अलसी - डायबिटीज टर्मीनेटर
डायबिटीज क्या है?
डायबिटीज या मधुमेह एक मेटाबोलिक सिंड्रोम है,
जिसमें ब्लड शुगर की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि शरीर
में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन हार्मोन का बनना या तो कम हो जाता
है और/या इंसुलिन रजिसटेंस होने के कारण वह ठीक से कार्य नहीं
कर पाता है।
डायबिटीज में अलसी के चमत्कारी फायदे
डायबिटीज़
के नियंत्रण में पहला उपचार आहार को संतुलित और संयत बनाना है। आपको अपनी जीवनशैली
में बड़े बदलाव करने होते हैं और कड़े अनुशासन का पालन करना पड़ता है। दवाइयों और
इंसुलिन की भूमिका द्वितीयक है। अलसी में पोषक तत्वों का भंडार है और डायबिटीज को
परास्त करने की असीम शक्ति है। स्वस्थ और संतुलित आहार में अलसी का समावेश सोने पर
सुहागा है।
ईश्वर ने अलसी को मनुष्य के लिए विशेष अनुराग से बनाया है। सूर्य देवता इस पूरी कायनात में सबसे अधिक प्रेम मनुष्य से करते हैं और अपनी सौर ऊर्जा का सबसे अधिक लाभ मनुष्य को ही पहुँचाते हैं। डैस्योर, मेक्सवेल और बडविग आदि क्वांटम फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध भी किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार अलसी दुर्गा का साक्षात पांचवा स्वरूप है। अलसी के सेवन से वात, पित्त, कफ सभी विकार दूर होते हैं। नवरात्रि के पांचवें दिन अलसी की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इससे मौसमी बीमारियां नहीं होती, मन को शांति मिलती है और सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां परम सुखदायी है और अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।
जब हम कैंसर के मरीजों को बडविग उपचार देते हैं और नियमित अलसी तेल से भरपूर ओमखंड खिलाते हैं, तो हम देखते हैं कि जिन मरीजों को डायबिटीज़ भी होती है, धीरे-धीरे उनकी दवाइयां और इंसुलिन छूट जाती है और कॉलेस्टेरोल कम होने लगता है। यह सब काल्पनिक कहानियां नहीं अपितु कड़ी सच्चाई है।
जब हम कैंसर के मरीजों को बडविग उपचार देते हैं और नियमित अलसी तेल से भरपूर ओमखंड खिलाते हैं, तो हम देखते हैं कि जिन मरीजों को डायबिटीज़ भी होती है, धीरे-धीरे उनकी दवाइयां और इंसुलिन छूट जाती है और कॉलेस्टेरोल कम होने लगता है। यह सब काल्पनिक कहानियां नहीं अपितु कड़ी सच्चाई है।
हमारे शरीर का मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम
बहुत सारी मेटाबोलिक एक्शन्स को अंजाम देता है, जिनमें पेनक्रियास
द्वारा इंसुलिन का निर्माण और शुगर का नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण क्रिया है। यदि हम
सब्जियां, साबुत अन्न और लो ग्लाइसीमिक खाद्य पदार्थ ग्रहण
करते हैं तो शरीर के लिए ब्लड शुगर को स्थिर और सुरक्षित सीमा में रखना आसान होता
है। लेकिन हम जितना अधिक प्रोसेस्ड फूड, चीनी, मेदा आदि का सेवन करेंगे, तो शुगर को नियंत्रित रखना
उतना ही मुश्किल होगा।
अलसी ब्लड शुगर को संतुलित करती है और डायबिटीज
से बचाव और नियंत्रण में सचमुच चमत्कारी है। अलसी शुरू करने के बाद ग्लूकोमीटर से
नियमित ब्लड शुगर चेक करते रहें। धीरे-धीरे दवाओं और इंसुलिन की डोज़ कम होने लगती
है और बंद भी हो सकती है। यह सब देखकर आपका फिजीशियन भी हैरान रह जाएगा। अलसी में
विद्यमान ओमेगा-3, प्रोटीन, फाइबर और
लिगनेन डायबिटीज के नियंत्रण में अहम भूमिका
निभाते हैं।
अलसी का ग्लायसीमिक इंडेक्स 32 है जो बहुत कम होता है, इसलिए यह ब्लड शुगर के स्तर
को काबू में रखती है। इसका मतलब यह हुआ कि अलसी के सेवन से ब्लड में शुगर का स्तर
एकदम से उछाल नहीं मारता जैसा कि मीठे व्यंजन, मेदा से बने
समोसे, बर्गर, पिज्जा या फास्टफूड खाने
से मारता है। यदि आपके भोजन में अलसी मिलाई गई है तो शुगर का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता
है, लंबे समय तक स्वस्थ और सुरक्षित सीमा में बना रहता है।
फिर कुछ घंटों बाद शुगर धीरे-धीरे कम होती है। अलसी सेवन का यही खास फायदा
है।
अलसी - जीरो कार्ब फूड नित खाओ मेरे ड्यूड
डायबिटीज
लिए अलसी एक आदर्श और अमृत तुल्य भोजन है, क्योंकि यह जीरो कार्ब भोजन है।
चौंकिएगा नहीं, यह सत्य है। मैं आपको समझाता हूँ। 14
ग्राम अलसी में मात्र 4.04 ग्राम कार्बोहाइड्रेट की मात्रा होती है। विदित रहे कि
फाइबर कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी में ही आते हैं। लेकिन इसमें 3.80 ग्राम तो फाइबर
होता है जो न ब्लड में एब्ज़ोर्ब होता है और न ही ब्लड शुगर को प्रभावित करता है। इस
प्रकार 14 ग्राम अलसी में मात्र 4.04 - 3.80 = 0.24 ग्राम ही तो कार्बोहाइड्रेट हुआ
जो नगण्य है, इसलिये आहारशास्त्री अलसी को जीरो
कार्ब भोजन मानते हैं। गेंहू में 72% कार्ब और 7%
फाइबर होता है, जबकि अलसी में <2% कार्ब
27% फाइबर होता है। इसलिए यदि अलसी और गेंहू का बराबर मात्रा
में मिलाकर रोटी बनाई जाए तो उसमें 37% कार्ब और 17% फाइबर होगा, स्फष्ट है कि यह रोटी डायबिटीज़ के मरीज के लिए कितनी गुणकारी
होगी।
फाइबर – स्लो एंड स्टिडी विंस द रेस
अलसी में घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह का
फाइबर होते हैं। फाइबर आमाशय में फैल जाते हैं और ग्लुकोज़ के पाचन में रुकावट पैदा
करते हैं, जिससे शुगर का नियंत्रण तथा इंसुलिन का स्त्राव स्निग्ध और सहज हो जाता
है। इस कारण ब्लड शुगर का लेवल धीरे-धीरे बढ़ता है और लंबे समय तक सुरक्षित सीमा
में बना रहता है, जिससे बहुत देर तक भूख नहीं लगती।
ओमेगा-3 फैट – इंफ्लेमेशन भगाए, जीवन में सुर लाए
क्रोनिक इंफ्लेमेशन डायबिटीज का मूल कारण है।
इसका मतलब यह है कि डायबिटीज में हमारा शरीर क्रोनिक इंफ्लेमेशन की भट्टी में अहिस्ता-आहिस्ता
सुलगता रहता है। फलस्वरूप ब्लड-वेसल्स कठोर, संकीर्ण और
भंगुर हो जाती है, नाड़िया क्षतिग्रस्त होने लगती है,
विभिन्न अंग ठीक से काम नहीं करते और शरीर समय से पहले जीर्णता को
प्राप्त होने लगता है। इनके कारण कई जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। कैलीफोर्निया
विश्वविद्यालय, सान डियेगो के अनुसंधानकर्ताओं ने इंसुलिन रज़िसटेंस
और मधुमेह टाइप-2 का प्रमुख कारण इम्यून सेल माक्रोफाज के कारण हुए क्रोनिक इंफ्लेमेशन (chronic
inflammation) को माना है। लेकिन जैसे ही हम ओमेगा-3 फैट से भरपूर अलसी का सेवन शुरू करते हैं, इंफ्लेमेशन शांत हो जाता है तथा जीवन फिर से आनंद की वादियों में सुर और ताल पर थिरकने लगता है।
अलसी से - फूड क्रेविंग भी कम, वेट भी कम
जब आहार द्वारा हमें पर्याप्त ओमेगा-3 नहीं
मिलता हैं तो हमारा मस्तिष्क समझता है कि हम भूखे हैं और हमारा शरीर उस पोषक तत्व
(ओमेगा-3) के लिए के लिए तरस रहा है, जो हमारे लिए बहुत आवश्यक
है, जो मिल नहीं रहा है। जैसे ही हम अलसी (ओमेगा-3) का सेवन करते हैं, मन तृप्त हो
जाता है, देर तक भूख नहीं लगती और फूड क्रेविंग कम हो जाती है और वज़न भी कम होने
लगता है।
लिगनेन – शुगर कंट्रोल में सुपरमेन
पेनक्रियास (pancreas) ब्लड
शुगर के नियंत्रण का मुख्यालय है। इंसुलिन का स्त्राव यहीं होता है। लिगनेन पेनक्रियास
को स्वस्थ और सुचारु रखता है। इस तरह लिगनेन ब्लड शुगर के नियंत्रण में सहायता
करता है। लिगनेन शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और आयुवर्धक भी है।
सारे हृदय विकार में, अलसी करे सुधार
अलसी ब्लडप्रेशर कम करती है। अलसी
ट्रायग्लीसराइड्स, टोटल कॉलेस्टेरोल और एल.डी.एल.
कॉलेस्टेरोल कम करती है। साथ ही एच.डी.एल. कॉलेस्टेरोल बढ़ाती है। अलसी प्राकृतिक
एस्पिरिन है – यह ब्लड को पतला रखती है और ब्लड वेसल्स को स्वीपर
की तरह साफ करती है। नियमित अलसी सेवन
करने वालों को एस्पिरिन और कॉलेस्टेरोल कम करने की दवाएं लेने की जरूरत नहीं रहती।
दिल का दौरा पड़ने पर मृत्यु का प्रमुख कारण वेंट्रीकुलर एरिदमिया माना जाता है। अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि आहार में अलसी (ओमेगा-3 फैट्स) को शामिल करके इस जानलेवा रोग से बचा जा सकता है। जो समझदार और दूरदर्शी लोग समय रहते अलसी का सेवन शुरू कर देते हैं,
उन्हें
हार्ट
अटेक
होने
की
संभावना
बहुत
कम
रहती
है।
फिर
भी
यदि
किसी
को
अटेक
आ
जाए
तो
उसे
ये
घातक
वेंट्रीकुलर
फिब्रीलेशन
रोग
नहीं
होता
और
वह
एंजियोप्लास्टी करवा कर सुरक्षित घर लौट आता है। (https://flaxcouncil.ca/resources/nutrition/technical-nutrition-information/flax-a-health-and-nutrition-primer/)
किडनी पर डायबिटीज़ का प्रहार, अलसी सेवन से होगा उपचार

(https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/13590840020013266)
अलसी - पैरों की रक्षक भी, पेडीक्यौर भी
डायबिटीज के कारण पैरों में ब्लड का प्रवाह कम
हो जाता है और नाड़ियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। जिससे दर्द की अनुभूति नहीं होती,
पसीना कम आता है, पैर सूखे रहते हैं, त्वचा में छोटे-मोटे घाव बन जाते हैं, जो आसानी से ठीक नहीं होते। इससे कई
बार संक्रमण और गेंग्रीन तक हो जाता है और कभी कभी इलाज हेतु अंगूठा, अंगुलियां या
पूरा पैर भी कटवाना पड़ जाता हैं। पैरों की नियमित देखभाल व अलसी खाने से पैरों
में ब्लड का प्रवाह बढ़ता हैं, नाड़ियां स्वस्थ होती हैं और
पैर के घाव व फोड़े आदि ठीक होने लगते हैं। पैर और एड़ियां भी नम और मुलायम हो जाती हैं। पैर के नाखूनों की रिमोडलिंग होने
लगती है।
आँखों की ज्योति बढ़ाती है अलसी
डायबिटीज
के कारण रेटीना में सूक्ष्म ब्लड-वेसल्स के क्षतिग्रस्त होने से डायबीटिक
रेटीनोपेथी हो जाती है। इससे अँधापन हो सकता है। अलसी ब्लड-वेसल्स को स्वस्थ रखती
है और रेटीनोपेथी से बचाती है। अलसी केटरेक्ट और ग्लुकोमा में भी हितकारी है। अलसी
का तेल सर्वोत्तम लुब्रीकेंट आई ड्रॉप है और शुष्क आँख (Dry Eye Syndrome) में बहुत फायदा करता है।
अलसी – लैंगिक विकार
बंद करो रिफाइंड तेल अगर चलानी हो जीवन की रेल
डायबिटीज के रोगी को ट्रांसफैट, हाइड्रोजनेटेड फैट्स और रिफाइंड तेल का प्रयोग हर सूरत में बंद कर देना
चाहिए। रिफाइंड तेल बनाने की प्रक्रिया में अधिकांश पोषक तत्व, और विटामिन निकाल लिए जाते हैं, जबकि प्राकृतिक
तेलों में विटामिन, खनिज और कई पौष्टिक तत्व होते हैं। रिफाइंड
तेल बनाने की क्रिया में तेल को बहुत ऊँचे तापमान पर गर्म किया जाता है। तेल में
गौंद जैसे फोस्फोलिपिड्स और अन्य यौगिक होते हैं, जिन्हें निकालने
के लिए फोस्फोरिक एसिड मिलाया जाता है।
तेल का प्रायः आंशिक हाइड्रोजनेशन किया जाता है।
इसके लिए निकल की उपस्थिति में तेल में हाइड्रोजन गैस प्रवाहित की जाती है। इसके
बाद फ्री फैटी एसिड्स अलग करने के लिए कॉस्टिक सोडा मिलाया जाता है। ब्लीचिंग
आखिरी अवस्था है। इसमें ब्लीचिंग क्लेज मिला कर बीटाकेरोटीन और आवश्यक वसा अम्ल
अलग किए जाते हैं।
सीख लो ट्रांसफैट का ज्ञान, बनोगे स्वस्थ और बलवान
जब तेल को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है तो
उसमें जानलेवा ट्रांसफैट बन जाते हैं। सभी रिफाइंड तेलों और वनस्पति घी में भारी
मात्रा में जानलेवा ट्रांसफैट होते हैं। तेल को मात्र 3000 सेल्सियस तक
गर्म करने से कैंसरकारी नाइट्रोसेमीन्स बन जाते हैं। 3200 सेल्सियस पर
ट्रांसफैट बनने लगते हैं और 3920 सेल्सियस पर तो ट्रांसफैट की मात्रा
कातिलाना हो जाती है। तेल को जितनी बार गर्म करेंगे, ट्रांसफैट
की मात्रा उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसीलिए पोली-अनसेचुरेटेड आयल्स (PUFAs) और मोनो-अनसेचुरेटेड आयल्स (MUFAs)
को गर्म नहीं करना चाहिए। डीप-फ्राइंग या हाई-टेंप्रेचर कुकिंग के
लिए हमेशा सेचुरेटेड फैट्स जैसे घी, कोकोनट फैट ही प्रयोग करना चाहिए।
तेल तड़का और रोग भड़का
तलने के
लिए नारियल का वर्जिन तेल उपयुक्त रहता है। इसमे मीडियम चेन फैटी एसिड होते हैं,
जो बहुत स्वास्थ्यप्रद और स्टेबल होते हैं। यह गर्म करने पर खराब भी
नहीं होता। घी भी तलने के लिए ठीक रहता है। हाइड्रोजनेटेड फैट का प्रयोग कभी नहीं
करें। हल्के फुल्के छौंक या तड़का लगाने के लिए सरसों का अनरिफाइंड तेल बेहतर
विकल्प है। आजकल सभी तेल निर्माता तेलों में 75 प्रतिशत तक खराब, रिफाइंड तेल, पाम
आयल की मिलावट करते हैं। इसलिए यदि हमें स्वस्थ रहना है, बरसों जीना है तो हमें एक
छोटी घरेलू तेल निकालने की एक्सपेलर मशीन तुरंत खरीद लेना चाहिए। इससे तेल निकालना
भी आसान है और इसकी सफाई और रख-रखाव चुटकियों में हो जाता है। इससे आप सभी तेल
निकाल सकते हैं। आजकल अपने मनोरंजन और सुख-सुविधा के लिए हम मंहगी से मंहगी चजें
जैसे स्मार्टफोन या स्मार्ट टीवी खरीद रहे हैं, तो क्या हम
एक छोटी सी ऑयल एक्सपेलर नहीं खरीद सकते? फिर यह तो हमारे
स्वास्थ्य से जुड़ा अहम मसला है। इसे हम अपने किचन काउंटर पर रख सकते हैं।
डायबिटीज में अलसी कैसे खाएं
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अलसी की
रोटी
डायबिटीज के रोगी को रोज सुबह और शाम अलसी का सेवन करना चाहिए। 15-20
ग्राम अलसी सुबह और 15-20 ग्राम अलसी शाम को सेवन करें। अलसी को पीस कर आटे में
मिला कर रोटी बना कर ही खाना चाहिए। डायबिटीज के लिए यही सबसे अच्छा तरीका है।
अलसी का
तेल
यदि हम डायबिटीज और उसके काम्प्लिकेशंस का ढंग से उपचार
करना चाहते हैं तो हमें अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल को दही या पनीर में मिला कर लेना
नितांत आवश्यक है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार रोजाना 30 एम.एल. अलसी का तेल लेना
चाहिए। विदित रहे कि अलसी तेल सल्फरयुक्त प्रोटीन (जिसका सर्वोत्तम स्त्रोत क्रीम जैसा पनीर है) के साथ लेने पर पूरा फायदा देता है। अलसी का तेल शुरू करने के बाद आप देखेंगे कि आपके जीवन की मर्सडीज़ स्वास्थ्य
की फोरलेन पर कैसे रफ्तार पकड़ती है। अलसी तेल के चमत्कार देख कर आपके होश उड़
जाएंगे। डायबिटीज़ की दवाइयां और इंसुलिन
के इंजेक्शन सब छूट जाएंगे।
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-05-2019) को "लुटा हुआ ये शहर है" (चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक जानकारी
Thanks Jyoti Khare ji
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