ऊर्जा-विज्ञान (Aura Healing)
कैंसर सहित सभी रोग शरीर में ऊर्जा के उन्मुक्त प्रवाह में आई रुकावट के कारण होते हैं।
शरीर क्या है? मनुष्य क्या है? प्राचीन काल से भौतिकशास्त्री यह कहते आये हैं कि बुनियादी स्तर से देखें तो हमारा यह शरीर शुद्ध रूप से सिर्फ एक ऊर्जा है। भौकिशास्त्री बारबरा ब्रेनान ने शरीर के बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इसे प्रभा-मण्डल, आभा-मण्डल या ओरा कहते हैं। इन्होंने वर्षों तक शोध करके इस ऊर्जा-चिकित्सा (Aura Healing) से दैहिक और भावनात्मक विकारों के उपचार की कला को विकसित किया है।
ऊर्जा-चिकित्सा - जीवन शक्ति ऊर्जा
ऊर्जा-चिकित्सा - जीवन शक्ति ऊर्जा
भारत में इस ऊर्जा को ' प्राण ' तो चीन में इसे 'ची' कहते हैं। भले इसकी सत्यता को वैज्ञानिक सिद्ध नहीं कर सके हों लेकिन चीन में एक ऐसा चिकित्सालय है जहां ऊर्जा-चिकित्सा विधाओं से हजारों रोगियों का उपचार होता है। यहां कई चमत्कार होते हैं। यहां पर उपचार इतना प्रभावशाली है कि एक रोगी के कैंसर की गांठ देखते ही देखते कुछ ही मिनटों में गायब हो गई और यह नजारा सोनोग्राफी मशीन के पटल पर स्पष्ट देखा व अंकित किया गया था। ऐसा लगता है कि भविष्य में रोगों के उपचार में ऊर्जा-चिकित्सा विधाओं जैसे एक्यूपंचर, एक्यूप्रेशर, ई.एफ.टी., प्रकाश, ध्वनि, रंग या रैकी का महत्व बहुत अधिक होगा। भौतिक-विज्ञान में कोई कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं, जिसे हम देख और नाप सकते हैं। लेकिन ऊर्जा चिकित्सक इस सर्वव्यापी जीवन शक्ति को ऊर्जा की संज्ञा देते हैं।
बारबरा ब्रेनान ने बड़े विवेकपूर्ण ढंग से आध्यात्मिकता और विज्ञान के समन्वय की कौशिश की है। ये अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं और नासा में शोध-वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुकी हैं। ये भौतिकशास्त्री और मनोचिकित्सक हैं और 20 वर्षों से प्रभा-मण्डल और ऊर्जा-चिकित्सा पर अध्ययन और शोध कर रही हैं। इन्होंने “हैन्ड्स ऑफ लाइट: ए गाइड टू हीलिंग थ्रूद ह्यूमन ऐनर्जी फील्ड” लिखी है। इन्होंने प्राचीन परम्परा और आधुनिक विज्ञान के आधार पर ओरा या बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र की अदभुत् व्याख्या की है तथा मनुष्य के सुख व स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों का गहन अध्ययन किया है। इसी ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करके इन्होंने दैहिक और भावनात्मक विकारों के उपचार में महारथ हासिल की है।
ये कहती हैं कि हमारा शरीर एक बड़े ऊर्जा पिण्ड या ओरा में स्थित रहता है, इसी ऊर्जा पिण्ड द्वारा हम स्वास्थ्य, रोग आदि समेत जीवन की यथार्थता का अनुभव करते हैं। इसी ऊर्जा से हमें स्वचिकित्सा या निरामय रहने का सामर्थ्य मिलता है। समस्त रोगों की उत्पत्ति इसी ऊर्जा पिण्ड से होती है। प्राचीन काल से आधायात्मिक चिकित्साविद् और आयुर्वेदाचार्य इस के बारे चर्चा करते आये हैं, परन्तु इसका वैज्ञानिक दृष्टि से सत्यापन हाल ही के वर्षों में हुआ है।
इस आभा-मण्डल में सात चक्र समेत कई परतें होती हैं। इसकी किसी भी परत या चक्र में कोई गड़बड़, असंतुलन या अवरोध आने से वह भौतिक देह में प्रतिबिम्बित और एकत्रित हो जाती है, जिससे भावनात्मक या दैहिक रोग हो जाता है। ये कहती हैं कि हर व्यक्ति चाहे तो अपने देखने और सुनने की क्षमता और सीमा को बढ़ा सकता है। इन्होंने ऐसी तकनीक और व्यायाम विकसिक किये हैं, जिससे व्यक्ति अपना आभामण्डल देख सकता है, अर्थात वह अपने ग्रहणबोध का विस्तार करके आध्यात्मिक चिकित्सा को समझ सकता है। ।
मनुष्य का ऊर्जाक्षेत्र
मनुष्य का ऊर्जाक्षेत्र हमेशा ब्रह्माण्ड से ऊर्जा ग्रहण करता है। हमारी देह, मन और भावना का अस्तित्व इसी ऊर्जा के कारण है। प्रभा-मण्डल हमारा आवरण है जो हमारे आंतरिक ऊर्जा पिण्ड और बाहरी देह को लपेट कर रखता है। हमारे चक्र इस ऊर्जा आवरण के छिद्र हैं जो शरीर में बाहर से अन्दर और अन्दर से बाहर इस अनंत ऊर्जा के प्रवाह और परिवहन को संतुलित रखते हैं।
यही ऊर्जाक्षेत्र आरोग्य और रोग के कारक हैं। ब्रेनान कहती हैं, “यह जरूरी है कि हम रोग को गहराई से समझें। हमें विश्लेषण करें कि इस रोग का क्या अभिप्राय है? यह क्या कहना चाह रहा है? रोग हमारे शरीर की तरफ से एक सन्देश हो सकता है, 'देखो शरीर में कुछ गलत चल रहा है। तुम अपने ही अन्तरमन को सुन नहीं पा रहे हो, कुछ बहुत ही जरूरी बात को अनदेखा कर रहे हो।' कई बार आरोग्यप्राप्ति के लिए चिकित्सक की औषधि लेने से ज्यादा इसी बात को समझने और बदलने की जरूरत होती है। इसके बिना कई बार कोई दूसरा विकार हो जाता है, जिसका उदगम् और संकेत भी उसी बात की तरफ होता है।
मनुष्य का ओरा या ऊर्जाक्षेत्र – आन्तरिक ऊर्जा पिण्ड का आवरण
· मनुष्य एक स्पन्दन ऊर्जा है जो प्रकाश और ध्वनि ऊर्जा से बनी है।
· मनुष्य की बाहरी देह चारो तरफ ऊर्जाक्षेत्र या ओरा से घिरी रहती है।
· यह अन्दर और बाहर सभी तरफ फैली है।
· यह मनुष्य के हर चीज से सरोकार रखती है।
· यह उसके हर विचार, शब्द, अहसास, पसन्द और कर्म से समन्वय करती है।
· यह विद्युत-चुम्बकीय है और मनुष्य के दैहिक पिण्ड में अनुप्रवेश करती है।
· ऊर्जाक्षेत्र मनुष्य की भौतिक देह का प्रतिबिम्ब और आकृति है।
ओरा या ऊर्जाक्षेत्र की प्रकृति
· ब्रह्माण्ड का प्रवाह ऊर्जा से वस्तु की तरफ होता है अर्थात ऊर्जा मनुष्य की आन्तरिक सूक्ष्म देह से निकल कर भौतिक देह का सृजन करती है।
· मनुष्य का समस्त शरीर एक जीवन-ऊर्जा से बनता है जिसे प्राण (भारत), ची (चीन), की (जापान) और मन (हवाई) कहते हैं।
· मनुष्य के इस ऊर्जाक्षेत्र की किरलिन कैमरा से तस्वीरें ली जा सकती हैं।
· इसी ऊर्जाक्षेत्र के कारण मनुष्य जीवित महसूस करता है तथा अन्य मनुष्यों, जीवों, पेड़-पौधों और जड़-चेतन वस्तुओं से
संपर्क स्थापित करता है।
आभा-मण्डल की सात परतें या शरीर (Seven Layers or Bodies of Aura)
आकाश शरीर (Etheric Body) –
यह आभा-मण्डल की पहली शरीर या परत है। यह प्रकाश की छोटी-छोटी झिलमिलाती रेखाओं से बना होता है। इसमें स्थूल शरीर के सारे अंगों और संरचनाओं का हूबहू प्रतिबिंब बना होता है अर्थात यह स्थूल शरीर की कार्बन कॉपी की तरह है। इसमें प्रकाश की रेखाएं निरंतर गतिशील रहती हैं। अतीन्द्रियदर्शी आंखों से यह हल्का नीला दिखाई देता है। यह पूरे स्थूल शरीर में पारगमन करता रहता है। यह स्थूल शरीर से 1-2 इंच बाहर तक फैला होता है और 15-20 चक्र प्रति मिनट की आवृत्ति पर स्पन्दन करता रहता है। इसका रंग स्लेटी से नीले के बीच होता है। इससे सम्बंधित सात चक्र भी इसी रंग के होते हैं। कंधों के आसपास का हिस्सा आसानी से दिखाई दे जाता है।
भावना शरीर (Spiritual Body) –
यह दूसरा शरीर है जो भावनाओं से सम्बंधित है। इसका आकार स्थूल शरीर जैसा ही है लेकिन यह उसका प्रतिबिम्ब नहीं है। इसकी निश्चित संरचना नहीं है, इसमें कोई अंग दिखाई नहीं देता है, बल्कि यह तरल है और निरन्तर गतिशील रहता है। यह स्थूल और आकाश शरीर में फैला रहता है और स्थूल शरीर से 1-3 इंच बाहर तक फैला होता है। इसका रंग गहरे मटमैले से निर्मल और स्पष्ट के बीच होता है। इसमें इंद्रधनुश के सारे रंग देखे जा सकते हैं। इसका पहला चक्र लाल, दूसरा नारंगी, तीसरा पीला, चौथा हरा, पांचवां नीला, छठा गहरा नीला और सातवां सफेद दिखता है। प्यार, खुशी या क्रोध का अहसास इसकी छवि निर्मल और भ्रम तथा अवसाद का अहसास यह गहरा मटमैला दिखाई पड़ता है। पूरे भावना शरीर में रंग-बिरंगे धब्बे दिखाई देते हैं, जो स्थूल शरीर के बाहर तक फैले होते हैं।
मानस शरीर (Mental Body) –
यह बौद्धिक और मानसिक गतिविधि से सम्बंधित है। यह भावना शरीर से अधिक तेजी से स्पंदन करता है और स्थूल शरीर से 3-8 इंच बाहर तक फैला रहता है। यह उजले पीले रंग का होता है लेकिन जब व्यक्ति बहुत सोच-विचार करता है तब यह बड़ा और ज्यादा उजला और पीला दिखाई देता है। यह शरीर संरचना प्रधान है इसमें विचार रंग बिरंगे भावनात्मक रंगों में उजले धब्बों की तरह दिखाई देते हैं।
सूक्ष्म शरीर (Astral Body) –
यह चौथा शरीर है जो प्रेम से सम्बंधित है। इसका रंग भी भावना शरीर जैसा ही होता है लेकिन गुलाबी रंग का प्रभाव ज्यादा होता है जो प्रेम का रंग है। इसके चक्र भी भावना शरीर के जैसे ही रंग के होते हैं, लेकिन इनमें भी गुलाबी रंग अधिक होता है। यह स्थूल शरीर से एक फुट बाहर तक फैला होता है। जब आप इस स्थिति तक पहुंचते हो तो आप ब्रह्मलोक के करीब होते हो, जहां आपको अन्य सूक्ष्म शरीर घूमते हुए दिखाई देते हैं। सामान्यतः ऐसा सोते या ध्यान करते समय होता है, लेकिन जब आप जागते हो या ध्यान से बाहर आते हो तो आपको कुछ याद नहीं रहता।
आकाश प्रतिकृति शरीर (Etheric Template Body)–
यह पांचवा शरीर है, इसमें स्थूल शरीर के सारे अंगों की हूबहू प्रतिकृति सांचे या ब्लू प्रिंट के रूप में होती है। तात्पर्य यह है कि यह आपके स्थूल शरीर का नेगेटिव है और स्थूल शरीर में कोई विकार या गड़बड़ आ जाने पर पुनः स्वस्थ स्थूल शरीर बनाया जा सकता है। इस स्थिति में ध्वनि द्वारा उपचार बहुत असरदार होता है। यह स्थूल शरीर से 1 से 2 फुट बाहर तक फैला होता है। यह नीले रंग का होता है जिसमें खाली रेखाएं दिखाई देती हैं। ये खाली रेखाएं या स्थान शरीर के सारे अंग, चक्र और अन्य संरचनाओं को प्रदर्शित करती हैं। इसके साथ अन्य व्यक्तियों के सूक्ष्म शरीर भी दिखाई दे सकते हैं।
ब्रह्म शरीर (Celestial Body) -
यह छठा शरीर है जो ब्रह्म लोक के भावनात्मक स्तर को दर्शाता है। यह स्थूल शरीर से 2 से 2.5 फुट बाहर तक फैला होता है। हम यहां सिर्फ ध्यान द्वारा ही पहुंच सकते हैं। यह समाधि की स्थिति है, जहां दिव्य प्रकाश और परमानन्द फैला है। यहां आत्मा और परमात्मा मिल जाते हैं तथा आप ईश्वर से एकाकार हो जाते हो। पूरे ब्रह्म लोक से जुड़ जाते हो। यहां आप किसी अन्य सूक्ष्म शरीर से सम्पर्क भी कर सकते हो, उसे आनन्द और आरोग्य दे सकते हो। इस शरीर में रजत और स्वर्ण के झिलमिलाते जगमगाते रंग दिखाई देते हैं, मानो आप तेज प्रकाश के स्रोत से निकलते हुए प्रकाश को देख रहे हो।
कारक शरीर (Casual Body - Ketheric Template) -
यह सातवां शरीर है जो ब्रह्म लोक के मानसिक स्तर को दर्शाता है। यह स्थूल शरीर से 2 से 3 फुट बाहर तक फैला होता है। यहां आकर मनुष्य और ईश्वर एक हो जाता है। यह शरीर संरचना प्रधान है और सोने के तारों और चांदी की रोशनी से बनता है। यह अंडाकार होता है जिसमें सारे अन्य शरीर और चक्र समाये रहते हैं। यह झिलमिलाते सोने के अंडे जैसा दिखता है। इसका खोल बाहरी आक्रमण से शरीर की रक्षा करता है। इसमें मुख्य प्राण ऊर्जा होती है जो मेरुदण्ड में ऊपर नीचे बहती रहती है। यह समस्त चक्रों द्वारा शरीर का पोषण करता है। आपके पिछले जन्म के कर्म इसके सिर में रंगीन पट्टियों रूप में दिखाई देते हैं। इसमें कुछ पट्टियां यह भी दर्शाती हैं कि आपने क्या योजना लेकर इस लोक में जन्म लिया है। इसमें आपके पिछले जन्म के कर्मों का लेखा-जोखा भी अंकित रहता है। इसे कारक शरीर इसलिए कहते हैं कि यही आपका वास्तविक शरीर है। यही शरीर जन्म-जन्मान्तर तक आपके साथ चलता है, बाकी सारे शरीर नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ हमारे कर्म और संस्कार भी साथ चलते हैं इसीलिए हमारा अंतर्ज्ञान, अंतर्दृष्टि और स्वज्ञान पिछले जन्म पर आधारित होता है। बुरे कर्म और पाप भी साथ चलते हैं। जैसे-जैसे हम आध्यात्मिकता की तरफ बढ़ते हैं, आत्मज्ञान बढ़ता है और महसूस होता है कि हम ईश्वर के ही रूप हैं, तभी हम प्रेम, दया, ज्ञान और सेवा भावना से इस लोक में जीवन व्यतीत करते हैं, जो (लोक) हमारा नहीं है।
ऊर्जा उपचार में रोगी की भूमिका क्या है?
सबसे पहले तो रोगी में ठीक होने की जबर्दस्त इच्छा होनी होनी चाहिये। यदि आप वास्तव में रोगमुक्त होना चाहते हो तो चिकित्सक के लिए आपका उपचार करना सरल हो जाता है। कुछ लोगों को रोग होता ही इसीलिए है कि वे अपना जीवन त्यागने के लिए ईश्वर से नियमित विनती करते रहते हैं कि वे जीवन के झमेलों से बहुत आहत हो चुके होते हैं और जीना दुश्वार हो चला है। यदि आप ठीक होना ही नहीं चाहते तो ऊर्जा-उपचार में व्यर्थ पैसा और समय मत गंवाइये, शरीर व मन इस उपचार को ग्रहण नहीं करेगा। जब आप ठीक होना चाहते हो, जब आप अपने रोग के प्रत्यक्ष होना चाहते हो और ऊर्जा ग्रहण करने के लिए अपने शरीर के पट खोल देते हो, तभी चिकित्सक आपका रोग दूर कर पाता है। आपको अपने उपचार का साक्षी और सहयोगी बनना पड़ता है। इसका तात्पर्य यह है कि आप चिकित्सक की सलाह को आंख बन्द करके मानने की जगह अपने विवेक से हर बात का मूल्यांकन करते हैं और अपने उपचार में आप उसकी हर संभव मदद भी करते हैं। तभी आपका शरीर, मन और भावना उपचार को सहज ग्रहण करता है।
यदि आपने अपने रोग और उसके जनन में अपनी भागीदारी को स्वीकार कर लिया है तो समझ लीजिये कि रोग निवारण की दिशा में आप अपना पहला कदम बढ़ा चुकें हैं। रोग के उपचार के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप यह मान जायें कि इसके लिए आप कितने जिम्मेदार थे। जब आप समझ जाते हैं कि आपकी बीमारी आपको क्या सन्देश देना चाहती है तो उससे मुक्त होना आसान हो जाता है। जब तक आप यह समझते रहते हैं कि यह रोग आपको ऐसे ही अकस्मात हो गया है तब तक इलाज मुश्किल होता है।
यह ऊर्जा चक्र-तंत्र कैसे कार्य करता है?
मनुष्य का आभा-मण्डल उसके स्थूल शरीर में फैला और समाया रहता है तथा शरीर, मन और आत्मा को एकाकार करके रखता है। यह हमेशा गतिशील रहता है आभा-मण्डल के छिद्रों (चक्र) द्वारा स्पन्दन ऊर्जा का आवागमन निरन्तर चलता रहता है। उसके कर्म, विचार तथा भावना और साथ में वातावरण तथा जीवनशैली (व्यायाम भोजन, निद्रा आदि) के आधार पर शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि जीवन प्रेम और आनन्द से परिपूर्ण है तो अपार ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा जीवन निरामय हो जाता है। यह प्रेम की शक्ति है जो चक्रों को खोल देती है और ऊर्जा का बहाव उन्मुक्त होता है। तथा जब वह भय, अहंकार, नकारात्मकता या स्वार्थ के वश में हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव थम जाता है। तब ऊर्जा प्रवाह में असन्तुलन और रुकावट के कारण शरीर तथा मन में रोग जन्म लेता है। इस रुकावट से शरीर के कुछ हिस्सों को ऊर्जा प्रवाह रुक जाता है। लेकिन क्योंकि शरीर में कई चक्र होते हैं इसलिए रुकावट होने के बाद भी तन और मन को कुछ ऊर्जा तो मिलती रहती है। लेकिन रुकावट की जगह शरीर में गड़बड़ हो जाती है। ऊर्जा के प्रवाह में लम्बे समय तक रुकावट होने से छोटा या बड़ा रोग जैसे कैंसर तक हो जाता है। इस स्थिति में उसे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने और अच्छे विशेषज्ञ से ऊर्जा चिकित्सा लेना चाहिये।
1 comment:
Is vishay me aur jankari ke liye aap ke article ka entzar karoonga
DHANYWAD
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