ओमेगा-6 वसा अम्ल की वेदना सुन कर मैंने उनका शपथ पत्र लिखा
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हम देख रहें हैं कि कुछ बीमारियां जैसे हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह, डिप्रेशन, आर्थाइटिस और कैंसर आदि का प्रकोप साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। अब तो इन बीमारियों ने महामारी का रुप ले लिया है। इसके कारण जानने के लिए वैज्ञानिकों ने अनुसंधान किये और निम्न तथ्य सामने आये।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय से रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग बहुत बढ़ा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के पहले बाजार में मिलने वाले खाद्य पदार्थ मक्खन, घी या नारियल के तेल द्वारा बनाये जाते थे। लेकिन बाद में सस्ते तेलीय बीजों से बने घातक ट्रांसफैट युक्त रिफाइण्ड तेल और मार्जरीन, जो तेलों को हाइड्रोजनीकरण करके बनाये जाते हैं, का प्रयोग बढ़ता गया और सभी पैकेट बन्द खाद्य पदार्थ बनाने वाले संस्थान मक्खन या नारियल के तेल के स्थान पर मार्जरीन, जिसे भारत में वनस्पति घी कहा जाता है, का प्रयोग धड़ल्ले से करने लगे हैं
हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है और ओमगा-6 वसा अम्ल की मात्रा काफी ज्यादा हो गई है। जहाँ पहले दोनों वसा अम्लों का अनुपात 1:2 या 1:4 हुआ करता था वह अब 1:40 या 1:80 हो गया है। ऐसा होने से शरीर में इन्फ्लेमेशन और बीमारियां पैदा करने वाले प्रोस्टाग्लेन्डिन-2, ल्यूकोट्राइन्स और थ्रोम्बोक्सेन का निर्माण ज्यादा हो रहा है। और ऐसी धारणा बन गई है कि ओमेगा-6 ही बीमारियों का मुख्य कारण है। इस तरह वैज्ञानिक, चिकित्सक और मीडिया ओमेगा-6 वसा अम्ल को बेड बॉय या खलनायक कहने लगे हैं। जबकि यह यथार्थ नहीं है। सामान्यतः जिस तरह ओमेगा-3 शरीर के लिए अच्छे और शोथहर प्रोस्टाग्लेन्डिन-3 बनाते हैं उसी तरह ओमेगा-6 भी अच्छे और शोथहर प्रोस्टाग्लेन्डिन-1 बनाते हैं। परन्तु यदि शरीर में ओमेगा-3 की अल्पता है और ओमेगा-6 ज्यादा है तो डेल्टा-5-डीसेचुरेज एंजाइम को ई.पी.ए. के निर्माण के लिए पर्याप्त आइकोसा टेट्रानोइक एसिड उपलब्ध नहीं होता है और डी.जी.एल.ए. बहुतायत में विद्यमान होने से डेल्टा-5-डीसेचुरेज एंजाइमडी.जी.एल.ए. को एरेकिडोनिक एसिड ए.ए.में परिवर्तित कर देता है। कोक्स एंजाइम इस ए.ए. से शरीर को क्षति पहुंचाने वाले शोथ कारक प्रोस्टाग्लेंडिन-2 का निर्माण करता है। अतः शरीर को क्षतिग्रस्थ करने वाले प्रोस्टाग्लेंडिन-2 के निर्माण के लिए जिम्मेदार मानव का विकृत आहार विहार है न कि ओमेगा-6 वसा अम्ल।
ओमेगा-6 वसा अम्ल ने सारी व्यथा मुझे सुनाई और अपनी पीड़ा से मुझे अवगत कराया और मानव समाज को विधिवत एक शपथ पत्र लिखने की इच्छा जाहिर की। जिसे मैंने उनके लिए लिपिबद्ध किया है। आप भी इस शपथ पत्र का ध्यान से अवलोकन करें और मानव हितार्थ ओमेगा-6 वसा अम्ल द्वारा दिये गये सुझावों पर अमल करें ताकि आप और आपका परिवार आजीवन स्वस्थ रहे।
2 comments:
बहुत ही सार्थक पोस्ट आभार.............
8ehtreen jaankari...
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