दस्तावेजों के अनुसार सन् 1944 में न्यू जर्सी के डीप
वाटर क्षेत्र में स्थित ड्यूपोंट के अत्यंत गोपनीय अस्त्र कारखाने में अचानक एक
दुर्घटना हो गई। यहाँ यूरेनियम और प्लूटोनियम का संवर्धन होता था। जिसके लिए लाखों
टन फ्लोराइड बनाया जाता था। इस दुर्घटना में भारी मात्रा में फ्लोरोइड का रिसाव हुआ, जो आसपास के
ग्लोसेस्टर और सलीम इलाकों और खेतों में फैल गया था। इस रिसाव से किसानों का बहुत नुकसान हुआ, फसलें जल गईं, टमाटर सड़ गये, रातों-रात सारी मुर्गियाँ मर गई, घोड़े बीमार हो गये और उठ नहीं पा रहे थे तथा यही हालत
गायों की भी हुई। उनके प्रसिद्ध आड़ू भी खराब हो गये थे जो न्यूयॉर्क के आल्डोर्फ
एस्टोरिया हॉटेल को बेचे जाते थे। यहाँ के टमाटरों से कैम्पबेल कंपनी सूप बना कर
बेचती थी। जिन किसानों ने गलती से वे आड़ू खा लिए थे, वे बीमार हो गये और दो दिनों
तक उलटी करते रहे। देश की प्रसिद्ध कैमीकल कंसल्टिंग फर्म सेडलर के फिलिप सेडलर ने
इस दुर्घटना की प्रारंभिक जांच की थी। क्रिस ब्रायसन और जोयल ग्रिफिथ्स को उनका एक
रिकॉर्डेड टेप इन्टरव्यू हाथ लग गया था जिससे उन्हें इस दुर्घटना की विस्तृत
जानकारी मिली। इस दुर्घटना से मेनहटन
प्रोजेक्ट और फैडरल सरकार बहुत चिंतित थी। उनकी बहुत छीछालेदर हो रही थी। वे पूरे
मामले को दबा देना चाहते थे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी भी वजह से एटमबम बनाने के कार्यक्रम में कोई भी अड़चन पैदा हो।
कहानी में ट्विस्ट
परिणामस्वरूप कई किसान उनके खेतों के प्रदूषित
हो जाने के कारण मेनहटन प्रोजेक्ट और सरकार के एटम बम कार्यक्रम के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ना चाहते थे। लेकिन वे युद्ध
खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उधर पेंटागन ने इस का मुकाबला करने (और बम
कार्यक्रम की गोपनीयता बनाए रखने हेतु) फ्लोराइड को षड़यंत्रपूर्वक ‘हितैषी’ या मानव अनुकूल परिभाषित करने की व्यापक योजना बनाई। पुराने
वर्गीकृत दस्तावेज साफ-साफ दर्शाते हैं कि स्थानीय लोगों को फ्लोराइड के डर से
उबारने के लिए दांतों के स्वास्थ्य में फ्लोराइड की उपयोगिता
पर कई व्याख्यानों का आयोजन किया गया था और इन सबमें मीडिया का भरपूर सहयोग लिया
गया। यह सब मेनहटन परियोजना के फ्लोराइड विषविज्ञानी और प्रोजेक्ट अधिकारी हेराल्ड सी. हॉज की दिमागी उपज थी। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होते ही हॉज ने अपने बॉस और मेडीकल डिविजन के चीफ कर्नल एल.वॉरेन को इस दुर्घटना की पूरी जानकारी देने हेतु प्रतिवेदन भेजा।
फ्लोराइड
ऐसे पहुँचा ऐटमबम फेक्ट्री से आपके टूथपेस्ट
युद्ध खत्म होते ही किसानों ने न्यायालय में दावा पेश कर दिया। इससे सरकार की परेशानियाँ और बढ़ गई। आनन-फानन में मेनहटन प्रोजेक्ट के चीफ मेजर जलरल लेस्ली आर. ग्रोव्स ने व्हाशिंगटन में यू.एस.वार डिपार्टमेन्ट, मेनहटन प्रोजेक्ट, एफ.डी.ए., कृषि विभाग, यू.एस. आर्मी के कैमीकल वेलफेयर सर्विस, एज वुड आर्सनल, ब्यूरो ऑफ स्टेन्डर्ड तथा न्याय विभाग के अधिकारियो और ड्यूपोंट के
वकीलों की एक गोपनीय तथा आपातकालीन बैठक बुलाई। इसमें निर्णय लिया गया कि सारे
अधिकारी मिल कर काम करेंगे और किसानों को हराने के लिए हर सम्भव प्रयत्न किये जायेगें।
यदि सरकार इस मुकदमें में हार जाती है तो इससे अमेरिका का एटमबम कार्यक्रम खटाई
में पड़ सकता था। यदि किसान इस मुकदमें
में जीत जाते हैं तो कई अन्य लोग भी ऐसे
मुकदमें करेंगे और सरकार की बहुत बदनामी होगी। उधर एफ.डी.ए. इस इलाके के फलों और
तरकारियों को प्रतिबन्धित करना चाह रही थी।
मेजर जलरल ग्रोव्स ने एफ.डी.ए. के अधिकारियों को भी अपने विश्वास में लेकर
मना लिया कि वे ऐसा कुछ नहीं करें अन्यथा सरकार का एटमबम कार्यक्रम खटाई मे पड़
सकता है। मार्च 26, 1946 को
ग्रोव्ज ने किसानों के नेता श्री विलार्ड किल्ले को खाने के लिए बुलाया,
चिकनी-चुपड़ी बातों से फुसलाया और अपने विश्वास में लेने की कौशिश की। इसके बाद
अमरिका की सरकार ने पुरजोर तरीके से फ्लोराइड को दांतो के रक्षक और स्वास्थ्य के
लिए जरूरी तत्व साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीने के पानी में फ्लोराइड मिलाया जाने लगा। इस तरह उनकी कुटिल नीतियों ने एक घातक विष को खलनायक से नायक बना ही डाला। इसके अलावा बहुराष्ट्रीय संस्थानों के कई रासायनिक कारखानों में भी फ्लोराइड भारी मात्रा में अपशिष्ट के रूप में बनता है। उनके सामने इसे इस फ्लोराइड को ठिकाने लगाना भी एक मंहगा और परेशानी भरा काम रहता है। उन्होंने भी इस मौके का फायदा उठाया और फ्लोराइड को टूथपेस्ट में मिलाना शुरू कर दिया। इस तरह फ्लोराइड ने ऐटमबम बनाने
की फेक्ट्री से आपके टूथपेस्ट तक का सफर तय किया। और आप सुबह उठते ही सबसे इसी
फ्लोराइड का अपने दांतों पर रगड़ते हैं।
भारत में फ्लोराइड की स्थिति
हमारे
देश के अधिकांश हिस्सों के पानी में फ्लोराइड बहुत ज्यादा है। देश के 20 राज्य
इससे प्रभावित हैं, जिनमें आंध्रप्रदेश,
मध्यप्रदेश, झाड़खण्ड, छत्तीस गढ़, बिहार, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, गुजरात,
राजस्थान, तमिलनाडु आदि प्रमुख हैं। इन राज्यों के 50% से
ज्यादा जिलों में दंत और अस्थि फ्लोरोसिस स्थानिक
रोग है। भारत में लगभग 2.5-3 करोड़
लोग दंत फ्लोरोसिस रोग से पीड़ित है, 60 लाख लोग गंभीर अस्थि फ्लोरोसिस के कारण स्थाई
रूप से अपाहिज हो चुके हैं और 6 लाख लोग फ्लोरोसिस के कारण किसी न किसी स्नायु
विकार (neurological
disorder) से पीड़ित हैं। आंध्रप्रदेश के नालगोन्डा जिले की स्थिति तो
सबसे ही गंभीर है। इस जिले के 500 गांव फ्लोरोसिस से बुरी तरह प्रभावित हैं। यहाँ
के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 10 मि.ग्राम/ लीटर है, जबकि अधिकतम
सुरक्षित मात्रा 1 मि.ग्राम/लीटर मानी गई है।
हमारे
यहाँ पीने के पानी का फ्लोरीकरण नहीं किया जाता है। भारत सरकार कई इलाकों में पीने
के पानी से फ्लोराइड निकालने की योजना बना रही है। परन्तु इस दिशा में अभी तक काई
कार्य हो नहीं सका है, क्योंकि यह खर्चीला काम है। जब हमारे यहाँ पानी में पर्याप्त मात्रा में
फ्लोराइड विद्यमान है तो सरकार ने टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनियों को पेस्ट में
फ्लोरोइड मिलाने की इजाजत क्यों दे रखी है और हमारे दंद चिकित्सक इसका विरोध क्यों
नहीं करते हैं।
फ्लोरीन
फ्लोरीन
हैलाइड श्रेणी {F
(Fluoride), Cl (Chlorine), Br (Bromine), I (Iodine) and At (Astatine)} का
तत्व है। यह अन्य हैलाइड तत्वों के अधिक क्रियाशील है। इसका अम्ल हाइड्रोफ्लोरिक
एसिड HF हाइड्रोक्लोरिक एसिड HCl से भी अधिक क्रियाशील है। यह कांच को
भी गला देता है। सांद्र हाइड्रोफ्लोरिक एसिड को आप सूंघ भी नहीं सकते है। बहुत
पतला (24ppm) करने पर ही इसे सूंघना सम्भव
है। इसीलिए आपने किसी भी स्कूल या कॉलेज की प्रयोगशाला में हाइड्रोफ्लोरिक एसिड HF नहीं देखा होगा।
फ्लोरोसिस
फ्लोरोसिस
एक चिरकारी, गंभीर और कष्टदायक रोग है, जो शरीर में अनावश्यक फ्लोराइड जमा हो जाने
से होता है। फ्लोराइड पीने के पानी, फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट, कुछ खाद्य पदार्थ,
दवाओं तथा कारखानों से निकले धुएं और धूल के जरिये शरीर में प्रवेश करता है।
प्रारंभिक अवस्था यह रोग दांतों के सौदर्य को खराब करता है, लेकिन धीरे-धीरे यह
हड्डियों और जोड़ों को कमजोर बनाता है, शरीर में कई विकार पैदा करता है और रोगी
स्थाई रूप से अशक्त, अक्षम, अपंग और असहाय बना देता है। फ्लोरोसिस तीन प्रकार का
होता है।
दंत फ्लोरोसिस (कही दाग न लग जाये) –
हमारे
दांतों का ऐनामेल हाइड्रोक्सीऐपेटाइट और कार्बोनेटेड हाइड्रोक्सीऐपेटाइट यौगिकों
से बना होता है। शरीर में फ्लोराइड अधिक होने से दांतों में फ्लोरोऐपेटाइट बनने
लगता है, जिसके कारण विकासशील स्थाई दांतों के ऐनामेल में सफेद चॉक जैसे छोटे-छोटे
अपारदर्शी धब्बे या निशान बनने लगते हैं। बाद में ऐनामेल में भूरे मटमैले रंग के
स्थाई निशान या गड्डे हो जाते हैं, जो आसानी से साफ नहीं होते हैं और दिन ब दिन
गहरे होते जाते हैं। दांत कमजोर, बदबूदार और भंगुर हो जाते हैं।
अस्थि फ्लोरोसिस
दंत
फ्लोरोसिस या दांतो के दाग तो असली रोग की झलक मात्र है। दांतो के सौंदर्य को
बिगाड़ने के बाद यह रोग धीरे-धीरे अस्थियों और जोड़ों को कमजोर बनाता है। शरीर में फ्लोरीन के उच्त स्तर के कारण
अस्थियाँ कठोर और भंगुर हो जाती हैं, लचीलापन कम हो जाता और हड्डी टूटने का जोखिम
बढ़ जाता है। हड्डियाँ हल्के से आघात से बार-बार टूटती हैं। इसके अलावा हड्डियों की
सतह और जोड़ों में अस्थि ऊतक जमा हो जाते है, जिससे जोड़ों की हरकत भी कम होने
लगती है। फ्लोरीन से पेराथायरॉयड ग्रंथियाँ भी प्रभावित होती हैं और पेराथायरॉयड
हार्मान का स्तर काफी बढ़ जाता है। यह हार्मोन शरीर में केल्शियम को नियंत्रित
करता है। बढ़ने पर यह हार्मान अस्थियों में केल्शियम की मात्रा कम करता है और रक्त
में केल्शियम का स्तर बढ़ा देता है। इससे अस्थियों का लचीलापन कम होता है और टूटने
का जोखिम बढ़ जाता है। शरीर में अतिसक्रिय फ्लोराइड ऑयन की अधिकता कई यौगिकों से
क्रिया करती है और ऊतकों को नुकसान पहुँचाती है।
दैहिक फ्लोरोसिस
·
स्नायु विकार – सिर दर्द, धबराहट, अवसाद, हाथ और पैर की अंगुलियों में झनझनाहट, बार-बार प्यास और मूत्र विसर्जन लगना।
·
मांस-पेशी विकार – पेशियों में कमजोरी, अशक्तता, जकड़न और दर्द।
·
मूत्र पथ विकार – मूत्र विसर्जन में कमी, मूत्र का रंग पीला लाल होना।
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त्वचा- सामान्यतः बच्चों और स्त्रियों में गुलाबी या लाल रंग के गोल या अण्डाकार चकत्ते हो जाते हैं, जो बहुत दर्द करते हैं और अमूमन 7-10 दिन में ठीक हो ही जाते हैं।
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पाचन तंत्र विकार – पेट दर्द, दस्त, कब्जी, दस्त में खून आना।
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रक्त अल्पता – फ्लोरोसिस के कारण कुछ विशेष तरह के लाल रक्तकण इकिनोसाइट्स बनते हैं जो जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं और फलस्वरूप खून की कमी होती है।
·
अन्य विकार - कैंसर, डायबिटीज, थायरॉयड ग्रंथि का बढ़ना, बुद्धिमत्ता में कमी, बालों में जिंक की कमी, समय पूर्व दांत टूट जाना, लिगामेंट्स और रक्त वाहिकाओं का अस्थिकरण आदि।
विकल्प - हींग लगे ना फिटकरी रंगत चोखी आये
महर्षि
वाग्भट ने लिखा है कि दातुन स्वाद में कड़वा होना चाहिये। नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए
उन्होंने नीम के दातुन की प्रसंशा की है। उन्होंने अन्य दातुन के बारे में भी
बताया है जिसमे मदार, बबूल, अर्जुन, आम, अमरुद, जामुन आदि प्रमुख हैं। उन्होंने चैत्र
माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या
बबूल का दातुन करने की सलाह दी है, सर्दियों
में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को कहा है और बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का
दातुन श्रेष्ठ बताया है। आप चाहें तो साल भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं
लेकिन ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को
कुछ दिन का विश्राम दे। इस अवधि में मंजन कर ले। दन्त मंजन बनाने की आसान विधि
उन्होंने बताई है कि सरसों के तेल में नमक
और हल्दी मिलाकर आप मंजन बनालें। दांतों की सफाई और चमक लाने के लिए भी आप कई तरह
के मंजन बना सकते हैं।
आयुर्वेद के दन्त मंजन
- दांतों पर
लगाये हेतु दो ग्राम नमक हथेली,
चुटकी भर
हल्दी को हथेली पर ले, उसमें 10-15
बूंदे सरसों के तेल की मिलाकर,
इस मिश्रण से मध्यमा
अंगुली का सहयोग लेते हुए धीरे –
धीरे दांतों
एंव मसूढों की मालिश करें । इस प्रयोग से दांत चमकने लगते हैं, दातों की
जड़ें मजबूत बनती हैं, मसूढ़ों की
सूजन दूर होती है, मसूढ़ों से
खून निकलना बंद हो जाता है, दांतों में
टार्टर नहीं जम पाता है, हिलते हुए
दांत भी फिर से जम जाते हैं। इस साधारण से दिखने वाले प्रयोग से एक अन्य सबसे
बड़ा लाभ यह है कि इसके नियमित अभ्यास से दांतों में गरम-ठंड़ा लगने जैसी
शिकायतें दूर हो जाती हैं।
हल्दी
नमक मिलाइये, अरु सरसों का तेल।
नित्य मलें रीसन मिटे, छूट जाय सब मैल।।
- हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, काली मिर्च,
पीपल (त्रिकुटा), शुद्ध किया
हुआ तूतिया (तुत्थ या नीला थोथा),
काला नमक, सेंधा नमक, सांभर नमक, समुद्री नमक, विड् नमक
(पांचों लवण), पतंग (पत्रांग नामक
द्रव्य) तथा माजूफल इन सबको बारीक कूट-पीस तथा छानकर बनाए गए मिश्रण से मंजन
करने से दांत वज्र के समान मजबूत हो जाते हैं। त्रिफला के
अंतर्गत हरड़, बहेड़ा और आंवला का समावेश
किया जाता है। त्रिकुटा के अंतर्गत सोंठ, काली मिर्च और
पीपल आती हैं। नीले
थोथे को शुद्ध किया जाना अनिवार्य है। इसको दोला-यंत्र में तीन प्रहर तक गाय,
भैंस और बकरी के मूत्र के साथ स्वेदन करने से यह शुद्ध हो जाता है।
त्रिफला, त्रिकूटा, तुतिया,
पांचों नमक पतंग।
दंत वज्र सम होत हैं,
माजूफल के संग ।
दांत चमकाने के मंजन
· आधी
बड़ी-चम्मच खाने के सोडे में एक चाय-चम्मच सिरका और चुटकी भर नमक मिला कर दातों पर
रगड़ने से दांत उजले और सफेद हो जाते हैं।
· एक
बड़ी-चम्मच खाने के सोडे में हाइड्रोजन परऑक्साइड की कुछ बूँदें मिला कर दातों पर
रगड़ने से दांत चमकीले और सफेद हो जाते हैं।
· तेज
पत्ता और नारंगी के सूखे छिलके को पीस कर दांत चमकाने का बढ़िया चूर्ण तैयार कर
सकते हैं।
· अनार के
छिलके को सुखा और पीस कर दातों पर रगड़ने से दांत चमकीले और सफेद हो जाते हैं।
हर्बल माउथ वाश
· एक
चाय-चम्मच हाइड्रोजन परऑक्साइड और एक चाय-चम्मच सैंधा नमक एक कह पानी में मिला कर
हर्बल माउथ वाश बनाया जा सकता है।
· एक
बड़ी-चम्मच सिरका, दो बड़ी-चम्मच शहद, दो बड़ी-चम्मच वाइन में आधी चाय-चम्मच पिसा
हुआ लौंग मिला कर अच्छा माउथ वाश तैयार
किया जा सकता है।
लेकिन
आज की इस भागम-भाग की व्यस्त जिंदगी में आपक दन्त मंजन बनाने का समय नहीं हो तो आप
पतंजलि योगपीठ का जैविक और प्राकृतिक तरीके से तैयार किया हुआ दन्त-कान्ति पेस्ट
या दिव्य दन्त मंजन खरीद सकते हैं। ये पूर्णतया शाकाहारी, स्वदेशी, जैविक,
पर्यावरण हितैशी और उत्कृष्ट उत्पाद हैं। इनमें कोई हानिकारक रसायन या विषैले
पदार्थ नहीं मिलाये जाते हैं।