कॉलेस्ट्रोल का चक्रव्यूह
कॉलेस्ट्रोल मोम के समान एक रवेदार सफेद स्टीरोल है जो सभी स्तनधारियों की कोशिकाओं की झिल्लियों और रक्त में पाया जाता है। कॉलेस्ट्रोल ग्रीक शब्दों कोले (Bile), सिटिरोज (Solid) और ओल (Alcohol) से बना है। 1769 में फ्रेंकोस पोल्टियर ने पित्ताशय की पथरी में पहली बार कॉलेस्ट्रोल को चिन्हित किया था। यह कोशिकाओं की झिल्लियों का प्रमुख घटक है जो कोशिकाओं को वांछित पारगम्यता (Permeability) और तरलता (Fluidity) प्रदान करता है। यह पित्त अम्ल (Bile salts), स्टिरोइड तथा सेक्स हार्मोन्स, और वसा में घुलनशील विटामिन-ए, विटामिन-डी, विटामिन-ई और विटामिन-के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।
कॉलेस्ट्रोल सभी जीवधारियों के लिए अति आवश्यक है और नियमित शरीर में बनता रहता है। एक व्यक्ति सामान्यतः 1 से 1.25 ग्राम कॉलेस्ट्रोल का निर्माण रोजाना करता है। शरीर में कुल कॉलेस्ट्रोल की कुल मात्रा लगभग 35 ग्राम होती है। आहार से हमें औसतन 200-300 मि.ग्रा. कॉलेस्ट्रोल रोज प्राप्त होता है। हमारा शरीर कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को संतुलित रखते की कौशिश करता है, इसीलिए शरीर । यकृत कॉलेस्ट्रोल का विसर्जन पित्त-अम्ल के रूप में करता है जिसका अधिकतर भाग छोटी आंत में फिर से रक्त में अवशोषित हो जाता है और पुनर्चक्रित (Recycle) होता है। वानस्पतिक स्टीरोल और फाइबर की उपस्थिति में यह अवशोषण कम हो जाता है और फाइबर की अनुपस्थिति अवशोषण को बढ़ाती है।
कॉलेस्ट्रोल कोशिका की भित्तियों या झिल्लियों के निर्माण और रखरखाव के लिए अतिआवश्यक है और उनको तरलता प्रदान करता है। कॉलेस्ट्रोल का हाइड्रोक्सिल ग्रुप (OH group) फोस्फोलिपिड और स्फिंगोलिपिड के ध्रुवीय सिर के सम्पर्क में रहते हैं जबकि बड़ी स्टिरोइड तथा ङाइड्रोकार्बन लड़ अन्य वसाअम्लों की लड़ों के साथ भित्ती में धंसी रहती है। भित्तियों की यह संरचना प्रोटोन्स (Positive hydrogen ions) और सोडियम ऑयन्स की पारगम्यता को कम करती है। कॉलेस्ट्रोल कोशिका में संकेतों की आवाजाही जैसे कोशिकीय संकेतन (cell signaling) और नाड़ी संदेश प्रवाह के लिए भी जरूरी है। कॉलेस्ट्रोल भित्तियों के केवियोला और क्लेथ्रिन युक्त गड्डों की संरचना एवम् कार्यप्रणाली के लिए भी आवश्यक है। कॉलेस्ट्रोल कोशिकीय संकेतन हेतु भित्तियों में वसीय नौकाओं (Lipid rafts) का निर्माण भी करते हैं।
कॉलेस्ट्रोल कोशिकाओं की कई चयापचय क्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यकृत में कॉलेस्ट्रोल पित्त-अम्ल बनाने में सहायक है, जो पित्ताशय में एकत्रित होता रहता है। पित्त आहार पथ में वसा तथा विटामिन ए, डी, ई एवम् के को घुलनशील बनाता है और उनके अवशोषण में सहायता देता है।
कॉलेस्ट्रोल विटामिन-डी एवम् एडरीनल ग्रंथि से स्रावित कोर्टिजोल तथा एल्डोस्टिरोन और सेक्स हार्मान प्रोजेस्ट्रोन, इस्ट्रोजन और टेस्टोस्टिरोन के निर्माण में भी सहायता देते हैं। शुद्ध कॉलेस्ट्रोल एक एन्टी-ऑक्सीडेन्ट भी है।
आहार स्रोत
जीवधारी वसा ट्राइग्लीसराइड्स, फोस्फोलिपिड और कॉलेस्ट्रोल का जटिल मिश्रण होते हैं। कॉलेस्ट्रोल के मुख्य स्रोत मक्खन, पनीर, अंडा, अंडे की ज़र्दी, मुर्गा, मांस, कलेजी और मछली हैं। मानव दूध में भी पर्याप्त मात्रा में कॉलेस्ट्रोल होता है। एक विशेष बात यह है कि अलसी में कॉलेस्ट्रोल से मिलता जुलता तत्व फाइटोस्टिरोल होता है जो रक्त में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा कम करता है।
आहार और जीवनशैली में सुधार लाकर कॉलेस्ट्रोल की मात्रा कम की जा सकती है। जीवधारी वसा का सेवन कम करने से कॉलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है। जो व्यक्ति कॉलेस्ट्रोल कम करना चाहते हैं, उन्हें कैलोरी का सिर्फ 7% संतृप्त वसा से लेना चाहिये और आहार में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा 200 मि.ग्रा. से कम रखने की तलाह दी जाती है।
आजकल इस भ्रांति पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है कि आहार में कॉलेस्ट्रोल कम लेने से हृदयरोग और हृदयाघात का जोखिम कम होता है, क्योंकि आहार में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा कम होने की सूरत में शारीरिक आवश्यकता की आपूर्ति एवम् संतुलन बनाये रखने के लिए शरीर ज्यादा कॉलेस्ट्रोल बनाता है।
शरीर की कुल आवश्यकता का 20-25% कॉलेस्ट्रोल यकृत में बनता है। यकृत के अलावा यह आंतों, एडरिनल ग्रंथि और प्रजनन अंगों में भी बनता है। कॉलेस्ट्रोल के निर्माण की प्रक्रिया में पहले एसीटाइल केन्ज़ाइम-ए (Acetyl CoA) और एसीटोएसीटाइल कोएन्ज़ाइम-ए (Acetoacetyl-CoA) के एक एक अणु किण्वक एचएमजी कोएन्ज़ाइम-ए सिंथेज की मदद से निर्जलीकृत होकर 3-हाइड्रोक्सिल-3-मिथाइलग्लुटेराइल कोएन्जाइम-ए (3-hydroxy-3-methylglutaryl CoA) बनाते हैं। किण्वक एचएमजी कोएन्ज़ाइम-ए रिडक्टेज (HMG-CoA reductase) की सहायता से यह अपघटित होकर मेवेलोनेट में परिवर्तित होता है। मेवेलोनेट एटीपी के दो अणु और दो एंजाइम मेवलोनेट काइनेज तथा फोस्फोमेवलोनेट काइनेज का मदद द्वारा 5-पायरोफोस्फोमेवलोनेट बनाता है, जो पाइरोफोस्फोमेवलोनेट डिकार्बोक्सीलेज एंजाइम की मदद से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड छोड़ कर आइसोपेन्टेनाइल पाइरोफोस्फोट में परिवर्तित होता है। यह कई रसायनिक क्रियाओं का प्रमुख घटक है। इसके तीन अणु मिल कर एंजाइम आइसोपेन्टेनाइल पाइरोफोस्फेट आइसोमरेज़ की मदद से फर्नेसाइल पाइरोफोस्फोट बनाते हैं। एन्डोप्लाज़मिक रेटिकुलम में फर्नेसाइल पाइरोफोस्फोट के दो अणु जुड़ कर स्किवेलीन सिंथेज़ की मदद लेकर स्क्वेलीन बनाते हैं। स्क्वेलीन एंजाइम स्क्वेलीन मोनोक्सीजिनेज की मदद से स्क्वेलीन-2,3-एपोक्साइड बनाता है। जो 2,3-ऑक्सिडोस्क्वेलीन लेनोस्टिरोल साइक्लेज़ स्क्वेलीन को लेनोस्टिरोल में बदलते हैं। आखिर में लेनोस्टिरोल से कॉलेस्ट्रोल बनता है। कॉलेस्ट्रोल तथा फैटी एसिड के निर्माण और नियंत्रण सन्बंधी इस महान खोज के लिए कोनार्ड ब्लॉक और फियोडोर लाइनेन को 1964 में नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था।
शरीर में कॉलेस्ट्रोल का निर्माण सीधा शरीर में कॉलेस्ट्रोल का मात्रा पर निर्भर करता है। शरीर में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को संतुलित बनाये रखने के लिए एक विशिष्ट नियंत्रण प्रणाली कार्य करती है। हमारे आहारशास्त्री इस संतुलन के रहस्य को पूरी तरह समझने में जुटे हैं। यदि भोजन द्वारा कम कॉलेस्ट्रोल लिया जाये तो शरीर में ज्यादा कॉलेस्ट्रोल बनेगा और यदि भोजन में ज्यादा कॉलेस्ट्रोल लिया जाये तो शरीर में कम कॉलेस्ट्रोल बनायेगा। कॉलेस्ट्रोल निर्माण के नियंत्रण की मुख्य कुंजी एन्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम में एस.आर.इ.बी.पी. स्टीरोल रेगुलेट्री एलीमेंट-बाइन्डिंग प्रोटीन 1 और 2 (SREBP sterol regulatory element-binding protein 1 and 2) है।
कॉलेस्ट्रोल की उपस्थिति में SREBP प्रोटीन दो अन्य प्रोटीन स्केप या एस.आर.इ.बी.पी.-क्लीवेज-एक्टिवेटिंग प्रोटीन (SCAP or SREBP-cleavage-activating protein) और इनसिग-1 (Insig1 or site-1 and -2 protease) से जुड़े रहते हैं। जब कोशिका में कॉलेस्ट्रोल कम होता है तो Insig-1 SREBP-SCAP complex से अलग हो कर उन्हें गोलगी संयंत्र में जाने देते हैं। कॉलेस्ट्रोल कम होने से SCAP दो एन्ज़ाइम S1P and S2P (site-1 and -2 protease) को SREBP का विभाजन करने हेतु आदेश देते हैं। ये दोनों एन्ज़ाइम S1P and S2P SREBP पर कैंची चला कर उसके टुकड़े कर देते हैं। विभाजित SREBP कोशिका के नाभिक में प्रवेश करता है जहां वह एस.आर.ई. (Sterol regulatory Element) से जुड़ कर LDL (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन रिसेप्टर) अभिग्राहक और एच.एम.जी. कोएन्जोइम-ए रिडक्टेज के लिप्यंतरण को उत्तेजित करते हैं। LDL (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन) अभिग्राहक रक्त में घूमने वाले LDL का सफाया करते हैं और एच.एम.जी. कोएन्जोइम-ए रिडक्टेज कॉलेस्ट्रोल का आंतरिक स्राव बढ़ाते हैं। यदि कोशिका में कॉलेस्ट्रोल ज्यादा हो तो SREBP इनसिग और SCAP से जुड़े रहते हैं, ऐंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम में ही बने रहते हैं और गोलगी संयंत्र में प्रवेश करने में असमर्थ होते हैं। यह संकेतन पथ डॉ.मिशेल एस. ब्राउन और डॉ. जोसेफ एल. गोल्डस्टीन ने स्पष्ट किया था, जिसके लिए उन्हें 1985 में नाबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उन्होंने यह भी मालूम किया था कि किस तरह SREBP पथ लिपिड निर्माण, चयापचय और ऊर्जा से सम्बंधित जीन्स को नियंत्रित करते हैं। कॉलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होने पर उसका निर्माण स्थगित हो जाता है।
संक्षेप में कॉलेस्ट्रोल का स्तर कम होने से SREBP HMG-CoA reductase and LDL receptor का लिप्यंतरण (Transcription) बढ़ा देते हैं।
कॉलेस्ट्रोल परिवहन और अवशोषण का नियंत्रण
कॉलेस्ट्रोल पानी घुलनशील नहीं है और जलीय माध्यम रक्त में कॉलेस्ट्रोल का प्रवाह बहुत ही सिमित होता है। रक्त में कॉलेस्ट्रोल का मुक्त प्रवाह जटिल संरचना वाले गोलाकार सूटकेस, जिनको लाइपोप्रोटीन कहते हैं, के द्वारा होता है जिनका बाहरी खोल उभयशील या एम्फिफीलिक (ग्रीक भाषा में amphis = both और philic = प्यार या दोस्ती यानी इनमें पानी में घुलने और न घुलने दोनों ही गुण होते हैं) प्रोटीन तथा लिपिड से बना होता है, जिनकी बाहरी सतह जल में घुलनशील और अंदर की सतह वसा में घुलनशील होती है। लाइपोप्रोटीन में एक विशेष प्रकार का ट्राइग्लीसराइड और कॉलेस्ट्रोल इस्टर अंदर रहता है और फोस्फोलिपिड और कॉलेस्ट्रोल बाहरी उभयशील सतह में रहता है। लाइपोप्रोटीन कॉलेस्ट्रोल को भ्रमण हेतु घुललशील माध्यम उपलब्ध करवाने के साथ साथ कॉलेस्ट्रोल और लिपिड को अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने के संकेत भी देता है।
इस हेतु लाइपोप्रोटीन कई प्रकार के होते हैं जिन्हें घनत्व के आधार पर काइलोमाइक्रोन (chylomicron), बहुत कम घनत्व लाइपोप्रोटीन (VLDL), मध्यम घनत्व लाइपोप्रोटीन (IDL), कम घनत्व लाइपोप्रोटीन (LDL) और अधिक घनत्व लाइपोप्रोटीन (HDL) नाम से वर्गीकृत किया है। सभी लाइपोप्रोटीन में कॉलेस्ट्रोल एक ही तरह का होता है। हां कहीं यह मुक्त कॉलेस्ट्रोल के रूप में होता है तो कहीं कॉलेस्ट्रोल इस्टर के रूप में होता है। यदि लाइपोप्रोटीन में प्रोटीन 
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की मात्रा कम हो तो उसका घनत्व कम माना जाता है। विभिन्न लाइपोप्रोटीन में ऐपो-लाइपोप्रोटीन होता है, जो कोशिका की भित्तियों पर स्थित अभिग्राहक के लिए लाइगेन्ड (यह एक प्रकार का हैंडल होता है जो किसी अभिग्राहक Receptor से जुड़ना की क्षमता रखता है) का कार्य करता है। इस तरह ऐपो-लाइपोप्रोटीन कॉलेस्ट्रोल परिवहन के आरंभिक और गन्तव्य कोशिकीय ठिकाने को इंगित करते हैं।
काइलोमाइक्रोन का घनत्व सबसे कम होता है, इसमें ऐपो-लाइपोप्रोटीन बी-48, ऐपो-लाइपोप्रोटीन सी और ऐपो-लाइपोप्रोटीन ई होते हैं। ये वसा को आंतों से पैशियों और अन्य ऊतकों तक पहुंचाते हैं, जिन्हें ऊर्जा और फैट के निर्माण हेतु वसा अम्लों की जरूरत होती है। यदि पैशियों में कॉलेस्ट्रोल बचता है तो वह वापस यकृत पहुंचता है।
VLDL में ट्रायसिलग्लीसरोल और कॉलेस्ट्रोल होता है और यह यकृत में बनता है। इस अणु के खोल पर ऐपो-लाइपोप्रोटीन बी-100 और ऐपो-लाइपोप्रोटीन ई होते हैं। IDL का अंत दो तरह से होता है। आधे तो ये पुनः यकृत में चले जाते हैं तथा आधे रक्त में ट्रायसिलग्लीसरोल छोड़ते रहते हैं और अंततः LDL में परिवर्तित हो जाते हैं, जिसमें सबसे ज्यादा कॉलेस्ट्रोल होता है।
इस तरह LDL अणु रक्त में कॉलेस्ट्रोल परिवहन का मुख्य वाहक है। हर LDL अणु में कॉलेस्ट्रोल इस्टर के 1500 अणु होते हैं। LDL के खोल में ऐपो-लाइपोप्रोटीन बी-100 का एक ही अणु होता है जिसे परिधीय LDL रिसेप्टर या अभिग्राहक पहचान लेते हैं और जुड़ कर क्लेथ्रिन युक्त गड्डों में एकत्रित हो जाते हैं। LDL और उसके अभिग्राक दोनों एन्डोसाइटोसिस क्रिया द्वारा कोशिका में एक थैली का रूप लेकर लाइसोजोम से जुड़ते हैं, जो लाइसोजाइमल एसिड लाइपेज़ एन्जाइम की सहायता से कॉलेस्ट्रोल इस्टर को हाइड्रोलाइज करते हैं। कोशिका के भीतर कॉलेस्ट्रोल से भित्तियों का निर्माण होता है या कॉलेस्ट्रोल इस्टर के रूप में संचित होता हैं।
LDL रिसेप्टर का निर्माण SREBP द्वारा नियंत्रित होता है। यही कोशिका में कॉलेस्ट्रोल के निर्माण के भी नियंत्रित करता है। जब कोशिका में पर्याप्त कॉलेस्ट्रोल होता है, तो LDL रिसेप्टर का निर्माण बाधित होता है और LDL अणु नये कॉलेस्ट्रोल को ग्रहण नहीं कर पाता है। इसके विपरीत यदि कोशिका में कॉलेस्ट्रोल का अभाव हो तो LDL रिसेप्टर का निर्माण ज्यादा होता है। यदि यह प्रक्रिया अनियंत्रण हो जाये तो रक्त में बिना LDL के रिसेप्टर के भी LDL अणुओं की संख्या बढ़ जाती है। ये LDL अणु ऑक्सीकृत होकर माक्रोफाज द्वारा खा लिए जाते हैं और फोम कोशिकाएं बनाते हैं। ये फोम कोशिकाएं रक्त-वाहिकाओं की भित्तियों से चिपक जाती हैं और ऐसे एथरोस्क्लिरोटिक प्लॉक बनने की शुरूआत होती है। ये प्लॉक के कारण ही हृदयाघात और स्ट्रोक होता है और इसीलिए LDL कॉलेस्ट्रोल को बुरे कॉलेस्ट्रोल के नाम से जाना जाता है।
HDL अणु कॉलेस्ट्रोल को पुनः यकृत में विसर्जन हेतु या अन्य ऊतकों में हार्मोन्स के निर्माण हेतु पहुंचाते हैं। इसे विपरीत कॉलेस्ट्रोल परिवहन कहते हैं। शरीर में HDL कॉलेस्ट्रोल का ज्यादा होना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी माना जाता है जबकि LDL कॉलेस्ट्रोल का एथेरोस्क्लिरोसिस से गहरा सम्बंध है।
कॉलेस्ट्रोल का चयापचय, विसर्जन और पुनर्चक्रता
कॉलेस्ट्रोल यकृत में ऑक्सीकृत होकर पित्त-अम्ल बनाता है, जो ग्लाइसीन, टॉरीन, ग्लुकोरोनिक एसिड या सल्फेट से जुड़ जाते हैं। जुड़े हुए और मुक्त पित्त-अम्ल पित्त-रस के रूप में विसर्जित हो जाते हैं। इनकी अधिकतर मात्रा लगभग 95% पुनः अवशोषित हो जाती है और पुनः चक्रित होती है, शेष मल द्वारा बाहर निकल जाती है।
2 comments:
आप ने कोलेस्ट्रॉल से समाबंधित बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है। मगर साथ ही यदि आप यह भी बता देते की उसे कंट्रोल करने के लिए क्या उपाए है तो और भी बहतर होता खास कर hdl कोल्लेस्ट्रोल को कैसे बढ़ाया जा सकता है ... यदि संभव हो तो कृपया इस से सबंधित जानकारी भी प्रदान करें ...आभार
बेहद ही अच्छी प्रस्तुति जानकारी से भरपूर,
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