वसा जो कारक है वसा जो मारक है
यह संक्षिप्त लेख विख्यात वैज्ञानिक यूडो इरेसमस की पुस्तक “Fats that Heal that kill”, जिसकी दो लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं, यूडो इरेसमस ने आवश्यक वसा अम्लों व अलसी पर बहुत शोध की और इन्हें जैविक, असंशोधित अलसी के तेल का पिता भी कहा जाता है। अधिक जानकारी के लिए आप इनकी वेबसाइट www.udoerasmus.com से ले सकते है। मेरे लेख व अन्य जानकारी के लिए http://flaxindia.blogspot.com पर जायें।
प्रस्तावना
आधुनिक युग में स्वास्थ रहना हमारा पहला अधिकार है और हमें स्वस्थ खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना सरकारों व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का परम दायित्व है। नियम भी बनें हैं, मानक भी तय हैं, परन्तु सब तरफ भ्रष्टाचार है, सरकारें खामोश हैं, नेता चुप हैं और लालची बहुराष्ट्रीय कम्पनियां, उनका अनुसरण करने वाली छोटी कम्पनियां, हलवाई, बेकरी और रेस्टोरेन्ट सारे मानको व नियमों को ताक में रखकर ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करने के लिए हमें विष परोस रहे हैं और तो और आपके चहेते महानायक एवं नायिकाऐं So called super stars जो करोड़ों कमाते हैं क्योंकि आप उनकी फिल्में देखते हैं, उनके काम को सराहते हैं। परन्तु उनकी भूख करोड़ो से भी नहीं मिटती और वे अरबों कमाने के लिए इन जहरिले खाद्य पदार्थों का विज्ञापन करके हमें व हमारे बच्चों को ये जहर खाने के लिए लालायित करते हैं। कोई अपने आपको बादशाह कहता है तो कोई इक्का वो भी हुकुम का। परन्तु मेरी निगाह में इनकी औकात चिड़ी की दुक्की के बराबर भी नहीं है। भारत के असली बादशाह तो श्री श्री स्वामी रामदेव जी हैं जो हर भारतीय को स्वस्थ व निरोग रहने का पाठ पढ़ा रहे हैं।
यदि आपको स्वस्थ रहना है तो कारक वसा व मारक वसा के अन्तर को समझना ही होगा। कुछ वसा शरीर में कैंसर पैदा करते हैं, रक्त में ट्राइग्लीसराइड की मात्रा बढ़ाते हैं, हृदय की धमनियों में खून के थक्के बनाते हैं तो कुछ वसा ऐसे हैं जो ट्राइग्लीसराइड की मात्रा कम करते हैं, गर्भावस्था में मस्तिष्क व आखों का समुचित विकास करते हैं, रक्तचाप नियंत्रित करते हैं व शरीर में ऊर्जा का प्रवाह करते हैं।
मारक वसा :-
गलत प्रक्रियाऐं जो अच्छे कारक वसा को मारक वसा में बदल देती हैं।
तेलों का परिष्करण
यह आधुनिक समाज के लिए बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि खाद्य तेल निर्माताओं ने अपने स्वार्थ के लिए हमारे भोजन से आवश्यक वसा अम्ल (ओम-3 वसा अम्ल) अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल को पूरी तरह हटा दिया है। तेलों का परिष्करण या रिफाइनिंग एक आधुनिक तकनीक है जिसमें बीजों को उच्च तापमान 2000C से 5000 C के बीच कई बार गर्म किया जाता है, घातक पेट्रोलियम उत्पाद हेग्जेन का प्रयोग किया जाता है और तेल को रिफाइन, गंधहीन और रंगहीन बनाने के लिए कई घातक रसायन जैसे कास्टिक सोडा, फोसफोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्लेज आदि मिलाये जाते हैं, ताकि यदि निर्माता सस्ते, हानिकारक और खराब बीजों से भी तेल निकाले तब भी उपभोक्ता को पता नहीं चले।
तेल निर्माताओं से मेरा अनुरोध है कि वे जरा सोचें कि थोड़ा सा ज्यादा लाभ पाने के चक्कर में वे संपूर्ण मानव जाति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। सामान्य तरीकों द्वारा तेल निकालने की प्रक्रिया में 7% तेल कम निकलता है। इस सात प्रतिशत तेल को निकालने के लिए घातक पेट्रोलियम सोलवेन्ट हेग्जेन का प्रयोग किया जाता है। पूरा तेल निकलने के बाद तेल को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे हेग्जेन उड़ जाता है जिसे ठंडा कर पुनः प्रयोग में ले लिया जाता है। फिर भी हेग्जेन का कुछ अंश तो तेल में रह ही जाता है जो हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने के लिए काफी है। तेल के सौदागरों सोचो क्या इस 7% तेल पर हमें और हमारे परिवार को दूध देने वाली गाय भैंसों का हक़ नहीं है???
रिफाइन करने की प्रक्रिया में मुक्त फैटी एसिड, फोस्फोलिपिड और प्राकृतिक एन्टीऑक्सिडेन्ट्स को अलग करने के लिए घातक रसायन कास्टिक सोडा (सोडियम हाइड्रोक्साइड) मिलाया जाता है। आप सोच सकते हैं कि इसका थोड़ा सा अंश भी तेल में बचा रहेगा तो यह आपके स्वास्थ्य को कितना नुकसान करेगा। आप जानना चाहेंगे कि स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद ये पदार्थ क्यों निकाले जाते हैं? क्योंकि ये जल्दी खराब हो जाते हैं और तेल में दुर्गंध देने लगते हैं। निर्माता कोई जोखिम नहीं लेना चाहता, वह तो चाहता है कि तेल की ज्यादा से ज्यादा शैल्फ लाइफ हो और वह दुर्गंध रहित लंबे समय तक दूकानों की शैल्फों में सजा रहे और बिकने में कोई दिक्कत न आये।
बीजों में कई प्राकृतिक तत्व जैसे फोस्फेटाइड्स, लेसीथिन, क्लोरोफिल, बीटा केरोटीन आदि होते हैं जो कॉलेस्ट्रोल कम करते हैं, रक्तचाप नियंत्रित रखते हैं, कैंसररोधी होते हैं, पाचन क्रिया में सहायक होते हैं, यकृत व पित्त की थैली के ठीक से कार्य करने में सहायक होते हैं, दृष्टि ठीक रखते हैं, बुद्धिमत्ता बढ़ाते हैं और प्रदाह-रोधी होते हैं। बीजों में प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेन्ट भी होते हैं जो तेलों को खराब होने से बचाते हैं। इन्हीं क्लोरोफिल और बीटा केरोटीन को निकालने और तेल को रंगहीन बनाने के लिए तेल में ब्लीचिंग क्लेज़ मिलाई जाती हैं। तेल में से फोस्फेटाइड्स और लेसीथिन को निकालने के लिए (डीगमिंग करने के लिए) फोस्फोरिक एसिड का प्रयोग किया जाता है। गंधहीन बनाने के लिए तेल को 4600 से 5200 पर भाप के साथ डिस्टिल किया जाता है जिससे एरोमेटिक तेल, मुक्त फैटी एसिड दुर्गन्ध देने वाले तत्व अलग हो जाते हैं। इसके बाद तेल में कृत्रिम एन्टीऑक्सीडेन्ट, प्रिजर्वेटिव और स्टेबिलाइज़र मिलाये जाते हैं। क्या ये सब आपके स्वास्थ्य का बैंड बजाने के लिए काफी नहीं हैं।
इस तेल को तकनीकी भाषा में Cheap Commertial R.B.D. oil यानी सस्ता व्यावसायिक परिष्कृत, रंगहीन और गंधहीन तेल कहते हैं। महान तेल विशेषज्ञ ऊडो इरेस्मस इस तेल को प्लास्टिक तेल कहते हैं और इसे मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक ज़हर मानते हैं। ओम-3 वसा अम्ल अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल भी इस उच्च तापमान और विभिन्न रसायनों के सम्पर्क में आने से पूर्णतया नष्ट हो जाता हैं। अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल 420 सेल्सियस पर खराब हो जाते हैं। यह तेल भले हमारे स्वास्थ्य को कितना ही नुकसान पहुंचाये पर निर्माताओं को तो फायदा ही फायदा है।
हाइड्रोजनीकरण
इसके बाद तेलों शैल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए तेलों का निकल तथा हाइड्रोजन की मदद आंशिक हाइड्रोजिनेशन (जिसे हिन्दी में हाइड्रोजनीकरण या डालडाकरण कहते हैं) किया जाता है। इस प्रक्रिया में तेलों में से निकिल धातु की उपस्थिति में 4000 F पर भारी दबाव से 8 घंटे तक हाइड्रोजन प्रवाहित की जाती है। इससे तैयार होता है निष्क्रिय (मृत) तेल जो कभी खराब नहीं होता है (स्वाभाविक है खराब का क्या खराब होगा)। इसमें होते हैं केमीकल द्वारा परिवर्तित फैटी एसिड (जो शरीर के लिए बिकुल निर्रथक तेल जिसे चयापचित करना शरीर के बस की बात नहीं है), ट्रांस फैट और निकिल के अवशेष। पूर्ण हाइड्रोजनीकरण से तेल सफेद, ठोस, कड़ा और देखने में घी जैसा लगता है। मार्जरिन और शोर्टनिंग पूर्ण हाइड्रोजनीकृत होते हैं। आंशिक हाइड्रोजनीकरण पूर्ण हाइड्रोजनीकरण से भी ज्यादा खराब होते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में बीजों में विद्यमान कई महत्वपूर्ण और लाभदायक वनस्पतिक तत्व, विटामिन आदि पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
बहुराष्ट्रीय संस्थान अपने सभी खाद्य पदार्थों जैसे ब्रेड, केक, मैगी, पास्ता, नूडल्स, बिस्कुट, चिप्स, कुरकुरे, पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि में ट्रांसफैट युक्त घातक हाइड्रोजनीकृत वसा का भरपूर प्रयोग करते है। ट्रांसफैट हमारे शरीर के लिए विष है जो कई बीमारियां जैसे डायबिटीज, मोटापा, आर्थ्राइटिस, उच्च-रक्तचाप, हृदयाघात, ड्प्रेशन आदि पैदा करते हैं।
तलना (Frying, Deep Frying)
तलने के लिए बहु-असंत्रप्त तेल या Polyunsaturated Oils कभी भी काम में नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं लें, चाहे वह सस्ता टोक्सिक रिफाइंड तेल हो या ठंडी विधि द्वारा (Cold pressed) निकला हुआ, अपरिष्कृत (Unrefined) तिल या सरसों का बढ़िया तेल हो। कभी भी गर्म खाली फ्राइंग पेन या कढ़ाई में तेल डाल कर तेज आंच पर गर्म नहीं करें। पहले तेल को तेज़ आंच पर जला कर तलना या तड़का लगाना अब भूल जाइये। गृहणियों रुक जाइये, जब तक आप कढ़ाई में तेल डाल कर धुंआं निकाल कर कड़कड़ाती आवाज़ के साथ झकास तड़का लगाने की तैयारी करती हैं तब तक आपके तेल का तापमान 6000 F-7000 F या और ऊपर जा चुका होता है, तेल पूरी तरह जल चुका होता है, उसके सिस फैटी एसिड्स ट्रांस फैटी एसिड्स में बदल चुके होते हैं और उसके सारे एंटीऑक्सिडेन्ट नष्ट हो चुके होते हैं। यदि आप व्यंजन बनाने के लिए बर्तन को मध्यम आंच पर गर्म करें, फिर तेल और पानी साथ डालें, यह पानी व्यंजन के तापमान को सुरक्षित तापमान से उपर नहीं जाने देगा। इसके बाद सामान्य तरीके से व्यंजन तैयार करें। देखियेगा आपके पति और बच्चे इस व्यंजन की कितनी तारीफ करते हैं। आप कौशिश करके तो देखिये। कम आंच पर तिल, सरसों या नारियल के तेल में पानी मिला कर हल्का फुल्का फ्राई करने में विशेष हर्ज़ नहीं है।
तलना तो बिलकुल ही बंद कर दें। तलने के लिए पानी का प्रयोग करना भी बुरा नहीं। हमने एक बार पानी में पकोड़े तले थे। जी हां आहारशास्त्री आजकल पानी को तलने का सर्वोत्तम और सुरक्षित माध्यम मानते हैं। फिर भी यदि कभी मजबूरी में तलना ही पड़े तो कम आंच पर संत्रप्त वसा जैसे घी, मक्खन, नारियल का तेल या जैतून का तेल (जो एकल असंत्रप्त वसाअम्ल है) प्रयोग करें। उबालना और भाप में पकाना भोजन पकाने के अच्छे तरीके हैं। कम तापमान (1600) पर भोजन बेक करना भोजन बनाने का काफी सुरक्षित तरीका माना जाता है क्योंकि मिश्रण में मिलाया गया पानी मिश्रण के तापमान को ओवन के उच्च तापमान तक नहीं पहुंचने देता।
मिनेसोटा विश्वविद्यालय के भोजन और पोषण रसायन विभाग की प्राचार्य डॉ. सेलेनी के अनुसार तेल को 2000 C -2250 C पर आधे घंटे तक गर्म करने से उसमें एच.एन.ई. नामक बहुत ही टोक्सिक पदार्थ बनता है। यह लिनोलिक एसिड के ऑक्सीकरण से बनता है और उतकों में प्रोटीन, DNA, RNA और अन्य आवश्यक तत्वों को क्षति पहुंचाता है। यह ऐथेरास्क्लिरोसिस, स्ट्रोक, पार्किन्सन, एल्झाइमर रोग, यकृत रोग आदि का जनक माना जाता है। वह तलने के लिए बहु-असंत्रप्त तेल प्रयोग करने के विरुद्ध थीं। संतृप्त वसा को गर्म करने पर ऑक्सीकृत नहीं होते हैं और इसलिए गर्म करने पर उनमें एच.एन.ई. भी नहीं बनते हैं। इसलिए घी, मक्खन और नारियल का तेल कई दशकों से मानव स्वास्थ्य को रोगगृस्त करने की बदनामी झेलने के बाद आज कल पुनः आहार शास्त्रियों का चहेते बने हुए हैं। ये शरीर में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात भी सामान्य बनाये रखते हैं।
यह अब पूर्णतः सिद्ध हो चुका है कि किसी भी व्यंजन को तेज आंच पर बहु-असंत्रप्त तेल (PUFA) में तलना कैंसर का मुख्य कारण है और वैज्ञानिकों के पास इसके पर्याप्त सबूत हैं। जब तेल को गर्म करते हैं तो उसका तापमान जल्दी ही 6000-7000 F या और ऊपर चला जाता है। इस तापमान पर तेल के सिस फैटी एसिड्स ट्रांस फैटी एसिड्स में बदल जाते हैं और उसके सारे एंटीऑक्सिडेन्ट और पोषक तत्व (विटामिन ई और केरोटीन) नष्ट हो जाते हैं। इसी तेल को जब दूसरी बार गर्म किया जाता है तो इसके प्रोटीन जल कर कैंसर पैदा करने वाले घातक एक्रोलिन बनाते हैं, जो मानव के लिए सबसे खतरनाक विष है। इसीलिए तलने के बाद तेल को पुनः प्रयोग करने की सलाह कभी भी नहीं दी जाती है और बाजार के तले हुए व्यंजन खाने का भी मना किया जाता है। याद रहे खाना पकाने और खाने के बर्तन स्टील, कांच, चीनी मिट्टी के ही प्रयोग करें। प्लास्टिक, एल्युमीनियम, हिन्डोलियम या टेफ्लोन कोटेड बर्तन और माइक्रोवेव कभी भी प्रयोग नहीं करें। भोजन बनाने के लिए निम्न तेल अच्छे माने जाते हैं।
मक्खन या घी | नारियल का तेल | तिल का तेल |
सरसों का तेल | जैतून का तेल | ज्यादा ऑलिक वाला सूर्यमुखी तेल |
हारवर्ड हेल्थ पब्लिक स्कूल में हुई शोध से साबित हुआ है कि अमेरिका में कम से कम 30 हजार से ज्यादा लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष मारक वसा के सेवन से ही होती हैं।
चीनी कम तो भी विष
चीनी वसा नहीं है पर शरीर अतिरिक्त चीनी को संतृप्त वसा में परिवर्तित कर देता है। चीनी दांतो को खराब करती है, ईस्ट, फंगस व कैंसर कोशिकाओं को पोषण देती है, ट्राइसाइग्लीसराइड बढ़ाती है, उम्र घटाती है और रक्त में से केल्सियम व क्रोमियम को चुरा लेती है। मेपल सीरप, राइस सिरप, कॉर्न सिरप, फ्रक्टोज, लिक्विड ग्लुकोज आदि चीनी के वे पर्यायवाची शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुराश्ट्रीय कम्पनियां अपने खाद्य पदार्थों में चीनी को छुपाने के लिए धड़ल्ले से करती है।
कारक वसा या आवश्यक वसा अम्ल
वसा अम्ल
1- मानव शरीर में अधिकतर वसा अम्लों में 14 से 24 कार्बन की लड़ या श्रंखला होती है, जिसके एक सिरा कार्बोक्सिल COOH से बंधा रहता है अतः इसे कार्बोक्सिल सिरा कहते हैं और दूसरा सिरा मिथाइल CH3 से बंधा रहता है जिसे मिथाइल या ओमेगा सिरा कहते हैं। वसा अम्ल की लड़ में कार्बोक्सिलेट के बाद वाले कार्बन को अल्फा α उससे अगले को बीटा β और इस तरह गिनते हुए आखिरी कार्बन को ओमेगा ω (ग्रीक वर्णमाला का आखिरी अक्षर) कहते हैं। वसा अम्ल की लड़ में सामान्यतः कार्बन के परमाणुओं की संख्या सम होती है क्योंकि इनकी उत्पत्ति दो कार्बन वाले एंजाइम एसीटाइल कोए से होती है। वसा अम्ल का निर्माण ट्राइग्लीसराइड के निर्जलीकरण और ग्लीसरोल अलग होने से होता है। वसा अम्ल तीन प्रकार के होते हैं।
2- संत्रप्त वसाअम्ल (Saturated Fatty Acid)
Systematic name | Trivial name | Shorthand designation | Molecular wt. | Melting point (°C) |
butanoic | butyric | 4:0 | 88.1 | -7.9 |
hexanoic | caproic | 6:0 | 116.1 | -3.4 |
octanoic | caprylic | 8:0 | 144.2 | 16.7 |
nonanoic | pelargonic | 9:0 | 158.2 | 12.5 |
decanoic | capric | 10:0 | 172.3 | 31.6 |
dodecanoic | lauric | 12:0 | 200.3 | 44.2 |
tetradecanoic | myristic | 14:0 | 228.4 | 53.9 |
hexadecanoic | palmitic | 16:0 | 256.4 | 63.1 |
3- एकल असंत्रप्त वसाअम्ल (Mono Unsaturated Fatty Acid)
4- बहु असंत्रप्त वसाअम्ल (Poly Unsaturated Fatty Acids)
असंत्रप्त वसाअम्ल Unsaturated Fatty Acid
Common name | Chemical structure | C:D | n−x |
CH3(CH2)3CH=CH(CH2)7COOH | 14:1 | n−5 | |
CH3(CH2)5CH=CH(CH2)7COOH | 16:1 | n−7 | |
CH3(CH2)8CH=CH(CH2)4COOH | 16:1 | n−10 | |
CH3(CH2)7CH=CH(CH2)7COOH | 18:1 | ||
CH3(CH2)4CH=CHCH2CH=CH(CH2)7COOH | 18:2 | ||
CH3CH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CH(CH2)7COOH | 18:3 | ||
CH3(CH2)4CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CH(CH2)3COOH | 20:4 | ||
CH3CH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CH(CH2)3COOH | 20:5 | ||
CH3CH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CHCH2CH=CH(CH2)2COOH | 22:6 |
सामान्यतः कार्बन के परमाणु से 4 अन्य परमाणु जुड़ सकते हैं जैसे मीथेन गैस CH4 में कार्बन से 4 हाइड्रोजन के परमाणु जुड़े हुए हैं। संत्रप्त वसाअम्ल (Saturated Fatty Acid) में सारे कार्बन दोनों तरफ एक एक हाइड्रोजन परमाणु से एकल बंधन द्वारा बंधे रहते हैं। ये सामान्य तापमान पर ठोस रहते हैं।
एकल असंत्रप्त वसाअम्ल (Mono Unsaturated Fatty Acid) में सिर्फ दो कार्बन ऐसे होते हैं जो दो के स्थान पर एक ही हाइड्रोजन से बंधे होते हैं और संतुलन बनाये रखने के लिए ये आपस में द्विबंध द्वारा जुड़ते हैं, यानी इनमें सिर्फ एक द्विबंध होता है। ये सामान्य तापमान पर तरल रहते हैं।
यदि कार्बन की लड़ में एक से ज्यादा द्विबंध हो तो उसे बहु असंत्रप्त वसाअम्ल (Poly Unsaturated Fatty Acids) कहते हैं। लगभग सारे तेल असंतृप्त या अन-सेचुरेटेड फैट होते हैं। ये भी सामान्य तापमान पर तरल रहते हैं।
आवश्यक वसा अम्ल
हमारे लिए अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल (Omega-3 Fatty Acid) और लिनोनिक अम्ल (Omega-6 Fatty Acid) आवश्यक वसा अम्ल है, जिसका साफ साफ मतलब यह है कि यह शरीर में नहीं बन सकते हैं क्योंकि स्तनधारी जीव मिथाइल या ओमेगा सिरे से नवें कार्बन के पहले द्विबंध वाले वसाअम्ल बनाने में सक्षम नहीं होते हैं। इसलिए इन्हें भोजन द्वारा लेना अत्यंत आवश्यक है। जब 1923 में इनकी खोज हुई तो इन्हें विटामिन एफ कहा जाता था। लेकिन 1930 में बर्र और मिलर ने इन्हें फैट की श्रेणी में रखना ठीक समझा।
अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल या ALA को संक्षेप में 18:3 n-3 लिखते हैं, जो दर्शाता है कि इस वसाअम्ल में 18 कार्बन की लड़ है और तीन द्विबंध हैं और पहला द्विबंध मिथाइल सिरे से तीसरे कार्बन के बाद है। इसी तरह लिनोलिक अम्ल LA को 18:2 n-6 लिखेंगे क्योंकि इस वसाअम्ल में 18 कार्बन की लड़ है और दो द्विबंध हैं और पहला द्विबंध मिथाइल सिरे से छठे कार्बन के बाद है।
ओमेगा-3 वसाअम्ल
ओमेगा-3 या ओम-3 वसाअम्ल उन बहु असंत्रप्त वसा अम्लों को कहते हैं जिनमें पहला द्विबंध मिथाइल सिरे से तीसरे कार्बन के बाद होता है। मुख्य ओम-3 वसाअम्ल निम्न हैं।
अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल (Omega-3 Fatty Acid) यह आवश्यक है। इनके सबसे महान स्रोत अलसी, अखरोट, सूर्यमुखी, चिया, सोयाबीन, कद्दू के बीज, गांजे के बीज और और हरी सब्जियां हैं।
1- अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल Alpha Linolenic Acid
2- स्टियरिडोनिक एसिड
3- आइकोसाटेट्रानोइक एसिड (ETA)
4- Eicosapentaenoic Acid (EPA)
5- Docosahexaenoic Acid (DHA)
ओमेगा-3 वसा अम्ल Docosahexaenoic Acid (DHA) and Eicosapentaenoic Acid (EPA) के स्रोत ठंडे पानी की मछलियां जैसे सरडीन, सालमोन, कोड, हेलीबुट, हेरिंग, ट्रॉट, टुना आदि हैं। यह अवश्य याद रखें कि DHA और EPA आवश्यक वसा अम्ल नहीं हैं, यानी ये शरीर में विटामिन बी-6 और मेगनीशियम की मदद से ALA से EPA में और EPA से DHA में परिवर्तित हो जाते हैं। DHA Prostaglandin IV Series बनाता है जो शक्तिशाली थक्का-रोधी है।
अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल विटामिन बी-6, मेगनीशियम और जिंक की उपस्थिति में 6-डिसेचुरेज एंजाइम की मदद से असंत्रप्त होकर स्टियरिडोनिक एसिड बनाता है। इलोन्गेज एंजाइम की मदद से स्टियरिडोनिक एसिड लंबा होकर आइकोसाटेट्रानोइक एसिड बनता है जो विटामिन सी, नायसिन और जिंक की उपस्थिति में 5-डी-सेचुरेज एंजाइम की मदद से आइकोसापेन्टानोइक एसिड (EPA) बनाता है। आइकोसापेन्टानोइक एसिड (EPA) असंत्रप्त और लंबा होकर डोकोसेहेग्जानोइक एसिड हनता है। आइकोसापेन्टानोइक एसिड (EPA) ही तृतीय श्रंखला के प्रोस्टाग्लेन्डिन (PG-3), थ्रोम्बोक्सेन (TXA-3) और ल्युकोट्राइन (TLB-5) बनाता है, जो प्रदाह-रोधी, रक्त-वाहिका विस्तारक हैं और बिम्बाणुओं का चिपचिपापन कम करते हैं।
ओमेगा-6 वसाअम्ल
ओमेगा-6 या ओम-6 वसाअम्ल उन बहु असंत्रप्त वसा अम्लों को कहते हैं जिनमें पहला द्विबंध मिथाइल सिरे से छठे कार्बन के बाद होता है। लिनोलिक एसिड LA ओम-6 या Omega-6 श्रेणी का वसाअम्ल है जो सभी खाद्य तेलों में बहुतायत में पाया जाता है। इसके मुख्य स्रोत करड़ी (सफोला) का तेल, बिनोले का तेल, सूर्यमुखी का तेल, मूंगफली का तेल, मकई का तेल, अलसी का तेल आदि है। ये गामा लिनोलेलिक एसिड बनाते हैं। इस क्रिया में मेगनीशियम, इन्सुलिन, विटामिन सी, विटामिन बी3, विटामिन बी6, फोलिक एसिड और व्यायाम मदद करते हैं। हालांकि हाइड्रोजिनेटेड फैट, ट्रांस फैट, बढ़ा हुआ कॉलेस्ट्रोल, संतृप्त वसा, मार्जरिन, वायरस संक्रमण, कार्सिनोजन, रेडियेशन, ग्लुकागोन और जीर्णता इस परिवर्तन को बाधित करते हैं। इन सबमें हाइड्रोजिनेटेड फैट सबसे खतरनाक है। विख्यात फैट विशेषज्ञ डॉ. प्रोश के अनुसार हाइड्रोजिनेटेड फैट मानवता का सबसे बड़ा कातिल है। आजकल हर व्यावसायिक चीज़ हाइड्रोजिनेटेड फैट या तेल से तैयार की जा रही है। डॉ. प्रोश इसकी कड़ी निंदा करते हैं और मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानते हैं।
Gamma - Linolenic Acid (GLA) के स्रोत हैं मानव दूध, इवनिंग प्राइमरोज, ब्लेक करेंट और बोराज के बीज। Gamma-Linolenic Acid (GLA) Dihomo Gamma Linolenic Acid (DGLA) बनाता है। Gamma -DGLA Prostaglandin I Series बनाते हैं। ये प्रदाहरोधी (anti-inflammatory) हैं, भूख कम करते हैं, कैंसर-रोधी हैं, रक्षाप्रणाली को उत्कृष्ट बनाते हैं, बिंबाणुओं (platelets) का चिपचिपापन कम करते हैं, कॉलेस्ट्रोल कम करते हैं, रक्त-वाहिकाओं और श्वास नली का विस्तारण करते हैं, साइक्लिक AMP को बढ़ाते हैं, केल्शियम की गतिविधि को नियंत्रित करते हैं, थाइमस को उत्तेजित करते हैं, हृदय को ऊर्जा देते हैं और नाड़ीसंदेश वाहकों का स्राव करते हैं।
कुछ विटामिन और घटक Prostaglandin I के निर्माण को उत्तेजित करते हैं जैसे विटामिन सी, ई, बी3, बी6, जिंक, केलशियम, बायोटिन और मेलाटोनिन। जबकि कुछ घटक जैसे एस्पिरिन, स्टीरोइड, लीथियम, हाइड्रोजिनेटेड फैट, फूड एडिटिव, NSAIDs, ALA, EPA & DHA (by feedback mechanisms) और कैफीन Prostaglandin I के निर्माण को बाधित करते हैं ।
ट्रांसफैट, विटामिन बी6, जिंक, हाइड्रोजिनेटेड फैट और ओमेगा-3 फैट की कमी Dihomo Gamma Linolenic Acid (DGLA) को Arachidonic Acid (AA) में परिवर्तित करने के लिए उकसाते हैं। जैतून का तेल, Eicosapentaenoic Acid (EPA), A-Linolenic Acid (ALA), and Vitamin A इस प्रक्रिया में अवरोध पैदा करते हैं। Dihomo Gamma Linolenic Acid (DGLA) से ऊर्जा भी पैदा होती है। Arachidonic Acid (AA) के प्रमुख स्रोत लाल मांस, दूध उत्पाद और शेलफिश हैं। Arachidonic Acid (AA)series II के Prostaglandin प्रोस्टासाइक्लिन (लाभदायक हैं), Thromboxane A2 (नुकसानदायक), and Leukotrienes(नुकसानदायक) बनाते हैं। लाभदायक प्रोस्टासाइक्लिन रक्त-वाहिकाओं का विस्तारण करते हैं, बिंबाणुओं (platelet) का चिपचिपापन कम करते हैं कैंसर-रोधी हैं और आमाशय की अम्लता कम करते हैं। Thromboxane A2 रक्त-वाहिकाओं का संकुचन करते हैं, बिंबाणुओं (platelet) का चिपचिपापन बढ़ाते हैं, साइक्लिक AMP को बढ़ाते हैं और कैंसर को बढ़ाते हैं। Leukotrienes बढ़ाते हैं, रक्त-वाहिकाओं का संकुचन करते हैं श्वास नली का संकुचन करते हैं और श्वास नली में श्लेष्मा का स्राव बढ़ाते हैं। हैं। Arachidonic Acid मस्तिष्क और आंखों के विकास के लिए भी आवश्यक है।
आवश्यक वसा अम्लों की कमी के लक्षण।
- रूखी त्वचा, बालों का झड़ना, दाद, कुरूप नाखून।
- ऑखों में रूखापन, फैटी लिवर, गुर्दों का ठीक से काम न करना।
- कमजोर दृष्टि, अवसाद, बुद्धि कमजोर होना, सीखने की क्षमता कमजोर होना व मूड खराब रहना।
- शरीर की ग्रन्थियों का पर्याप्त हॉरमोन व स्त्राव न बनाना।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना व घाव देर से भरना।
- शुक्राणु कम होना, बार-बार बच्चा गिरना।
- जोड़ों में गठिया (Arthritis) की शिकायत होना।
- रक्त में कोलेस्ट्रोल का बढ़ना व हृदय की गति बढ़ना।
- अपच होना, फूड एलर्जी होना।
उपसंहारः-
इस लेख के महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं।
- आज से हमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा बनाये गये व बाजार में उपलब्ध सभी खाद्य पदार्थों, जो मारक वसा से भरपूर है, का सेवन बन्द कर देना है।
- गृहणियों को खाना बनाने के लिए रिफाइन्ड तेल काम में नहीं लेना हैं। बल्कि कच्ची घाणी का निकला नारियल, तिल या सरसों का तेल काम में लेना है। जहाँ तक हो सकें खाना उबालकर या प्रेशर कुकर में या भाप में पकाना है तलने की प्रक्रिया तो भूल ही जायें। खाना बनाने के बाद उसमें अच्छे कारक वसा का प्रयोग करें।
- भोजन में आवश्यक वसा ओमेगा-3, जो अलसी में प्रचुर मात्रा में होती है। का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना है। ताकि आप मोटापा, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, मधुमेह, कैंसर, गठिया आदि बीमारियों से बचे रहें। ओमेगा-3 के लिये आप प्रतिदिन 30 से 60 ग्राम अलसी का या कोल्डप्रेस्ड अलसी के तेल का प्रयोग करें।
बहनों!!! क्या ऐसा भोजन, जो मारक वसा से भरपूर हो, स्वास्थ्य खराब करे और शरीर को विभिन्न बीमारियों से ग्रसित करे, आप अपने प्राणों से प्यारे बच्चों, पति व परिनारजनों को, जिनकी लम्बी उम्र के लिए आप दुआ करते थकती नहीं हो, बनाकर खिलाना पसंद करोगी???