हमारी पहली अलसी चेतना यात्रा कोटा से दिनांक 28 नवंबर, 2010 को प्रातः 5 शुरू होकर उदयपुर, सागवाड़ा, बांसवाड़ा, इन्दौर, माण्डू, उज्जैन, देवास, सीहोर, सागर और विदिशा होती हुई दिनांक 14 दिसंबर, 2010 को साय 5.30 बजे कोटा पहुँची है। इस यात्रा में हमने 2900 किमी. का सफर तय किया है। इस यात्रा में कोटा से मैं अकेला ही चला था। बस साथ में मेरा ड्राईवर रामप्रसाद था। इस यात्रा के लिये उषा ओम नोलेज कंसल्टेन्सी सर्विसेज प्रा.लि. कोटा के सीओओ श्री वैभव जी ने एक शानदार गाड़ी फोर्ड एन्डेवर भेंट की है तथा यात्रा का पूरा खर्च भी वहन किया है। इस वाहन को हमने विजय रथ नाम दिया है। अलसी चेतना यात्रा उनकी आभारी है। इस यात्रा की हमने कोई पूर्व योजना नहीं बनाई थी और न ही कोई विशेष तैयारी की थी। बस पत्नि से 550 अलसी भोग लड्डू और 5.5 किलो बिस्किट बनवाये और अकेला ही निकल पड़ा .............
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर।
लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया।।
28 दिसंबर, 2010
हमारी अलसी चेतना यात्रा का पहला पड़ाव – हिरन मगरी उदयपुर
हम प्रातः 11 बजे उदयपुर के सेल टेक्स कमिशनर श्री जयन्ती जैन साहब के घर पहुंचे। मैं उनसे पहली बार मख़ातिब हुआ था। कुछ क्षणों तक मेरी नजरें उन्हें ऊपर से नीचे तक निहारती रही, उनमें एक सेल टेक्स अधिकारी को खोजती रही। परन्तु मुझे “वो” कहीं नहीं दिखाई दिया। मुझे तो वे प्रेम, सहानुभूति और सपने बेचने वाले सौदागर लग रहे थे। उनसे मिलकर ऐसा लगा जैसे उनसे कोई पुराना नाता था। वे सरल एवं खुशमिजाज प्रकृति के नेक इन्सान हैं। श्री जयन्ती जैन भारत के डेलकारनेगी है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी है। उनकी “उठो जागो” बेस्ट सेलर रही है। उनकी आगामी पुस्तक “असाध्य रोगों का सामना कैसे करें?” बड़ी प्रभावशाली बन रही है। आदरणीया भाभी जी ने मेरी बहुत आवभगत की। फिर दिन भर उनके घर पर रोगियों और मिलने वालो के आने जाने का तांता लगा रहा। उनके घर पर सौभाग्यवश मुझे कुछ आर.ए.एस. अधिकारी और चिकित्सकों से भी उनसे मिलने का अवसर मिला। दिन भर अलसी और बुडविज प्रोटोकोल पर चर्चा चलती रही और अलसी भोग तथा अलसी के मेमबॉय-प्लस और डायबिटीज-फोरम बिस्किट्स के साथ हम चाय की चुस्कियाँ भी लेते रहे। कोटा से आये विज्ञान और तकनीकी विभाग के निर्देशक श्री गिरिधारी गर्ग ने मुझसे कहा कि आप यात्रा समाप्त करके पहुंचे तो मुझसे मिले मैं आपके सारे सपनों को साकार करने के लिये हर संभव प्रयत्न करूंगा।
29 दिसंबर, 2010 को हमने खड़गदा में मेरे अभिन्न मित्र डॉ. महेश दीक्षित की सुपुत्री अमी के विवाह मे शामिल हुए। विवाह समारोह में कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों से अलसी पर चर्चा होती रही
30 दिसंबर, 2010
बांसवाड़ा पहुँचने से पहले ही डॉ. रजनीकान्त मालोत ने मुझे फोन करके आग्रह कर दिया था कि मैं बांसवाड़ा से 20 किमी. पहले तलवाड़ा में चमत्कारी मां त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शन अवश्य करूं। मां का मन्दिर 13 वीं शताब्दी का है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिये पूर्व मुख्य मंत्री हरिदेव जोशी ने बहुत काम करवाया था। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा ने भी यहां 2 करोड़ से ज्यादा रूपये का काम करवाया था। मां का चमत्कार इतना है कि यहां सबकी इच्छा पूर्ण होती है। इच्छा पूरी होने तक व्यक्ति मां के दर्शन नहीं कर सकता है। लेकिन इच्छा पूरी होने पर मां स्वयं उसे बुला लेती है। इस मंदिर में सवा पांच किलो सोने से बना हुआ मां का स्तम्भ है। नवरात्री में मां के दर्शन के लिये दो किमी लम्बी लाइन लगती है। नवरात्री में मां कभी-कभी आस-पास के क्षेत्रों में गरभा खेलने भी चली जाती है। प्राचीन काल में यहां जंगल था और किसी समय एक चरवाहे ने अपने लोहे के दरांते को मां की मूर्ति पर लगाया तो वह सोने का बन गया था। यहाँ मां के ऐसे कई चमत्कार सुनने को मिलते हैं।
डॉ. रजनीकांत बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं तथा डायबिटीज और कई अन्य विषयों पर काफी शोध कर रहे हैं। ये एक महान लेखक भी हैं और कई समाज सेवा के कार्यो से जुड़े हुए हैं। आदरणीया भाभी जी भी समाज सेवा का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं।
डॉ. मालोत के घर भी हमारी गोष्ठी 5-6 घंटे तक चली। इस गोष्ठी में पतंजली के जिला प्रमुख श्री पूर्णा शंकर आचार्य, डॉ. राजेश वसानियां, डॉ. युधिष्ठिर त्रिवेदी, श्री दिनेश चन्द्र शाह, श्री श्याम अश्याम साहित्यकार, श्री प्रकाश कोठारी, श्री शांति लाल शर्मा, श्रीमती हिना जोशी, श्रीमती संगीता गुप्ता, श्रीमती अर्चना तिवारी, श्रीमती मधुलिका गुप्ता, श्रीमती ज्योति गुप्ता, श्रीमती मोहिनी देवी तलरेजा, श्रीमती सरला देवी जैन, श्रीमती मंजुला जैन, श्रीमती पुष्पा जैन, श्रीमती साधना गुप्ता आदि प्रतिष्ठित लोग, अन्य मित्र और कई रोगी उपस्थित थे। इस गोष्ठी में अलसी के औषधीय प्रयोग और डॉ. बुडविज के कैंसर रोधी आहार विहार पर व्यापक चर्चा हुई।
1 दिसंबर, 2010
हमारी अलसी चेतना यात्रा का चौथा पड़ाव – इन्दौर
जब मैं बांसवाड़ा से इन्दौर के लिये रवाना हुआ तो मुझे नई दुनिया के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश ताम्रकर जी ने बतला दिया था कि उन्होंने 1 दिसंबर को प्रात: 7 बजे साकेत क्लब में मेरा सेमीनार तय कर दिया है और इसकी सूचना कई समाचार पत्रों के माध्यम से आम जनता को दे दी गयी है। इस सेमीनार को सफल बनाने के लिये श्री ताम्रकर जी, डॉ. मनोहर भंड़ारी तथा प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. जगदीश जोशी ने 400 से ज्यादा एस.एम.एस. और फोन किये थे तथा 4 दिन से इस कार्यक्रम की तैयारी में जुटे थे। इस कार्यक्रम में 350 से ज्यादा प्रबुद्ध लोग मौजूद थे जिनमें मुख्य थे डॉ. राजेन्द्र पंजाबी यूरोलोजिस्ट, डॉ. वी.पी. बन्सल एम डी मेडीसिन, डॉ. पंकज गुप्ता योगाचार्य, इन्जिनियर हरि बल्लभ मेहता, डॉ. जगदीश जोशी, ब्रह्मात्मशक्ति के संपादक प्रोफेसर के.पी. जोशी आदि। इसी दिन शाम को 4 बजे नई दुनिया प्रेस में नई दुनिया के अधिकारियों और पत्रकारों से अलसी पर खुलकर चर्चा हुई। मैंने सभी को अलसी भोग लड्डू और मेमबॉय-प्लस बिस्किट्स भी खिलाये और सभी के प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। इस कार्यक्रम में श्री सुरेश ताम्रकर जी और ऊर्जावान श्री प्रदीप जैन संपादक, सेहत मेरे साथ थे।
हमारी रूकने की व्यवस्था मालवा मिल स्थित डॉ. सुभाष सिंघई के योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र में की गई थी। यहां मैंने देखा की डॉ. सुभाष सिंघई और उनका पूरा परिवार निस्वार्थ भाव से रोगियों की सेवा में लगा हुआ था। डॉ. सुभाष सिंघई और उनके पूरे परिवार ने हमारे ठहरने और भोजन की अति उत्तम व्यवस्था की थी। यहां हमें घर जैसा वातावरण और माहौल मिला। 2 दिसंबर को इन्हीं के संस्थान में अलसी के चमत्कारों और कैंसर रोधी बुडविज आहार-विहार पर एक कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में उपस्थित लगभग सवा सौ श्रोताओं ने तीन घंटे तक मन्त्रमुग्ध होकर मेरी बातों को सुना और ढ़ेरों प्रश्न पूछे। मैंने प्रश्नों का जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया।
इन्दौर में मैं निरोगधाम के कार्यालय में भी गया था। श्री अशोक कुमार पाण्डेय और डॉ. राजेश कुमार पाण्डेय ने बतलाया कि जिस अंक में अलसी पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ था उसकी सारी प्रतियाँ बिक चुकी हैं। लेकिन उसकी आज तक भारी डिमांड है तथा आज तक उस लेख के बारे में ढ़ेरों फोन आ रहे हैं और इस एक लेख ने ही मुझे बड़ी सेलिब्रिटी बना दिया है।
3 दिसंबर को पद्मश्री गोविंदम् मेमन साहब ने हमें नाश्ते पर बुलाया था। नाश्ते में उन्होंने हमें रसीले कमरख, संतरे की बर्फी आदि कई नये व्यंजन खिलाये और अपने संस्मरण सुनाये। उन्होंने अपने उद्यान में तीन हजार से ज्यादा किस्मों के फूलों और फलों के पौधे लगा रखे थे। 3 दिसंबर का लंच ताम्रकर साहब के घर पर था। ताम्रकर साहब बहुत ही सरल, शांत, अनुभवी और विद्वान पत्रकार हैं। वे सबकी मदद करने को तत्पर रहते है। मैं ताम्रकर साहब की शख़्सियत से बहुत प्रभावित हुआ। मुझे इनमें मेरे नानाश्री की छवि दिखाई देती थी। हमनें इस पूरी यात्रा में सबसे स्वादिष्ट भोजन ताम्रकर साहब के घर पर लिया। इस भोजन में राजस्थानी, मालवा और महाराष्ट्र तीनों राज्यों के व्यंजनों का स्वाद था।
4 दिसंबर, 2010
4 दिसंबर को हमने डॉ. मनोहर भंडारी के घर पर नाश्ता लिया। हमारी भाभी जी ने नाश्ता बहुत ही स्वादिष्ट बनाया था। डॉ. मनोहर भण्डारी बहुत ही संजीदा, परिश्रमी, प्रेम करने वाले, बुद्धिमान व्यक्तित्व के धनी हैं। वे मुझे अपने भाई की भांति दिखते थे। नाश्ता करने के बाद हम सभी मांडू और मोहन खेड़ा के भ्रमण पर निकले। मांडू मध्यप्रदेश का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जो अपनी सौंदर्य के लिए विख्यात रही रानी रूपमती और बादशाह बाज़ बहादुर के अमर प्रेम का साक्षी है। यहाँ के खंडहर व इमारतें हमें इतिहास के उस झरोखे के दर्शन कराते हैं, जिसमें हम मांडू के शासकों की विशाल समृद्ध विरासत व शानों-शौकत से रूबरू होते हैं।
कहने को लोग मांडू को खंडहरों का गाँव भी कहते हैं परंतु इन खंडहरों के पत्थर भी बोलते हैं और सुनाते हैं हमें इतिहास की अमर गाथा। हरियाली की खूबसूरत चादर ओढ़ा मांडू विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष तौर पर एक सुंदर पर्यटनस्थल रहा है। यहाँ के शानदार व विशाल दरवाजे मांडू प्रवेश के साथ ही इस तरह हमारा स्वागत करते हैं मानों हम किसी समृद्ध शासक के नगर में प्रवेश कर रहे हों।
मांडू में प्रवेश के घुमावदार रास्तों के साथ ही मांडू के बारे में जानने की तथा इसकी खूबसूरत इमारतों को देखने की हमारी जिज्ञासा चरम तक पहुँच जाती है। यहाँ के विशाल इमली व मीठे सीताफलों से लदे पेड़ों को देखकर हमारे मुँह में पानी आना स्वभाविक है।
मालवा का जैन महातीर्थ मोहनखेड़ा
इतिहास के लिए विख्यात रहे धार जिले की सरदारपुर तहसील के मोहनखेड़ा में श्वेतांबर जैन समाज का एक ऐसा महातीर्थ विकसित हुआ है, जो देश और दुनिया में विख्यात हो चुका है। परम पूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहब की तीर्थ नगरी मानवसेवा का भी तीर्थ बन चुकी है।
6 दिसंबर को सेवाधाम दिवा केन्द्र इन्दौर में सायं 4 बजे वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धावस्था में होने वाले रोगों जैसे हृदय रोग, डायबिटीज, आर्थ्राइटिस, कैंसर, एल्जीमर, पार्किंसन्स रोग, डिप्रेशन, रजोनिवृत्ति जनित रोग, विवर्धित प्रोस्टेट, सेक्स विकार आदि के उपचार में अलसी के चमत्कारी गुणों पर चर्चा हुई। सभी ने अलसी भोग लड्डू और मेमबॉय-प्लस बिस्किट्स की बहुत प्रशंसा की और बनाने की विधि पूछी।
5 दिसंबर, 2010
छठा पड़ाव – उज्जैन
दिनांक 5 दिसंबर, 2010 को अलसी विजय रथ उज्जैन पहुंचा। शाम के पांच बजे उज्जैन के भारतीय ज्ञान पीठ में सेमीनार का आयोजन किया गया था। जिसे सचिव प्रदीप जैन और डॉ. विनोद बैरागी जिला आयुर्वेद अधिकारी ने आयोजित किया था। इस सेमिनार की अध्यक्षता कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने की। अतिथि म.प्र. आयुर्वेदिक सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. एस.एन.पाण्डे, आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. यू.एस. निगम थे। संचालन डॉ. विनोद बैरागी ने किया था। इस सेमिनार में उज्जैन के लगभग 400 प्रबुद्ध व्यक्ति एवं महिलाएँ उपस्थित थे। इस सेमीनार के माध्यम से मैंने अलसी के चमत्कारी गुणों से आम नागरिकों को रूबरू करवाया। जिज्ञासु श्रोताओं ने ढ़ेरों प्रश्न पूछे जिनका उत्तर देकर मैंने उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया।
5 दिसंबर, 2010
छठा पड़ाव – उज्जैन
इस सेमिनार में उज्जैन के प्रतिष्ठित व्यक्ति अवन्तिलाल जैन, वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेन्ट अमृतलाल जैन, पेंशनर संघ अध्यक्ष राधेश्याम दुबे, प्रबुद्ध परिषद के अध्यक्ष एस.एन. कुलकर्णी, खादी ग्रामोद्योग विकास मण्डल के अध्यक्ष प्रदीप जैन, कायस्थ समाज के अध्यक्ष राजेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. नरेन्द्र कपूर, आंतर भारती, अध्यक्ष पुष्पा चौरसिया, अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती राजरानी सिंहल, श्रीमती सरोज अग्रवाल और श्रीमती नंदिनी जोशी आदि मौजूद थे।
इस सेमिनार के लिए डॉ. बैरागी ने काफी प्रयास किये थे और उन्होंने 300 से ज्यादा फोन और एस.एम.एस. भी किये थे। अगले दिन उज्जैन में मुझे प्रातः 4 बजे होने वाली महाकाल की भस्म आरती में शामिल होने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ जो अपने आप में दिव्य और अनूठा अनुभव था।
7 दिसंबर, 2010
6 दिसंबर को रात को 9 बजे हमारा अलसी विजय रथ सीहोर पहुंच गया था। सीहोर के विख्यात ई.एन.टी. सर्जन डॉ. एल.एन. नामदेव ने मालाओं से हमारा स्वागत किया और हमारे रूकनें की बढ़िया व्यवस्था की। डॉ. नामदेव बहुत ही सरल मृदुभाषी एवं विद्वान व्यक्ति है। उनकी पत्नि श्रीमती सुषमा और बेटे बहुओं श्री गौरव एवं श्रीमती प्रिया तथा डॉ. गगन एवं डॉ. गरिमा ने हमारी बहुत आवभगत की और हमें बड़ा लज़ीज भोजन करवाया। 7 दिसंबर को प्रातः 10 बजे से 1.30 बजे तक उन्हीं के घर पर एक गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें अलसी के औषधीय गुणों पर व्यापक चर्चा हुई। इस गोष्ठी में सीहोर के कई चिकित्सक और प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे। इसी दिन 2.30 बजे ब्लू बर्ड स्कूल में एक प्रेस वार्ता को सम्बोधित किया और सभी ने अलसी भोग एवं मेमबॉय-प्लस बिस्किट्स के साथ गर्मागर्म चाय का आनन्द लिया।
8 दिसंबर, 2010
सागर हमारा आठवां पड़ाव था।
सागर में हमारे ठहरने और भोजन की उत्कृष्ट व्यवस्था वहाँ के सबसे बड़े व्यवसायी, समाजसेवक और दानवीर ठाकुर चन्द्रपाल और कृष्णपाल सिंह जी ने की थी। सागर के विख्यात योग निकेतन केन्द्र में 9 दिसंबर, 2010 को अलसी पर एक कार्यशाला आयोजित की गयी थी। इस कार्यशाला में तीन घंटे तक अलसी पर विस्तार से चर्चा हुई। श्रोताओं ने अपने प्रश्न पूछे जिनका मैंने सरल शब्दों से जवाब दिया। 10 दिसंबर को प्रातः 11 बजे सागर विश्वविद्यालय के एम बी ए कॉलेज में छात्रों को युवा बने रहने के गुर सिखाये। इसी दिन 3 बजे सागर में अलसी चेतना यात्रा की सक्रिय जिला मंत्री कु. शिखा जी के विशेष आग्रह पर बी एम बी गर्ल्स कॉलेज में छात्राओं को अलसी सेवन से शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और सुन्दर बनने के टिप्स दिये तथा अलसी के व्यंजन और सौंदर्य प्रसाधन बनाना सिखाया। 11 दिसंबर को ठाकुर साहब के कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित किया। इस पत्रकार वार्ता में सागर के सभी प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सभी पत्रकार उपस्थित थे।
20 दिसंबर, 2010
आखिरी पड़ाव- कोटा
कोटा आते ही हमने इस महान यात्रा की सफलता को उत्सव के रूप में मनाना शुरू कर दिया था। हम सबसे मिल रहे थे और यात्रा के फोटो व अखबारों की कटिंग्स दिखा रहे थे। सभी मित्र और रिश्तेदार हमें बधाई दे रहे थे। इस यात्रा को सफल बनाने के लिए मेरी पत्नि उषा, मेरे पुत्र वैभव व समित, पुत्रियां ऐश्वर्य व स्नेहा ने बहुत मेहनत की थी। जागृति ने अलसी भोग लड्डू बनाने में मदद की थी। इस यात्रा को इतनी महान, सफलतम और स्मरणीय बनाने के लिए मैं श्री जयंती जैन, डॉ. रजनीकांत मालोत, श्री सुरेश ताम्रकर जी, डॉ. मनोहर भंडारी, डॉ. सुभाष सिंघई, डॉ. जगदीश जोशी, निरोगधाम, डॉ. एल.एन.नामदेव, डॉ. विनोद बैरागी, ठाकुर चन्द्रपाल कृष्णपाल सिंह, प्रोफेसर यशवंत ठाकुर, कु. शिखा, निशु, उदय आदि का आजीवन आभारी रहूँगा। इस यात्रा का समापन हमने एक पत्रकार वार्ता में किया, जिसमें कोटा के प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सभी पत्रकार उपस्थित थे। इस वार्ता को सफल बनाने में मेरे श्री चन्द्रशेखर चौधरी ने जी जान लगा दी।
इस यात्रा में मिले कुछ नये अनुभव
• डॉ. मनोहर भंडारी की डायबिटीज में अलसी के सेवन लाभ मिल रहा है। दवाओं की मात्रा कम हो रही है। उनकी एक रिश्तेदार के चेहरे पर हुए ज़ेन्थोमा जिन्हें लेजर उपचार भी ठीक नहीं कर पाया था, अलसी से ठीक हो रहे हैं। उनके एक भतीजे को डिप्रेशन और ब्लड प्रेशर था, उसे मात्र 9 दिन अलसी के सेवन से ही दोनों रोगों में चमत्कारी लाभ हुआ है ।
20 दिसंबर, 2010
आखिरी पड़ाव- कोटा
कोटा आते ही हमने इस महान यात्रा की सफलता को उत्सव के रूप में मनाना शुरू कर दिया था। हम सबसे मिल रहे थे और यात्रा के फोटो व अखबारों की कटिंग्स दिखा रहे थे। सभी मित्र और रिश्तेदार हमें बधाई दे रहे थे। इस यात्रा को सफल बनाने के लिए मेरी पत्नि उषा, मेरे पुत्र वैभव व समित, पुत्रियां ऐश्वर्य व स्नेहा ने बहुत मेहनत की थी। जागृति ने अलसी भोग लड्डू बनाने में मदद की थी। इस यात्रा को इतनी महान, सफलतम और स्मरणीय बनाने के लिए मैं श्री जयंती जैन, डॉ. रजनीकांत मालोत, श्री सुरेश ताम्रकर जी, डॉ. मनोहर भंडारी, डॉ. सुभाष सिंघई, डॉ. जगदीश जोशी, निरोगधाम, डॉ. एल.एन.नामदेव, डॉ. विनोद बैरागी, ठाकुर चन्द्रपाल कृष्णपाल सिंह, प्रोफेसर यशवंत ठाकुर, कु. शिखा, निशु, उदय आदि का आजीवन आभारी रहूँगा। इस यात्रा का समापन हमने एक पत्रकार वार्ता में किया, जिसमें कोटा के प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सभी पत्रकार उपस्थित थे। इस वार्ता को सफल बनाने में मेरे श्री चन्द्रशेखर चौधरी ने जी जान लगा दी।
इस यात्रा में मिले कुछ नये अनुभव
• डॉ. मनोहर भंडारी की डायबिटीज में अलसी के सेवन लाभ मिल रहा है। दवाओं की मात्रा कम हो रही है। उनकी एक रिश्तेदार के चेहरे पर हुए ज़ेन्थोमा जिन्हें लेजर उपचार भी ठीक नहीं कर पाया था, अलसी से ठीक हो रहे हैं। उनके एक भतीजे को डिप्रेशन और ब्लड प्रेशर था, उसे मात्र 9 दिन अलसी के सेवन से ही दोनों रोगों में चमत्कारी लाभ हुआ है ।
• नई दुनिया की सहपत्रिका सेहत के संपादक श्री प्रदीप जैन की एक रिश्तेदार को कैंसर था, डॉ. ने कहा था कि वो मुश्किल से एक महीना जी पायेगी। तब श्री प्रदीप जैन ने मुझसे संपर्क कर उसे अलसी के तेल और पनीर पर आधारित बुडविज आहार विहार शुरू कर दिया था और छ महीने बाद भी वह जीवित है, अच्छी है और उसका कैंसर ठीक हो रहा है।
• सागर के श्री यशवंत ठाकुर ने मुझे बताया कि अलसी के सेवन से उनके सिर में नये काले बाल उगना शुरू हो गया है।
• कोटा आते ही डॉ. जेबा खान, जो स्वास्थ्य पर बहुत ही अच्छे लेख लिखती है, ने मुझे बताया कि अलसी के सेवन से जीवन नया और सुखमय लगने लगा है, उनकी एड़ियां अच्छी हो गयी है, त्वचा में निखार आया है और मात्र दस दिन अलसी के सेवन से उनकी सास के घुटनों का दर्द ठीक होने लगा है।
Dr. O.P.Verma
M +919460816360
Date Dec. 20, 2010
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