कविता
लिया झपट
मेरी अस्मिता को कपोत
मेरी आत्मशक्ति को
निचोड़ चुका है
अंतिम सीमा तक कोई
अपने स्वामित्व के जाल में
फाँस लीं
मेरे ममत्व की मछलियाँ
मेरे हर मन्तव्य के
अर्थ के
अनर्थों की बमबारी से
कर दिया भस्मीभूत
मेरी भावनाओं का हिरोशिमा
और अब
न जाने किस प्रपंच में
पूछ रहे हैं मुझ से
चीख़-चीख़ कर
क्या हो गया है तुम्हें
जानना चाहते हैं मुझ से आहिस्ता-आहिस्ता........
कैसे बदल गई मैं इतना ?
...... क्या हो गया है मुझे?
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