Thursday, October 6, 2011

Glycolysis & Krebs Cycle



कोशिकीय ऊर्जा प्रबन्धन
शायद आप जानते होंगे कि हमारे शरीर में होने वाली सबसे महत्वपूर्ण रसायनिक क्रिया कोशिकीय श्वसन है। इसी क्रिया द्वारा हम भोजन के मुख्य तत्वों (कोर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा) विशेष तौर पर ग्लूकोज से विभिन्न शारीरिक गतिविधियों के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यदि हम कोशिकीय श्वसन को एक समीकरण में व्यक्त करें तो ग्लूकोज का एक अणु ऑक्सीजन के छः अणुओं से क्रिया करता है और कार्बन डाइ-ऑक्साइड के छः अणु, जल के छः अणु और ऊर्जा उत्पन्न होती है।
C6H12O6 + 6O2 --> 6CO2 + 6H2O + energy
इसी ऊर्जा से महा शक्तिमान अणु ए.टी.पी. बनता है और थोड़ी ऊष्मा (Heat) भी पैदा होती है।  यह ए.टी.पी. ही जीवन की मुद्रा या ईंधन है, ठीक उसी तरह जैसे हमारी गाड़ियों का ईंधन पेट्रोल है। इस ऊर्जा को फोस्फेट ऊर्जा भी कहते हैं। आदर्श स्थितियों में ग्लूकोज के एक अणु से ए.टी.पी. के 38 अणु बनते हैं।  संपूर्ण जीव-जगत  में सारी आवश्यक शारीरिक क्रियाओं (जैसे माँस-पेशियों का संकुचन, नाड़ियों द्वारा विद्युत संदेश भेजना आदि) को सम्पन्न करने के लिए ऊर्जा इसी ए.टी.पी. से मिलती है।  कोशिकीय श्वसन-क्रिया की निम्न प्रमुख अवस्थाएँ होती हैं।
         ग्लाइकोलिसिस या शर्करा-विघटन
         एसीटइल कोए
         क्रेब्स साइकिल
         इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला
         खमीरीकरण
         यह याद रखें कि जिन यौगिकों के नाम के अंत में "___ate" आये उन्हें "___ic acid"  भी कहते हैं, बात एक ही है जैसे lactate is lactic acid and malate is malic acid.  मैंने एन्जाइम को गुलाबी रंग और क्रिया के उत्पाद को फिरोजी रंग में लिखा है। साइटो को भी सोइटोक्रोम पढ़ें।
ग्लाइकोलिसिस या शर्करा-विघटन

ग्लाइकोलिसिस (ग्लाइकोस = ग्लूकोज का पुराना नाम और लाइसिस = विघटन या टूटना) ग्लूकोज का चयापचय पथ है जिसमें ग्लूकोज C6H12O6 का एक अणु टूट कर पाइरुवेट (जो तीन कार्बन का एक अणु है) CH3COCOO- + H+ के दो अणुओं में विभाजित हो जाता है। ग्लूकोज  (Gluc=Sweet and ose=sugar) छः कार्बन का एक छल्ला होता है, जिस पर हाइड्रोजन के 12 परमाणु और ऑक्सीजन के 6 परमाणु जुड़े रहते हैं। इस क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा से ए.टी.पी. (एडीनोसाइन ट्राइफोस्फेट) और एन.ए.डी.एच. (रिड्यूस्ड निकोटिनेमाइड एडीनीन डाइन्युक्लियोटाइड) के दो-दो अणु बनते हैं। यह क्रिया कोशिका-द्रव्य (Cytoplasm) में होती है। ग्लाइकोसिस के विभिन्न चरणों का पता एम्बडेन, मेयरहॉफ एवं पर्नास नामक तीन वैज्ञानिकों ने लगाया था। इसलिए श्वसन की इस अवस्था को इन तीनों वैज्ञानिकों के नाम के आधार पर इ.एम.पी. पथ भी कहते हैं। इस क्रिया के लिए ऑक्सीजन की उपस्थिति जरूरी नहीं होती है, यानी यह श्वसन-क्रिया की अवायवीय (Anaerobic) अवस्था है।  इस क्रिया के प्रारंभ में ए.टी.पी. के दो अणु खर्च होते हैं या सरल शब्दों में ए.टी.पी. के दो अणु निवेश करने पड़ते हैं। लेकिन इस क्रिया के अगले चरणों में ए.टी.पी. के चार अणु और शक्तिशाली ऊर्जा-वाहक NADH के दो अणु बनते हैं, यानी NADH के दो अणु  और ए.टी.पी. के दो अणुओं का फायदा होता है।  कोशिकीय श्वसन की इस प्रारंभिक अवस्था के  रसायनिक कार्य-पथ में दस चरण होते हैं। पहले तीन चरणों को निवेश चरण कहते हैं। चौथे और पाँचवें चरण में ग्लूकोज का विघटन होता है और आखिरी पाँच चरणों  (Pay off steps) में ऊर्जा की उत्पत्ति होती है, जिनको फलदायक चरण कहते हैं।

पहला चरण  
इस चरण में हेग्जोकाइनेज एंजाइम ए.टी.पी. से एक फॉस्फेट घटक लेकर ग्लूकोज को देता है और ग्लूकोज 6-फॉस्फेट बनता है। अर्थात ग्लूकोज का फॉस्फेटीकरण होता है और ए.टी.पी. अपना एक फॉस्फेट देकर ए.डी.पी. में परिवर्तित हो जाता है। यह चरण अपरिवर्तनीय (Irreversible) है। इस चरण में एक ए.टी.पी. का निवेश होता है।
Glucose (C6H12O6) + hexokinase + ATP ADP + Glucose 6-phosphate (C6H11O6P1)

यहाँ मैं आपको बतला दूँ कि ऑक्सीकरण का मतलब ऑक्सीजन से जुड़ना और अपघटन का मतलब हाइड्रोजन से जुड़ना होता है। इलेक्ट्रोन की दृष्टि से देखें तो इलेक्ट्रोन से जुदाई ऑक्सीकरण है और इलेक्ट्रोन से मिलन अपघटन है।



दूसरा चरण 
दूसरे चरण में फॉस्फोग्लूकोआइसोमरेज एंजाइम पहले तो ग्लूकोज 6-फॉस्फेट के छल्ले को तोड़ कर एक लंबी श्रृंखला  का रूप देता है। फिर यही एंजाइम ग्लूकोज 6-फॉस्फेट के कार्बोनिल ग्रुप को पहले कार्बन से हटा कर दूसरे कार्बन से जोड़ देता है।  इस क्रिया के लिए एक जल के अणु की भी जरूरत पड़ती है, जो अपना एक हाइड्रोजन ऑयन कार्बोनिल ग्रुप में ऑक्सीजन को भैंट कर देता है। दूसरे कार्बन के कार्बोक्सिल ऑयन से एक हाइड्रोजन अलग होता है और एक जल का अणु बनता है। इस तरह फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट बनता है जिसे यही एंजाइम पुनः छल्ले का रूप दे देता है। यह एक परिवर्तनीय (Reversible) क्रिया है और सामान्यतः आगे ही चलती है परन्तु यदि  फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाये तो यह विपरीत दिशा में भी जा सकती है। फ्रुक्टोज भी इसी चरण में ग्लाइकोलिसिस कार्य-पथ में प्रवेश कर सकता है।   
Glucose 6-phosphate (C6H11O6P1) + Phosphoglucoisomerase Fructose 6-phosphate (C6H11O6P1)
तीसरा चरण 
इस अपरिवर्तनीय चरण में फॉस्फोफ्रुक्टोकाइनेज एंजाइम ए.टी.पी. से एक और फॉस्फेट घटक लेकर फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट को देता है अर्थात  उसका फॉस्फेटीकरण करता है और फ्रुक्टोज 1,6-बिसफॉस्फेट बनाता है।  ए.टी.पी.  फॉस्फेट घटक देकर  ए.डी.पी.  में परिवर्तित हो जाता है।  यह चरण ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया के नियंत्रण की प्रमुख कड़ी है। इस चरण में भी एक ए.टी.पी. का निवेश होता है। इस तरह पहले  तीन चरणों में दो ए.टी.पी. का निवेश होता है।
Fructose 6-phosphate (C6H11O6P1) + phosphofructokinase + ATP ADP + Fructose 1, 6-bisphosphate (C6H10O6P2)
चौथा चरण 
इस चरण में पहले तो  फ्रुक्टोज 1,6-बिसफॉस्फेट का छल्ला टूटता है फिर एलडोलेज एंजाइम इसे तीन कार्बन वाले  ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट और डाइहाइड्रोएसीटोन फॉस्फेट अणुओं में विभाजित कर देता है।
Fructose 1, 6-bisphosphate (C6H10O6P2) + aldolase Glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1) + Dihydroxyacetone phosphate (C3H5O3P1)
पाँचवाँ चरण 
इस चरण ट्रायोजफॉस्फेट आइसोमरेज एंजाइम डाइहाइड्रोएसीटोन फॉस्फेट का विन्यास-परिवर्तन (Isomerisation) कर ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट बना देता है। विन्यास-परिवर्तन में यौगिक का सूत्र तो वही रहता है बस परमाणुओं की स्थिति बदल जाती है। इस चरण का परिणाम होता है ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट के दो अणु, अर्थात आगे की सारी क्रियाएँ दो बार होंगी।
Dihydroxyacetone phosphate (C3H5O3P1) +  triosephosphate isomerase Glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1)  
छठा चरण 
इस चरण में ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम द्वारा ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट का निर्जलीकरण और ऑक्सीकरण होता है, फोस्फेट जुड़ता है और 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट बनता है। हाइड्रोजन का एक अणु हाइड्रोजन-वाहक NAD+  के दो अणुओं का अपघटन करके  2 NADH व हाइड्रोजन ऑयन H+ बनाता है।
2 glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1)  +  2 H- + 2 NAD+  + Glyderaldehyde phosphate dehydrogenase 2 NADH + 2 H+ 2 molecules of 1,3-bisphosphoglycerate (C3H4O4P2)
सातवाँ चरण 
सातवें चरण में फॉस्फोग्लीसरेट काइनेज एंजाइम 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट से फॉस्फेट ग्रुप लेकर ए.डी.पी. को दे देते हैं और ए.टी.पी.  बनता है। 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट फॉस्फेट ग्रुप त्याग कर 3-फोस्फोग्लीसरेट बनता है। चूँकि ग्लूकोज के एक अणु के लिए यह क्रिया दो बार होती है अतः इस चरण में  दो ए.टी.पी.  बनते हैं। पहले और तीसरे चरण में हमने दो ए.टी.पी.  निवेश किये थे और दो हमें  वापस मिल गये हैं अर्थात इस चरण में हम लाभ-हानि की दृष्टि से बराबर हो जाते हैं।  यदि कोशिका में पर्याप्त ए.टी.पी. होते हैं तो यह क्रिया संपन्न नहीं होती है क्योंकि ए.टी.पी. जल्दी बेकार हो जाते हैं।
2 molecules of 1,3-diphoshoglyceric acid (C3H4O4P2) + phosphoglycerokinase + 2 ADP 2 molecules of 3-phosphoglycerate (C3H5O4P1) + 2 ATP
आठवाँ चरण 
आठवें चरण में फॉस्फोग्लीसरोम्यूटेज एंजाइम 3-फॉस्फोग्लीसरेट में फॉस्फेट ग्रुप को तीसरे कार्बन से हटा कर दूसरे कार्बन  से जोड़ देता है अर्थात विन्यास परिवर्तन होता है और फलस्वरूप 2-फॉस्फोग्लीसरिक एसिड बनता है।
2 molecules of 3-Phosphoglycerate (C3H5O4P1) + phosphoglyceromutase 2 molecules of 2-Phosphoglyceric acid (C3H5O4P1)
नवाँ चरण 
नवें चरण में इनोलेज एंजाइम 2-फॉस्फोग्लीसरिक एसिड का निर्जलीकरण करता है और फॉस्फोइनोलपाइरुवेट बनता है। 
2 molecules of 2-Phosphoglyceric acid (C3H5O4P1) + enolase 2 molecules of phosphoenolpyruvate (PEP) (C3H3O3P1)
दसवाँ चरण 
दसवें और आखिरी चरण में पाइरुवेट काइनेज एंजाइम फॉस्फोइनोलपाइरुवेट से फॉस्फेट ग्रुप लेकर ए.डी.पी. को देता है फलस्वरूप पाइरुवेट और ए.टी.पी. बनता है।
2 molecules of PEP (C3H3O3P1) + pyruvate kinase + 2 ADP 2 molecules of pyruvic acid (C3H4O3) + 2 ATP
इस तरह हमने देखा कि एक ग्लूकोज के एक अणु से ए.टी.पी. के दो अणु और NADH के दो अणु का फायदा होता है। पाइरुवेट और NADH श्वसन-क्रिया की आगे की अवस्थाओं में भी काम आते हैं।
क्रेब्स चक्र
ग्लाइकोलिसिस के बाद कोशिकीय श्वसन-क्रिया एक और जीवरसायनिक क्रिया चक्र में प्रवेश करती है, जिसे क्रेब्स-चक्र या सिट्रिक एसिड सायकिल या ट्राइकोर्बेक्सिलिक एसिड सायकिल भी कहते हैं। हमने देखा कि किस प्रकार ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में ग्लूकोज का एक अणु टूट कर पाइरुविक एसिड के दो अणुओं में विभाजित होता है। इसके बाद की क्रियाएँ वायवीय (Aerobic) हैं अर्थात ऑक्सीजन की उपस्थिति जरूरी होती है और ये माइटोकोन्ड्रिया में संपन्न होती हैं।  क्रेब्स-चक्र में प्रवेश करने के पहले पाइरुवेट डिहाइड्रोजिनेज एंजाइम पाइरुविक एसिड (3 Carbon Molecule)  का विघटन करता है,  एक कार्बन  का परमाणु कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में अलग हो जाता है तथा शेष बचे दो कार्बन कोएन्जाइम-ए से जुड़ते हैं और एसीटाइल-कोएन्जाइम-ए या एसीटाइल-कोए (acetyl-coenzyme A or acetyl-CoA) बनता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रोन और हाइड्रोजन ऑयन NAD से जुड़ कर NADH बनाते हैं।  यह प्रक्रिया क्रेब्स-चक्र का हिस्सा नहीं है बल्कि ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स-चक्र के बीच की कड़ी है।

क्रेब्स-चक्र का प्रारंभ एसीटाइल-कोए (2 Carbon का अणु) से होता है। क्रेब्स-चक्र  वायवीय-श्वसन की मुख्य धुरी है।  एसीटाइल-कोए के स्रोत ग्लाइकोलिसिस के अलावा अमाइनो एसिड और फैटी एसिड्स भी हो सकते हैं।  एसीटाइल-कोए (2 Carbon) ऑग्जेलोएसीटिक एसिड (4 Carbon) से क्रिया कर सिट्रिक एसिड (6 Carbon) बनाता है।  सिट्रिक एसिड  कई एंजाइम्स की मदद से दस विभिन्न रसायनिक क्रियाओं या कड़ियों द्वारा एक चक्र-पथ से गुजरता है।  कई कड़ियों में उच्च ऊर्जावान इलेक्ट्रोन निकलते हैं, जिन्हें  इलेक्ट्रोन-प्राप्तकर्ता  NAD ग्रहण कर लेता है और हाइड्रोजन (प्रोटोन्स) से जुड़ कर ऊर्जा-वाहक तत्व  NADH बनते हैं।  एक कड़ी में  इलेक्ट्रोन-प्राप्तकर्ता  FAD होते हैं जो दो हाइड्रोजन से जुड़ कर ऊर्जा-वाहक तत्व FADH2  बन जाते हैं। एक कड़ी में ऊर्जा उत्पन्न होती है और ATP का एक अणु बनता है। चूँकि एक ग्लूकोज के अणु से दो पाइरुवेट बनते हैं और क्रेब्स-चक्र में प्रवेश करते हैं अतः  कुल दो ATP के अणु बनते हैं।

इस चक्र में  एसीटाइल-कोए के एक अणु से दो कार्बन अलग होते हैं और दो CO2  के अणु बनते हैं।  चूँकि चक्र में  कुल दो सीटाइल-कोए प्रवेश करते हैं, इसलिए कुल चार कार्बन अलग होते हैं और CO2  के चार अणु बनते हैं।  यदि इसमें पाइरुवेट से एसीटाइल-कोए बनने की प्रक्रिया में बनने वाले  CO2  के दो अणुओं को भी जोड़ दें तो कुल हुए छः अणु अर्थात एक चक्र में कुल छः कार्बन CO2  के रूप में विसर्जित हुए।
क्रेब्स-चक्र का अंतिम उत्पाद ऑग्जेलाएसिटिक एसिड है, जो पुनः एसीटाइल-कोए  के साथ मिल कर चक्र की अगली पारी में प्रवेश करता है। यदि एक क्रेब्स-चक्र का लेखा-जोखा देखें तो उसमें कुल दो ATP, दस NADH और दो FADH2  बनते हैं।  NADH और FADH2   उच्च ऊर्जा-वाहक तत्व हैं जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला या Electron Transfer Chain (जो माइटोकॉंड्रिया की आंतरिक झिल्ली में संपन्न होती है) में ऊर्जा (ATP के रूप में) के निर्माण में योगदान करते हैं। एक NADH तीन और एक FADH2  दो ATP बनाता है।
क्रिया 1 सिट्रिक एसिड का निर्माण
साइट्रेट सिंथेज एंजाइम की उपस्थिति में एसीटाइल-कोए  और ऑग्जेलोएसिटिक एसिड संघनित (Condense) होकर सिट्रिक एसिड बनाते हैं। एसीटाइल ग्रुप CH3COO एसीटाइल-कोए  से अलग होकर ऑग्जेलोएसिटिक एसिड के कीटोन कार्बन से जुड़ जाता है, जो अल्कॉहल में परिवर्तित हो जाता है।  सरल शब्दों में दो कार्बन का अणु चार कार्बन के अणु से मिल कर छः कार्बन का अणु सिट्रिक एसिड बनता है और कोए ग्रुप अलग हो जाता है।
Oxaloacetic Acid + Acetyl CoA + H2O --> Citric Acid + CoA-SH (citrate synthase)
क्रिया 2 सिट्रिक एसिड का निर्जलीकरण
अगली दो कड़ियों में सिट्रिक एसिड का -OH ग्रुप तीसरे कार्बन से अलग होकर दूसरे कार्बन से जुड़ जाता है अर्थात आणविक विन्यास बदल जाता है। इस कड़ी में एकोनाइटेज एंजाइम की उपस्थिति में सिट्रिक एसिड का निर्जलीकरण होता है और फलस्वरूप एकोनाइटिक एसिड बनता है जो अगली कड़ी तक एकोनाइटेज एंजाइम से चिपका रहता है। 
Citric Acid --> Aconitic Acid + H2O (aconitase)

क्रिया 3 एकोनाइटिक एसिड का पुनर्जलीकरण 
इस कड़ी में एकोनाइटिक एसिड का पुनर्जलीकरण  होता है,  -OH ग्रुप तीसरे कार्बन से हट कर दूसरे कार्बन से जुड़ जाता है और आइसोसिट्रिक एसिड बनता है।  
Aconitic Acid + H2O --> Isocitric Acid (aconitase)
क्रिया 4 आइसोसिट्रिक एसिड ऑक्सीकरण
यह पहली ऑक्सीकरण क्रिया है जिसमे आइसोसिट्रिक एसिड का ऑक्सीकरण होता है और  दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा  NADH + H+ बनता है, जो श्वसन की अगली अवस्था इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला में प्रवेश करता है। इस क्रिया में ऑग्जेलासक्सीनिक एसिड बनता है और अगली कड़ी तक आइसोसिट्रेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम से चिपका रहता है।
Isocitric Acid + NAD+ + 2H + e- -->  Oxalosuccinic Acid + NADH + H + (isocitrate dehydrogenase)
क्रिया 5 अकार्बनीकरण (Decarboxylation)
यह अकार्बनीकरण  की पहली कड़ी है जिसमें कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में एक कार्बन का नुकसान होता है। फलस्वरूप बनने वाले अणु में पाँच कार्बन ही बचते हैं जिसे अल्फा-कीटोग्लुटेरिक एसिड कहते हैं। स्वाभाविक है यह क्रिया  आइसोसिट्रेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम द्वारा ही संपन्न होती है।
Oxalosuccinic Acid --> a-Ketoglutaric Acid + CO2 (isocitrate dehydrogenase)
क्रिया 6 ऑक्सीकरण, अकार्बनीकरण थायोल इस्टर निर्माण
तीन एंजाइम्स अल्फा-कीटोग्लूटारेट डीहाइड्रोजिनेज कॉम्प्लेक्स की मदद से संचालित यह एक जटिल ऑक्सीकृत  अकार्बनीकरण प्रक्रिया है जो इस पूरे चक्र की एक मात्र अपरिवर्तनीय कड़ी है और चक्र को विपरीत दिशा में नहीं जाने देती है। इस चक्र की यह दूसरी ऑक्सीकरण क्रिया है।  यहाँ भी दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन्स  NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा  NADH + H+  बनता है जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला में प्रवेश करता है।
यह अकार्बनीकरण  की दूसरी कड़ी है जिसमें कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में एक कार्बन का नुकसान होता है। इस कड़ी की समाप्ति तक सिट्रिक एसिड के दो कार्बन अलग होकर CO2  के रूप में  साथ छोड़ चुके होते हैं। फलस्वरूप बचा हुआ चार कार्बन का अणु CoA थायोल इस्टर से ऊर्जावान बंध द्वारा जुड़ कर सक्सीनाइल कोए बनता है।   
α-Ketoglutaric Acid + NAD+ + CoA-SH --> Succinyl-CoA + NADH + H+ + CO2 (α-ketoglutarate dehydrogenase)
क्रिया 7 सक्सीनाइल कोए का जलीकरण व ए.टी.पी. का निर्माण  
इस क्रिया में सक्सीनाइल कोए  के थायोल इस्टर ऊर्जावान बंध  का जलीकरण होता है, ऊर्जा की उत्पत्ति होती है और जी.डी.पी. का अणु फोस्फोरस से जुड़ कर एक जी.टी.पी. में परिवर्तित हो जाता है। इस पूरे चक्र में जी.टी.पी. का सीधा निर्माण यहीं होता है। इस क्रिया में  सक्सीनिक एसिड बनता है।
Succinyl-CoA + GDP + PI--> Succinic Acid + CoA-SH + GTP (succinyl-CoA synthetase)
क्रिया 8  सक्सीनिक एसिड का ऑक्सीकरण  
इस कड़ी में सक्सीनेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम की उपस्थिति में एक अलग तरह का ऑक्सीकरण होता है, जिसमें  सक्सीनिक एसिड से हाइड्रोजन अलग हो जाते हैं और FAD से क्रिया कर FADH2 बनाते हैं।  इस क्रिया के अंत में फ्यूमरिक एसिड बनता है।
Succinic Acid + FAD --> Fumaric Acid + FADH2 (succinate dehydrogenase)

ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स चक्र का संक्षेप में लेखाजोखा
श्वसन क्रिया
कार्बन की दृष्टि में श्वसन क्रिया
अन्तिम उत्पाद
सब्सट्रेट स्तर पर फोस्फेटीकरण
ऑक्सीजन फोस्फेटीकरण
कुल ए.टी.पी.
क्रेब्स साइकिल
C-C-C-C-C-C  ® C-C-C + C-C-C    ग्लूकोज 6 C® पाइरुवेट 3 C
2 पाइरुवेट
2 ATP
2 NADH = 4 - 6 ATP
6 - 8
कोए
C-C-C ® C-C + CO2       पाइरुवेट 3  C ®       एसीटाइल कोए 2 C + CO2
2 एसिटाइस कोए
कुछ नहीं  
2 NADH = 6 ATP
6
क्रेब्स साइकिल
C-C ® 2 CO2      एसीटाइल कोए 2 C® 2CO2
2 एसिटाइस कोए
2 ATP
6 NADH = 18 ATP
2 FADH2 = 4 ATP
24
ऊर्जा का कुल उत्पादन

4 ATP
32 ATP
36 - 38

क्रिया 9  फ्यूमरिक एसिड का जलीकरण   
इस कड़ी में फ्यूमरेज एंजाइम की उपस्थिति में फ्यूमरिक एसिड का जलीकरण होता है और मेलिक एसिड बनता है।
Fumaric Acid + H2O --> Malic Acid (fumarase)
क्रिया 10  मेलिक एसिड का ऑक्सीकरण  
इस कड़ी में मेलेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम मेलिक एसिड का ऑक्सीकरण करता है और ऑग्जेलाएसिटिक एसिड बनाता है। दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा  NADH + H+ बनता है, जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला में प्रवेश करता है।
Malic Acid + NAD+ --> Oxaloacetic Acid + NADH + H+ (malate dehydrogenase)
 खमीरीकरण (Fermentation)

खमीरीकरण जैविक यौगिकों के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया है, जिसमें इलेक्ट्रोन प्राप्तकर्ता  (Electron Acceptor) ऑक्सीजन न होकर शरीर में विद्यमान कोई अन्य यौगिक होता है। अवायवीय (anaerobic) स्थितियों में ऑक्सीकृत फोस्फेटीकरण संभव नहीं होने के कारण खमीरीकरण आवश्यक हो जाता है, ताकि ग्लाइकोलिसिस से ऊर्जा (ए.टी.पी.) प्राप्त होती रहे। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि खमीरीकरण अवायवीय स्थितियों में ही हो, जैसे भरपूर ऑक्सीजन होने पर भी ईस्ट कोशिकाएं खमीरीकरण पसन्द करती हैं क्योंकि शर्करा बहुत मात्रा में उपलब्ध होती है, जैसा कि शराब, वाइन या अन्य अल्कॉहलिक द्रव्यों के निर्माण में होता है। ।

खमीरीकरण दो प्रकार का होता है। पहला लेक्टिक एसिड खमीरीकरण है और दूसरे को अल्कॉहल खमीरीकरण कहते हैं। दोनों में ही पहले ग्लूकोज का ग्लाइकोलिसिस होता है, जो अवायवीय क्रिया है। इस क्रिया में दो ए.टी.पी. और दो पाइरुवेट के अणु बनते हैं।  खमीरीकरण में पाइरुवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है और इसके उत्पादों में रसायनिक ऊर्जा बची रहती है। बिना ऑक्सीजन या अन्य कारणों से  इसके उत्पादों का ऑक्सीकृत होना संभव नहीं है। इसलिए ऑक्सीकृत फोस्फेटीकरण (जिसमें पाइरुवेट का पानी और कार्बन-डाइऑक्साइड के रूप में पूर्ण ऑक्सीकरण होता है) की अपेक्षा खमीरीकरण कम प्रभावशाली है। खमीरीकरण में ग्लूकोज के एक अणु से मात्र दो ए.टी.पी. मिलते हैं, लेकिन यह क्रिया सरल है और अपेक्षाकृत शीघ्रता से सम्पन्न हो जाती है।

अल्कॉहल खमीरीकरण

सामान्यतः यह ईस्ट या अन्य जीवाणुओं द्वारा संपन्न होता है और इसमें अल्कॉहल और कार्बन-डाइऑक्साइड बनते हैं। अल्कॉहल खमीरीकरण का प्रयोग ब्रेड, शराब, ब्रयुइंग आदि में किया जाता है और निम्न समीकरण द्वारा इस क्रिया को दर्शाया जा सकता है। अल्कॉहल का सूत्र C2H5OH है।

C6H12O6 2 C2H5OH + 2 CO2
लेक्टिक एसिड खमीरीकरण

लेक्टिक एसिड खमीरीकरण सबसे सरल क्रिया है। अवायवीय स्थितियों में ए.टी.पी. का निर्माण मुख्यतः ग्लाइकोलिसिस द्वारा होता है। ग्लाइकोलिसिस में NAD+ इलेक्ट्रोन दिये जाते है और इसका NADH के रूप में अपघटन होता है। चूँकि कोशिका में NAD+ की उपलब्धता सिमित होती है जिसके बिना ग्लाइकोलिसिस क्रिया संभव नहीं है। अतः NADH से इलेक्ट्रोन लेकर उसे ऑक्सीकृत करना जरूरी होता है। ऑक्सीकृत फोस्फेटीकरण में तो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रृंखला द्वारा NADH का ऑक्सीकरण हो जाता है। पर यहाँ खमीरीकरण में NADH पाइरुवेट का इलेक्ट्रोन देकर उसे लेक्टिक एसिड में अपघटित कर देता है और स्वयं NAD+ के रूप में ऑक्सीकृत  हो जाता है।

इस खमीरीकरण में पाइरुवेट से लेक्टिक एसिड बनता है। कई बार जब हमारी माँस-पेशियों को अत्याधिक कार्य करना पड़ता है तो ए.टी.पी. की आपूर्ति पर्याप्त बनाये रखने के लिए माँस-पेशियां ऑक्सीकृत फोस्फेटीकरण के साथ-साथ खमीरीकरण का भी सहारा लेती हैं। इसीलिए आपने देखा होगा कि जब आप तेज दौड़ लगाते हैं तो आपके पैरों में खमीरीकरण के कारण लेक्टिक एसिड जमा हो जाता है, जिससे आपकी पिंडलियाँ दर्द करने लगती है। दही बनाने की प्रक्रिया में भी कुछ जीवाणु लेक्टोज शर्करा का खमीरीकरण कर लेक्टिक एसिड बनाते हैं। खमीरीकरण को निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है।

C6H12O6 ग्लूकोज 2 CH3CHOHCOOH (लेक्टिक एसिड)

 

 

1 comment:

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लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...