठ की सतह अनियमित होना
o गांठ की सतह दानेदार महसूस होना
o दोनों स्तनों का असमान होना
o गांठ का वक्ष-पेशी (pectoral muscle) से चिपक जाना
स्तन के परीक्षण के अलावा कक्ष, कण्ठास्थि (Collar Bone) के ऊपर का क्षेत्र (supraclavicular fossa), छाती, उदर और नाड़ी-तंत्र तथा अन्य कष्टदायक स्थानों का विस्तृत परीक्षण जरूरी है। स्थलांतर (Metastasis) के निम्न लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है।
· श्वास कष्ट (Breathing difficulties)
· कैलशियम बढ़ने के लक्षण
· पैट में फुलाव
· पीलिया
· स्थानीय नाड़ी संकेत (Localizing neurologic signs)
· संज्ञानात्मक क्रियाओं में बदलाव (Altered cognitive function)
अन्तरात्मक निदान (Differential Diagnoses)
· स्थानीय स्तन रोग – फाइब्रोऐडीनोमा, पुटिका (cysts), स्तन लिम्फोमा, स्थलान्तर कैंसर (metastasis to the breast from other primary sites)
· त्वचा मोटी होना, प्रदाही कैंसर (inflammatory carcinoma) और स्तनशोथ (mastitis)
· दुग्ध नलिकाओं का विस्तारण (Dilatation), पेपिलोमा, दुग्ध नलिकाओं की अछिद्रता (duct ectasia) और फाइब्रोसिस्टिक रोग (fibrocystic disease)
निदान (Diagnosis)
अक्सर स्तन कैंसर का निदान रोगी द्वारा स्वपरीक्षण, चिकित्सक द्वारा स्तन के परीक्षण या मेमोग्राफी द्वारा होता है। स्तन कैंसर के आंकलन हेतु रोगी से विधिवत तथा विस्तृत पूछताछ व चिकित्सकीय परीक्षण के पश्चात छायांकन (imaging) और जीवोति-जाँच (Biopsy) की जाती है। इन सबके आंकलन के आधार पर निर्णय लिया जाता है कि शल्यक्रिया करनी है या नहीं? यदि करनी है तो किस तरह की शल्यक्रिया करनी है? शल्य का मुख्य ध्येय यही रहता है कि स्तन के ऊतकों को जितना अधिक सम्भव हो छोड़ दिया जाये और दोबारा ऑपरेशन भी नहीं करना पड़े।
स्तन के स्वपरीक्षण करना सीखने के लिए इस कड़ी को चटकाएँ।
मेमोग्राफी
मेमोग्राफी में एक्स-रे की न्यूनतम मात्रा द्वारा स्तन का विस्तृत छायांकन किया जाता है। इसके द्वारा स्तन की उन बहुत छोटी गांठों का छायांकन किया जा सकता है, जिन्हें शायद 1-2 वर्ष बाद भी सामान्य तरीके से महसूस करना संभव नहीं हो पाये। इसके द्वारा 100 माइक्रोमीटर के सूक्ष्म अस्थिकरण (Microcalcifications) को भी देखा जा सकता है। मेमोग्राफी दो प्रकार की होती है, स्क्रीनिंग जो लक्षणहीन स्त्रियों में की जाती है और दूसरी डायग्नोस्टिक जो उन स्त्रियों में की जाती हैं जिनको स्तन में गांठ, स्तनाग्र से खून का रिसाव आदि लक्षण होते हैं। डायग्नोस्टिक मेमोग्राफी में अधिक समय लगता है, खर्च भी ज्यादा होता है और गांठ के आकार, माप और लसिकापर्व में कैंसर के फैलाव की सही जानकारी मिल जाती है।
सोनोग्राफी
सोनोग्राफी बहुत प्रचलित, सस्ती और सुलभ जांच है। इसके द्वारा स्तन की गांठों का आमाप, आकार, प्रसार और प्रकृति की जानकारी मिल जाती है। बॉयोप्सी हेतु सुई के सही मार्गदर्शन के लिए भी सोनोग्राफी या सीटी स्केन की मदद ली जाती है।
एम.आर.आई.
स्तन कैंसर के छायांकन में सोनोग्राफी और मेमोग्राफी की अपनी सीमाएं हैं, लेकिन एम.आर.आई. ज्यादा प्रामाणिक और सटीक छायांकन करती है। टी-1, टी-2 और 3-डी कॉन्ट्रास्ट एनहेन्स्ड एम.आर.आई. स्तन कैंसर का अत्यंत संवेदनशील और स्पष्ट चित्रण करती है। लेकिन यह मंहगी है और हर जगह उपलब्ध नहीं है। इनके स्पष्ट संकेत निम्न लिखित हैं।
· जो कैंसर मेमोग्राफी और सोनोग्राफी द्वारा नहीं पकड़े जा सके हों।
· कक्षीय लसिकापर्व के कैंसर जिनमें स्तन में गाठ चिन्हित नहीं की जा सकी हो।
· आक्रामक लोब्युलर कैंसर के विस्तार का संपूर्ण आंकलन करने हेतु
· अन्तरनलीय कैंसर
· संभावित बहुकैंद्रीय या द्विपक्षीय कैंसर के आंकलन हेतु (suspected multifocal or bilateral tumor)
· स्तन में अज्ञात ऐडीनोकार्सिनोमा के रोगी में स्तन कैंसर के आंकलन हेतु
· नई कीमोथेरेपी दवाओं के असर की देखरेख हेतु
· आवर्ती स्तन कैंसर
सिंटोमेमोग्राफी
पोजिट्रोन इमिशन टोमोग्रोफी (PET Scaning)
यह सबसे संवेदनशील, विशिष्ट और मंहगी जांच है। इसमें लेबल्ड मेटाबोलाइट्स जैसे फ्लोरीनेटेड ग्लूकोज [18 FDG] का प्रयोग किया जाता है और अर्बुद के चयापचय, वाहिकावर्धन (vascularization), ऑक्सीजन की खपत और अर्बुद की अभिग्रहण स्थिति (receptor status) की सटीक और विस्तृत जानकारी देता है। इसका मुख्य प्रयोग आवर्ती कैंसर (recurrences in scarred breasts), बहुकैंद्रीय कैंसर, कक्षीय स्थलान्तर (axillary involvement), दूरस्थ स्थलान्तर (systemic metastases) के आंकलन हेतु किया जाता है।
HER2 हरसेप्टिन जांच
हरसेप्टिन कुछ विशेष श्रेणी के स्तन कैंसर की कोशिकाओं के सतह पर स्थित एक प्रकार का अभिग्राहक प्रोटीन (Receipter Protein) होता है, जो HER2/neu नामक एक विशिष्ट जीन द्वारा निर्मित होता है। इस तरह के कैंसर को हर-2 घनात्मक (HER2-positive) कहते हैं। हर-2 में ह्यूमन इपीडर्मल संवर्धन घटक (human epidermal growth factor) नामक रसायन से जुड़ने की क्षमता होती है। यह संवर्धन घटक शरीर में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और हर-2 से जुड़ कर कैंसर कोशिकाओं की संवृद्धि का प्रोत्साहित करता है और कैंसर जल्दी बढ़ता है। हर 5 में से 1 स्त्री हर-2 घनात्मक होती है।
हर-2 जांच के कई तरीके हैं, लेकिन उनमें से 20% तो गलत साबित हुए हैं। इसलिए अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलोजी ने नये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। आजकल इसके लिए दो जांचें इम्युनो-हिस्टो-केमिस्ट्री (IHC) और फ्लोरिसेंस इन-सिटू हाइब्रिडेशन (FISH) की जाती हैं। बायोप्सी या शल्य-क्रिया करते समय ही इस टेस्ट के लिए कैंसर ऊतकों के नमूने ले लिए जाते हैं।
इम्युनो-हिस्टो-केमिस्ट्री (IHC) से मालूम हो जाता है कि कैंसर में कितना हर-2 प्रोटीन है। हर-2 के नतीजे को 0 से +3 के बीच श्रेणीबद्ध किया है।
0-1+ या ऋणात्मक (Negative HER2) का तात्पर्य है कि कैंसर में हर-2 प्रोटीन सामान्य या कम मात्रा में मौजूद है। यह हर-2 ऋणात्मक स्थिति है।
2+ या संदिग्ध (Equivocal HER2) का तात्पर्य है कि कैंसर में हर-2 प्रोटीन की मात्रा सामान्य से थोड़ी ज्यादा हो सकती है। यह संदिग्ध स्थिति है और ऐसे में फ्लोरिसेंस इन-सिटू हाइब्रिडेशन (FISH) जांच की जाती है जो हर-2 का सही आंकलन करती है।
3+ या घनात्मक (Positive HER2) का तात्पर्य है कि कैंसर में हर-2 प्रोटीन की बहुत अधिक मात्रा मौजूद है यह स्पष्ट घनात्मक स्थिति है।
फ्लोरिसेंस इन-सिटू हाइब्रिडेशन (FISH) जांच मंहगी है लेकिन अधिक विश्वसनीय है। यह जांच हर कोशिका में HER2/neu जीन की स्थिति को दर्शाती है। इसके नतीजे ऋणात्मक (अर्थात जीन का स्तर सामान्य है) या घनात्मक होते (अर्थात जीन की मात्रा अधिक है, इसे जीन ऐम्प्लीफिकेशन भी कहते हैं ) हैं।
स्तन कैंसर का चरण निर्धारण या Staging
अमेरिकन ज्वॉइंट कमेटी ऑफ कैंसर ने स्तन कैंसर को अर्बुद के माप (T), लसिकापर्व (lymph node) की स्थिति (N), और दूरस्थ स्थलान्तर (M) के आधार पर तीन चरणों में वर्गीकृत किया है।
प्राथमिक कैंसर (T)
प्राथमिक कैंसर को माप के आधार पर इस तरह वर्गीकृत किया गया है।
· Tx: प्राथमिक कैंसर देखा नहीं जा सका हो।
· T0: प्राथमिक कैंसर के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
· Tis: (DCIS) नलीय स्वस्थानी कैंसर (Ductal Carcinoma in situ)
· Tis: (LCIS) खण्डीय स्वस्थानी कैंसर (Lobulated Carcinoma in situ)
· Tis: स्तनाग्र का पजेट रोग जिसमें कोई गांठ न हो (Paget disease associated with a tumor is classified according to the size of the tumor.)
· T1: 2 सैं.मी. या छोटी गांठ
· T1mic: 0.1 सैं.मी. या छोटी सूक्ष्म गांठ
· T1a: 0.1 सैं.मी. से बड़ी लेकिन 0.5 सैं.मी. से छोटी गांठ
· T1b: 0.5 सैं.मी. से बड़ी लेकिन 1.0 सैं.मी. से छोटी गांठ
· T1c: 1.0 सैं.मी. से बड़ी लेकिन 2.0 सैं.मी. से छोटी गांठ
· T2: 2.0 सैं.मी. से बड़ी लेकिन 5.0 सैं.मी. से छोटी गांठ
· T3: 5.0 सैं.मी. से बड़ी गांठ
· T4: किसी भी माप की गांठ जिसका सीधा फैलाव छाती की दीवार या त्वचा तक हो चुका हो
o T4a: किसी भी माप की गांठ जिसका सीधा फैलाव छाती की दीवार तक हो चुका हो परन्तु वक्षपेशी (pectoralis muscle) तक नहीं हुआ हो
o T4b: सूजन (और त्वचा का सन्तरे के छिलके की तरह हो जाना (peau d’orange) या स्तन की त्वचा में फोड़े या उसी तरफ के स्तन की त्वचा में दाने हो जाना
o T4c: T4a और T4b दोनों विद्यमान हों
o T4d: प्रदाह रोग (Inflammatory disease)
स्थानीय लसिकापर्व (N)
स्थानीय लसिकापर्व के आधार पर वर्गीकरण इस प्रकार है।
· Nx: स्थानीय लसिकापर्व विद्यमान नहीं हों जैसे पूर्व में शल्य द्वारा निकाल लिए गये हों
· N0: स्थानीय लसिकापर्व में स्थलान्तर नहीं हुआ हो
· N1: समपार्ष्वी कक्षीय लसिकापर्वों (ipsilateral axillary lymph nodes) में स्थलान्तर हो चुका हो और जो चल (movable) हो
· N2: समपार्ष्वी कक्षीय लसिकापर्वों (ipsilateral axillary lymph nodes) में स्थलान्तर हो चुका हो जो स्थिर या जुड़ चुके हो या समपार्ष्वी आंतरिक स्तन धमनी लसिकापर्वों (ipsilateral internal mammary nodes) में स्थलान्तर हुआ हो भले कक्षीय लसिकापर्वों में स्थलान्तर नहीं हो पाया हो
o N2a: समपार्ष्वी कक्षीय लसिकापर्वों (ipsilateral axillary lymph nodes) में स्थलान्तर हो चुका हो जो स्थिर या आपस में जुड़ चुके हो
o N2b: समपार्ष्वी आंतरिक स्तन धमनी लसिकापर्वों (ipsilateral internal mammary nodes) में स्थलान्तर हुआ हो भले कक्षीय लसिकापर्वों में स्थलान्तर नहीं हो पाया हो
· N3: यदि समपार्ष्वी अवजत्रुकी या अधिजत्रुकी लसिकापर्वों (ipsilateral infraclavicular or supraclavicular lymph nodes) में स्थलान्तर हुआ हो, भले कक्षीय लसिकापर्वों में स्थलान्तर हुआ हो या न हुआ हो या कक्षीय लसिकापर्वों के साथ आंतरिक स्तन धमनी लसिकापर्वों (ipsilateral internal mammary nodes) में भी स्थलान्तर हुआ हो
· N3a: समपार्ष्वी अवजत्रुकी लसिकापर्वों (ipsilateral infraclavicular lymph nodes) में स्थलान्तर हुआ हो
· N3b: समपार्ष्वी अवजत्रुकी लसिकापर्वों (ipsilateral infraclavicular lymph nodes) और कक्षीय लसिकापर्वों में स्थलान्तर हुआ हो
· N3c: समपार्ष्वी अधिजत्रुकी लसिकापर्वों (ipsilateral supraclavicular lymph nodes) में स्थलान्तर हुआ हो
दूरस्थ स्थलान्तर
कैंसर का दूरस्थ स्थलान्तर अस्थि (Bone), यकृत(Liver), मस्तिष्क (Brain) और फेफड़े (Lung) में होता है। इसका स्मृति सूत्र बल्लेबल्ले है। दूरस्थ स्थलान्तर को इस तरह वर्गीकृत किया है।
· Mx: दूरस्त स्थलान्तर देखा नहीं जा सका हो।
· M0: दूरस्त स्थलान्तर के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
· M1: दूरस्त स्थलान्तर हो चुका हो
पांच वर्षीय जीवन दर कैंसर के चरण से इस प्रकार सम्बंधित है।
· चरण 0: 99-100%
· चरण I: 95-100%
· चरण II: 86%
· चरण III: 57%
· चरण V: 20%
फलानुमान सम्बंधी जानकारी चिकित्सक को उपचार के चुनाव में मदद करती है। स्तन कैंसर के फलानुमान के लिए ऊतक-विज्ञान पर आधारित श्रेणी, इस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन निर्भरता और हर-2 स्थिति का आंकलन बहुत जरूरी है। साथ में लसिकापर्वों की बायोप्सी भी आवश्यक है।
अन्य परीक्षण
2011 के NCCN के नये दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रारंभिक चरण के कैंसर (stages I और II) रोगियों में निम्न परीक्षण भी किये जाने चाहिये।
· सम्पूर्ण रक्त गणक CBC (अन्तरात्मक गणक DLC समेत)
· यकृत कार्य परीक्षण (LFTs)
· वृक्क कार्य परीक्षण (LFTs)
· रक्त में कैलशियम का स्तर
इसके साथ चरण III या लक्षणहीन रोग में छाती का एक्स-रे, छाती, पेट और श्रोणि (Pelvis) का सी टी स्केन और अस्थि-परीक्षण किये जाने चाहिये। ट्यूमर मार्कर carcinoembryonic antigen CEA और CA15.3 या CA27.29 भी करवाना चाहिये। आवश्यकतानुसार BRCA1 और BRCA2 के लिए जेनेटिक काउंसलिंग भी की जानी चाहिये।
स्तन जीवोति जांच (Breast Biopsy)
नये स्तन कैंसर के निदान के लिए सोनोग्राफी के निर्देशानुसार त्वचा द्वारा निर्वात की मदद से सुई घुसाकर ऊतक का परीक्षण (VACNB) जरूरी माना गया है। लेकिन सर्वश्रेष्ठ बायोप्सी तो उच्छेदन बायोप्सी है जिसे रोगी को बेहोश करके किया जाता है। इसे तब किया जाता है जब छायांकन और अन्य जांचों द्वारा भी सही निदान नहीं हो पाया हो।
ऊतक-विज्ञान (Histology)
स्तन कैंसर सामान्यतः नलीय या खण्डीय इपीथीलियम से सम्बंधित होते हैं। स्तन कैंसर के उपचार के निर्धारण निम्न घटक बहुत महत्वपूर्ण हैं।
· माप
· कैंसर की शल्य सीमाओं की स्थिति
· इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की निर्भरता
· नाभिकीय और ऊतक श्रेणी
· डी.एन.ए.
· ट्यूमर में रक्त-वाहिकाकरण (Vascularisation)
· ट्यूमर नेक्रोसिस (Tumor Necrosis)
· दुग्ध नलियों में ऊतकों का जमाव
ऊतक-विज्ञान श्रेणियाँ
स्वस्थानी कैंसर के फलानुमान के लिए ऊतक-विज्ञान श्रेणी बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह चरण निर्धारण के तरीके पर निर्भर करता है। आक्रामक कैंसर का चरण निर्धारण भी फलानुमान का अहम घटक है। ऊँचे चरण का मतलब है खराब फलानुमान। कैंसर के चरण I की 10 वर्षीय दर 85% है जबकि चरण III की 10 वर्षीय दर 45% हो जाती है।
Score
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1
|
2
|
3
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A. Tubule formation
|
>75%
|
10-75%
|
< 10%
|
B. Mitotic count per high-power field
(microscope और field-dependent) |
< 7
|
7-12
|
>12
|
C. Nuclear size और pleomorphism
|
Near normal
Little variation |
Slightly enlarged
Moderate variation |
Markedly enlarged
Marked variation |
Grade I cancer if the total score (A + B + C) is 3-5
| |||
Grade II cancer if the total score (A + B + C) is 6 or 7
| |||
Grade III cancer if the total score (A + B + C) is 8 or 9
|
डक्टल कार्सिनोमा स्वस्थानी (Ductal Carcinoma in-situ)
मेमोग्राफी के प्रचलन से डक्टल कार्सिनोमा स्वस्थानी (DCIS) के निदान में नाटकीय वृद्धि हुई है। हर वर्ष अमेरिका में DCIS के 64000 नये रोगियों का निदान होता है। DCIS में दुर्दम उपकला कोशिकाएँ (malignant epithelial cell) होती हैं और जो आधारीय झिल्ली (basement membrane) के भीतर ही अवस्थित रहती हैं। अर्थात इसमें आधारीय झिल्ली अक्षत और अखण्डित रहती है और इसके बाहर कैंसर का सूक्ष्मदर्शी अस्तित्व भी नहीं होता है। ऊतर-संरचनानुसार इसकी पांच उपश्रेणियां कोमेडो, पेपिलरी, माइक्रोपेपिलरी, क्रिबीफॉर्म और ठोस वर्णित हैं। मेमोग्राम में DCIS के 90% रोगीयों में सूक्ष्म अस्थिकरण देखा जाता है।
खण्डीय कोरसिनोमा स्वस्थानी (Lobular carcinoma in-situ)
खण्डीय कोरसिनोमा स्वस्थानी में प्रायः स्पष्ट मेमोग्रोफिक या चिकित्कीय लक्षण नहीं होते हैं। यह रोग अक्सर रजोनिवृत्ति पूर्व होता है। इसमें कैंसर कोशिकाएं दुग्ध-खण्डों (mammary lobules) के भीतर ही सिमित रहती हैं। यह धीरे बढ़ता है, प्रायः इस्ट्रोजन घनात्मक, हर-2 ऋणात्मक होता है और हमेशा दूसरे स्तन में भी फैलाव होने की सम्भावना रहती है। पिछले 25 वर्षों में LCIS की व्यापकता बड़ कर 2.8 प्रति 100,000 स्त्री हो गई है।
आक्रामक डक्टल कार्सिनोमा
आक्रामक डक्टल कार्सिनोमा सबसे आम और घातक स्तन कैंसर (70-80%) है और इसका स्थलान्तर प्रायः लसिकापर्व द्वारा होता है। यह 20 वर्ष से बड़ी हर स्त्री में हो सकता है लेकिन पांचवें दशक में होना की सम्भावना अधिक रहती है। यह अन्दर से ठोस और दबाने पर कठोर प्रतीत होता है। इसके साथ डक्टल कार्सिनोमा स्वस्थानी (DCIS) भी उपस्थित हो सकता है। दोनों में डक्टल नेक्रोसिस देखा जा सकता है। इसकी संरचना में कोई विशेष बात नहीं है, यह आधारीय झिल्ली को तोड़ कर आतंक फैलाने बाहर शरारत करते देखा जा सकता है।
आक्रामक खण्डीय कार्सिनोमा (Invasive Lobular Carcinoma)
इसकी व्यापकता 5-10% होती है और यह भी आक्रामक डक्टल कार्सिनोमा जितना ही घातक होता है। इसका स्थलान्तर प्रायः लसिकापर्व द्वारा होता है। इसका बाहरी सीमाएँ अस्पष्ट होती हैं। यह अक्सर दूसरे स्तन पर आक्रमण करने को आतुर रहता है।
मेड्यूलरी कार्सिनोमा
इसकी व्यापकता 5% होती है। इसमें लिम्फोसाइट कोशिकाएँ प्रचुर तादाद में उपस्थित होती हैं। यह प्रायः युवा स्त्रियों को ग्रस्त करता है। इसमें प्रायः बड़ी गांठ और विवर्धित कक्षीय लसिकापर्व देखी जाती हैं। इसका फलानुमान अपेक्षाकृत बेहतर होता है।
म्यूसिनस कार्सिनोमा
इसकी व्यापकता 5% से कम होती है। यह प्रायः उम्र के सातवें दशक में होता है। प्रायः स्तन में एक गांठ के रूप में उपस्थित होता है। श्लेष्म या म्यूसिन उत्पादन इसका मुख्य गुण है। इसका उपश्रेणियाँ टाइप A और टाइप B तथा टाइप AB होती हैं। टाइप A श्लेष्म का उत्पादन बहुत होता है। यह इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन घनात्मक और हर-2 ऋणात्मक होता है।
ट्यूब्यूलर कार्सिनोमा
इसकी व्यापकता 1-2% होती है। इसमें उपकला कोशिकाओं (epithelial cells) की एक तह होती है, जिनमें निम्न दर्जे का नाभिक और असाधारण कोशिकाद्रव्य (atypical cytoplasm) सुविकसित नलिकाओं और दुग्धग्रंथिओं में अवस्थित रहता है। इसे well-differentiated carcinoma भी कहते हैं। कक्षीय लसिकापर्व में प्रसार की दर 10% होती है और इसका फलानुमान आक्रामक डक्टल कार्सिनोमा से बेहतर है।
स्तन पजेट रोग
इसकी व्यापकता 1-4% होती है। यह प्रायः उम्र के छठे दशक में उपस्थिति देता है। यह ऐडीनोकार्सिनोमा है जो स्तनाग्र आभाचक्र (nipple-areola) की त्वचा में सिमित रहता है और आधारीय झिल्ली (basement membrane) में पेजेट कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं। पजेट कोशिका बड़ी, हल्के रंग की उपकला कोशिकाएं हैं जिनमें गहरा (hyperchromat) और असामान्य नाभिक होता है। ये केरेयिनोसाइट्स के बीच अकेली या समूह में अवस्थित रहती हैं।
यह प्रायः एकपार्ष्वी (unilateral) रोग है जिसमें स्तनाग्र और आभाचक्र की त्वचा कटी-फटी, पपड़ीदार, स्रावी या लाल हो जाती है। अक्सर स्तनाग्र में छाले हो जाते हैं या अन्दर धंस जाते हैं। रोगी खुजली, जलन, सिरहन या दर्द से परेशान रहती है।
ओंकोटाइप डीएक्स जीन की जांच
स्तन कैंसर की प्रारम्भिक अवस्था के अधिकांश रोगी इस्ट्रोजन अभिग्राहक घनात्मक (estrogen-receptor-positive) और लसिकापर्व ऋणात्मक (lymph-node-negative ) होती हैं। इसका मतलब हुआ कि इस्ट्रोजन कैंसर की संवृद्धि को बढ़ायेगा और ऐसे रोगियों को इस्ट्रोजन को कम करने वाले हार्मोन उपचार से लाभ होगा। इससे यह तात्पर्य भी निकलता है कि अभी कैंसर स्तन तक ही सिमित है और कैंसर कोशिकाओं का प्रसार कक्षीय लसिकापर्वों तक नहीं हुआ है। यह भी अच्छा संकेत है।
एफ.डी.ए. ने इन रोगियों में ओंकोटाइप डीएक्स जीन की जांच करने का अनुमोदन किया है। इससे चिकित्सक को कीमो और हार्मोन थेरेपी से सम्बंधित निर्णय लेने में बहुत मदद मिलती है। यह दर्शाता है कि कैंसर दोबारा आक्रमण करेगा या नहीं, कामोथेरेपी रोगी को देना चाहिये या नहीं और इनसे रोगी को लाभ होगा या नहीं। इस तरह यह पूर्वानुमान और फलानुमान दोनों करता है।
यह जांच एक जीनोम ऐस्से (Genome Essay) है जो स्तन कैंसर के ऊतक में 21 जीन्स का परीक्षण करता है और उनकी सक्रियता की जानकारी देता है। ये जीन कैंसर कोशिकाओं समेत सभी कोशिकाओं के व्यवहार और सक्रियता को नियंत्रित करते हैं। इसमें कैंसर कोशिका से आर.एन.ए. (RNA) निकाल कर उसका विश्लेषण किया जाता है और हर जीन के व्यवहार तथा सक्रियता को नाप कर कैंसर का पुनरावृत्ति अंकन (recurrence score) दिया जाता है और यह 0 से 100 के बीच होता है। यदि पुनरावृत्ति अंकन 18 से कम है तो कैंसर की पुनरावृत्ति का जोखिम कम है और कीमो से विशेष लाभ नहीं होगा। यदि अंकन 18-31 के बीच है, इसका मतलब है कि कैंसर की पुनरावृत्ति का जोखिम दर्मियानी है और कीमो देने सन्बंधी स्पष्ट संकेत नहीं देता है। और अंकन 31 से ज्यादा हो तो पुनरावृत्ति का जोखिम बहुत अधिक है और कीमो देनी चाहिये।
लसिकापर्व शल्य
एक या अधिक लसिकापर्व को निकाल कर सूक्ष्मदर्शी जांच द्वारा यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि कैंसर कक्षीय लसिकापर्व तक फैल चुका है या नहीं। इससे चरण निर्धारण और शल्य के बाद के उपचार सम्बंधी निर्णय लेने में बहुत मदद मिलती है। यदि कैंसर लसिकापर्व में फैल चुका है तो पूरी सम्भावना रहती है कि कैंसर रक्तप्रवाह द्वारा शरीर के अन्य अंगो तक फैल गया हो।
कक्षीय लसिकापर्व विच्छेदन (Axillary lymph node dissection)
इस शल्य में कक्ष (axilla) से 10-40 (सामान्यतः 20 से कम) निकाल कर कैंसर की जांच के लिए भेज दिये जाते हैं। इसे अर्बुद-उच्छेदन या स्तन-उच्छेदन के साथ ही या बाद में किया जाता है।
निकटस्थ लसिकापर्व बायोप्सी (Sentinel lymph node biopsy)
हालांकि लसिकापर्व विच्छेदन सुरक्षित शल्य है लेकिन इससे लिम्फेडीमा की सम्भावना रहती है। इसलिए आजकल चिकित्सक निकटस्थ लसिकापर्व बायोप्सी (Sentinel lymph node biopsy) करना पसन्द करते हैं। इस प्रक्रिया में शल्यकर्मी लसिकापर्व को बिना निकाले ही उसमें कैंसर की उपस्थिति का आंकलन कर लेता है। वह अर्बुद के सबसे पास के लसिका को ढूढ कर निकालता है, जिसमें कैंसर सबसे पहले फैलता है। इसको समीपस्थ लसिकापर्व (sentinel node) कहते हैं। इसके लिए वह अर्बुद में या उसके आसपास रेडियोएक्टिव डाई और / या नीली डाई छोड़ता है। लसिका-वाहिकाएं डाई को समीपस्थ पर्व (sentinel node) तक पहुँचा देती हैं।
चिकित्सक विशेष उपकरण द्वारा लसिकापर्व में रेडियोएक्टिविटी को नाप लेते हैं। शल्यकर्मी ठीक इसी जगह चीरा लगा कर लसिकापर्व निकाल लेता हैं और उसकी जांच करवा लेता है। यदि निकटस्थ पर्व में कैंसर निकलता है तो कक्षीय लसिकापर्व विच्छेदन कर दिया जाता है। लेकिन यदि समीपस्थ लसिकापर्व (sentinel node) में कैंसर नहीं मिलता है तो इसका मतलब होता है कि कैंसर अन्य लसिकापर्वों में भी नहीं फैला है और उनके शल्य की आवश्यकता नहीं है। इन दिनों यह शल्य बहुत प्रचलित है लेकिन इसे बहुत कुशल और अनुभवी शल्यकर्मी ही कर पाते हैं।
उपचार
स्तन कैंसर का प्राथमिक उपचार शल्यक्रिया है, प्रारम्भिक अवस्था के कई रोगी शल्यक्रिया से ही पूर्णतः ठीक होते हैं। शल्य का मुख्य उद्देश्य गाँठ के साथ आसपास के स्वस्थ ऊतक का उच्छेदन (resection), रोग का चरण निर्धारण, फलानुमान हेतु कक्षीय लसिकापर्वों का उच्छेदन है। इस हेतु कई तरह की शल्यक्रियाएं वर्णित है। इसके साथ रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी और हार्मोनथेरेपी भी दी जाती है।
शल्यक्रिया
स्तन कैंसर के अधिकांश रोगियों की शल्यक्रिया की जाती है। प्रायः दो तरह का शल्य स्तन संरक्षण शल्य और स्तन-उच्छेदन किया जाता है। शल्य के समय ही या बाद में स्तन पुनर्निर्माण (Breast Reconstruction) किया जाता है। इसके अलावा कक्षीय लसिकापर्व का शल्य भी किया जाता है। इसके लिए दो विकल्प निकटस्थ लसिकापर्व बायोप्सी (sentinel lymph node biopsy) और लसिकापर्व विच्छेदन (axillary lymph node dissection) होते हैं।
स्तन संरक्षण शल्य
इसे आंशिक स्तन-उच्छेदन भी कहते हैं। इसमें स्तन का कुछ भाग निकाला जाता है।
अर्बुद-उच्छेदन (Lumpectomy) इसमें अर्बुद और उसके चारों तरफ के कुछ स्वस्थ ऊतक निकाले जाते हैं। इसके बाद प्रायः रेडियेशन दिया जाता है। यदि कीमो भी देनी है तो रेडियेशन के पहले दी जाती है।
क्वाड्रन्टेक्टोमी (Quadrantectomy) इसमें चौथाई स्तन निकाला जाता है।
यदि ऊतकविज्ञानी को निकाले हुए ऊतक की बाहरी सीमाओं में कैंसर कोशिका मिल जाती है तो इसे कैंसर-घनात्मक सीमा कहते हैं। इसका मतलब यह है कि शल्य के बाद भी स्तन में कैंसर कोशिकाएं रह गई हैं। ऐसी स्थिति में शल्यकर्मी दोबारा शल्य (re-excision) करता है और थोड़े ऊतक और निकालता है या स्तन-उच्छेदन करता है। चरण I और चरण II के अधिकतर रोगियों में स्तन संरक्षण शल्य स्तन-उच्छेदन शल्य जितना ही प्रभावशाली साबित हुआ है। स्तन संरक्षण शल्य के बाद कई बार रेडियेशन नहीं देते हैं। यह थोड़ा विवादास्पद मसला है और कई स्त्रियाँ रेडियेशन लेना पसन्द नहीं करती हैं खासतौर पर यदि -
· उम्र 70 वर्ष या अधिक हो
· अर्बुद 2 सैं.मी. या छोटा हो और उसकी बाहरी सामाएं कैंसर-घनात्मक नहीं हों
· अर्बुद हार्मोन-घनात्मक हो और रोगी हार्मोन चिकित्सा ले रही हो।
· लसिकापर्व कैंसर-ऋणात्मक हो
स्तन-उच्छेदन (Mastectomy)
स्तन-उच्छेदन में शल्य द्वारा पूरा स्तन निकाल दिया जाता है। कुछ परिस्थितियों में आसपास का कुछ ऊतक भी निकाले जाते हैं।
सामान्य स्तन-उच्छेदन (Simple Mastectomy) इसमें स्तनाग्र समेत पूरा स्तन निकाला जाता है, लेकिन कक्षीय लसिकापर्व और स्तन के नीचे की पेशी (Pectoral muscle) नहीं निकाली जाती है। यह सबसे प्रचलित शल्य है। इसे सम्पूर्ण स्तन-उच्छेदन (total mastectomy) भी कहते हैं। आवर्ती कैंसर का अधिक जोखिम हो तो दोनों स्तन (double mastectomy) निकाल दिये जाते हैं।
त्वचा-संरक्षण स्तन-उच्छेदन (Skin-sparing Mastectomy) जिन स्त्रियों में तुरन्त स्तन का पुनर्निर्माण किया जाना हो, उनमें अधिकांश त्वचा छोड़ दी जाती है, जो नया स्तन बनाने के काम आती है। हां स्तनाग्र और आभाचक्र निकाल दिये जाते हैं। इस त्वचा से बना स्तन वास्तविक लगता है और निशान भी कम दिखते हैं। बाकी शल्य क्रिया सामान्य स्तन-उच्छेदन जैसे ही की जाती है। यह शल्य बड़े अर्बुद या त्वचा के निकट के अर्बुद के लिए अनुकूल नहीं है और शरीर के अन्य हिस्सों से ऊतक लेकर स्तन बनाना पड़ता है।
यदि कैंसर की प्रारम्भिक अवस्था हो, अर्बुद छोटा हो और स्तन के बाहरी हिस्से में हो तो कुछ शल्य कर्मी स्तनाग्र को भी बचा लेते हैं। लेकिन इससे पहले वह सुनिश्चित कर लेता है कि स्तनाग्र तक कैंसर नहीं पहुँचा है। फिर भी कई शल्यकर्मी तो स्तनाग्र को रेडियेशन देना पसन्द करते हैं।
परिवर्तित मूलक स्तन-उच्छेदन (Modified radical mastectomy) इसमें स्तन के साथ कक्षीय लसिकापर्व भी निकाले जाते हैं।
मूलक स्तन-उच्छेदन (Radical mastectomy)
इस शल्य में पूरा स्तन, कक्षीय लसिकापर्व और स्तन के नीचे की पेशी (pectoral muscles) को निकाला जाता है। कभी यह शल्य बहुत प्रचलित था लेकिन आजकल बहुत बड़े अर्बुद के लिए ही किया जाता है। क्योंकि परिवर्तित मूलक स्तन-उच्छेदन (Modified radical mastectomy) भी इतना ही असरदार पाया गया है।
लसिकापर्व शल्य
एक या अधिक लसिकापर्व को निकाल कर सूक्ष्मदर्शी जांच द्वारा यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि कैंसर कक्षीय लसिकापर्व तक फैल चुका है या नहीं। इससे चरण निर्धारण और शल्य के बाद के उपचार सम्बंधी निर्णय लेने में बहुत मदद मिलती है। यदि कैंसर लसिकापर्व में फैल चुका है तो पूरी सम्भावना रहती है कि कैंसर रक्तप्रवाह द्वारा शरीर के अन्य अंगो तक फैल गया हो।
कक्षीय लसिकापर्व विच्छेदन (Axillary lymph node dissection)
इस शल्य में कक्ष (axilla) से 10-40 (सामान्यतः 20 से कम) निकाल कर कैंसर की जांच के लिए भेज दिये जाते हैं। इसे अर्बुद-उच्छेदन या स्तन-उच्छेदन के साथ ही या बाद में किया जाता है।
निकटस्थ लसिकापर्व बायोप्सी (Sentinel lymph node biopsy)
हालांकि लसिकापर्व विच्छेदन सुरक्षित शल्य है लेकिन इससे लिम्फेडीमा की सम्भावना रहती है। इसलिए आजकल चिकित्सक निकटस्थ लसिकापर्व बायोप्सी (Sentinel lymph node biopsy) करना पसन्द करते हैं। इस प्रक्रिया में शल्यकर्मी लसिकापर्व को बिना निकाले ही उसमें कैंसर की उपस्थिति का आंकलन कर लेता है। वह अर्बुद के सबसे पास के लसिका को ढूढ कर निकालता है, जिसमें कैंसर सबसे पहले फैलता है। इसको समीपस्थ लसिकापर्व (sentinel node) कहते हैं। इसके लिए वह अर्बुद में या उसके आसपास रेडियोएक्टिव डाई और / या नीली डाई छोड़ता है। लसिका-वाहिकाएं डाई को समीपस्थ पर्व (sentinel node) तक पहुँचा देती हैं।
चिकित्सक विशेष उपकरण द्वारा लसिकापर्व में रेडियोएक्टिविटी को नाप लेते हैं। शल्यकर्मी ठीक इसी जगह चीरा लगा कर लसिकापर्व निकाल लेता हैं और उसकी जांच करवा लेता है। यदि निकटस्थ पर्व में कैंसर निकलता है तो कक्षीय लसिकापर्व विच्छेदन कर दिया जाता है। लेकिन यदि समीपस्थ लसिकापर्व (sentinel node) में कैंसर नहीं मिलता है तो इसका मतलब होता है कि कैंसर अन्य लसिकापर्वों में भी नहीं फैला है और उनके शल्य की आवश्यकता नहीं है। इन दिनों यह शल्य बहुत प्रचलित है लेकिन इसे बहुत कुशल और अनुभवी शल्यकर्मी ही कर पाते हैं।
कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी (या सिर्फ कीमो) कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने वाली दवाइयाँ हैं जो शिरा या मुँह द्वारा दी जाती हैं। इन्हें हफ्तों या महीनों तक कई चक्रों (cycles) में दिया जाता है और दो चक्रों के बीच के अंतराल को विश्राम या स्वास्थ्य-बहाली अवधि (recovery period) कहते हैं। स्तन कैंसर में कीमो निम्न तरह से दी जाती है।
सहायक कीमोथेरेपी (Adjuvant chemotherapy)
जब यह उपचार शल्य के बाद कैंसर का कोई प्रमाण नहीं मिलने पर दिया जाता है, तो इसे सहायक कीमोथेरेपी कहते हैं। शल्य द्वारा मोटे तौर पर तो कैंसर को निकाल दिया जाता है। लेकिन शरीर में कैंसर के कुछ अवशेष रह ही जाते हैं। इस उपचार का मकसद शरीर में बचे इन्हीं अवशेष कोशिकाओं को मारना है। स्तन-संरक्षण शल्य या स्तन-उच्छेदन के पश्चात यह उपचार करने से कैंसर की पुनरावृत्ति होने का खतरा कम हो जाता है। रेडियो, कीमो और हार्मोन थेरेपी सहायक उपचार के रूप में दी जाती है।
नवसहायक कीमोथेरेपी (Neoadjuvant chemotherapy)
शल्य के पूर्व दिये जाने वाले उपचार को नवसहायक कीमोथेरेपी कहते हैं। इसमें दवाइयाँ तो वही दी जाती हैं और रोगी की जीवन दर पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। किन्तु इसका मकसद अर्बुद को छोटा करना है ताकि कम व्यापक शल्य करना पड़े। कई बार अर्बुद बहुत बड़ा होता है, जिसे शल्य द्वारा निकालना मुश्किल होता है, ऐसी स्थिति में भी यह उपचार अर्बुद को सिकोड़ कर छोटा कर देता है। इसका दूसरा मकसद कीमो के प्रभाव को परखना भी होता है।
विकसित कैंसर के लिए कीमोथेरेपी (Chemotherapy for advanced breast cancer)
यदि कैंसर स्तन और कक्षीय लसिकापर्वों को पार कर बाहर फैल चुका है, तो कीमो को मुख्य उपचार के रूप में भी दिया जाता है। उपचार की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि कीमो से कैंसर सिकुड़ता है या नहीं, सिकुड़ता है तो कितना सिकुड़ता है और रोगी उसे सहन कर पाती है या नहीं।
कीमोथेरेपी कैसे दी जाती है?
प्रायः कीमो तब अधिक असर करती है जब उन्हें एक से अधिक दवाइयों को संयुक्त-रूप (combinations) से दिया जाये। स्तन कैंसर में दवाइयों के निम्न संयुक्त-रूप प्रयोग में लिए जाते हैं।
· CMF: साइक्लोफोस्फेमाइड, मीथोट्रेक्सेट और 5-फ्लोरोयूरेसिल (5-FU)
· CAF (or FAC): साइक्लोफोस्फेमाइड, डोक्सोरूबीसिन (Adriamycin), और 5-फ्लोरोयूरेसिल (5-FU)
· AC: डोक्सोरूबीसिन (Adriamycin) और साइक्लोफोस्फेमाइड
· EC: इपीरूबीसाइन (Ellence) और साइक्लोफोस्फेमाइड
· TAC: डोसेटाक्सेल (Taxotere), डोक्सोरूबीसिन (Adriamyci), और साइक्लोफोस्फेमाइड
· AC → T: डोक्सोरूबीसिन (Adriamycin) और साइक्लोफोस्फेमाइड - इनके बाद पेक्लिटासेल (Taxol) or डोसेटाक्सेल (Taxotere) [ट्रासटुजुमेब (Herceptin) को पेक्लिटासेल या डोसेटाक्सेल के साथ दे सकते हैं HER2/neu घनात्मक अर्बुद के लिए]
· A → CMF: डोक्सोरूबीसिन (Adriamycin), और इसके बाद CMF
· CEF (FEC): साइक्लोफोस्फेमाइड, इपिरूबीसिन, और 5-फ्लोरोयूरेसिल (5-FU) (इसके बाद डोसेटाक्सेल दें)
· TC: डोसेटाक्सेल (Taxotere) और साइक्लोफोस्फेमाइड
· TCH: डोसेटाक्सेल, कार्बोप्लेटिन, और ट्रासटुजुमेब (Herceptin) HER2/neu घनात्मक अर्बुद के लिए
स्तन कैंसर में सिसप्लेटिन, वाइनोरेलबीन, केपेसिटेबीन, लाइपोजोमल डोक्सोरूबीसिन, जेमसिटोबीन, माइटोजेन्ट्रोन, इक्साबेपिलोन और इरिबुलिन भी प्रयुक्त होती हैं। ट्रासटुजुमेब और लेपाटिनिब इन दवाइयों के साथ हर-2 घनात्मक अर्बुद के लिए प्रयोग की जाती हैं।
कीमो की विस्तृत जानकारी हेतु चटका करें।
कुप्रभाव
कीमो तेजी से विभाजित होने वाली कोशिकाओं पर प्रहार करती है। लेकिन शरीर की कई कोशिकाएं जैसे अस्थि-मज्जा, मुँह तथा आहार-पथ की उपकला कोशिकाएँ और केश-कूप (hair follicles) भी तेजी से विभाजित होते हैं, इसलिए कीमो इनको भी जला देती है और रोगी को अनेकों कुप्रभाव होते हैं जैसे।
· गंजापन और शरीर के बाल झड़ जाना
· मुँह में छाले
· क्षुधालोप या क्षुधावर्धन (Loss of Hunger and over eating)
· मिचली और उबकाई (Nausea and Vomiting)
· संक्रमण (श्वेत रक्तकण कम होने के कारण)
· त्वचा लाल पड़ना या रक्तस्राव (प्लेटलेट कम होने के कारण)
· थकावट (लाल रक्तकण कम होने तथा अन्य कारण से)
ये कुप्रभाव प्रायः थोड़े समय रहते हैं और बाद में ठीक हो जाते हैं। इनके अलावा अन्य कुप्रभाव भी हो सकते हैं। कुछ दवाइयों के खास कुप्रभाव हो सकते हैं।
माहवारी विकार
युवा स्त्रियों में प्रायः माहवारी सम्बंधी विकार हो सकते हैं। समयपूर्व तथा स्थाई रजोनिवृत्ति और बांझपन हो सकता है। रजोनिवृत्ति होने के कारण अस्थिह्रास (Bone loss) और अस्थिक्षय (osteoporosis) हो सकता है। इसे रोकने के लिए दवाइयाँ दी जा सकती हैं। कभी-कभी माहवारी बंद होने पर भी रोगी गर्भवती हो सकती है और कीमो के कारण शिशु में जन्म-दोष हो सकते हैं। इसलिए रोगी को कीमो के दौरान गर्भनिरोधक उपचार लेना चाहिये। वे कीमो के बाद रोगी गर्भधारण कर सकती है।
नाड़ीरोग
स्तन कैंसर की टेक्सेन्स (डोक्सीटेक्सेल और पेसिटेक्सेल) , प्लेटिनम एजेंट (कार्बोप्लेटिन और सिसप्लेटिन) , वाइनोरेलबीन, इरुबुलिन और इक्साबेपिलोन समेत कई दवाइयाँ नाड़ियों को नुकसान पहुँचाती हैं और रोगी को सुन्नता, दर्द, जलन, सिरहन, कमजोरी, ठंडे गरम के प्रति संवेदनशीलता आदि लक्षण हो सकते हैं। प्रायः ये लक्षण उपचार बंद करने पर ठीक हो जाते हैं, परन्तु कई बार लम्बे समय तक रोगी को कष्ट देते हैं।
हृदय-विकार
डोक्सोरूबीसिन, इरुबुलिन और कुछ अन्य दवाइयाँ दिल को कोई स्थाई रोग (cardiomyopathy) लगा जाती है, हृदय विकार का जोखिम दवा की मात्रा और अवधि पर निर्भर करता है। इस बारे में चिकित्सक पूरी सतर्कता रखता है, दवा देने के पहले MUGA स्केन या ई.सी.जी. करवा लेता है और उपचार के दौरान भी हृदयरोग के लक्षण होने पर पुनः जांच कर लेता है। यदि दवा हृदय पर कुप्रभाव डाल रही है तो दवा बदल हेता है। ट्रासटुजुमेब हृदय को नुकसान पहुँचाने में सबसे आगे है, अतः सतर्कता रखना बहुत जरूरी है।
हाथ और पैर सिन्ड्रोम
कुछ कीमो दवाइयाँ विशेषतौर पर केपेसिटाबाइन और लाइपोजोमल डोक्सोरुबीसिन हथेलियों और पैर के तलवों में जलन और तकलीफ देती है। शुरू में सुन्नता, सिरहन या लालिमा हो सकती है, लेकिन आगे चल कर सूजन, फफोले और तेज दर्द भी हो सकता है। इसका कोई उपचार नहीं है, चिकित्सक दवा की मात्रा कम करता है या बदल देता है।
कीमो ब्रेन
कीमो का मस्तिष्क पर भी कुप्रभाव पड़ता है जिसे कीमो ब्रेन कहते हैं। इसमें रोगी का मस्तिष्क की सक्रियता कम हो जाती है। उसे एकाग्रता और स्मृति सम्बंधी विकार हो सकते हैं, जिन्हें ठीक होने में कुछ वर्ष लगते हैं।
ल्यूकीमिया का खतरा
कीमो अस्थिमज्जा को स्थाई रूप से नुकसान पहुँचा सकती है और रोगी को कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया रोग (रक्त का कैंसर) हो सकता है।
रुग्णता और थकावट
कीमो के बाद कई स्त्रियां पहले जैसा स्वस्थ महसूस नहीं करती हैं, कई तरह के छोटी-मोटी तकलीफें या दर्द बने रहते हैं। कुछ स्त्रियों को कीमो के बाद कई वर्षों तक अवसाद, अनिद्रा, थकावट और कमजोरी बनी रहती है
हर-2/ न्यू प्रोटीन को निष्क्रिय करने
ट्रासटुजुमेब (हरसेप्टिन)
हर 5 में से एक रोगी की कैंसर कोशिकाओं की सतह पर प्रचुर मात्रा में अवस्थित एक संवृद्धि कारक प्रोटीन हर-2/ न्यू या HER2 होता है। यह कैंसर कोशिकाओं की संवृद्धि और प्रसार को बढ़ाता है। ट्रासटुजुमेब (हरसेप्टिन) एक मोनोक्लोनल एन्टीबॉडी - मानव निर्मित विशिष्ट प्रोटीन है, जो हर-2/ न्यू से चिपक उसे निष्क्रिय बनाता है। इस तरह यह कैंसर की संवृद्धि (Growth) को काबू में रखता है और रोगी को शरीर में कैंसर से लड़ने वाली सेनाओं को मजबूत करता है।
यह शिरा में हफ्ते में एक बार या इसकी बड़ी मात्रा हर तीन हफ्ते में एक बार दी जाती है। इसे प्रायः कीमो के साथ हर-2 घनात्मक रोगी को आवर्ती कैंसर के खतरे (risk of recurrence) से बचाने के लिए दिया जाता है। पूरा उपचार एक वर्ष चलता है और रोगी की जेब पर 75 लाख का फटका लगता है।
इसे हर-2 घनात्मक उन रोगियों को भी दिया जाता है जिन्हें कीमो लेने के बाद दोबारा कैंसर हो गया है। इसे कीमो के साथ देने से बेहतर नतीजे मिलते हैं। यदि उपचार लेने के उपरान्त भी कैंसर बढ़ता है तो भी ट्रासटुजुमेब को बंद नहीं किया जाता , बल्कि कीमो की दवाइयों को बदल दिया जाता है।
इसके कुप्रभाव कीमो से थोड़े कम खतरनाक होते हैं। इससे प्रायः ठंड लग कर बुखार, कमजोरी, मिचली, उबकाई, खांसी, दस्त और (Congestive heart failure) है। इसे डोक्सोरुबीसिन और इपिरुबीसिन के साथ लेने पर हृद्पात का खतरा अधिक रहता है। इसलिए उपचार के दौरान हृदय की स्थिति पर नजर रखी जाती है। हृद्पात के मुख्य लक्षण श्वास कष्ट, पैरों में सूजन, थकावट आदि हैं।
लेपाटिनिब
लेपाटिनिब भी हर-2 प्रोटीन पर प्रहार करती है। यदि ट्रासटुजुमेब और कामो काम नहीं करे तो इसे दिया जाता है। इसे प्रायः केपेसाइटाबाइ के साथ देते हैं। यदि कैंसर इस्ट्रोजन प्रोजेस्ट्रोन घमात्मक हो तो लेट्रोजोल के साथ भी दे सकते हैं। इसे गोली के रूप में दिया जाता है। एक महीने की गोलियों की कीमत एक लाख से ज्यादा ही होती है। इसके कुप्रभाव दस्त, मितली, उबकाई, त्वचा में चकत्ते, हेन्डफुट सिन्ड्रोम, यकृत विकार, हृद्पात आदि होते हैं।
स्थलान्तर कैंसर की निगरानी
सामान्यतः हर महीने रोगी की जांच और पूछताछ के लिए बुलाया जाता है। रोग के निकास और कुप्रभावों की जानकारी ली जाती है। उपचार पर नजर रखने के लिए छायांकन जांच, इतिहास, रोगी का परीक्षण और ट्यूमर मार्कर CEA, CA15.3, और CA27.29 करवाये जाते हैं। 60-70% रोगियों में CA15.3, और CA27.29 रोग की प्रगति का आंकलन कर देते हैं जबकि CEA 40% रोगियों में ही सही आंकलन कर हाता है।
अकेले ट्यूमर मार्कर CEA, CA15.3, और CA27.29 रोग की प्रगति के आंकलन के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कई बार ये गलत सूचनाएं भी दे देते हैं। जब भी रोगी में नये लक्षण दिखें या अर्बुद बढ़ने लगे तो सीटी, एम.आर.आई. या पी.ई.टी. स्केन करवा लिया जाता है।
कैंसर कोशिकाओं से टूट कर कुछ कोशिकाएं रक्त में घूमती रहती हैं, इन्हें भ्रमणशील अर्बुद कोशिकाएं (Circulating tumor cells) कहते हैं। इनकी संरचना कैंसर कोशिका जैसी ही होती है। इनके अधिक होने का मतलब है कि कैंसर फैल रहा है। एफ.डी.ए. ने इनकी गणना करने के लिए एक सेल सर्च सिस्टम को अनुमोदित किया है।
हार्मोन थेरेपी
हार्मोन थेरेपी प्रायः शल्य के बाद सहायक उपचार के रूप में दी जाती है, ताकि भविष्य में आवर्ती कैंसर का खतरा कम किया जा सके। कभी इसे शल्य पूर्व नव-सहायक उपचार के रूप में भी दिया जाता है। इस्ट्रोजन स्त्री होर्मोन है जो रजस्वला से रजोनिवृत्ति तक अंडाशय में स्रावित होता है। लेकिन रजोनिवृत्ति के बाद भी शरीर की वसा कोशिकाएं कम मात्रा में इस्ट्रोजन बनाना शुरू कर देती हैं।
दो तिहाई स्तन कैंसर इस्ट्रोजन घनात्मक (ER-positive cancers) और / या प्रोजेस्ट्रोन घनात्मक (PR-positive cancers) होते हैं। अर्थात इन कैंसर की कोशिकाओं में इस्ट्रोजन और / या प्रोजेस्ट्रोन अभिग्राहक स्थल होते हैं, जहाँ ये हार्मोन चिपक कर कैंसर कोशिकाओं के विभाजन को प्रोत्साहित करते हैं। इसलिए इन कैंसर के उपचार में इस्ट्रोजन को अवरुद्ध या कम करने के लिए कई दवाइयां दी जाती हैं।
टोमोक्सीफेन और टॉरेमीफेन
ये इस्ट्रोजनरोधी दवाइयाँ इस्ट्रोजन के अभिग्राहक स्थलों से चिपक जाती है और इस्ट्रोजन कैंसर कोशिका पर असर नहीं कर पाता है। इसे शल्य के बाद गोली के रूप में पाँच वर्ष तक दी जाती है। टेमोक्सीफेन स्थलान्तर कैंसर (metastatic breast cancer) और अधिक जोखिम वाले कैंसर में भी दी जाती है। टॉरेमीफेन स्थलान्तर कैंसर के लिए ही अनुमोदित की गई है।
इनके प्रमुख कुप्रभाव थकावट, हॉट फ्लेशेज, शुष्क योनि, योनि स्राव, पेशियों में सूजन और मनोदशा विकार (mood swings) हैं। जिन रोगियों में कैंसर अस्थियों में फैल चुका हो, उन्हें टेमोक्सीफेन से पेशियों और अस्थियों में दर्द की शिकायत हो सकता हैं जो कुछ समय बाद ठीक भी हो जाती है। लेकिन कुछ रोगियों के रक्त में केल्शियम का स्तर बढ़ सकता है जिसे नियंत्रित करना भी मुश्किल हो होता है। और उपचार बन्द करना पड़ सकता है। कभी कभार यह दवा रजोनिवृत्त स्त्रियों में गर्भाशय के कैंसर (endometrial cancer and uterine sarcoma) का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए यदि योनि से रक्तस्राव हो तो तुरन्त ध्यान देना जरूरी है।
इस दवा का एक घातक कुप्रभाव टांग की नसों में खून का थक्का जम जाना (deep venous thrombosis or DVT) है। यह थक्का टूट कर फेफड़े की धमनी को बंद (pulmonary embolism or PE) कर सकता है। टांग में सूजन, लालिमा, दर्द या श्वास-कष्ट और छाती में दर्द DVT के लक्षण हैं।
टेमोक्सीफेन से स्ट्रोक (सिरदर्द, हड़बड़ाहट, चलने या बोलने में दिक्कत) या हृदयाघात (heart attack) भी हो सकता है।
ऐरोमेटोज इन्हिबीटर्स
रजोनिवृत्त स्त्रियों में इस्ट्रोजन का स्राव कम करना वाली तीन औषधियों लेट्रोजोल, ऐनास्ट्रोजोल और ऐग्जीमेस्टेन को प्रारम्भिक और एन्जाइम ऐरोमेटोज को बाधित करती हैं। इसलिए ये रजोनिवृत्त स्त्रियों में ही असर करती हैं। ये रोजाना गोली के रूप में ली जाती हैं। कई शोध कर्ताओं ने इन्हें टेमोक्सीफेन से बेहतर माना है और ये निर्देश जारी किये हैं।
· टेमोक्सीफेन 2-3 वर्षों तक और बाद में ऐरोमेटोज इन्हिबीटर्स कुल उपचार अवधि 5 वर्ष
· टेमोक्सीफेन 5 वर्षों तक और उसके बाद ऐरोमेटोज इन्हिबीटर्स 5 वर्ष तक
· ऐरोमेटोज इन्हिबीटर्स 5 वर्ष तक
इनके प्रयोग से पेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द और जकड़न हो सकता है। क्योंकि ये रजोनिवृत्त स्त्रियों में इस्ट्रोजन के भण्डार खाली कर देती है, इसलिए इनसे अस्थि-क्षय (osteoporosis and even fracture) भी हो सकता है।
आक्रामक स्तन कैंसर का उपचार
आक्रामक स्तन कैंसर के उपचार हेतु अर्बुद-उच्छेदन (lumpectomy) या पूर्ण स्तन-उच्छेदन (total mastectomy) किया जाता है। यदि शुरूआती जांच में रोगी के लसिकापर्व ऋणात्मक लगे तो भी कक्षीय चरण निर्धारण हेतु सेन्टिनेल लसिकापर्व का विच्छेदन (sentinel lymph node dissection) किया जाता है।
स्तन संरक्षण रेडियेशन उपचार
स्तन संरक्षण शल्य के बाद दी जाने वाली रेडियोथेरेपी का उद्देश्य कैंसर के स्थानीय और अवशेष ऊतकों का उन्मूलन करना है, ताकि आवर्ती कैंसर का खतरा 75% तक कम हो जाये। यह दो तरह से दी जाती है। पहली परम्परागत बाहरी किरणपुण्ज रेडियोथेरेपी (conventional external beam radiotherapy EBRT) और दूसरी आंशिक स्तन रेडियेशन (partial-breast irradiation PBI)।
सम्पूर्ण स्तन रेडियोथेरेपी हेतु EBRT द्वारा 50-55 Gy की मात्रा 5-6 हफ्ते तक दी जाती है। इसके बाद एक बूस्ट डोज अर्बुद की जगह दी जाती है। इसके प्रमुख पार्ष्व-प्रभाव थकावट, स्तन में दर्द, सूजन और त्वचा का विशल्कन या चमड़ी उतरना (desquamation) है। दीर्घगामी कुप्रभाव स्तन में सूजन बने रहना, दर्द, तन्तुमयता (fibrosis) और त्वचा में अतिवर्णकता (hyperpigmentation) हैं। इनके अलावा पसली टूट जाना, फेफड़ें में तन्तुमयता (fibrosis), हृदय विकार और द्वितीयक कैंसर भी हो सकते हैं।
आंशिक स्तन रेडियेशन (partial-breast irradiation PBI) - यह कैंसर के प्रारम्भिक रोगियों (जिनकी स्तन संरक्षण शल्य हुआ है) को दी जाती है, ताकि ज्यादा मात्रा दी जा सके और दीर्घगामी कुप्रभाव भी कम हो। इसमें लिए रेडियोधर्मी बीज या पेलेट स्तन में अवस्थित कर दिये जाते हैं। यह कई तरह से जैसे इन्टरस्टिशियल ब्रेकीथेरेपी (स्तन में कई केथेटर डाल कर), अन्तरगुहीय ब्रेकीथेरेपी (अर्बुद के स्थान पर एक बेलून केथेटर डाल कर) दी जाती है। यह 5 दिन तक दिन मे दो बार दी जाती है। अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ब्रेस्ट सर्जन्स ने आंशिक स्तन रेडियेशन के लिए निम्न मापदण्ड तय किये हैं।
· उम्र 45 वर्ष या अधिक
· आक्रामक डक्टल कार्सिनोमा या DCIS
· अर्बुद 3 सैं.मी. या बड़े
· निकाली गई गाँठ की बाहरी सतह के सूक्ष्मदर्शी जांच में कैंसर कोशिकाएं न मिलना
· ऋणात्मक कक्षीय या समीपस्थ लसिकापर्व
स्तन-उच्छेदन के बाद रेडियेशन थेरेपी
के मापदण्ड हैं।
· स्तन-उच्छेदन के बाद घनात्मक सीमाएं
· 5 सैंमी. से बड़ा अर्बुद
· 4 या अधिक लसिकापर्व
चार से अधिक घनात्मक लसिकपर्व हो तो इनके कक्षीय और अधिजत्रुकी लसिकापर्वों (Axillary और supraclavicular lymph nodes) को 4500-5000 cGy मात्रा में रेडियेशन दिया जाता है। जिन रोगियों के कक्षीय लसिकापर्वों का विच्छेदन हुआ हो और ऋणात्मक पाये गये हों तो उन्हें रेडियेशन देने की जरूरत नहीं है।
स्तन-उच्छेदन के बाद रेडियेशन थेरेपी और लसिकापर्वों को रेडियोथेरेपी देने से कैंसर की पुनरावृत्ति और कैंसर के कारण मृत्यु की दर में बहुत कमी होती है।
कोरसिनोमा स्वस्थानी (carcinoma in-situ) का उपचार
डक्टल कोरसिनोमा स्वस्थानी (Ductal carcinoma in-situ)
आजकन DCIS का उपचार सिर्फ शल्यक्रिया या शल्यक्रिया और रेडियेशन द्वारा किया जाता है। लगभग 30% स्त्रियों में स्तन-उचछेदन और / या स्तन पुनर्निर्माण किया जाता है, 30% में स्तन-संरक्षण शल्य किया जाता है और 40% में स्तन-संरक्षण शल्य करने के बाद सम्पूर्ण स्तन रेडियोथेरेपी दी जाती है। इन रोगियों में कक्षीय या निकटस्थ लसिकापर्वों (sentinel lymph node) का विच्छेदन नहीं किया जाता है।
DCIS में सम्पूर्ण स्तन रेडियोथेरेपी शल्य के बाद 5-6 हफ्ते दी जाती है। इससे स्थानीय पुनरावृत्ति दर में 60% कमी आती है। DCIS में हार्मोन थेरेपी हेतु सिर्फ टेमोक्सीफेन ही अनुमोदित की गई है।
खण्डीय कोरसिनोमा स्वस्थानी (Lobular carcinoma in-situ)
इसका उपचार रोगी की कड़ी देखरेख तथा चौकसी रखना और / या टेमोक्सीफेन तथा द्विपार्ष्वीय स्तन-उच्छेदन (bilateral mastectomy) और / या स्तन पुनर्निर्माण द्वारा किया जाता है। इसके उपचार में कक्षीय विच्छेदन, रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी का विशेष महत्व नहीं है।
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