ममता का पर्याय - स्तनपान
प्रस्तावना
ईश्वर की विलक्षण कृति है “माँ” जिसका प्रेम धरती पर किसी
भी प्रेम से अतुल्य है और इस मातृत्व एवं वात्सल्य की पूर्णता प्रदान करता है
स्तनपान। मां द्वारा शिशु को अपने स्तनों से स्रावित प्राकृतिक दूध पिलाने की प्रक्रिया
को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनधारियों में सामान्य क्रिया होती है। स्तनपान
शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है।
शिशु जन्म के तुरन्त
पश्चात माँ के स्तनों से दुग्ध का स्त्राव शुरू हो जाता है। जन्म के पश्चात्
स्तनपान माता एवं शिशु के बीच पहला अटूट बन्धन है, शिशु को मां का पहला उपहार है। माँ के दुग्ध में कुछ ऐसे विलक्षण गुण है जो इसे
शिशु के लिए संसार के किसी भी अन्य पेय पदार्थ से श्रेष्ठ बनाते हैं।
मां का दुग्ध शिशु के लिए क्यों अत्यन्त लाभकारी है?
पोषक तत्वों की खान
Composition
of human breast milk
|
|||||||
Fat
|
Protein (g/100 ml)
|
Carbohydrate(g/100 ml)
|
Minerals (g/100 ml)
|
||||
Total (g/100
ml)
|
4.2
|
Total
|
1.1
|
Lactose
|
7
|
Calcium
|
0.03
|
Fatty acids -
length 8C (% )
|
Trace
|
Casein 0.4
|
0.3
|
Oligosaccharides
|
0.5
|
Phosphorus
|
0.014
|
Polyunsaturated
Fatty acids (%)
|
14
|
a-lactalbumin
|
0.3
|
Sodium
|
0.015
|
||
Lactoferrin
|
0.2
|
Potassium
|
0.055
|
||||
IgA
|
0.1
|
Chlorine
|
0.043
|
||||
IgG
|
0.001
|
||||||
Lysozyme
|
0.05
|
||||||
Serum albumin
|
0.05
|
||||||
ß-lactoglobulin
|
•
उचित
एवं पर्याप्त मात्रा में सभी आवश्यक प्रोटीन, कोलेस्ट्रोल डोकोसे-हेक्सानोइक एसिड DHA और टॉरीन।
•
लेक्टोज
जो मां के दुग्ध में किसी भी अन्य दुग्ध से ज्यादा होता है।
•
विटामिन
ए, सी, डी और ई।
•
लौह
(जो कि गाय के दूध में पाए जाने वाले लौह की अपेक्षा अधिक सरलता से अवशोषित होता
है।
•
पर्याप्त
मात्रा में जल।
•
खनिज-लवण, कैल्शियम और फोस्फेट।
•
लाईपेज
किण्वक जो कि वसा के पाचन में सहायक होते हैं (यह किण्वक गाय के दुग्ध एवं किसी भी
अन्य फार्मूला दुग्ध में नहीं पाया जाता है)।
जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने
को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू
होने वाले डायबिटीज का जोखिम अधिक रहता है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता
है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे
बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंट्रोकोलाइटिस हो सकता
है।
•यह
पूरी तरह से जीवाणु मुक्त होता है।
•
इसमें
विभिन्न संक्रमणों से लड़ने के लिए एण्टीबॉडीज पाई जाती है।
•
इसमें
कुछ जीवित कोशिकाएँ, लाइसोजाइम्स,
विषाणुरोधी पदार्थ एवं इन्टरफेरोन पाए जाते हैं।
•
इसमें
पाया जाने वाला बाईफीड्स फेक्टर शिशु के पाचन तंत्र में लैक्टोबेसिल्स बाईफीडस को
पनपने में सहायता करता है जो कि ई-कोलाई एवं अन्य जीवाणुओं को पनपने एवं दस्त जैसी
बीमारियाँ उत्पन्न करने से रोकता है।
•
लेक्टोफैरिन
जो कि माँ के दूध में पाया जाता है, लौह के मुक्त कणों को बांधकर लौह पर निर्भर रहने वाले जीवाणुओं को पनपने
से रोकता है पर यही लौह शिशु द्वारा सरलता से अवशोषित कर लिया जाता है।
•
स्तनपान
करने वाले शिशु, अन्य तरल
एवं खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहने वाले शिशुओं की तुलना में पेट दर्द, एलर्जी और एक्जिमा से कम पीड़ित होते है।
•
स्तनपान
से शिशु की बौद्धिक-क्षमता भी बढ़ती है।
•
माँ
का दूध शिशु के लिए सबसे अच्छा एवं सस्ता आहार है जो सुलभता से कहीं भी और किसी भी
समय शिशु को उपलब्ध रहता है।
•
यह
दूध माता के शरीर से शारीरिक तापमान पर निकलता है अतः इसे गर्म करने की आवश्यकता
नहीं होती।
शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में
सहायक
मां का दूध शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक
होता है। स्तनपान से दमा और कान की बीमारी पर नियंत्रण कायम होता है, क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले
में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है।कुछ शिशुओं को गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है।
इसके विपरीत मां का दूध शत-प्रतिशत सुरक्षित है।शोध से प्रमाणित हुआ है कि स्तनपान
करनेवाले बच्चे बाद में मोटे नहीं होते। यह शायद इस वजह से होता है कि उन्हें शुरू
से ही जरूरत से अधिक खाने की आदत नहीं पड़ती।स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में
रक्त कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा कम करता है।
दुग्धदायिनी मां के लिए स्तनपान के लाभ
• शिशु
जन्म के पश्चात् गर्भाशय को सिकुड़ने एवं रक्तस्राव को कम करने में सहायता करना।
शिशु जन्म के पश्चात अगले कुछ दिनों में माता के शरीर से अधिक मात्रा में
प्रोलेक्टिन और ओक्सीटोसिन हार्मोन स्रावित होते हैं जो गर्भाशय को सिकुड़ने एवं
रक्तस्राव रोकने में सहायक है।
• प्राकृतिक
गर्भनिरोधक – शिशु जन्म
के कुछ महीनों तक स्तनपान प्राकृतिक रूप से गर्भनिरोधक का कार्य करता है।
•
स्तनपान
कराने वाली स्त्रियों में आगे चलकर स्तन एवं अण्डाश्य का कैंसर होने काजोखिम बहुत
कम हो जाता है।
•
65
वर्ष से अधिक आयु की जिन महिलाओं ने पूर्व में स्तनपान कराया हो, उन्हें कूल्हे की हड्डी के फ्रेक्चर की सँभावना
अपेक्षाकृत कम रहती है।
•
स्तनपान
कराने वाली माताओं का वजन शिशु जन्म के पश्चात् प्राकृतिक रूप से कम होने लगता है।
•
स्तनपान
माता एवं शिशु के मध्य एक अत्यन्त सुखमय बन्धन विकसित करता है जिसका माता के
मस्तिष्क एवं व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कोलोस्ट्रम
यह वह गाढ़ा पीला दूध है जो बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में
शिशु जन्म के पहले तीन-चार दिन में स्रावित होता है। इसमें इम्यूनोग्लोब्युलिन Igm, IgG, IgA एवं अन्य रोग प्रतिरोधी
प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह शिशु के लिए पहले टीके के समान है जो शिशु
को अनेक संक्रमणों एवं एलर्जी से बचाता है। यह शिशु की आंतो के लिए पर्गेटिव जैसा
काम करता है। और मेकोनियम को बाहर निकालने करने में सहायक होता है। मेकोनियम यदि
शरीर से बाहर नहीं निकले तो शिशु को पीलिया हो सकता है। इसके अतिरिक्त इसमें
विटामिन ए की प्रचुरता होती है। आज भी कई समाजो में इस अमृत रूपी द्रव से शिशु को
वंचित कर उसे गुड़ का पानी, शहद इत्यादि दिया जाता है एवं
कोलोस्ट्रम को फेंक दिया जाता है। जिसके कारण शिशु आंत्रशोथ, टिटनेस एवं अनेक भयानक संक्रमणों से ग्रसित हो सकता है।
स्तनपान के नियम
स्तनपान कब आरंभ करें
शिशु को जन्म के तुरंत पश्चात अथवा जैसे ही माता थोड़ी
आरामदायक स्थिति में आ जाय स्तनपान आरम्भ करवा देना चाहिए। जन्म के तत्काल बाद
नग्न शिशु को (उसके शरीर को कोमलता से सुखाने के बाद) उसकी मां की गोद में देना
चाहिए। मां भी प्रसन्नचित्त होकर अपने उपर के वस्त्र जैसे ब्लाउज, ब्रा आदि खोल कर
उसे अपने स्तन के पास ले जाये, ताकि दोनों की त्वचाओं में संपर्क
हो सके और भावनात्मक अहसास प्रवाहित हो पायें। इससे दूध का बहाव ठीक रहता है और
शिशु को अपनापन, प्यार और उष्णता मिलती है। इससे मां और शिशु के बीच भावनात्मक
संबंध विकसित होता है। स्तनपान जल्दी आरंभ करने के चार प्रारंभिक कारण हैं।
1. शिशु
पहले 30 से 60 मिनट के दौरान सर्वाधिक सक्रिय रहता है। उस समय उसके चूसने की शक्ति
सबसे अधिक रहती है।
2. जल्दी
शुरू करने से स्तनपान की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
3.
स्तन
से निकलनेवाला पीले रंग का द्रव, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं, शिशु को संक्रमण से बचाने
और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का सबसे अच्छा साधन है। यह एक टीका है।
4.
स्तनपान
तत्काल शुरू करने से स्तनों में सूजन या प्रसवोत्तर रक्तस्राव की शिकायत नहीं
होती।
शल्यचिकित्सा से शिशु जन्म देनेवाली माताएं भी स्तनपानकरा
सकती हैं। यह शल्य क्रिया सफल स्तनपान की आपकी क्षमता पर असर नहीं डालती है।
•
शल्य
क्रिया के चार घंटे बाद या एनीस्थीसिया के प्रभाव से बाहर आने के बाद आप स्तनपान
करा सकती हैं।
•
स्तनपान
कराने के लिए आप अपने शरीर को एक करवट में झुका सकती हैं या फिर अपने शिशु को अपने
पेट पर लिटा कर स्तनपान करा सकती हैं।
•
सीजेरियन
विधि से शिशु को जन्म देनेवाली माताएं पहले कुछ दिन तक बाहरी मदद से अपने शिशु को
सफलतापूर्वक स्तनपान करा सकती हैं।
स्तनपान कब तक करवाना चाहिए
•
शिशु
को 6 महीने की आयु तक केवल स्तनपान कराना चाहिए।
•
शिशु
को बार-बार एवं रात्रि में भी स्तनपान कराना चाहिए।
•
6माह
पश्चात उसकी खुराक में पहले कुछ तरल पदार्थ जैसे दाल का पानी, चावल का मांड इत्यादिफिर कुछ अर्ध-ठोस
पदार्थ जैसे मसली हुई रोटी, केला, खिचड़ी इत्यादि देना
चाहिए।
•
शिशु
को कम से कम 2 साल का होने तक स्तनपान कराना चाहिए।
•
यदि
माता प्रथम बार शिशु को जन्म देती है तो उसे स्तनपान कराने की सही विधि से परिचित
करवाना चाहिए।
•
माता
यदि स्वयं बीमार हो तो भी उसे स्तनपान जारी रखना चाहिए। यहाँ तक की माता यदि HIV से ग्रस्त है तब भी उसे स्तनपान कराना
चाहिए किन्तु साथ में HIV के लिए माता एवं शिशु को दी जाने
वाली दवाईयां साथ में लेते रहना चाहिए।
स्तनपान कराने की सही विधि
माँ
को सदैव शान्त वातावरण में एवं बैठ कर ही स्तनपान कराना चाहिए । जहां तक संभव हो स्तन
पूरी तरह से खुले हों और शिशु मां के शरीर से चिपका रहे।
सही स्थिति
•
- शिशु का पूरा शरीर मां की तरफ देखता हुआ एवं उसके समीप होना चाहिए।
- शिशु का सिर और धड़ सीधी रेखा में होने चाहिए।
- शिशु का चेहरा माँ के स्तन को देखता हुआ हो एवं उसकी नाक निप्पल के बिल्कुल सामने हो।
- यदि शिशु नवजात है तो उसके निचले हिस्से को सहारा दिया होना चाहिए न कि सिर और कंधो को।
शिशु
को स्तनपान करते समय आरामदायक स्थिति में रखने के लिए उसका स्तन से सही संपर्क अति
आवश्यक है। सही संपर्कके लिए आवश्यक है कि
•
शिशु
की मुँह पूरा खुला हुआ हो।
•
शिशु
की ठोड़ी स्तन को छू रही हो।
•
शिशु
का निचला होंठ बाहर की तरफ मुड़ा हुआ हो।
•
एरिओला
(निप्पल के चारों ओर का काला भाग शिशु के मुँह के ऊपर अधिक दिखाई दे और नीचे कम।
•
शिशु
को धीरे-धीरे गहराई से निगलता हुआ देखा जा सके।
•
पेट
भर जाने पर शिशु स्वतः ही स्तन से अलग हो जाता है एवं प्रसन्न और संतुष्ट दिखाई
देता है।
दुग्धदायिनी माता को स्तनपान से होने वाली समस्याएँ एवं
निदान
1. स्तनों में गांठ हो जाना
2. धंसे हुए निप्पल
यह समस्या सामान्यतः प्रथम बार मां बनने पर देखी जा सकती
है। इसके कारण शिशु ठीक से स्तनपान नहीं कर पाता। वह चिड़चिड़ा हो जाता है
एवं निप्पल को काटने की कोशिश करता है
जिससे कई बार निप्पलों में दरारे और घाव बन जाते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि मां को ऐसी स्थिति में
स्तनपान की सही विधि सिखाई जाए। शुरू में निप्पल शील्ड का प्रयोग किया जा सकता है
किन्तु इसे संक्रमण मुक्त रखना अत्यन्त आवश्यक है। थोड़े समय पश्चात निप्पल स्वतः
ही बाहर आ जाते हैं।
3. निप्पल में दरारें एवं घाव
यह एक आम समस्या है विशेष रूप से जब शिशु के दांत आने लगते
हैं तो वे निप्पल पर अत्यधिक दबाव बनाने का प्रयत्न करता है इसके अतिरिक्त अत्यधिक
सफाई एवं साबुन के प्रयोग से निप्पल अपनी चिकनाई की परत खो देते है और उनमें गहरे
घाव बन जाते है।
इससे बचने के लिए सबसे पहले शिशु को सही विधि से स्तनपान
कराना चाहिए एवं उसका स्तनों से सही जुड़ाव सुनिश्चित कर लेना चाहिए। स्तनपान
आरम्भ करने से पहले निप्पलों को साफ पानी अथवा गीली रूई से पोंछ लेना चाहिए और
स्तनपान के पश्चात दूध की एक दो बूँदों को निप्पल पर मसल कर छोड़ देना चाहिए जिससे
प्राकृतिक रूप से निप्पल के ऊपर चिकनाहट
कायम रहती है। निप्पल में यदि घाव अथवा दरारे पड़ जाये तो चिकित्सक से उचित
परामर्श लेना चाहिए।
अतः माँ का दूध एक जटिल, जीवित, अमृत तुल्य द्रव है एवं स्वस्थ समाज एवं
राष्ट्र निर्मित करने हेतु आवश्यक है कि शिशुओ को इसका पूरा लाभ मिल सके जिससे वे
स्वस्थ नागरिक बने एवं स्वस्थ और सम्पन्न राष्ट्र का निर्माण करें।
डॉ. फिजा खान, MBBS
|
मो. 9829943040
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