डायन
डायबिटीज और उसके दुष्प्रभावों का सफल उपचार - अलसी
डायबिटीज या मधुमेह क्या है ?
डायबिटीज या मधुमेह चयापचय संबंधी रोग है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि या तो शरीर में रक्त-शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण बहुत कम होता है या इंसुलिन अपने कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है।
ग्लूकोज का सूत्र C6H12O6 है। इसमें 6 कार्बन के परमाणुओं का एक षटकोणीय छल्ला
होता है जिनसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणु जुड़े रहते हैं। इसमें सूर्य की असीम
ऊर्जा संरक्षित रहती है। यह हमारे शरीर का ईंधन है जो शरीर की हर कोशिका तक पहुँचता
है। और कोशिका में ऑक्सीजन से क्रिया कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड, पानी तथा ऊर्जा का निर्माण
करता है। ग्लूकोज मृदुभाषी, षठ-बंध उदरधारी, बलवान, अहंकारी, कपटी, कामचोर, विश्वासघाती, आवारा और शरारती प्रवृत्ति का तत्व है इसीलिये इन्सुलिन नामक हार्मोन एक कठोर प्रोफेसर
की भाँति इसको कड़े अनुशासन में रखता है और इसकी सारी गतिविधियों पर पूरा नियंत्रण
रखता है। हर कोशिका की भित्ती या झिल्ली में शर्करा के प्रवेश हेतु मधु-द्वार (Glucose
Transporter-4) होते हैं। इन मधु-द्वारों के तालों की कुंजी इन्सुलिन
के पास ही रहती है। आवश्यकता होने पर इन्सुलिन मधु-द्वार खोल देता है और ग्लूकोज को
कोशिकाओं में अपने कार्य करने और प्रवेश की अनुमति दे देता है। यदि पर्याप्त इंसुलिन
उपलब्ध न हो या इंसुलिन अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाये, जैसा कि डॉयबिटीज में होता है, तो ग्लूकोज नामक ईंधन कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और
खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है।
कोशिकाएं ऊर्जाहीन तथा कमजोर पड़ने लगती हैं और वसा के उपापचय से ऊर्जा ग्रहण
करती हैं। खून में बढ़े हुए ये स्वछन्द, कामचोर, और घमंडी ग्लूकोज के अणु बेपरवाह होकर शरीर में दहशतगर्दी
करने निकल पड़ते हैं और शरीर में उत्पात मचाते रहते हैं। इनकी शरारतों से शरीर के कोमल
अंगों को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचने लगता है, इसलिये वे ग्लूकोज की शिकायत गुर्दों को भेजते हैं।
गुर्दे स्थिति का अवलोकन करते हैं और ग्लूकोज को दण्ड देने के बारे में विचार करते
हैं। उधर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब रक्त
में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित सीमा को छू लेती है, तब गुर्दों के सब्र का बांध टूट जाता है और वे ग्लूकोज को दंड
के रूप में मूत्र के साथ शरीर से विसर्जन करना शुरू कर देते हैं। इन्हीं कारणों से
चिकित्सा-शास्त्री डायबिटीज के रोगी को आहार प्रबंधन, औषधियों और इन्सुलिन की मदद से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को
सामान्य रखने की सलाह देते हैं।
ग्लूकोज के अणु हमारे दुश्मनों जैसे जीवाणु, विषाणु, परजीवियों, मुक्त-कणों, कैंसर आदि से बहुत जल्दी धुल मिल जाते हैं, मित्रता कर लेते हैं, उनको पोषण और ऊर्जा देते हैं। ऐसा विश्वासघाती और
कपटी है ये ग्लूकोज।
डायबिटीज़ पर
अलसी के चमत्कार –
जीरो कार्ब भोजन है अलसी
अलसी ब्लड
शुगर नियंत्रित रखती है, डायबिटीज़ के शरीर पर होने
वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। डायबिटीज के रोगियों के लिए अलसी एक आदर्श और
अमृत तुल्य भोजन है, क्योंकि यह
जीरो कार्ब
भोजन है। चौंकियेगा नहीं, यह सत्य है। मैं आपको समझाता हूँ। 14 ग्राम अलसी में 2.56
ग्राम प्रोटीन, 5.90 ग्राम फैट, 0.97 ग्राम पानी और 0.53 ग्राम राख होती है। 14 में से
उपरोक्त सभी के जोड़ को घटाने पर जो शेष (14-{0.97+2.56+5.90+0.53}=4.04 ग्राम) 4.04 ग्राम बचेगा वह
कार्बोहाइड्रेट की मात्रा हुई। विदित रहे कि फाइबर कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी में
ही आते हैं। इस 4.04 कार्बोहाइड्रेट में
3.80 ग्राम फाइबर होता है जो न रक्त में अवशोषित होता है और न ही रक्तशर्करा को
प्रभावित करता है। अतः 14 ग्राम अलसी में कार्बोहाइड्रेट की व्यावहारिक मात्रा तो
4.04 - 3.80 = 0.24 ग्राम ही हुई, जो 14 ग्राम के सामने नगण्य मात्रा है इसलिये
आहार शास्त्री अलसी को जीरो कार्ब भोजन मानते हैं।
हृदय के लिए हितकारी है अलसी
अलसी हमारे
रक्तचाप को संतुलित रखती हैं। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्राल (HDL Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व
खराब कोलेस्ट्रोल (LDL Cholesterol) की मात्रा को कम करती
है। अलसी रक्त के पतला रखती है और दिल की धमनियों में खून के थक्के (एथेरोस्क्लिरोसिस
रोग) नहीं बनने देती और इस तरह हृदयाघात से बचाव करती हैं। हृदय की गति को नियंत्रित
कर वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्यु दर को बहुत कम करती है।
प्रदाहरोधी है अलसी
डायबिटीज में कोशिका स्तर पर मुख्य विकृति प्रदाह
(इन्फ्लेमेशन), रक्त-वाहिकाओं और नाड़ियों का क्षतिग्रस्त होना है और इन्ही के
कारण शरीर में विभिन्न जटिलतायें पैदा हो जाती हैं। डायबिटीज के अलसी हमारे शरीर
में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात संतुलित रखती है, जिसके फलस्वरूप कोशिका में एक
और तीन प्रदाहरोधी, रक्तवाहिका विस्तारक
और बिंबाणुरोधी प्रोस्टाग्लैन्डिन E-1 तथा E-3, ल्युकोट्राइन्स (TXA-2), थ्रोम्ब्रोक्सेन्स (TLB-4) बनते हैं। हैं। अलसी
में लिगनेन होता है जो रक्तशर्करा को नियंत्रण में रखता है तथा एक शक्तिशाली
प्रदाहरोधी और प्रतिऑक्सीकारक है। इसलिए अलसी सेवन करने वाले रोगी में डायबिटीज
की जटिलताओं के होने की संभावना कम रहती
है। यह बहुत बड़ी बात है।
लैंगिक विकार का उपचार है अलसी
डायबिटीज का एक बहुत अहम कुप्रभाव स्तंभनदोष,
दुर्बल कामेच्छा, शीघ्रस्खलन, बांझपन, शुष्क योनि, गर्भपात आदि भी है। आज यह जटिलता
और भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि आजकल डायबिटीज बहुत कम उम्र में होने लगी है। अलसी
इस जटिलता को भी पूरी तरह ठीक करने में सक्षम है।
फाइबर से भरपूर है अलसी
अलसी में 27 प्रतिशत रेशा (फाइबर) होता है। अलसी
में विद्यमान फाइबर आंतों में शर्करा को बांध कर रखता है और धीरे-धीरे रक्त में
छोड़ता है। जिससे रक्त-शर्करा का स्तर ज्यादा उछाल नहीं मारता है, अग्न्याशय को
रक्त में कम इन्सुलिन छोड़ना पड़ता है, इन्सुलिन प्रतिशोध कम होता है, लंबे समय तक
पेट भरा रहता है और खाने की ललक कम होती है।
डायबिटीज के कारण पैरों में रक्त का संचार कम हो
जाता है व पैरों में एसे घाव हो जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते। इससे कई बार
गेंग्रीन बन जाती है और इलाज हेतु पैर कटवाना पड़ जाता हैं। इसी लिए डायबिटीज
पीड़ितों को चेहरे से ज्यादा अपने पैरों की देखभाल करने की सलाह दी जाती है। पैरों
की नियमित देखभाल, अलसी खाने से पैरों में रक्त का प्रवाह
बढ़ता हैं, पैर के घाव व फोड़े आदि ठीक होते हैं। पैर व
नाखुन नम, मुलायम व सुन्दर हो जाते हैं।
आँखों की ज्याति
बढ़ाती है अलसी
डायबिटीज के दुष्प्रभावों के कारण आँखों के
दृष्टि पटल की रक्त वाहिनियों में कहीं-कहीं हल्का रक्त स्राव और रुई जैसे सफेद
धब्बे बन जाते हैं। इसे रेटीनोपेथी कहते हैं जिसके कारण आँखों की ज्योति धीरे-धीरे
कम होने लगती है। दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है। अंतिम अवस्था में रोगी अंधा तक
हो जाता है। अलसी इसके बचाव में बहुत लाभकारी पाई गई है। डायबिटीज के रोगी को
मोतियाबिन्द और काला पानी होने की संभावना भी ज्यादा रहती है। अलसी के सेवन से नजर
अच्छी हो जाती हैं, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई
देने लगते हैं तथा धीरे-धीरे चश्मे का नम्बर भी कम हो सकता है।
गुर्दों की
रक्षक है अलसी
डायबिटीज का बुरा असर गुर्दों पर भी पड़ता है।
गुर्दों में डायबीटिक नेफ्रोपेथी नामक रोग हो जाता है, जिसकी आरंम्भिक अवस्था में प्रोटीन युक्त मूत्र आने लगता है,
बाद में गुर्दे कमजोर होने लगते हैं और अंत में गुर्दे नाकाम हो
जाते हैं। फिर जीने के लिए डायलेसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के सिवा कोई रास्ता नहीं
बचता हैं। अलसी गुर्दे के उत्तकों को नयी ऊर्जा देती है।
डायबिटीज में
अलसी सेवन का तरीका
डायबिटीज के रोगी को 30-50 ग्राम अलसी रोज खाना चाहिये। कौशिश करें अलसी को रोजाना मिक्सी के चटनी जार में सूखा पीसें। बहुत बारीक नहीं पीसें, दरदरी ही ठीक रहती है। लेकिन यदि रोज पीसने में परेशानी हो तो एक सप्ताह की इकट्ठी भी पीस सकते हैं। 15-25 ग्राम अलसी सुबह और शाम आटे में मिला कर रोटी बनवा कर खाये। यह रोटी बहुत स्वादिष्ट लगती है। अलसी खाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इससे एक तो गैहूं का आटा कम खाने में आता हैं जिसका ग्लाइसीमिक इंडेक्स बहुत ज्यादा होता है। दोनों मुख्य आहार में फाइबर की पर्याप्त मात्रा पेट में जाती है जो शर्करा को बांधे रखती है और धीरे-धीरे रक्त में छोड़ती है। लेकिन जो लोग अलसी की रोटी नहीं खाना चाहते हैं, इसे वे दही, सलाद, सब्जी आदि में डाल कर सुबह शाम ले सकते हैं।
अंतिम दो शब्द
अंत में डायबिटीज़ के रोगी के लिए कुछ अन्य
निर्देश भी बतला देता हूँ।
रिफाइंड कार्ब होते बड़े खराब
आपको परिष्कृत शर्करा जैसे सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पेकेट बंद
खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पास्ता,
मेगी, नूडल्स, बिस्कुट,
अकंलचिप्स, कुरकुरे, पेप्सी,
लिमका, कोकाकोला, फैंटा,
फ्रूटी, पिज्जा, बर्गर,
पेटीज, समोसा, कचोरी,
भटूरा, नमकीन, सेव आदि
का सेवन नहीं करना चाहिये। उपरोक्त सभी खाद्य पदार्थ मैदा व ट्रांसफैट युक्त खराब
रिफाइंड तेलों से बनते हैं। तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म किया जाता हैं जिससे
उसमें अत्यंत हानिकारक कैंसर पैदा करने वाले रसायन जैसे एच.एन.ई. बन जाते हैं।
बंद करो रिफाइन्ड तेल अगर चलानी हो जीवन की रेल
आपको खराब फैट जैसे परिष्कृत या रिफाइंड तेल
जिसे बनाते वक्त 400 सेल्सियम तक गर्म किया जाता है व अत्यंत हानिकारक रसायन
पदार्थ जैसे हैक्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि-आदि मिलाये जाते
हैं, का सेवन कतई नहीं करना है। आपको अच्छे वसा जैसे घाणी का
निकला नारियल (हालांकि अमरीकी संस्था FDA ने अभी तक नारियल
के तेल को सर्वश्रेष्ठ खाद्य तेल का दर्जा नहीं दिया है) , तिल
या सरसों का तेल ही काम में लेना है। नारियल का तेल खाने के लिये सर्वोत्तम होता
है, यह आपको दिल की बीमारियों से बचायेगा व आपके वज़न को भी
कम करेगा।
यदि ठंडी विधि से निकला, फ्रीज में संरक्षित किया हुआ अलसी का तेल रोजाना दो चम्मच तेल को चार चम्मच दही या पनीर में हेंड ब्लेंडर से अच्छी तरह मिश्रण बना कर फलों या सलाद के साथ लें। अलसी का तेल हमेशा फ्रीज में रखें। अलसी के तेल को कभी गर्म नहीं करें क्योंकि 42 सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है।
प्राकृतिक उपचार
रोजाना आधा चम्मच पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय
में डालकर लें। रोज एक क्रोमियम व अल्फालाईपोइक एसिड युक्त एन्टीऑक्सीडेंट का
केप्सूल और Shilajit Dabur के दो केप्सूल
सुबह शाम लेना है। मेथीं दाना, करेला, जामुन, आंवला, नीम के पत्ते आदि का सेवन करें।
What does Flax do in Doctors
Language
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3 comments:
अलसी दैविक आहार है जो हमें निरोग रखता है। आभार वर्मा जी उपयोगी लेख के लिए।
very good sir,,,keep it up
Very nice and informative article. Learn many new things from your blog.
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