Monday, July 25, 2011

Mini's Fracture

                             

डेढ़ वर्ष पहले मैंने एक सफेद नैनो कार, एक सफेद “मेक बुक” लेपटॉप और बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” खरीदा था, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी। 

परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे हमारे किरायेदार ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे। 

सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये। 


मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ डॉ. योगेश शर्मा ने मुझे फोन करके बताया कि मैं अगले दिन पांच बत्ती जयपुर स्थित वेट पॉलीक्लीनिक में डॉ. योगेन्द्र पाल सिंह से मिल लूं, वे मिनी का बेस्ट पॉसीबल ट्रीटमेंट कर देंगे। मैंने उनसे पूछा कि डॉक् सा. को फीस कितनी देनी है, मिनी के इन्वेस्टिगेशन क्या करवाने हैं। वे थोड़ा नाराज सा होकर बोले,“ डॉक् सा. हमारे ये रोगी, जिन्हें आप जानवर कहते हैं, बिना कोई पारिश्रमिक लिए मानव समाज की तन मन से आजीवन सेवा करते हैं, मानव के सैंकड़ों काम करते हैं और इनके बिना मानव का जीवन संभव भी नहीं है। क्या इनका उपचार करना भी हमारा कर्तव्य नहीं है? क्या हमें इनसे भी फीस लेनी चाहिये? डॉक् सा. बुरा मत मानना इंसानी चिकित्सकों जैसी हैवानियत और व्यावसायिकता अभी हम तक नहीं पहुंची है, हममें ईमानदारी, इंसानियत और सेवा के वायरस अभी भी जिंदा हैं।” मैं चुपचाप उनका व्याख्यान सुनता रहा।


मैंने अपने सेक्रेट्री कमलेश को कहा कि एसेंट को साफ करवाओ और सामान रखवाओ। उसने बताया कि गाड़ी पंचर है और मैंने पंचर सुधारने के लिए कहा। पंचर सुधारने वाले ने बताया कि डिक्की में स्टेपनी खोलने वाला पाना ही नहीं है। मुझे वैभव को फोन करना पड़ा, उसने कहा कि मैं परेशान न होऊं वह टेक्सी लेकर आ रहा है। मैंने हमारे घर के सामने लगे स्वचालित मुद्रा वितरण यंत्र से खर्चे के लिए कुछ रुपये निकाल लिए । 


इस तरह हम टेक्सी से मिनी और कमलेश को लेकर जयपुर के लिए रवाना हो गये। कमलेश मिनी को बीच बीच में उसके मनपसंद अलसी, काजू और बादाम के बिस्किट (जिन्हें मेरी पत्नि मिनी के लिए नियमित माइक्रोवेव ओवन में बनाती है) खिला रहा था, कभी पानी पिला देता था। मैं भी मिनी के बारे में ही सोच रहा था। लंबा सफर था, मन उदास था, सोचा लेपटॉप पर मूवी देख लूँ। मैं आशुतोष ग्वारीकर की “What’s your राशि” देखने लगा। फिल्म अच्छी लगी। प्रियंका चौपड़ा ने एक नहीं दो नहीं पूरे बारह शानदार किरदार निभाये। तुला राशि वाले रोल में तो प्रियंका ने जान ही डाल दी। समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अच्छा डायरेक्टर, इतनी बढ़िया फिल्म फिर भी टिकिट खिड़की पर ध्वस्त। तभी मेरा ध्यान अचानक फिल्म के “खिचड़ी” नाम पर गया, मैं हैरान था कि ग्वारीकर साब को ठीक से अंग्रेजी नहीं आती या हिन्दी में इतने फिसड्ढी हैं कि अपनी फिल्म का नाम हिन्दी में सोच भी नहीं पाये। या ये फिल्म को हिट करवाने का कोई नया टोटका है। यदि इस फिल्म का नाम “राशि मिले शादी फले” रखा जाता तो शायद यह भी लगान जैसी हिट हो जाती।




इसी तरह खिचड़ी नामों से बनी अधिकतर फिल्में “प्यार Impossible”, “Love खिचड़ी”, “God तुसी Great हो”, “किस्मत Konnection” आदि (लिस्ट लम्बी है) सुपर फ्लॉप रही। फिर ध्यान आया फिल्म “जब We met” शायद हिट थी। परन्तु इसी फिल्म के बनते-बनते करीना कपूर और शाहिद कपूर का हंसों जैसा जोड़ा, जो बॉलीवुड में बरसों से हॉट कपल के नाम से मशहूर था, बिछुड़ गया था। प्यार की रिक्तता में करीना इतनी अंधी व बावली हो गयी कि कुछ भी नहीं देख पाई और सैफ़ अली खान से, जो कि अधैड़ है, द्वि-वर है और दो बच्चों का बाप है, चट से पट गयी। ऐसी फिल्म को हम हिट तो कैसे मानेंगे। यदि फिल्म का नाम “जब हुई भैंट” होता तो शायद आज करीना कपूर और शाहिद कपूर कभी न बिछुड़ते।

दूसरी ओर वे फिल्में जिनके नाम हिन्दी में रखे गये जैसे “गज़नी”, “अजब प्रेम की गज़ब कहानी”, “दे दनादन”, “कमीनें”, “कम्बख़्त इश्क”, “अतिथि तुम कब जाओगे”, “न घर के रहे न घाट के”, “ओ३म शांति ओ३म”, “रब ने बना दी जोड़ी”, “इश्किया”, “थ्री ईडियट्स” आदि सभी हिट रही और निर्माताओं को खूब पैसा कमा कर दिया।

अगले दिन आखिरकार हम पांच बत्ती स्थित राजकीय बहुद्देशीय पशु चिकित्सालय (पॉली क्लिनिक) पहुँचे। हमनें पूरे अस्पताल परिसर का अवलोकन किया। अस्पताल का ओ.पी.डी. ब्लॉक, इन-डोर वार्ड, प्रसूति गृह और ओ.टी. सभी हमारी परिकल्पना के विपरीत अत्यंत साफ सुथरे थे। वहां के सारे स्टाफ और डॉक्टर्स का व्यवहार शीतल और सौम्य था। जानवरों के इस पॉली क्लिनिक में हमें जो सहयोग, प्रेम और सद्भावना देखनें को मिली, उसने हमारी आत्मा को झकझोर कर रख दिया। काश! राजकीय मानव चिकित्सालयों में भी ऐसा वातावरण तैय्यार किया जा सके।


फिर हम शल्य चिकित्सक डॉ. योगेन्द्र से मिले। उन्होंने बड़े प्यार से हमारा स्वागत किया, बड़े ही दया भाव से मिनी का परीक्षण किया और उसके एक्स-रे का अवलोकन किया। मेरा पूरा ध्यान उनकी ओर था, उनके चेहरे की पल-पल बदलती मुद्राओं से मेरे मानस में हर पल एक नई कहानी जन्म ले रही थी। 5 मिनट बाद उन्होंने बड़े आत्म विश्वास से मेरी आंखों में देखा और कहा कि हमारी मिनी को 21 दिन के लिए स्प्लिंट लगाना होगा। उन्होंने बड़ी बारीकी से मिनी के पैर का नाप लिया और एल्युमिनियम की एक विशिष्ठ रोड से उन्होंने एक कस्टमाइज्ड स्प्लिंट बनाया और इतने प्यार और ऐतिहात के साथ मिनी के पैरों में प्लास्टर से चिपकाया कि मिनी ने जरा सी उफ़ तक नहीं की। मानव और जानवर का इतना घनिष्ठ प्रेम मय दृश्य मैं पहली बार देख रहा था। उनके हाथों में शायद जादू ही था कि स्प्लिंट लगते ही मिनी तुरंत खड़ी हो गयी और धीरे-धीरे चलने भी लगी। हमारी धड़कने जो दो दिन से लगभग रुकी हुई थी, खुशी से यकायक चल उठी।

Saturday, July 23, 2011

Marriage of Sun & Moon

अलसी सर्वोत्तम भोजन



आवश्यक वसा अम्ल हमारे शरीर के लिए प्रकृति का वरदान है। डॉ. यॉहाना बुडविग ने कैंसर के उपचार में आवश्यक वसा अम्ल के चमत्कारी परिणाम प्राप्त किये हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक “फलेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज” में लिखा है कि आवश्यक वसा अम्ल युक्त भोजन लेने से हमारी कोशिकाओं में पर्याप्त सक्रिय इलेक्ट्रोन्स रहते हैं। हमारे आधुनिक भोजन में संत्रप्त वसा और ट्रांस फैट की भरमार है। ये कोशिकाओं की झिल्लियों में असंत्रप्त वसा अम्लों के विद्युत आवेश को प्रभावित करते हैं और कोशिकाओं में सूर्य के फोटोन्स को आकर्षित तथा संचय करने की क्षमता कम करते हैं। विख्यात क्वाटम भौतिकशास्त्री डेसौर ने कहा है कि यदि हम मानव शरीर में सौर फोटोन्स की संख्या दस गुना कर दें तो मनुष्य की उम्र 10,000 वर्ष हो जायेगी।



सूर्य और चंद्र का रहस्यमय विवाह



बुडविग ने सूर्य के फोटोन्स और मानव शरीर में इलेक्ट्रोन्स के आकर्षण और अनुराग को क्वांटम भौतिकशास्त्र के परिपेक्ष में देवता सूर्य और देवी चन्द्रमा के रहस्यमय गन्धर्व विवाह की संज्ञा दी है। प्रकाश सबसे तेज चलता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सूर्य की किरणों के सबसे छोटे घटक या कण को क्वांटम या फोटोन कहते हैं जो अनंत हैं, शाश्वत हैं, सक्रिय हैं, सदैव हैं, ऊर्जावान हैं और गतिशील हैं। इन्हें कोई नहीं रोक सकता है। ये ऊर्जा का सबसे परिष्कृत रूप हैं, ये सबसे निर्मल लहर हैं। इनमें ब्रह्मांड के सारे रंग है। ये अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं।



जब दो फोटोन एक ही लय में स्पन्दन कर रहे हों तो कभी वे आपस में जुड़ कर क्षणिक काल के लिए पदार्थ का एक छोटा सा रूप जिसे π0 कण कहते हैं बन जाते हैं। यह कण पुनः टूट कर दो फोटोन में विभाजित भी हो जाता है। इस तरह ये फोटोन कभी किरण तो कभी पदार्थ के रूप में परिवर्तित होते रहते हैं।



इलेक्ट्रोन परमाणु का घटक है और न्यूक्लियस के चारों ओर अपने निश्चित कक्ष में निश्चित आवृत्ति में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, सदैव गतिशील रहते हैं। इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र अत्यन्त गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है। जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जब इलेक्ट्रोन और फोटोन के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो ये एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। फोटोन सूर्य से निकल कर, जो 9.3 अरब मील दूर है, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में निश्चित आवृत्ति पर सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह भौतिक, जीववैज्ञानिक और यहाँ तक कि दार्शनिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।



हमें सूर्य से बहुत प्रेम है और यह मात्र कोई संयोग नहीं है। हमारे शरीर की लय और ताल सूर्य से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे ज्यादा अवशोषण करते हैं। इसलिए क्वाण्टम वैज्ञानिक कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा या फोटोन मनुष्य के शरीर में ही होते हैं। यह क्षमता और बढ़ जाती है जब हम इलेक्ट्रोन से भरपूर अत्यंत असंतृप्त वसा अम्ल (अलसी जिनका भरपूर स्रोत है) का सेवन करते हैं क्योंकि इलेक्ट्रोन्स का चुम्बकीय क्षेत्र फोटोन्स को आकर्षित करता है।



कई तेलीय बीजों में इलेक्ट्रोन्स से भरपूर अत्यंत असंत्रप्त वसा अम्ल होते हैं, जिनकी लय सूर्य से मिलती है। लेकिन जबसे बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने तेलों की शैल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए तेलों को अति परिष्कृत करना और हाइड्रोजनीकृत करना शुरू किया है तथा तेलों में विद्यमान अतिआवश्यक, ऊर्जावान और सूर्य के दीवाने इलेक्ट्रोन्स के बादलों के झुण्ड नष्ट हो गये हैं।



जब सूर्य की किरणों का आशीर्वाद पेड़ पौधों को मिलता है और वे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अवशोषित होती हैं तो पौधों में इलेक्ट्रोन्स की धारा प्रवाहित होती है। पौधों में इलेक्ट्रोन्स और जल के प्रवाह से चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। जब हम घने पेड़ों के पास से गुजरते हैं तो यह चुम्बकीय क्षेत्र हमारे शरीर में विद्यमान सौर फोटोन्स को विधुत आवेश से भर देता है। इसी तरह जब हमारे शरीर में रक्त प्रवाहित होता है, चुम्बकीय क्षेत्र से लाल रक्त कण गुजरते हैं तो इन कणों के बाहरी खोल पर स्थित असंत्रप्त वसा के अणु आवेशित हो जाते हैं। हर धड़कन के साथ इलेक्ट्रोन्स से भरपूर असंत्रप्त वसा युक्त लिम्फेटिक सिस्टम से लिम्फ रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है। यह हृदय का विद्युत आवेश और संकुचन शक्ति बढ़ाता है।



शरीर में विद्युत आवेश और संदेशों के ट्रांसमीशन और ऐम्प्लीफिकेशन की प्रक्रिया शरीर में चलती रहती है। नाड़ियां बेलनाकार होती हैं, इसमें कई परतें तथा गुच्छिका (Ganglia) होते है और नाड़ी तथा (Dandride ) वृक्षिका के बीच विद्युत आवेश में अन्तर रहता हैं। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र में तीव्र विद्युत धारा प्रवाहित हो तो विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। जब हम किसी व्यक्ति के बारे में अच्छा सोचते हैं तो भी विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। इनका अभिग्रहण वही कर पाता हैं जिसकी आवृत्ति इन तरंगों की आवृत्ति के समान हो। टैलीपेथी और सम्मोहन विद्या इन्ही सिद्धांतों पर आधारित है। प्राचीन काल में कुछ कबीलों की स्त्रियाँ पेड़ से लिपट कर जोर से आवाज लगाती थी और शहर गया उसका आदमी उसकी बात सुन लेता था और समझ जाता था कि उसकी पत्नि ने अमुक चीज मंगवाई है। क्योंकि पेड़ स्त्रियों की आवाज को एम्प्लिफाइ करके दूर शहर गये उसके आदमी तक पहुँचा देती थी। ये विद्युत चुम्बकीय तरंगें मेक्सवेल के गणितीय सूत्र के अनुसार व्यवहार करती हैं।



भौतिक विज्ञान में मानुष "human " तथा अमानुष "anti-human " की भी परिकल्पना की गई है। मानुष में फोटोन्स का भरपूर संचय होता है, वह भविष्य की ओर अग्रसर होता है और अपार सौर ऊर्जा से सराबोर रहता है। इसके विपरीत अमानुष में जीवन क्रियायें अवरुद्ध रहती हैं, ऊर्जा और सक्रियता का अभाव होता है क्योंकि उसमें सूर्य के फोटोन्स की लय में लय मिला कर आकर्षित करने वाले इलेक्ट्रोन्स बहुत ही कम होते हैं इसलिए वह भूतकाल की ओर गमन करता है।



भौतिकशास्त्र और गणित के दृष्टिकोंण से एक्स-रे, गामा-रेज, एटम-बम या कोबाल्ट रेडियेशन भी मानव स्वाथ्य के लिए घातक हैं, शरीर के सजीव इलेक्ट्रोन्स को नष्ट करती हैं और उसे अमानुष बनाती है यानि भूतकाल की ओर धकेलती हैं। जीवन रेखा और आधुनिक भौतिकशास्त्र के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार समय तथा बृह्माण्ड एक ही समीकरण पर आधारित है। अमानुष भूतकाल की ओर लौटता है। सूर्य के गतिशील फोटोन्स तथा इलेक्ट्रोन्स का अन्तर्सम्बंध मानव शरीर में विभिन्न कौशिकीय जीवन क्रियाओं को सम्पूर्ण करता है और मानव भविष्य की दिशा में बढ़ता है।



उपरोक्त सन्धर्भ में भोजन की व्याख्या करना बड़ा रोचक विषय है। भोजन में विद्यमान असंत्रप्त फैट्स में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं जो जीवनदायक प्राणवायु ऑक्सीजन को आकर्षित करते हैं। परन्तु तेल और वसा के निर्माता तेलों की शैल्फ-लाइफ बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रोन्स युक्त असंत्रप्त फैट्स को सन्शोधित और हाइड्रोजिनेट करते हैं जिससे उनकी यह इलेक्ट्रोन्स की सजीवता व प्रचुरता नष्ट हो जाती है। ये फैट भविष्य की ओर अग्रसर जीवन्त मानुष को भूतकाल के गर्त में ले जाते हैं। ये शरीर में विद्युत प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं और सम्पूर्ण शरीर में हो रही विभिन्न जैविक क्रियाओं को निष्क्रिय करते हैं। इसीलिए इन फैट्स को मृत या प्लास्टिक फैट कहते हैं।



जिस भोजन से उसके इलेक्ट्रोन्स की दौलत नष्ट कर दी गई हो वह हमें अमानुष बनाता है, भूतकाल की ओर ले जाता है और कैंसर का शिकार भी बनाता है। ठोस परिर्तित, परिष्कृत और हाइड्रोजिनेटेड वसा इस श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर इलेक्ट्रोन युक्त पोषण, इलेक्ट्रोन्स से भरपूर सजीव असंत्रप्त वसा और स्वादिष्ट फल शरीर में सौरऊर्जा का अवशोषण, संचय और उपयोगिता बढ़ाते हैं।



मेरा उपचार लेने के बाद जब रोगी धूप में लेटते थे तो वे नई ऊर्जा और ताजगी महसूस करते थे। दूसरी ओर आजकल हम देखते हैं कि धूप में लोगों के हार्ट फेल हो रहे हैं, हार्ट अटेक हो रहे हैं। स्वस्थ मानव में यकृत, अग्न्याशय, वृक्क, मूत्राशय आदि ग्रंथियों की स्रवण क्षमता पर सूर्य के चमत्कारी प्रभाव को हम महसूस कर सकते हैं। लेकिन यदि शरीर में सजीव, इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यंत असंत्रप्त वसा अम्लों का अभाव है तो उपरोक्त ग्रंथियों पर सूर्य प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और ये सूखने लगेंगी। डॉक्टर कैंसर के रोगी को कहते हैं कि सीधी सूर्य की रोशनी से बचें। एक तरह से यह सही भी है। लेकिन वे डॉ. बुडविग का आवश्यक वसा से भरपूर आहार शुरू करते हैं, दो या तीन दिन बाद ही उनको धूप में बैठना सुहाना लगने लगता है, सूर्य जीवन की शक्तियों को जादू की तरह उत्प्रेरित करने लगता है और शरीर दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। - डॉ. योहाना बुडविग, द फैट सिन्ड्रोम एण्ड द फोटोन्स दि सोलर एनर्जी।



व्यापार के धनाड्य मसीहाओं द्वारा डॉ. बुडविज को प्रताड़ित करना -



डॉ. बुडविग ने अपने परीक्षणों से ये सिद्ध कर दिया था कि मार्जरीन, जिसे मछली या तेलीय बीजों से निकले असंत्रप्त तेलों को उच्च तापमान पर गर्म करके बनाया जाता है, घातक ट्रासंफैट से भरपूर होता है और हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। मार्जरीन हमें कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा, आर्थाइटिस आदि रोगों का शिकार बनाते हैं। वे अपने शोध-पत्र विभिन्न स्वास्थ्य पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रही थी और लोगों को मार्जरीन के खतरों अवगत करवा रही थी। डॉ. बुडविग की निर्भीकता, स्पष्ट-वादिता और सच बोलने की आदत से व्यापार के धनाड्य मसीहा बड़े चिन्तित थे। उन्हें डर था कि बुडविज की शोध मार्जरीन की बिक्री को चौपट कर देगी। यहाँ मसीहा से मतलब स्वार्थ के लिए विज्ञान पर नियन्त्रित रखने वाले अमीर बहुराष्ट्रीय संस्थानों से है। मार्जरीन बनाने वाली कम्पनियों ने डॉ. बुडविग को रिश्वत में ढेर सारी दौलत और एक दवा की दूकान देने की कौशिश की, पर बुडविज ने रिश्वत लेने से स्पष्ट मना कर दिया।



डॉ. बुडविज को प्रताड़ित करने के लिए मार्जरीन बनाने वाली कम्पनियों ने बड़े बड़े षड़यंत्र रचे, उनकी प्रयोगशाला छीन ली गई और जरनल्स में उनके शोध-पत्रों के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात थी, जबकि वह कई अस्पतालों से संलग्न थी और वह बहुत बड़े सरकारी ओहदे पर थी। उसका कार्य हमारे शरीर पर नई दवाओं और फैट्स के दुष्प्रभावों का अध्ययन करना और उन्हें प्रमाणित करना था। इसतरह बुडविग ने निडर होकर देश और दुनिया के प्रति अपना फर्ज़ निभाया। सन् 1953 में उन्होंने सरकारी पद छोड़ दिया और अपनी क्लीनिक खोल कर कैंसर के रोगियों का उपचार करना शुरू कर दिया। और इसके साथ ही फैट्स पर हो रही शोध पर लगभग लंबा विराम लग गया है।



जीवनशक्ति और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए) –



डॉ. बुडविग ने क्वाँटम बायॉलोजी का बहुत अध्ययन किया और फोटोन, इलेक्ट्रोन्स और आवश्यक वसा अम्लों के पारस्परिक आकर्षण और अनुराग को दुनिया के सामने रखा। पेड़ पौधों में कुछ विशेष एन्जाइम होते हैं जो वसा अम्ल के निर्माण के समय कार्बन की के बाद सिस डबल बॉन्ड लगाने में सक्षम होते हैं जबकि मानव के एन्जाइम छठे कार्बन के बाद ही सिस डबल बॉन्ड लगा सकते हैं। यदि फैटी एसिड में एक से ज्यादा डबल बॉन्ड हो तो उसे बहु असंत्रप्त वसा अम्ल या polyunsaturated Fatty Acid कहते हैं। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा सिरा कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा सिरा कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में 3 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–3 वसा अम्ल (N–3) कहते हैं। एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ होती है और 2 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध छठे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–6 वसा अम्ल (N–6) कहते हैं।



ए.एल.ए की कार्बन श्रंखला में जहां डबल बॉण्ड या द्वि-बंध बनता है वहाँ एक ही ओर के दो हाइड्रोजन के परमाणु अलग होते हैं और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है। बॉयोकेमिस्ट्री की भाषा में इसे सिस विन्यास कहते हैं। लड़ का यह मुड़ना इन अम्लों के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को प्रभावित करते हैं। इससे ये अणु आपस में फिसलते हैं और घुलते नहीं हैं और सामान्य तापमान पर तरल रहते हैं, जब कि संत्रप्त वसाअम्लों के अणु आपस में चिपकते हैं तथा सामान्य तापमान पर ठोस रहते हैं। इनमें हल्का सा ऋणात्मक आवेश होता है और पतली सतही परत बनाते हैं। यह क्रिया सतह प्रतिक्रिया या सरफेस एक्किविटी कहलाती है जो टॉक्सिक पदार्थों को त्वचा, आँतों, गुर्दे या फेफड़ों की सतह पर ले आती है और वे बाहर निकल जाते हैं। यह क्रिया इन अम्लों में घुले हुऐ पदार्थों को भी बाहर कर देती है। आवश्यक सिस वसाअम्ल रक्त-वाहिकाओं में जमते नहीं हैं।



इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ती है, वहां इलेक्ट्रोनों का बडा झुंण्ड या बादल सा, जिसे “पाई–इलेक्ट्रोन्स” भी कहते हैं, बन जाता है। इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आनेवाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन को आकर्षित करते हैं, अवशोषण करते हैं। ये पाई–इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हंह और एक एन्टीना की तरह काम करते हैं। इन बादलों का विद्युत बल ऑक्सीजन को आकर्षित करने की क्षमता रखता है और प्रोटीन्स को झिल्लियों में पकड़े रहता है। ये पाई–इलेक्ट्रोन्स के कारण कोशिकाओं में (कोशिकाओं के अन्दर बाहर जलीय और कोशिका की झिल्ली में वसीय माध्यम होने की वजह से) अलग-अलग सतहों पर भिन्न भिन्न विद्युत आवेश रहता है। यह एक केपेसिटर की तरह काम करता है और नाड़ी, पेशी, हृदय और कोशिका की विभिन्न क्रियाओं हेतु विद्युत आवेश उपलब्ध कराता है। इस तरह आपने देखा कि शरीर में जीवन ऊर्जा के प्रवाह के लिए ये वसाअम्ल कितने महत्वपूर्ण हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इनका अभाव हमें अमानुष बनायेगा और भूतकाल के गड्डे में धकेलेगा।



एल.ए., ए.एल.ए और हमारे शरीर में इनसे निर्मित अन्य अत्यन्त असंत्रप्त वसाअम्ल (EPA और DHA) हमारे ऊतकों को भरपूर ऊर्जा, ऑक्सीजन उपलब्ध करवाते हैं और पूरे शरीर में जीवन शक्ति प्रवाहित करते हैं। यही है जीवनशक्ति जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, ऑखों, आंतरिक कर्ण, एड्रीनल ग्रन्थि, हृदय, मांसपेशियां, नाड़ीतंत्र, टेस्टीज, कोशिका की भित्तियों आदि को भरपूर ऊर्जा देती है।



Friday, July 22, 2011

Wonder Seed - The Flax





 
अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है, पुराने लोग अलसी का नाम भूल चुके है और युवाओं ने अलसी का नाम सुना ही नहीं है। मैंने इसी चमत्कारी भोजन की पूरे भारत में जागरूकता लाने के काम का बीड़ा उठाया है। अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी। आज मैं अलसी के मुख्य बिन्दुओं पर संक्षेप में चर्चा करता हूँ।
  •  ओमेगा-थ्री हमे रोगों से करता है फ्री। शुद्ध, शाकाहारी, सात्विक, निरापद और आवश्यक ओमेगा-थ्री का खजाना है अलसी। ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम होने लगती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।  
  •  कब्जासुर का वध करती है अलसी। आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।
  •  डायन डायबिटीज का सीना छलनी-छलनी करने में सक्षम है अलसी-47 बन्दूक। अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
  •  हृदयरोग जरासंध है तो अलसी भीमसेन है। अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को स्वीपर की तरह साफ करती रहती है अलसी। यानी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है अलसी।
  • सुपरस्टार अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है और पति पत्नि झगड़ना छोड़कर गार्डन में ड्यूएट गाते नज़र आते हैं। यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है। 
  •  माइन्ड के सरकिट का SIM CARD है अलसी। यहाँ सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है। अलसी खाने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में अच्छे नंबर प्राप्त करते हैं और उनकी सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं। आपराधिक प्रवृत्ति से ध्यान हटाकर अच्छे कार्यों में लगाती है अलसी। इसलिये आतंकवाद और नक्सलवाद का भी समाधान है अलसी। 
  •  त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मुक्त कणों या फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं अलसी नाखुओं की रिमॉडलिंग करती है और स्वस्थ व प्राकृतिक आकार प्रदान करती है। अलसी खाने वालों को पसीने में दुर्गन्ध कम आती है। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। अलसी खाकर 70 वर्ष के बूढे भी 25 वर्ष के युवाओं जैसा अनुभव करने लगते हैं। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है। 
  •  लिगनेन है सुपरमेन- पृथ्वी पर लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी, ल्यूपसरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है। 
  •  जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया जुगाड़ है अलसी। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी। 
  •  कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी। 
  •  पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी। अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है। अलसी शरीर में उत्कृष्ट कोटि के फेरामोन्स (आकर्षण के हारमोन्स) बनाती हैं, जिससे पति-पत्नि के बीच आकर्षण और प्रेम का बन्धन मजबूत होता है। इसका सेवन स्त्री-पुरुष दोनों की काम-शक्ति बढ़ाता है और समस्त लैंगिक समस्याओं का एक-सूत्रीय समाधान है।
  •  जहाँ एक ओर बहुराष्ट्रीय संस्थान हमें जानलेवा और कोशिकीय श्वसन को बाधित करने वाले रिफाइन्ड तेल, हाइड्रोजिनेटेड वसा और ट्राँस-फैट खिला रहे हैं, अमानुष बना रहे हैं और हम प्रकाशहीनता तथा विभिन्न रोगों का शिकार हो रहे हैं। अमानुष में श्वसन एवम् अन्य जीवन क्रियायें अवरुद्ध रहती हैं, ऊर्जा और सक्रियता का अभाव होता है क्योंकि उसमें सूर्य के फोटोन्स की लय में लय मिला कर आकर्षित करने वाले इलेक्ट्रोन्स बहुत ही कम होते हैं, जिससे वह रोगग्रस्त होता है, भूतकाल और मृत्यु की ओर गमन करता है। दूसरी ओर आवश्यक वसा अम्ल (ओम-3 और ओम-6) से भरपूर अलसी के सेवन से मनुष्य की सूर्य के प्रकाश या इलेक्ट्रोन्स को अवशोषण करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है, शरीर में अनंत और असीम ऊर्जा प्रवाहित होती है, वह जीवन रेखा पर भविष्य की ओर अग्रसर होता है, आदर्श मानुष बनता है, निरोगी बनता है और अमरत्व को प्राप्त करता है।
  • 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबेल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।
  • बुडविग आहार पद्धति की विश्वसनीयता और ख्याति का आलम यह है कि गूगल पर मात्र बुडविग अंकित करने पर एक लाख पचपन हजार पृष्ठ खुलते हैं जो चीख चीख कर कहते हैं, बुडविग उपचार सम्बंधी सारी बारीकियां बतलाते हैं और बुडविग पद्धति से ठीक हुए रोगियों की पूरी जानकारियाँ देते हैं। पर डॉ. बुडविग की ये पुकार सरकारों, उच्चाधिकारियों और एलोपेथी के कैंसर विशेषज्ञों तक नहीं पहुँच पायेंगी क्योंकि उनके कान, आँखें और मुँह सभी के रिमोट कंट्रोल राउडी रेडियोथैरेपी तथा किलर कीमोथैरेपी बनाने वाली मल्टीनेशनल कम्पनियों ने अपने लोकर्स में रख दिये हैं।
  • स्टुटगर्ट रेडियो पर प्रसारित एक साक्षातकार में बुडविग ने कहा था कि गोटिंजन में एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई और बताया कि उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया है और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते हैं। मैंने उसे सांत्वना दी, उसको सही उपचार बताया और उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा।


अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 से 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।






अलसी के लड्डू

सामग्री- 1. ताजा पिसी अलसी 100 ग्राम 2. आटा 100 ग्राम 3. मखाने 75 ग्राम 4. नारियल कसा हुआ 75 ग्राम 5. किशमिश 25 ग्राम 6. कटी हुई बादाम 25 ग्राम 7. घी 300 ग्राम 8. चीनी का बूरा 350 ग्राम

लड्डू बनाने कि विधिः- कढ़ाही में लगभग 50 ग्राम घी गर्म करके उसमें मखाने हल्के हल्के तल लें । लगभग 150 ग्राम घी गर्म करके उसमें आटे को हल्की ऑच पर गुलाबी होने तक भून लें। जब आटा ठंडा हो जाये तब सारी सामग्री और बचा हुआ घी अच्छी तरह मिलायें और गोल गोल लड्डू बना लें।

अलसी सेवन से हुआ लाभ

1 ) घाटकोपर, मुम्बई की मंजुला बेन उम्र 75 वर्ष की दो वर्ष पूर्व कमर में दर्द होने के कारण एम.आर.आई. करवाई गई। तब पता चला कि उनके फेफड़ों में भी पानी भर गया है। सम्पूर्ण जांच से पता चला कि उनके फेफड़ों में कैंसर हो गया है। उन्हें रेडियोथैरेपी की 30 डोज दी गई। कीमोथेरेपी लेने से उन्होंने मना कर दिया। लेकिन उन्हें किसी उपचार से कोई फायदा नहीं हुआ। डाक्टर ने उन्हें कहा कि आप मुश्किल से 6 महीने जी पायेंगी। तब किसी ने उन्हें यॉहाना के उपचार के बारे में बताया। उन्होंने यॉहाना का उपचार तुरंत शुरू किया जिसे वे आज तक ले रही हैं। आज वे पूर्णतः स्वस्थ है ।

2 ) मुझे 3 वर्ष से डायबिटीज है तब मेरा ब्लड शुगर F 265- PP 450 था। तब से डॉ. वर्मा साहब के बताये अनुसार अलसी और गेहूँ के आटे की रोटी से लगातार खा रहा हूँ। तीन महीने बाद ब्लड शुगर 108-135 हो गया था। मुझे अब काफी अच्छा महसूस कर रहा हूँ। पहले मेरी कमर में जकड़न रहती थी जो अब ठीक हो गयी है। पहले थोड़ा सा घूमने के बाद ही चक्कर से आते थे, लेकिन अब बिना परेशानी के मैं डेढ़ घंटा रोज घूम रहा हूँ। अब दौड़कर सीढ़ियां चढ़ जाता हूँ। - रविकान्त प्रसाद नारकोटिक्स, कोटा।

3 ) मुझे घुटनों में बहुत दर्द रहता था और मैं ज्यादा पैदल नहीं चल पाता था। अलसी के सेवन के दो माह बाद ही मैं एक-डेढ़ कि.मी. चल सकता हूँ।

- डॉ. के.एल.भार्गव पूर्व औषधि नियंत्रक, इन्दौर

4 ) मैं पिछले कई वर्षों से उच्च-कोलेस्ट्रोल से पीड़ित था। अलसी का सेवन करने के बाद यह नार्मल हो गया है। - मनीष अग्रवाल इन्दौर

5 ) मैं दो महीने से अलसी की रोटी खा रही हूँ। मेरे मुहाँसे ठीक हो गये हैं, चेहरा चमक उठा है, रंग साफ हुआ है, सिर के बाल दो इंच लंबे हो गये हैं, शरीर ऊर्जा से भर गया है, काम करने से थकती नहीं हूँ, क्रोध, झुँझलाहट और तनाव दूर हो चुके हैं। अब  गर्मी कम लगती है, धूप सुहानी लगती है,  पहले घूमने पर पैर दर्द करते थे। अब दर्द गायब हो गया है। - सुमित्रा मीणा कोटा

6 ) मेरा नाम शकुंतला पॉल उम्र 78 वर्ष है, मैं जयपुर में रहती हूँ। मैं 7-8 महीनों से फ्लेक्स ओमेगा ले रही हूँ, जो जैविक अलसी से बनता है। मुझे अलसी से सचमुच चमत्कारी लाभ मिला है, मैं पहले से काफी युवा, ऊर्जावान, ताकतवर महसूस कर रही हूँ। मेरी त्वचा नम व मुलायम हो गयी है और इसमें खिंचाव भी आ गया है। एकाग्रता बढ़ी है और ज्यादा अच्छी तरह ध्यान लगा पाती हूँ। मेरी गर्दन में जकड़न रहती थी, मेरे सारे जोड़ दर्द करते थे जो अब ठीक है। मैं रक्तचाप और थायरॉयड की पुरानी रोगी हूँ और ज़िंदगी भर दवाईयां लेती रही हूँ, 2-3 महीनें पहले मेरे डॉ. ने बी.पी. की दवाईयां बन्द कर दी हैं और थायरॉयड की गोलियां भी डेढ़ कर दी है जबकि मैं पहले 4-5 गोलियां लेती थी। मेरे पूरे शरीर में गाँठे थी जो अब छोटी हो गयी हैं। पिछले 20 साल से हर वर्ष पूरी सर्दी मुझे खांसी रहा करती थी, लेकिन पिछली सर्दी में मुझे कोई खांसी नहीं हुई। अब सांस लम्बा ले पाती हूँ, जो पहले नहीं ले पाती थी। पहले मैं दिन भर सोती रहती थी, अब दिन भर कुछ न कुछ काम करती रहती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे माथे के दोनों ओर के बाल उड़ गये थे अब सफेद और काले दोनों रंग के नये बाल आ रहें हैं।




Flaxseed Short talk

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है, पुराने लोग अलसी का नाम भूल चुके है और युवाओं ने अलसी का नाम सुना ही नहीं है। मैंने इसी चमत्कारी भोजन की पूरे भारत में जागरूकता लाने के काम का बीड़ा उठाया है। अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी। आज मैं अलसी के मुख्य बिन्दुओं पर संक्षेप में चर्चा करता हूँ।



o ओमेगा-थ्री हमे रोगों से करता है फ्री। शुद्ध, शाकाहारी, सात्विक, निरापद और आवश्यक ओमेगा-थ्री का खजाना है अलसी। ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम होने लगती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।


o कब्जासुर का वध करती है अलसी। आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।


o डायन डायबिटीज का सीना छलनी-छलनी करने में सक्षम है अलसी-47 बन्दूक। अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।


o हृदयरोग जरासंध है तो अलसी भीमसेन है। अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को स्वीपर की तरह साफ करती रहती है अलसी। यानी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है अलसी।


o सुपरस्टार अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है और पति पत्नि झगड़ना छोड़कर गार्डन में ड्यूएट गाते नज़र आते हैं। यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।


o माइन्ड के सरकिट का SIM CARD है अलसी। यहाँ सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है। अलसी खाने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में अच्छे नंबर प्राप्त करते हैं और उनकी सफलता के सारे द्वार खुल जाते हैं। आपराधिक प्रवृत्ति से ध्यान हटाकर अच्छे कार्यों में लगाती है अलसी। इसलिये आतंकवाद और नक्सलवाद का भी समाधान है अलसी।


o त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मुक्त कणों या फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं अलसी नाखुओं की रिमॉडलिंग करती है और स्वस्थ व प्राकृतिक आकार प्रदान करती है। अलसी खाने वालों को पसीने में दुर्गन्ध कम आती है। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। अलसी खाकर 70 वर्ष के बूढे भी 25 वर्ष के युवाओं जैसा अनुभव करने लगते हैं। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।


o लिगनेन है सुपरमेन- पृथ्वी पर लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी, ल्यूपसरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।


o जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया जुगाड़ है अलसी। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।


o कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।


o पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी। अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है। अलसी शरीर में उत्कृष्ट कोटि के फेरामोन्स (आकर्षण के हारमोन्स) बनाती हैं, जिससे पति-पत्नि के बीच आकर्षण और प्रेम का बन्धन मजबूत होता है। इसका सेवन स्त्री-पुरुष दोनों की काम-शक्ति बढ़ाता है और समस्त लैंगिक समस्याओं का एक-सूत्रीय समाधान है।


o जहाँ एक ओर बहुराष्ट्रीय संस्थान हमें जानलेवा और कोशिकीय श्वसन को बाधित करने वाले रिफाइन्ड तेल, हाइड्रोजिनेटेड वसा और ट्राँस-फैट खिला रहे हैं, अमानुष बना रहे हैं और हम प्रकाशहीनता तथा विभिन्न रोगों का शिकार हो रहे हैं। अमानुष में श्वसन एवम् अन्य जीवन क्रियायें अवरुद्ध रहती हैं, ऊर्जा और सक्रियता का अभाव होता है क्योंकि उसमें सूर्य के फोटोन्स की लय में लय मिला कर आकर्षित करने वाले इलेक्ट्रोन्स बहुत ही कम होते हैं, जिससे वह रोगग्रस्त होता है, भूतकाल और मृत्यु की ओर गमन करता है। दूसरी ओर आवश्यक वसा अम्ल (ओम-3 और ओम-6) से भरपूर अलसी के सेवन से मनुष्य की सूर्य के प्रकाश या इलेक्ट्रोन्स को अवशोषण करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है, शरीर में अनंत और असीम ऊर्जा प्रवाहित होती है, वह जीवन रेखा पर भविष्य की ओर अग्रसर होता है, आदर्श मानुष बनता है, निरोगी बनता है और अमरत्व को प्राप्त करता है।


o 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबेल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।


o बुडविग आहार पद्धति की विश्वसनीयता और ख्याति का आलम यह है कि गूगल पर मात्र बुडविग अंकित करने पर एक लाख पचपन हजार पृष्ठ खुलते हैं जो चीख चीख कर कहते हैं, बुडविग उपचार सम्बंधी सारी बारीकियां बतलाते हैं और बुडविग पद्धति से ठीक हुए रोगियों की पूरी जानकारियाँ देते हैं। पर डॉ. बुडविग की ये पुकार सरकारों, उच्चाधिकारियों और एलोपेथी के कैंसर विशेषज्ञों तक नहीं पहुँच पायेंगी क्योंकि उनके कान, आँखें और मुँह सभी के रिमोट कंट्रोल राउडी रेडियोथैरेपी तथा किलर कीमोथैरेपी बनाने वाली मल्टीनेशनल कम्पनियों ने अपने लोकर्स में रख दिये हैं।


स्टुटगर्ट रेडियो पर प्रसारित एक साक्षातकार में बुडविग ने कहा था कि गोटिंजन में एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई और बताया कि उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया है और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते हैं। मैंने उसे सांत्वना दी, उसको सही उपचार बताया और उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा।


अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 से 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी के लड्डू
सामग्री- 1. ताजा पिसी अलसी 100 ग्राम 2. आटा 100 ग्राम 3. मखाने 75 ग्राम 4. नारियल कसा हुआ 75 ग्राम 5. किशमिश 25 ग्राम 6. कटी हुई बादाम 25 ग्राम 7. घी 300 ग्राम 8. चीनी का बूरा 350 ग्राम
लड्डू बनाने कि विधिः- कढ़ाही में लगभग 50 ग्राम घी गर्म करके उसमें मखाने हल्के हल्के तल लें । लगभग 150 ग्राम घी गर्म करके उसमें आटे को हल्की ऑच पर गुलाबी होने तक भून लें। जब आटा ठंडा हो जाये तब सारी सामग्री और बचा हुआ घी अच्छी तरह मिलायें और गोल गोल लड्डू बना लें।

अलसी सेवन से हुआ लाभ
1 ) घाटकोपर, मुम्बई की मंजुला बेन उम्र 75 वर्ष की दो वर्ष पूर्व कमर में दर्द होने के कारण एम.आर.आई. करवाई गई। तब पता चला कि उनके फेफड़ों में भी पानी भर गया है। सम्पूर्ण जांच से पता चला कि उनके फेफड़ों में कैंसर हो गया है। उन्हें रेडियोथैरेपी की 30 डोज दी गई। कीमोथेरेपी लेने से उन्होंने मना कर दिया। लेकिन उन्हें किसी उपचार से कोई फायदा नहीं हुआ। डाक्टर ने उन्हें कहा कि आप मुश्किल से 6 महीने जी पायेंगी। तब किसी ने उन्हें यॉहाना के उपचार के बारे में बताया। उन्होंने यॉहाना का उपचार तुरंत शुरू किया जिसे वे आज तक ले रही हैं। आज वे पूर्णतः स्वस्थ है ।


2 ) मुझे 3 वर्ष से डायबिटीज है तब मेरा ब्लड शुगर F 265- PP 450 था। तब से डॉ. वर्मा साहब के बताये अनुसार अलसी और गेहूँ के आटे की रोटी से लगातार खा रहा हूँ। तीन महीने बाद ब्लड शुगर 108-135 हो गया था। मुझे अब काफी अच्छा महसूस कर रहा हूँ। पहले मेरी कमर में जकड़न रहती थी जो अब ठीक हो गयी है। पहले थोड़ा सा घूमने के बाद ही चक्कर से आते थे, लेकिन अब बिना परेशानी के मैं डेढ़ घंटा रोज घूम रहा हूँ। अब दौड़कर सीढ़ियां चढ़ जाता हूँ। - रविकान्त प्रसाद नारकोटिक्स, कोटा।


3 ) मुझे घुटनों में बहुत दर्द रहता था और मैं ज्यादा पैदल नहीं चल पाता था। अलसी के सेवन के दो माह बाद ही मैं एक-डेढ़ कि.मी. चल सकता हूँ।


- डॉ. के.एल.भार्गव पूर्व औषधि नियंत्रक, इन्दौर


4 ) मैं पिछले कई वर्षों से उच्च-कोलेस्ट्रोल से पीड़ित था। अलसी का सेवन करने के बाद यह नार्मल हो गया है। - मनीष अग्रवाल इन्दौर


5 ) मैं दो महीने से अलसी की रोटी खा रही हूँ। मेरे मुहाँसे ठीक हो गये हैं, शरीर ऊर्जा से भर गया है, काम करने से थकती नहीं हूँ, क्रोध, झुँझलाहट और तनाव दूर हो चुके हैं। पहले घूमने पर पैर दर्द करते थे। अब दर्द गायब हो गया है। - सुमित्रा मीणा कोटा


6 ) मेरा नाम शकुंतला पॉल उम्र 78 वर्ष है, मैं जयपुर में रहती हूँ। मैं 7-8 महीनों से फ्लेक्स ओमेगा ले रही हूँ, जो जैविक अलसी से बनता है। मुझे अलसी से सचमुच चमत्कारी लाभ मिला है, मैं पहले से काफी युवा, ऊर्जावान, ताकतवर महसूस कर रही हूँ। मेरी त्वचा नम व मुलायम हो गयी है और इसमें खिंचाव भी आ गया है। एकाग्रता बढ़ी है और ज्यादा अच्छी तरह ध्यान लगा पाती हूँ। मेरी गर्दन में जकड़न रहती थी, मेरे सारे जोड़ दर्द करते थे जो अब ठीक है। मैं रक्तचाप और थायरॉयड की पुरानी रोगी हूँ और ज़िंदगी भर दवाईयां लेती रही हूँ, 2-3 महीनें पहले मेरे डॉ. ने बी.पी. की दवाईयां बन्द कर दी हैं और थायरॉयड की गोलियां भी डेढ़ कर दी है जबकि मैं पहले 4-5 गोलियां लेती थी। मेरे पूरे शरीर में गाँठे थी जो अब छोटी हो गयी हैं। पिछले 20 साल से हर वर्ष पूरी सर्दी मुझे खांसी रहा करती थी, लेकिन पिछली सर्दी में मुझे कोई खांसी नहीं हुई। अब सांस लम्बा ले पाती हूँ, जो पहले नहीं ले पाती थी। पहले मैं दिन भर सोती रहती थी, अब दिन भर कुछ न कुछ काम करती रहती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे माथे के दोनों ओर के बाल उड़ गये थे अब सफेद और काले दोनों रंग के नये बाल आ रहें हैं।































































































































































































Thursday, July 21, 2011

Dr. O.P.Verma is my Fourth Guru



अलसी गुरु वंदना



चौथे गुरु हैं डा.ओपी वर्मा, जो देश भर में अलसी का अलख जगा रहे हैं। करीब साल भर पहले डा.मनोहर भंडारी ने मुझे डा.वर्मा के अलसी पर आलेख की फोटोकापी लाकर दी थी। मैंने लेख में अलसी की महिमा पढ़ी और उसे अपनाना शुरू कर दिया। करीब पंद्रह दिन में ही मुझे आश्चर्यजनक परिणाम मिले। कब्ज का कब्जा दूर हो गया। त्वचा स्निग्ध और चमकीली होने लगी। बाल मुलायम हो गए और नाखून जो ब्रिटल (कड़े) हो गए थे वह नरम और चमकीले होने लगे। शरीर में चुस्ती-फूर्ती आ गई। करीब एक साल से मैं नियमित डेढ़ से दो चम्मच अलसी मिक्सर में पीस कर लेता हूँ। अलसी सेवन से लगता है उम्र दस साल पीछे चली गई। इसके बाद मैंने अपने रिश्तेदारों और मित्रों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। कईं लोगों ने अलसी को अपनाया और उन्हें लाभ हुआ है। डा.वर्मा ने अपने खर्च पर दो बार राजस्थान व मध्यप्रदेश की अलसी चेतना यात्रा की, वे जगह-जगह जाकर अलसी पर लेक्चर देते हैं। अलसी महिमा नाम से उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित करवाई है, जो लोगों के बीच निशुल्क वितरण करते हैं। डा.वर्मा भी एक निष्काम सेवक हैं जो जनकल्याण के लिए अलसी के प्रति चेतना जगा रहे हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं और टेलीविजन चैनलों पर उनके आलेख व साक्षात्कार आ चुके हैं। अगस्त में वे फिर अपना अलसी रथ लेकर मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की अलसी चेतना यात्रा पर निकल रहे हैं।


श्री सुरेश ताम्रकर, वरिष्ठ पत्रकार, नई दुनिया इन्दौर

Wednesday, July 20, 2011

Indian Goose Berry cures 16 ailments

एक योग मिटाए सोलह रोग






आँवला (myrobalan emblic) और शहद (honey) का ऐसा अदभुत संयोग है कि इससे सोलह प्रकार के रोगों में आराम मिलता है। यहाँ हम उनका उल्लेख कर रहे हैं। अगर इसके सेवन से आपको अन्य रोगों में भी लाभ हो तो कृपया बताएं ताकि इसमें और उन्हें भी जोड़ा जा सके।


एसिडिटीः चौथाई कप कच्चे आँवले का रस और इसमें इतना ही शहद मिला कर नित्य सेवन करने से एसिडिटी(अम्लपित्त) में लाभ होता है। यह प्रयोग शाम के समय करें तो अच्छा।


एनिमियाः चौथाई कप आँवले के रस में दो चम्मच शहद मिला कर थोड़ा पानी डालें, इस घोल का नित्य सेवन करने से खून की कमीं दूर होती है।


एल्ब्यूमिनेरियाः दो चम्मच आँवले का रस और दो चम्मच शहद मिला कर नित्य लेने से पेशाब में धातु अर्थात एल्ब्यूमेन जाना बंद हो जाता है।


पेशाब में जलनः पचास ग्राम ताजे आँवले के रस में इतना ही शहद मिला कर थोड़ा पानी मिला कर प्रतिदिन सेवन करने से पेशाब खुल कर आता है और जलन दूर होती है।


यूरिन इंफेक्शनः चार चम्मच आँवले का रस, दो चम्मच शहद और एक चम्मच पीसी हल्दी का मिश्रण कुछ समय तक रोज लेने से पेशाब में मवाद जाना बंद हो जाता है।


कफ और कोल्डः सर्दी जुकाम में भी आँवले का रस और शहद का योग बड़ा कारगर होता है। एक चम्मच आँवला चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ मिला कर कुछ दिन तक नित्य सेवन करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।


इजी बर्थः दो चम्मच आँवला चूर्ण दो कप पानी में तब तक उबालें जब तक एक कप पानी जल न जाए। ठंडा होने पर इसे छान कर दो चम्मच शहद मिला कर गर्भवती महिलाओं को नित्य दें। इससे प्रसव सहज और बिना अधिक दर्द के हो जाता है।


जोड़ों का दर्दः जोड़ों में दर्द हो तो तीन चम्मच आँवला रस दो चम्मच शहद के साथ प्रतिदिन खाली पेट प्रातः लेने से जोड़-जोड़ बेजोड़ हो जाते हैं।


पेट के रोगः एक चम्मच आँवला चूर्ण प्रतिदिन सोते समय शहद के साथ लेने से पेट के अनेक रोगों में लाभ होता है।


ल्यूकोरियाः महिलाओं के श्वेत प्रदर में भी यह योग अत्यंत लाभ करता है। तीन ग्राम पीसा आँवला ६ ग्राम शहद मिला कर नित्य सेवन से यह रोग दूर होता है।


डिसेन्ट्री या पेचिशः एक चम्मच पीसा आँवला इतने ही शहद के साथ नित्य दिन में तीन बार सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।


वर्म्स या कृमिः अगर पेट में कृमि हो तो एक औंस ताजे आँवले के रस में दो चम्मच शहद मिला कर नित्य दो बार दें। पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं।


रिजनरेशन अर्थात कायाकल्पः नित्य प्रातः ताजे आँवले का रस पाँच चम्मच और शहद तीन चम्मच मिला कर दो महीने तक नियमित खाली पेट लें। एक घंटे तक कुछ न खाएं तो शरीर का कायाकल्प हो जाता है।


तंदुरुस्तीः पीसा आँवला एक चम्मच, दो चम्मच शहद के साथ लें। उपर से गो दुग्ध लें तो सदा स्वास्थ्य अच्छा रहता है।


फलों से स्वागत करें


इस बार दीपावली पर मिलने वालों का फलों से स्वागत करें तो कैसा रहे? बाजार में मिलावटी सामान मिल रहा है। रोज छापे पड़ रहे हैं और नकली मावा, घी और मिलावटी खाद्य सामग्री पकड़ी जा रही है। ऐसी चीजें खाने और खिलाने से क्या फायदा, जो हमारी और हमारे शुभचिंतकों की भी सेहत बिगाड़े। मनुष्य बड़ा स्वार्थी होता है, वह ज्यादा कमाई के चक्कर में मिलावटखोरी से बाज नहीं आता। आजकल के जटिल जीवन में हम, हर चीज घर पर बना लें यह संभव भी नहीं है। लेकिन कुदरत कभी मिलावट नहीं करती। वह हमें ताजे और शुद्ध रसीले तरह-तरह के फल व मेवे देती है। इन दिनों सेवफल, सीताफल, सिंघाड़ा, पपीता, केला, अमरूद, नारंगी, मौसम्बी की बहार आई है। क्या ये किसी मिठाई से कम हैं। खजूर, अखरोट, बादाम, काजू, किसमिस सड़े-गले सिंथेटिक्स मावे के मिष्ठान से क्या कम हैं? फिर हम क्यों इन मिठाइयों और नमकीन के पीछे भागते हैं, जो हमें रक्तचाप, हृदयरोग, मधुमेह, कैंसर, टीबी जैसे घातक रोगों की ओर धकलते हैं। तो क्यों न इसबार कुदरती मेवे-मिष्ठान(फल) खाएं व खिलाएँ।


श्री सुरेश ताम्रकर


सात सहेलियां बालों की

 
बाल गिरने की समस्या इन दिनो आम है। इस वजह से लोग असमय गंजे हों रहे है। होंमियोंपैथी में एक फार्मूला है, जिसे मैंने और मेंरे गुरुदेव डाक्टर वासुदेव शर्मा ने आजमाया है और अच्छे नतीजे मिले. जनहित में पेश करता हूँ आप भी इस समस्या से ग्रस्त हों तो आजमा सकते है। दवाओ के नाम ह। veretrum alb, acid mur, pulsatilla, anacardium, baryta carb, zincum met और sulphur। ये सभी दवाए 30 शक्ति की ले। सभी समान मात्रा में होंनी चाहिए.दवा विक्रेता से गोलिया बनवाकर ले आइये। पहले सप्ताह चार चार गोलिया रोज दिन में एक बार ले। फिर हफ्ते में एक बार ले। लाभ होंने पर दवा बंद कर दे।

सहायक उपचार: दोनो हाथों की उगलियो के नाखूनो को रोज दो मिनट आपस में जोर देकर घिसिए।
अगर रुसी हों तो बालो की जड़ में ग्लिसरीन और गुलाब जल एक तीन के अनुपात में मिला कर मले।
बालो में किसी हर्बल शेम्पू का प्रयोंग ही करे।
अलसी के नियमित सेवन से भी बाल घने, काले और मुलायम होते हैं।

होंमियोंपैथी में दवा का असर दिखाई देने पर दवा बंद कर दी जाती है। फिर नेचर अपना काम करने लगती है। कुछ समय बाद अगर जरुरत महसूस हों तो फिर से उसी तरह दवा ली जा सकती है।

श्री सुरेश ताम्रकर


15-8-10 को श्री सुरेश ताम्रकर  उवाच  
 
आलस त्यागो अलसी खाओ, तन मन को तंदुरुस्त बनाओ
आजादी का यही सन्देश है,    देश की सेवा में जुट जाओ.




लारा दत्ता और अलसी का ॐ खंड




अलसी की महिमा फैलती ही जा रही है। बालीवुड कलाकार ऋतिक रोशन के अलसी सेवन की बात सुनी थी, अब लारा दत्ता भी अलसी लेने लगी है। हाल ही उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि वह अलसी के तेल युक्त ॐ खंड लेती है। अलसी के तेल की लस्सी बेहद पौष्टिक होती है। अलसी के तेल में ओमेगा ३ होता है, जो शरीर में नई कोशिकाओ के निर्माण में सहायक है। हम यहाँ ॐ खंड बनाने की विधि बताते हैं। आप भी सेवन कर सकते हैं। एक कप ताजे दही में एक चम्मच अलसी का तेल मिला कर उसे हैण्ड ब्लैंडर से फेटें। तेल चंद मिनट में ही दही में मिल कर एकाकार हो जाता है। इसे थोडा पानी मिला कर पतला कर सकते हैं। स्वाद के लिए पिसा जीरा और काला नमक मिलाया जा सकता है। अलसी का तेल दही के सल्फर प्रोटीन के साथ क्रिया कर तेल को पानी में घुलनशील बना देता है। यह सीधे रक्त में मिल कर कोशिकाओं को उर्जा देता है। उनके नवसृजन में सहायक होता है।

सावधानी-अलसी का तेल कच्ची घानी का होना चाहिए। अधिक पुराना न हो, इसे फ्रीज में रखना चाहिए, ज्यादा तापमान से यह ख़राब होने लगता है। 

श्री सुरेश ताम्रकर सा. 
ब्लॉग: यदाकदा

अलसी का चमत्कार (miracle of linseed)


अलसी एक चमत्कारी आहार है। इसके नियमित सेवन से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है। अलसी में ओमेगा३ पाया जाता है। यह हमें कई रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। ओमेगा३ शरीर के अंदर नहीं बनता इसे भोजन द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता है। शाकाहारियों के लिए अलसी से अच्छा इसका कोई और स्रोत नहीं है। माँसाहारियों को तो यह तत्व मछली से मिल जाता है। अगर आप स्वयं को निरोग और तंदुरुस्त रखना चाहते हैं, तो रोज कम से कम एक दो चम्मच अलसी को अपने आहार का अंग बनाइये। अलसी टीबी, कैंसर, हृदयरोग, मधुमेह, उच्चरक्तचाप, कब्ज, बवासीर, जोड़ों का दर्द, एग्जिमा, ब्रिटल नेल एण्ड ब्रिटल हेयर जैसे नाना प्रकार के रोगों से आपको बचा सकती है। यह शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाती है और खराब कोलेस्ट्रोल को कम करती है। धमनियों में जमे कोलेस्ट्रोल को साफ करती है। पेट की सफाई करती है। अर्थात यह प्रकृति का सफाई आहार है।


कैसे सेवन करे: अलसी को साफ कर हल्की आँच पर थोड़ा भून लें। इसमें थोड़ी सौंफ और अजवाइन मिला लें। चाहें तो काला नमक और नींबू का सत भी स्वाद के लिए डाला जा सकता है। इसे मुख शुद्धि के रूप में भोजन के बाद सुबह शाम और दोपहर में एक-एक चम्मच ले सकते हैं।
-या फिर सींकी हुई अलसी को मिक्सर में हल्का पीस कर आटे में मिला कर उसकी रोटी बनाइए और खाइए। या पीसी अलसी को सब्जी अथवा दाल में डाल कर भी खाया जा सकता है।
-विभिन्न प्रकार की चटनियों के साथ इसे मिला कर भी लिया जा सकता है।
अलसी के बारे में ज्यादा जानकारी आपको http://flaxindia.blogspot.com पर मिल सकती है। कोटा राजस्थान के डा.ओपी वर्मा ने इस पर काफी रिसर्च किया है। उन्होंने फ्लेक्स अवेअरनेस सोसायटी बनाई है। चाहें तो आप भी उसके सदस्य बन कर अलसी अपनाने वाले क्लब में शामिल हो सकते हैं।
अगर आप पहले से अलसी का प्रयोग कर रहे हों तो अपने अनुभव शेयर कीजिए। या अब शुरू करने पर कुछ समय बाद बताइये कि आपको कैसे और क्या लाभ नजर आए।
्रांतिः कुछ लोगों के मन में यह भ्रांति है कि अलसी की प्रकृति गर्म होती है। अतः ग्रीष्मकाल में इसका सेवन नहीं करना चाहिए। मैंने यह जिज्ञासा डा.ओपी वर्माजी के समक्ष रखी तो उनका जवाब था कि अलसी गर्म नहीं होती इसे किसी भी मौसम में लेने में कोई हर्ज नहीं है। कुछ लोगों को शुरूआत में पतले दस्त होने लगते हैं लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। बाद में अपने आप सब ठीक हो जाता है।
अलसी के अन्य फायदे
•ऊर्जा, स्फूर्ति व जीवटता प्रदान करती है।
•तनाव के क्षणों में शांत व स्थिर बनाए रखने में सहायक है।
•कैंसररोधी हार्मोन्स की सक्रियता बढ़ाती है।
•जोड़ों का कड़ापन कम करती है।
•प्राकृतिक रेचक गुण होने से पेट साफ रखती है।
•हृदय संबंधी रोगों के खतरे को कम करती है।
•उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है।
•त्वचा को स्वस्थ रखती है एवं सूखापन दूर कर एग्जिमा, खुजली, मुंहासे, सोराइसिस आदि से बचाती है।
•बालों व नाखून की वृद्धि कर उन्हें स्वस्थ व चमकदार बनाती है।
•इसका नियमित सेवन रजोनिवृत्ति संबंधी परेशानियों में राहत देता है।
•मासिक धर्म के दौरान ऐंठन को कम कर गर्भाशय को स्वस्थ रखती है।
•अलसी का सेवन त्वचा पर बढ़ती उम्र के असर को कम करता है।
•इसके रेशे पाचन को सुगम बनाते हैं, इस कारण वजन नियंत्रण करने में अलसी सहायक है।
•चयापचय की दर को बढ़ाती है एवं यकृत को स्वस्थ रखती है।



श्री सुरेश ताम्रकर सा.
ब्लॉग: यदाकदा



श्री सुरेश ताम्रकर, वरिष्ट पत्रकार, नई दुनिया, इन्दौर द्वारा भेजा हुआ ई-पत्र



अलसी की महिमा सचमुच गज़ब है। मेरे एक सहयोगी की पत्नी मधुमेह से पीड़ित है, उसकी रक्त शर्करा 300 से ऊपर चली गई थी। मैंने उसे अलसी लेने की सलाह दी और एक सप्ताह में ही उसकी रक्त शर्करा घटकर 165 आ गई। इन्दौर में मेडीकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. भंडारी का युवा भतीजा डिप्रेशन और उच्च रक्त चाप से पीड़ित था उसे भी मैंने अलसी लेने की सलाह दी। और उसका बी.पी. सामान्य हो गया उसका आत्मविश्वास भी बढ़ गया। जय हो अलसी, जय हो डॉ.वर्मा जी की।

सुरेश ताम्रकर,
वरिष्ट पत्रकार, नई दुनिया, इन्दौर।

मैं गेहूं हूँ

लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...