Sunday, March 25, 2012

Unresolved Stress (Psychosomatic) - Causes Cancer



डॉ. राइक गीर्ड हेमर का परिचय
डॉ. राइक गार्ड हेमर सन् 1935 में फ्रिसिया, जर्मनी में पैदा हुए थे। उन्होंने ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय में आध्यात्म-विद्या और चिकित्साशास्त्र का  अध्ययन किया था। सन् 1957 में उन्होंने आध्यात्म-विद्या की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन् 1962 में मेडीसिन की पढ़ाई पूरी की और सन् 1963 में उन्हें मेडीकल रजिस्ट्रेशन मिल गया था। पढ़ाई के दौरान ही उनकी दोस्ती एक मेडीकल छात्रा सिग्रिड ऑल्डेनबर्ग से हुई और एक साल बाद ही दोनों ने शादी कर ली।
सन् 1972 में उन्होंने इन्टरनल मेडीसिन में डॉक्टर ऑफ मेडीसिन की डिग्री हासिल की और ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय की क्लिनिक में ही कैंसर के रोगियों का उपचार करने लगे। वे बहुत बुद्धिमान थे और उन्होंने कई आविष्कार किये, जिनमें प्रमुख हैं नॉन-ट्रॉमेटिक स्केल्पल (जो साधारण रेज़र ब्लेड से 20 गुना अधिक तेज था), प्लास्टिक सर्जरी के लिए हड्डी काटने की आरी और स्वचालित मसाज टेबल आदि।
इन आविष्कारों से उन्होंने बहुत धन अर्जित किया और रोम में अपनी क्लीनिक शुरू की। 18 अगस्त, 1978 को सेवॉय, इटली के राजकुमार विक्टर एमानुएल की गोली से उनका बेटा डर्क बुरी तरह घायल हो गया। अंततः 7 दिसम्बर को उसकी मृत्यु हो गई।  यह पूरे परिवार के लिए बड़ा सदमा था। कुछ समय बाद उन्हें टेस्टीज का कैंसर हो गया। उन्हें लगा कि यह उन्हें बेटे की मृत्यु के कारण ही हुआ है। उन्होंने इसे डर्क हेमर । सिंड्रोम का नाम दिया यह घटना ने उनके जीवन में एक नया मोड़ साबित हुई।
उन्होंने कैंसर के रोगियों पर वर्षों तक शोध की और सिद्ध किया कि हर रोग किसी न किसी मानसिक आघात या सदमें के कारण होता है। उन्होंने 40,000 रोगियों पर  प्रयोग किये और इन अनुभवों के आधार पर नई जर्मन मेडीसिन के पांच नियम (The Five Biological Laws of the New Medicine) बनाये।  उनके नतीजे चौकाने वाले थे, परन्तु डाक्टर्स की बिरादरी उनकी बातों को मानना नहीं चाह रही थी। उनकी शोध से किसी को फायदा होता नजर नहीं आ रहा था। मस्तिष्क सी.टी.स्केन में धब्बों के बारे में रेडियोलोजिस्ट कहने लगे कि ये तो मशीन की त्रुटियों के कारण बने (आर्टीफेक्ट) हैं।  जबकि मशीन बनाने वाली सीमेंस कम्पनी भी कह रही थी कि ये धब्बे आर्टीफेक्ट नहीं हैं।
आखिरकार सन् 1981 में उन्होंने अपनी शोध को सत्यापन के लिए  ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया। वे चाहते थे कि उनकी खोज को मेडीकल स्कूल में पढ़ाया जाये ताकि रोगियों को उसका लाभ मिल सके। लेकिन  विश्वविद्यालय ने उनकी शोध का अवलोकन करने से मना कर दिया।  और कुछ ही समय बाद उन्हें चेतावनी दी गई कि वे अपनी ही शोध को नकारे और इसे कचरे के डिब्बे में डाल दें। उनकी पत्नि भी बेटे की मौत के संताप से कभी निकल नहीं पाई और अंततः सन् 1985 में भगवान को प्यारी हो गई।
डॉ. हेमर के विरुद्ध षड़यंत्र गहरे होते गये, उन पर मकदमे किये गये और सन् 1986 में अदालत ने उनका मेडीकल रजिस्ट्रेशन  छीन लिया। हालांकि अदालत में कोई भी उनके शोध-पत्र झुठला  नहीं पाया। सच्चाई के लिए उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और लड़ते रहे।
लेकिन सन् 1997 में उन्हें बिना लाइसेंस के तीन रोगियों को मुफ्त में देखने के जुर्म में गिरफ्तार किया और 19 महीने के लिए जेल भेज दिया गया।  गिरफ्तारी के समय पुलिस  उनके शोध-पत्र भी  साथ ले गई। उनकी शोध,  अध्ययन और उपचार इतना प्रभावशाली था कि इतना  अदालत में  पब्लिक प्रोसीक्यूटर को भी मानना पड़ा कि उन्होंने कैंसर की अंतिम अवस्था के जिन 6500 मरीजों का इलाज किया था, पाच साल बाद भी उनमें से 6000 जिन्दा थे।
9 सितम्बर, 2004 को उन्हें स्पेन में अपने घर पर फिर गिरफ्तार किया और फ्रांस की जेल में भेज दिया गया। उन पर इल्जाम था कि उनकी किताब पढ़ कर कुछ फ्रेंच रोगियों की मृत्यु हो गई, जब कि वे कभी उन रोगियों से मिले ही नहीं थे। फरवरी, 2006 को उन्हें जेल से रिहा किया गया और मार्च, 2007 में उन्हें नोर्वे भेज दिया गया। आज वे सेन्दियोर्ड, नोर्वे में निर्वासन का जीवन बिता रहे हैं।  यह है मानवता की सच्ची सेवा की सजा........

अनसुलझा आघात या सदमा (Psychosomatic)  - कैंसर का अहम कारक
जर्मनी के शल्य-चिकित्क और कैंसर विशेषज्ञ डॉ. राइक गीर्ड हेमर (जन्म - 1935) पिछले दस वर्ष से कैंसर के मनोविज्ञान पहलुओं और उपचार पर शोध कर रहे हैं। इन्होंने 40,000 से अधिक सभी तरह के कैंसर रोगियों से पूछताछ और परीक्षण किये हैं। वे चकित थे कि कैंसर एक अंग से उसके पास के अंग में क्यों नहीं फैलता है। जैसे कि उन्होंने एक ही स्त्री में गर्भाशय–ग्रीवा (Cervix) और गर्भाशय (Uterus) दोनों के कैंसर कभी एक साथ नहीं देखे। उन्होंने इस बात पर भी गौर किया कि उनका हर रोगी कैंसर होने के कुछ वर्षों पहले किसी मानसिक आघात या सदमें से गुजरा था, और वह इस सदमें से पूरी तरह निकल नहीं पाया था।
डॉ. हेमर हर रोगी के सिर का सीटी स्केन भी करवाते थे। और उन्होंने यह भी देखा कि हर रोगी के सीटी स्केन में मस्तिष्क के किसी हिस्से में एक गहरे धब्बे या छल्ले होते थे। यह बात भी काबिले गौर थी कि अमुक अंग के कैंसर के रोगियों के मस्तिष्क में वह छल्ले बिलकुल एक खास जगह ही होते थे। उन्होंने सभी रोगियों में कैंसर के ठिकाने, मस्तिष्क में छल्लों की स्थिति और सदमें की किस्म में शत-प्रतिशत एक खास तरह का सम्बंध देखा। यह बहुत चौंकाने वाली बात थी। इन अनुभवों के आधार पर डॉ. हेमर ने निष्कर्ष निकाला कि हर भावना (जैसे क्रोध, कुंठा या संताप) को महसूस करने के लिए मस्तिष्क में विशेष केन्द्र होता है और ये केन्द्र किसी अंग की गतिविधि का नियंत्रण भी करता है। जब कोई व्यक्ति लम्बे समय तक किसी तरह के सदमा से गुजरता है, जिसे वह सुलझा भी नहीं पाता है तो नकारात्मक संकेत मिलते रहने से मस्तिष्क का वह केंन्द्र भी कुंठित, क्रोधित और कर्महीन हो जाता है। कर्महीन होने से वह एक खास अंग की कार्य-प्रणाली की ठीक से देखभाल नहीं कर पाता और आधे-अधूरे और गलत सन्देश भेजता है। फलस्वरूप उस अंग में असामान्य कोशिकाएं बनने लगती हैं और वह कैंसर से ग्रस्त हो जाता है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि कैंसर का फैलना (स्थलान्तर या metastasis) किसी नये सदमे के कारण होता है जैसे कैंसर होने का तनाव या कैंसर के लिए दिया जाने वाला क्रूर और कष्टप्रद उपचार (कीमो और रेडियो)।
डॉ. हेमर ने रोगियों को उपचार के साथ मनोचिकित्सा देना भी शुरू कर दिया। उन्होंने अनुभव किया कि जैसे ही मनोचिकित्सा असर दिखाती है और रोगी सदमा से निकल जाता है, कोशिका स्तर पर उसके कैंसर का बढ़ना तुरन्त रुक जाता है और मस्तिष्क के धब्बे गायब होने लगते हैं। अब एक्स-रे में धब्बों की जगह क्षतिग्रस्त केन्द्र के चारो तरफ निरोग होती जलमग्न (healing edema) कोशिकाएं दिखाई देती हैं। शरीर और मस्तिष्क के बीच पुनः अच्छे सम्बंध बनने लगते हैं। इसी तरह का दृष्य उन्होंने  (निरोग होती जलमग्न कोशिकाएं) कैंसर के चारों तरफ भी देखा। इसके बाद कैंसर की गांठें ठीक होती दिखाई देने लगी। इस तरह डॉ. हेमर ने सिद्ध किया कि अनसुलझे सदमे, प्रति-द्वन्द और आघात के कारण कैंसर और अन्य रोग होते हैं। संलग्न तालिका में इन्होंने विभिन्न तरह के सदमों और उनके कारण होने वाले कैंसर को प्रदर्शित किया है। 
अंग
 अनसुलझा सदमा
एडरीनल कॉर्टेक्स  Adrenal Cortex
 पथभ्रष्ट होना Wrong Direction.  Gone Astray
मूत्राशय  Bladder
 बुरा सदमा, कटु अनुभव  Ugly Conflict.  Dirty Tricks
अस्थि  Bone
 हीनभावना, असम्मान Lack of Self-Worth.  Inferiority Feeling
मस्तिष्क कैंसर  Brain Cancer
 हठ,  कुंठा    Stubborness.  Refusing to Change Old Patterns.  Mental Frustration
स्तन दुग्ध ग्रंथि  Breast Milk Gland
 देखभाल में कमी या बेसुरापन Involving Care or Disharmony
स्तन दुग्ध नलिका  Breast Milk Duct
 अलगाव Separation Conflict
स्तन बायां  Breast (Left)
 मां, बच्चों या अन्य घरेलू सदमा  Conflict Concerning Child, Home, or Mother
स्तन दाहिना  Breast (Right)
 जीवनसाथी या अन्य व्यक्ति से मतभेद Conflict with Partner or Others
गर्भाशय ग्रीवा  Cervix
 गहरी कुंठा Severe Frustration
पित्ताशय  Gall Bladder
प्रतिस्पर्धा या प्रतिद्वन्दता Rivalry Conflict
हृदय   Heart
 लम्बा सदमा Perpetual Conflict
स्वर यंत्र  Larynx
डर  Conflict of Fear and Fright
अग्न्याशय  Pancreas
परिजनों से तनाव या क्रोध  Anxiety-Anger Conflict with Family Members.  Inheritence
मलाशय  Rectum
 बेकार हो जाने का डर Fear of Being Useless
त्वचा  Skin
 बदनामी या लांछन  Loss of Integrity
प्लीहा Spleen
 शारीरिक या भावनात्मक प्रताड़ना Shock of Being Physically or Emotionally Wounded
वृक्क और अंडकोष Testes and Ovaries
 किसी की मृत्यु का सदमा Loss Conflict
थायरॉयड Thyroid
 असहाय महसूस करना Feeling Powerless
गर्भाशय Uterus
 लैंगिक सदमा Sexual Conflict
 THE COMMON REACTION TO THE ABOVE UNRESOLVED CONFLICTS IS
REPRESSED HATE, ANGER, RESENTMENT AND / OR COMPLICATED GRIEF



अपरिहार्य तनाव या सदमा

जब कोशिका में एडरिनेलीन का स्तर घटता है, तो शर्करा की मात्रा बढ़ती है और ऑक्सीजन की कमी होती है तो कैंसर की शुरूआत होती है। जिसके फलस्वरूप कोशिका की वायवीय श्वसन-क्रिया (Oxygen Krebs cycle) बाधित होती है और कोशिका म्यूटेशन की शिकार हो जाती है। शरीर की कोशिका पर तनाव या सदमे के कई कारण हो सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक तनाव के कारण अपरिहार्य सदमा (unavoidable shock), क्रोध (repressed anger), अवसाद, एकाकीपन, अनिद्रा, भावनात्मक सदमा, और बाहरी तनाव होते हैं। भौतिक तनाव के कारण कुपोषण, रसायन, टॉक्सिन्स, विद्युत-चुम्बकीय विकिरण, परजीवी संक्रमण, यकृत, वृक्क या आंत्र रोग, और निष्क्रिय जीवनशैली आदि होते हैं।  कैंसर के अधिकांश रोगियों में मनोवैज्ञानिक और भौतिक दोनों ही तरह के तनाव हो सकते हैं। यह तनाव या सदमा लगभग 18-24 महीने में रोगी को कैंसर का शिकार बना देता है। इस रोगजनकता को  डॉ. गीर्ड हेमर ने निम्न पांच चरणों में बांटा है।
चरण – 1 – सबसे पहले अपरिहार्य तनाव की दस्तक
यह चरण कैंसर के निदान के लगभग दो वर्ष पूर्व शुरू होता है, जब रोगी किसी भारी सदमे या कोई मानसिक तनाव का शिकार होता है। वह रातों में चैन से सो नहीं पाता है। उसकी शीर्ष-ग्रंथि (Pineal Gland) मेलाटोनिन हार्मोन बनाना कम कर देती है। यह हार्मोन कैंसर-कोशिका की संवृद्धि (Growth) को काबू में रखता है और शरीर की रक्षाप्रणाली को मजबूत करता है।
इस चरण में मस्तिष्क का अमुक हिस्सा मानसिक तनाव के कारण कर्महीन और कुंठित हो जाता है। मस्तिष्क का यह हिस्सा किसी खास अंग की गतिविधि का नियंत्रण भी करता है और इसलिए यह उस अंग की कार्य-प्रणाली की ठीक से देखभाल नहीं कर पाता और आधे-अधूरे और गलत सन्देश भेजता है और वह कैंसर से ग्रस्त हो जाता है।  
चरण – 2 -  तनाव - रक्षाप्रणाली का दुष्मन
दूसरे चरण में तनाव हार्मोन कोर्टिजोल का बढ़ता स्तर और रोगी के अवचेतन मन में मरने की इच्छा के कारण शरीर की रक्षाप्रणाली कमजोर होती है। जब रोगी लम्बे समय तक तनाव और अपरिहार्य सदमे के कारण जीवन में निराश हो जाता है और जीवन के कष्ट तथा संघर्ष को सुलझाने में पूर्णतः असमर्थ महसूस करता है। और उसका अवचेतन मन रक्षाप्रणाली को गुपचुप जीवन को शटडाउन करने के संदेश भेजता रहता है।  
इससे सोमेटिड्स (somatids) हरकत में आ जाते हैं। सोमेटिड सूक्ष्म मित्र जावाणु होते हैं, जो रक्त-प्रवाह में विचरण करते हैं। स्वस्थ मनुष्य मे, जिसकी रक्षाप्रणाली मजबूत होती है, इनके जीवन-चक्र में तीन चरण होते हैं – सोमेटिड, बीजाणु (spore) और द्वि-बीजाणु (double spore)।  लेकिन यदि शरीर की रक्षा-प्रणाली कमजोर होती है तो इसके जीवन-चक्र में 13 चरण और जुड़ जाते हैं (कुल 16 चरण)।   
ये 13 चरण रोगी के लिए घातक होते हैं और इनके कई रूप विषाणु, कीटाणु और ईस्ट की तरह के फंगस आदि देखे जा सकते हैं। प्रोफेसर गेस्टन नैसन्स ने 1950 में दुनिया का सबसे छोटा सूक्ष्मदर्शी (Somatoscope) बनाया था और यह सिद्ध किया था कि जब शरीर की रक्षाप्रणाली बुरी तरह कमजोर पड़ जाती है तो 18-24 महीने में इन सोमेटिड्स के हानिकारक 13 रूप देखे जा सकते हैं। 
चरण – 3 - तनाव बढ़ाये कोशिका में मिठास
तीसरे चरण में  बढ़ा हुआ कोर्टिजोल हार्मोन शरीर में ऐडरिनेलीन का स्तर कम करता है। जब मनुष्य लंबे समय तनाव में रहता है तो शरीर में ऐडरिनेलिन के भंडार खाली होने लगते हैं और कोशिका में शर्करा की मात्रा बढ़ती है।
ऐडरिनेलीन का मुख्य कार्य कोशिका में शर्करा को कम करना है। दूसरी तरफ इंसुलिन शर्करा को कोशिका में भेजता हैं। जब कोशिका में ऐडरिनेलिन कम होता है तो शर्करा की मात्रा बढ़ती है और  ऑक्सीजन भी कम पहुँचती है।  इसीलिए कई कैंसर के रोगी कमजोरी और थकान महसूस करते हैं क्योंकि कोशिका में ऐडरिनेलीन बहुत कम होता है जो शर्करा को ऊर्जा में बदलने में सहायक होता है।
चरण – 4 –  कोशिका में फंगस की घुसपेठ
इस चरण में शरीर के कमजोर हिस्सों में पल-बढ़ रहे हानिकारक जीवाणु (virus-bacteria-fungus) शर्करा की गंध से आकर्षित होकर कोशिका में घुस जाते हैं और उसका खमीर करते हैं, इस क्रिया में माइकोटॉक्सिन बनते हैं। ये माइकोटॉक्सिन कोशिका की क्रेब-चक्र (यह क्रिया ऑक्सीजन द्वारा शर्करा से ऊर्जा बनाती है) को बाधित करते हैं। और इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला (Electron Transport Chain) को बाधित करते हैं जिससे ए.टी.पी. अणुओं की संख्या बुरी तरह घटती है (ATP molecules provide energy to the cell)। ऑक्सीजन और ऊर्जा की कमी के कारण सामान्य कोशिका विभाजन की क्रिया में विकृत होकर कैंसर कोशिका में परिवर्तित हो जाती है।
जीवाणुओं शर्करा का खमीर  करते हैं जिससे लेक्टिक एसिड बनता है और शरीर के ऊतक और कोशिकाओं में अम्लता बहुत बढ़ जाती है। अम्लता बढ़ाने में कोर्टिजोल के खमीरीकरण, कुपोषण, निष्क्रियता भी अपनी भूमिका निभाती है। विषाणु, कीटाणु, ईस्ट, फंगस, केन्डिडा और कैंसर-कोशिकाएं अम्लीय माध्यम में फलती-फूलती हैं और राहत महसूस करती हैं।
चरण – 5 – फंगस और कैंसर कोशिका में प्रवेश करता है - दोस्ती का नया अध्याय  
इस चरण में जीवाणु (विषाणु, कीटाणु, ईस्ट और फंगस आदि) नई कैंसर कोशिका से दोस्ती करते हैं और मिल कर बड़े मजे करते हैं। कैंसर कोशिका के पास शर्करा भरपूर है पर उसके दहन के लिए ऑक्सीजन नहीं हैं, दूसरी तरफ भूखे और चटोरे जीवाणु शर्करा के खमीर द्वारा ऊर्जा उत्पादन में माहिर हैं। बस वे शर्करा का जम कर खमीर करते हैं और ऊर्जा को खुद भी खाते हैं और   कोशिका को भी  खिलाते हैं ताकि वह तेजी से विभाजित हो और नई कैंसर कोशिकाएं बनाएं।  साथ में जीवाणु निरंतर माइकोटॉक्सिन भी बनाते रहते हैं और कैंसर कोशिकाओं को सामान्य कोशिका बनने से रोकते हैं।  दूसरे शब्दों में ये जीवाणु अपने मतलब (शर्करा) के लिए कैंसर कोशिकाओं को बंदी बना लेते हैं, ताकि कैंसर कोशिकाएं उनके लिए शर्करा जमा करती रहे।
चरण – 6 – तनाव -  कैंसर की संवृद्धि और स्थलान्तर (Metastases ) को प्रोत्साहित करता है
इस आखिरी चरण में  बढ़े हुए तनाव हार्मोन नोरएपिनेफ्रीन और एपिनेफीन कैंसर कोशिका को तीन यौगिक MMP-2, MMP-9 (both martix metalloproteinases) और संवृद्धि यौगिक VEGF (Vascular Endothelial Growth Factor) बनाने के लिए उकसाते हैं।
MMP-2, MMP-9 कैंसर कोशिका के बाहरी खोल को तोड़ देते हैं जिससे वे सहजता से शरीर के दूसरे अंगों में फैल जाते हैं।  VEGF नई  कैंसर की गांठों में नई रक्तवाहिकाएं बनाने के लिए कार्य करता है ताकि  कैंसर कोशिकाएं जल्दी-जल्दी फलें फूलें।   जैसे ही कैंसर का निदान होता है, यह खबर पहले से ही तनावग्रस्त रोगी के लिए एक और नया सदमा साबित होती है, जिसके फलस्वरूप  कैंसर कोशिकाएं किसी नई जगह या अंग में  अपना बसेरा करती हैं।

संदर्भ-ग्रंथ सूची
Prevention in Light of German New Medicine® - http://www.thehealingjournal.com/node/1235
Rethinking Osteoporosis - according to GERMAN NEW MEDICINE® - http://www.thehealingjournal.com/node/152
DOWN SYNDROME - German New Medicine® Speaks for Itself - http://www.thehealingjournal.com/node/799
Why is German New Medicine® Not Taught in Medical School? - http://www.thehealingjournal.com/node/780
TRUE HERO - Dr. Ryke Geerd Hamer - German New Medicine® - 
http://www.thehealingjournal.com/node/1104
Reading The Brain - GERMAN NEW MEDICINE® - http://www.thehealingjournal.com/node/586
an INTRODUCTION to GERMAN NEW MEDICINE® (GNM) - http://www.thehealingjournal.com/node/416
GERMAN NEW MEDICINE® - The Ideal Preventive Medicine - http://www.thehealingjournal.com/node/357
Understanding Disease Through GNM® - http://www.thehealingjournal.com/node/157
Cherry Trumpower’s Breast Cancer Journey - http://www.thehealingjournal.com/node/983
Heart Health and Heart Attacks - German New Medicine Videos - http://www.thehealingjournal.com/node/2041
AIDS/HIV From a Newer Perspective - http://www.thehealingjournal.com/node/1210
Cancers of the Colon, Rectum and Sigmoid - http://www.thehealingjournal.com/node/2114
Interview with James McCumiskey about The Ultimate Conspiracy, Dr. Hamer, German New Medicine®, Stefan Lanka and Germ Theory - http://www.thehealingjournal.com/node/1953
Torn From My Skin - The Relation between Separation Conflicts & Skin Disorders -http://www.thehealingjournal.com/node/1380
Acute Joint Rheumatism - Arthritis - Your Bones - http://www.thehealingjournal.com/node/1796

Saturday, March 24, 2012

Reiki

रेकी या स्पर्श-चिकित्सा
रेकी क्या है

रेकी या स्पर्श चिकित्सा में हाथों के द्वारा एक विशेष रीति से रोगी अथवा रोग से ग्रसित अंग को ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा या दिव्य प्राण शक्ति देकर बीमारी को दूर किया जाता है। रेकी शब्द दो जापानी शब्दों ' रे ' और ' की ' से बना है। ' रे ' का मतलब ब्रह्म बोध या दिव्य ज्ञान और ' की ' का मतलब जीवन ऊर्जा होता है (संस्कृत में की को प्राण कहते हैं)। यही जीवन ऊर्जा हमारे शरीर को चेतना प्रदान करती है और इस पूरे ब्रह्माण्ड में हमारे चारों तरफ विद्यमान है। रेकी शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य स्थापित करती है। जब हम बुजुर्गों के पैर छूते हैं और वे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं, वह भी रेकी का ही रूप है। वास्तव में वे हमें जीवन ऊर्जा देकर अनुग्रहीत करते हैं।
यह बहुत आसान, अचूक, कारगर तथा एक सफल वैकल्पिक उपचार है। कोई भी व्यक्ति रेकी सीख सकता है। यह आवश्यक नहीं कि रेकी सीखने वाला व्यक्ति बहुत बुद्धिमान, योगी, संत-सन्यासी या आध्यात्मिक क्षेत्र का पहुंचा हुआ व्यक्ति हो। अभ्यास और एकाग्रता के बल पर कोई भी इसे सीख सकता है। न ही इसे सीखने के लिए उम्र का बंधन है। इसे सीखने के लिए कई वर्षों के लम्बे अभ्यास की आवश्यकता भी नहीं होती। रेकी एक ऐसा अद्भुत तरीका है, जिसमें रोगी और रोग से ग्रसित अंग को रेकी उपचारक द्वारा दिव्य प्राण ऊर्जा देकर बीमारी से छुटकारा दिलाया जाता है।

इतिहास
आध्यात्मिक शक्तियों से हमारा देश सर्वोपरी है। हजारों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके सबूत पाए गए हैं, किंतु गुरु-शिष्य परंपरा के कारण यह विद्या मौखिक रूप से ही रही। लिखित विद्या न होने के कारण धीरे-धीरे यह लुप्त होती चली गई।

2500 वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने यह विद्या अपने शिष्यों को सिखाई ताकि देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की 'कमल सूत्र' नामक पुस्तक में इसका कुछ वर्णन है।

15 अगस्त, 1865 में जन्मे जापान के डॉ. मिकाओ उसुई ने इस विद्या की पुनः खोज की और आज यह विद्या रेकी के रूप में पूरे विश्व में फैल गई है। डॉ. मिकाओ उसुई की इस चमत्कारिक खोज ने 'स्पर्श चिकित्सा' या रेकी के रूप में संपूर्ण विश्व को चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है।

रेकी उपचार



रेकी उपचार के लिए रोगी पूरे कपड़े पहने निश्चिंत होकर पलंग पर लेट जाता है या आरामदायक कुर्सी पर बैठ जाता है। रोगी से उसके अनुभव, लक्षण, रोग की अवधि, तीव्रता और आवृत्ति के बारे में जानकारी ली जाती है। उससे जीवनशैली, आहार, मानसिक तनाव आदि के बारे में भी पूछा जाता है। रेकी विशेषज्ञ रोगी के विभिन्न अंगो को अपने हाथों से स्पर्श करके उपचार करता है। हाथों के हस्त चक्र द्वारा उपचारक रोगी के प्रभामण्डल और चक्र में जीवन ऊर्जा के प्रवाह में आई रुकावट को महसूस कर लेता है। वह रोगी के प्रभामण्डल और चक्रों में ऊर्जा प्रवाहित करता है। यह ऊर्जा अंतःस्रावी ग्रंथियों, अंगों और न्यूरोट्रोंसमीटर्स में आई रुकावट को दूर करती है तथा नकारात्मकता को निकाल देती है। कभी-कभी यह नकारात्मकता निकलते समय तकलीफ बढ़ा सकती है लेकिन ज्यों ही सारी नकारात्मकता निकल जाती है, स्थिति सुधर जाती है। यह उपचार लगभग एक घन्टे या थोड़ा ज्यादा चलता है। हाथों का स्पर्श बहुत हल्का और कोमल होता है और कोई दबाव नहीं डाला जाता है। इसलिए इसे किसी भी उम्र या रोग में दिया जा सकता है। कई बार तो हाथों को त्वचा से दूर रख कर ही उपचार दिया जाता है। जीवन ऊर्जा को जहाँ भी आवश्यकता हो वहीं केन्द्रित कर दिया जाता है। रोगी को हल्का सी गर्मी या सिरहन महसूस होती है। रेकी उपचार बहुत सौम्य और आरामदायक अनुभव होता है। जब तक रोगी इस ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा को ग्रहण नहीं करना चाहता तब तक यह ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती है, इसलिए रोगी का विश्वास, सहमति और सहयोग बहुत जरूरी है। 

रेकी शक्तिशाली और सौम्य उपचार

रेकी उपचार की विशेषता यह है कि इसमें जीवन ऊर्जा भौतिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करती है। यह लगभग सभी रोगों जैसे श्वासकष्ट, सिरदर्द, ऐलर्जी, साइनोसाइटिस, अस्थिसंध-शोथ, रक्तचाप, कमरदर्द, सर्वाइकल स्पोन्डिलाइटिस, जुकाम, मधुमेह, पेप्टिक अल्सर, स्क्लिरोडर्मा, पाइल्स, हिपेटाइटिस, माइग्रेन, माहवारी विकार आदि में काम करती है। यह सभी तरह के दर्द में आश्चर्यजनक रूप से लाभप्रद है। यह चिरकारी भौतिक और मानसिक रोगों के उपचार में बहुत प्रभावशाली साबित हुई है। 


रेकी के लाभ
  • यह शरीर में ऊर्जा के उन्मुक्त प्रवाह में आई रुकावट को दूर करती है। 
  • यह शरीर, प्रभामण्डल और चक्रों के विशुद्ध करती है। 
  • अतीद्रिंय मानसिक शक्तियों को बढ़ाती है। 
  • ध्यान लगाने के लिए सहायक होती है। 
  • शरीर में व्याप्त नकारात्मकता को दूर करती है। 
  • शरीर की रक्षाप्रणाली को प्रभावी बनाती है। 
  • शरीर को शान्त करती है। 
  • शरीर और मन दोनों का उपचार करती है। 
  • अहम को खत्म करती है। 
  • शरीर की स्वउपचार शक्ति को बढ़ाती है। 
  • कुण्डलिनी शक्ति के मार्ग को साफ करती है। 
  • मानसिक शक्ति को बढ़ाती है। 
  • समक्ष एवं परोक्ष उपचार करती है। 
रेकी कैसे कार्य करती है
शरीर में जीवन ऊर्जा का स्वचछंद प्रवाह ही अच्छे स्वास्थ्य का आधार होता है। स्वस्थ रहने के लिए मन की भूमिका अहम होती है। हमारा मन पांचों इन्द्रियों द्वारा एकत्रित बाहरी सूचना तथा ऊर्जा का विश्लेषण करता है और उसे प्रभामण्डल और चक्रों द्वारा अवचेतन मन में प्रवाहित करता है। इसलिए मन को छठी इन्द्री कहते है। यदि मन शान्त है और तनावमुक्त है, तो ऊर्जा का प्रवाह अविरत होता रहता है। इस तरह पांचों इन्द्रियों द्वारा एकत्रित बाहरी सूचनाएं मन और शरीर में सामंजस्य बनाये रखने में अहम भूमिका रखती हैं। ऊर्जा के प्रवाह में रुकावट आने से कोई चक्र असन्तुलित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप अन्य चक्र, अंतःस्रावी ग्रंथियां और पांचों तत्व भी असन्तुलित हो जाते है। जिससे उन चक्रों से नियंत्रित कोई अंग विशेष या सम्पूर्ण शरीर निष्क्रिय और रोगग्रस्त हो जाता है। हर चक्र एक अंतःस्रावी ग्रंथि का भी नियंत्रण करता है, जो अमुक हार्मोन का स्रवण करती हैं। ये हार्मोन शरीर के खास अंगों के क्रिया-प्रणाली को संतुलित रखते हैं। रेकी उपचार में उपचारक अपने हाथों द्वारा ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा को रोगी के प्रभामण्डल और चक्रों में प्रवाहित करता है।

रेकी की विशेषताएं
  • जहाँ दवाओं के दाम आसमान को छू रहे हैं, वहीं रेकी बहुत कम खर्चीला उपचार है। 
  • कोई पार्ष्व-प्रभाव नहीं हैं। 
  • इसे अन्य उपचार (एलोपेथी, आयुर्वेद, हाम्योपेथी आदि) के साथ लिया जा सकता है। 
  • यह रोग के मूलभूत कारण को दूर करती है। 
  • रेकी बिना किसी दवा के पूरे शरीर का उपचार करती है। 
  • चूँकि रेकी का प्रयोग करने वाला गुरू केवल उसका वाहक होता है, उसका मूल स्रोत नहीं, अतः उपचार करने से रेकी उपचारक की अपनी ऊर्जा कम नहीं होती, अपितु उसके माध्यम से रेकी दी जाने के कारण रोगी की चिकित्सा के साथ-साथ उसकी अपनी भी चिकित्सा होती है और उपचारक का ऊर्जा स्तर बढ़ता है। 
  • यह बेचैन के लिए फूलों की सेज है, निराश के लिए आशा का दीप है, और अस्वस्थ्य के लिए कायाकल्प पेय है।
रेकी प्रशिक्षण
शक्तिपात
रेकी के माध्यम से हम मानव अस्तित्व में व्याप्त उर्जा को न सिर्फ नियंत्रित कर सकते हैं बल्कि रेकी हमारे शरीर, मस्तिष्क, भावनाओ एवं आध्यात्मिक स्तर पर भी सकारात्मक असर डालती है। रेकी प्रशिक्षण में रेकी प्रशिक्षक प्रभिक्षु के चक्र खोलता है और उसमें स्थाई रूप से असिमित ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा का संचार करता है। इसे शक्तिपात कहते हैं और यह तीन चरणों में की जाती है। इसके बाद यह शक्ति जीवनपर्यंत तथा हर समय व्यक्ति के पास रहती है। इससे वह स्वयं का और दूसरों का उपचार कर सकता है। रेकी साधक की आत्मा पवित्र होनी चाहिये। शान्त, निष्कपट और सत्यवादी साधक अच्छे उपचारक बनते हैं। चक्रों पर ध्यान लगाने से साधक की जीवन ऊर्जा को प्रसारित करने की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। इसे चक्र, प्रभामण्डल, आत्मा और ब्रह्माण्डीय विज्ञान का पूरा ज्ञान होना भी जरूरी है।
पहला चरण

यह 14-16 घंटे की प्रशिक्षण प्रक्रिया है जिसमे साधक को रेकी की सैधान्तिक एवं व्यवहारिक जानकारी दी जाती है प्रायः यह सम्पूर्ण प्रक्रिया 2 दिनों में की जाती है एवं पूरी प्रक्रिया में साधक पर 4 बार शक्तिपात द्वारा सहस्रार, आज्ञा, विशुद्ध तथा अनाहत चक्रों को खोला जाता है और साधक को स्वयं तथा दूसरे का उपचार करने की योग्यता दी जाती है। शक्तिपात के बाद साधक में जीवन ऊर्जा का स्पन्दन बढ़ जाता है, शरीर में आरोग्य ऊर्जा अवस्थित हो जाती है, नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और शारीरिक रोग ठीक होने लगते हैं। इसे सीखने के बाद साधक कुछ महीनों तक इसका अभ्यास करता है।

दूसरा चरण
इस प्रशिक्षण में भी लगभग 2 दिनों का समय लगता है। इस चरण में साधक को प्रशिक्षण को आगे बढ़ाते हुए रेकी के परम्परागत और गैर-परम्परागत चिन्ह सिखाये जाते हैं। ये पवित्र चिन्ह विशेष प्रयोजन हेतु आरोग्य ऊर्जा को केन्द्रित करते हैं। इनका प्रयोग उपचार और शक्तिपात दोनों के लिए किया जाता है। ये तृतीय नेत्र को खोल देते हैं जिससे कई मानसिक शक्तियां विकसित हो जाती हैं और दूरस्थ उपचार करना भी सम्भव हो जाता है।
तृतीय चरण
तृतीय चरण में छात्र रेकी में महारत हासिल कर लेता है और इस काबिल हो जाता है की दूसरों को रेकी सिखला सके। रेकी के इस चरण रेकी की एक अलग ही अध्यात्मिक धारा की शुरुआत है जहाँ से साधक को रेकी में दक्ष होकर समाज के दूसरे लोगो तक रेकी का प्रचार-प्रसार एवं प्रशिक्षण का कार्यभार संभालना होता है जो आगे चलकर रेकी गुरू और उसके बाद महागुरू के रूप में जाना जाता है। रेकी चिकित्सा का लाभ मनुष्य एवं अन्य जीवित प्राणियों (जैसे जानवर) के अलावा, पेड़-पौधे एवं निर्जीव वस्तुओं जैसे पृथ्वी इत्यादि को भी मिलता है। इनके अलावा यह रिश्तों में आई दूरी या खटास को भी कम करता है या पूरी तरह से मिटाता है।


Friday, March 23, 2012

तेलों के बारे में अलसी गुरु का मेल

तेलों के बारे में कुछ स्वर्णिम नियम हैं। 

1-रिफाइन्ड तेल और हाइड्रोजिनेटेड तेल कभी भी प्रयोग नहीं करें। 
2-भोजन बनाने में तलने की प्रक्रिया बंद करें। तलने के लिए सबसे अच्छा तेल पानी है। फिर भी दिल न माने तो तलने के लिए सेचुरेटेड तेल जैसे नारियल का एक्स्ट्रा वर्जिन तेल, घी या ऑलिव का एक्स्ट्रा वर्जिन तेल या तिल का अनरिफाइन्ड तेल प्रयोग करें। 
3-बाजार में मिलने वाले अधिकतर तेल रिफाइन्ड, पार्शियली हाइड्रोजिनेटेड और ट्रांसफेट से भरपूर होते हैं। 
4-तलने से बेक करना अच्छी प्रक्रिया है। 
5-अलसी का कोल्ड-प्रेस्ड तेल अतिउत्तम है पर गर्म नहीं किया जाना चाहिये। इसे फ्रीज में रखें और कच्चा (दही या सलाद पर डाल कर) लेना चाहिये।
6-कॉलेस्ट्रोल और सेचुरेटेड फैट हमारे दुष्मन नहीं है। इसके सम्बन्ध में किया जाने वाला भ्रामक दुष्प्रचार खराब, सस्ते और रिफाइण्ड तेलों को बेचने का मार्केटिंग टूल है। 
7-स्वस्थ रहने के लिए हमारे तेलों में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात सन्तुलित (1:2) रहना चाहिये। 
8-टीवी में दिखाये जाने वाले एड हमें शुद्ध रूप से बेवकूफ बनाते हैं। 
9-बाजार में बिकने वाले सभी खुले या पेकेटबन्द खाद्य पदार्थ या फास्टफूड ट्रांसफेट से भरपूर रिफाइन्ड तेल और हाइड्रोजिनेटेड तेल से बनते हैं। 
10-ट्रांसफेट से भरपूर रिफाइन्ड तेल और हाइड्रोजिनेटेड तेल हमें कई बीमारियों जैसे हार्ट, डाबिटीज, आर्थ्राइटिस, मोटापा, डिप्रेशन आदि का शिकार बनाते हैं। 





1 टिप्पणियाँ:

  1. फैट गुरू की साइट जरूर देखें।

    http://udoerasmus.com/articles/udo/fthftk.htm

    डॉ. ओम
    प्रत्‍युत्तर दें

मैं गेहूं हूँ

लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...