अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन
अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल (HDL-Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल (LDL-Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती। हृदय की गति को नियंत्रित रखती है और वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्युदर को बहुत कम करती है।
अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज) और अघुलनशील दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं अतः अलसी कब्ज़ी, मस्से, बवासीर, भगंदर, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्जी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्ज़ी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियां बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियां तो घुलने लगती हैं।
यदि आप त्वचा, नाखून और बालों की सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चाहती हैं तो उत्तर है “ओमेगा-3 या ॐ-3 वसा अम्ल ”। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मुक्त कणों या फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। स्वस्थ त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण दे कर बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती हैं।
“पहला सुख निरोगी काया, सदियों रहे यौवन की माया।”
आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से ऐसे आहार-विहार,
आयुवर्धक औषधियों, वनस्पतियों आदि की खोज कर
ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा
बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। आपको याद
होगा प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि योग, तप, दैविक आहार व औषधियों के सेवन से सैकड़ों वर्ष जीवित रहते थे। इसीलिए ऊपर
मैंने पुरानी कहावत को नया रुप दिया है। ऐसा ही एक दैविक आयुवर्धक भोजन है “अलसी” जिसकी आज हम चर्चा करेंगें।
पिछले कुछ समय से अलसी के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इन्टरनेट, टी.वी. आदि पर बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा
है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि
बेचे जा रहे हैं। भारत के विख्यात कार्डियक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहान अपने रोगियों को नियमित अलसी
खाने की सलाह देते हैं ताकि वह उच्च रक्तचाप व हृदय रोग से मुक्त रहे। विश्व
स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता
है। आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है। मैंने यह भी पढ़ा है कि सचिन के
बल्ले को अलसी का तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है तभी वो चौके-छक्के लगाता है और
मास्टर ब्लास्टर कहलाता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी
के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाये
और निरोगी व दीर्घायु रहे इसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे।
यह सब पढ़कर मेरी जिज्ञासा बढ़ती रही और मैंने अलसी से सम्बन्धित
जितने भी लेख उपलब्ध हो सके पढ़े व अलसी पर हुई शोध के बारे में भी विस्तार से पढ़ा।
मैं अत्यंत प्रभावित हुआ कि ये अलसी जिसका हम नाम भी भूल गये थे, हमारे स्वास्थ्य
के लिये इतनी ज्यादा लाभप्रद है, जीने की राह है, लाइफ लाइन है। फिर क्या था, मैंने स्वयं अलसी का
सेवन शुरु किया और अपने रोगियों को भी अलसी खाने के लिए प्रेरित करता रहा। कुछ
महीने बाद मेरी जिन्दगी में आश्चर्यजनक बदलाव आना शुरु हुआ। मैं अपार शक्ति व
उत्साह का संचार अनुभव करने लगा, शरीर चुस्ती फुर्ती तथा
गज़ब के आत्मविश्वास से भर गया। तनाव, आलस्य व क्रोध सब
गायब हो चुके थे। मेरा उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ ठीक हो चुके
थे। अब मैं मानसिक व शारीरिक रुप से उतना ही शक्तिशाली महसूस कर रहा था जैसाकि 30
वर्ष पहले था।
अलसी पोषक तत्वों का खज़ानाः-
आइये,
हम देखें कि इस चमत्कारी, आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी में ऐसी क्या खास बात है। अलसी का बोटेनिकल
नाम लिनम यूज़ीटेटीसिमम् यानी अति उपयोगी बीज है। इसे अंग्रेजी में लिनसीड या
फ्लेक्ससीड, गुजराती में अड़सी, बिहार
में तिसी, बंगाली में
तिशी, मराठी
में जवास, कन्नड़ में अगसी, तेलगू में
अविसी जिंजालू, मलयालम में चेरूचना विदु, तमिल में अली विराई और उड़िया में पेसी कहते हैं। अलसी के पौधे में नीले
फूल आते हैं। अलसी का बीज तिल जैसा छोटा, भूरे या सुनहरे रंग
का व सतह चिकनी होती है। प्राचीनकाल से अलसी का प्रयोग भोजन, कपड़ा, वार्निश व रंगरोगन बनाने के लिये होता आया है।
हमारी दादी मां जब हमें फोड़े-फुंसी हो जाते थे तो अलसी की पुलटिस बनाकर बांध देती
थी। अलसी में मुख्य पौष्टिक तत्व ओमेगा-3 फेटी एसिड एल्फा-लिनोलेनिक एसिड, लिगनेन, प्रोटीन व फाइबर होते हैं। अलसी गर्भावस्था
से वृद्धावस्था तक फायदेमंद है। महात्मा
गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं।
उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक
में लिखा है, “जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।”
आवश्यक वसा अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा-6 की कहानीः-
अलसी
में लगभग 18-20
प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड ALA होते हैं। अलसी ओमेगा-3 फैटी एसिड का पृथ्वी पर सबसे
बड़ा स्रोत है। हमारे स्वास्थ्य पर अलसी के चमत्कारी प्रभावों को भली भांति समझने
के लिए हमें ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फेटी
एसिड को विस्तार से समझना होगा। ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही हमारे शरीर के लिये आवश्यक हैं यानी ये शरीर में नहीं बन सकते,
हमें इन्हें भोजन द्वारा ही ग्रहण करना होता है। ओमेगा-3 अलसी के अलावा मछली, अखरोट, चिया
आदि में भी मिलते हैं। मछली में DHA और EPA नामक ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, ये अलसी में मौजूद ALA से शरीर में बन जाते हैं।
ओमेगा-6 मूंगफली, सोयाबीन, सेफ्लावर, मकई आदि
तेलों में प्रचुर मात्रा में होता है। ओमेगा-3 हमारे शरीर के
विभिन्न अंगों विशेष तौर पर मस्तिष्क,
स्नायुतंत्र व ऑखों के
विकास व उनके सुचारु रुप से संचालन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। हमारी
कोशिकाओं की भित्तियां ओमेगा-3 युक्त फोस्फोलिपिड से बनती
हैं। जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां
मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6
फैट या ट्रांस फैट से बनती है। और यहीं से हमारे शरीर में उच्च
रक्तचाप, मधुमेह प्रकार-2, आर्थ्राइटिस,
मोटापा, कैंसर, आदि
बीमारियों की शुरुआत हो जाती है।
अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) के कार्य
- यह
उत्कृष्ट प्रति-आक्सीकरक है और शरीर की रक्षा प्रणाली सुदृढ़
रखता है।
- प्रदाह या इन्फ्लेमेशन
को शांत करता है।
- ऑखों, मस्तिष्क ओर
नाड़ी-तन्त्र का विकास व इनकी हर कार्य प्रणाली में सहायक, अवसाद और व अन्य मानसिक रोगों के उपचार में सहायक, स्मरण शक्ति और शैक्षणिक क्षमता
को बढ़ाये।
- आपराधिक
गतिविधि से दूर रखे।
- ई.पी.ए. और
डी.एच.ए. का निर्माण।
- रक्त चाप व
रक्त शर्करा-नियन्त्रण, कॉलेस्ट्रोल-नियोजन, जोड़ों को स्वस्थ रखे।
- भार कम
करता है, क्योंकि यह बुनियादी चयापचय दर (BMR) बढ़ाता है,
वसा कम करता है, खाने की ललक कम करता
है।
- यकृत, वृक्क और अन्य
सभी ग्रंथियों की कार्य-क्षमता बढ़ाये।
- शुक्राणुओं
के निर्माण में सहायता करे।
शरीर
में ओमेगा-3
की कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाले ओमेगा-6 के
ज्यादा हो जाने से प्रोस्टाग्लेन्डिन-ई 2 बनते हैं जो
लिम्फोसाइट्स व माक्रोफाज को अपने पास एकत्रित करते हैं व फिर ये साइटोकाइन व
कोक्स एंजाइम का निर्माण करते हैं। और शरीर में इनफ्लेमेशन फैलाते हैं। मैं आपको
सरल तरीके से समझाता हूं। जिस प्रकार एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए नायक और खलनायक दोनों
ही आवश्यक होते हैं। वैसे ही हमारे शरीर के ठीक प्रकार से संचालन के लिये ओमेगा-3
व ओमेगा-6 दोनों ही बराबर यानी 1:1 अनुपात में चाहिये। ओमेगा-3 नायक हैं तो ओमेगा-6
खलनायक हैं। ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ने से हमारे
शरीर में इन्फ्लेमेशन फैलते है तो ओमेगा-3 इन्फ्लेमेशन दूर
करते हैं, मरहम लगाते हैं। ओमेगा-6 हीटर
है तो ओमेगा-3 सावन की ठंडी हवा है। ओमेगा-6 हमें तनाव, सरदर्द, डिप्रेशन
का शिकार बनाते हैं तो ओमेगा-3 हमारे मन को प्रसन्न रखते है,
क्रोध भगाते हैं, स्मरण शक्ति व बुद्धिमत्ता
बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 आयु कम करते हैं, तो ओमेगा-3 आयु बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 शरीर में रोग पैदा करते हैं
तो ओमेगा-3 हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। पिछले
कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ती
जा
रही हैं और ओमेगा -3
की कमी होती जा रही है। मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा बेचे जा रहे
फास्ट फूड व जंक फूड ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं। बाजार में
उपलब्ध सभी रिफाइंड तेल भी ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होते
हैं। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि हमारे भोजन में ओमेगा-3 बहुत ही कम और ओमेगा-6 प्रचुर मात्रा में होने के
कारण ही हम उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक,
डायबिटीज़, मोटापा, गठिया,
अवसाद, दमा, कैंसर आदि
रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। ये ओमेगा-3 ही अलसी
को सुपर स्टार फूड का दर्जा दिलाते हैं। ।
हृदय
और परिवहन तंत्र के लिए गुणकारीः-
अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल (HDL-Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल (LDL-Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती। हृदय की गति को नियंत्रित रखती है और वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्युदर को बहुत कम करती है।
कैंसर रोधी लिगनेन का पृथ्वी पर सबसे
बड़ा स्त्रोतः-
लिगनेन अत्यन्त महत्वपूर्ण सात
सितारा पौषक तत्व है, जिसका पृथ्वी पर
सबसे बड़ा स्रोत अलसी है। लिगनेन के अन्य स्रोत जैसे कूटू, बाजरा,
जौ, सोयाबीन आदि में लिगनेन की मात्रा नगण्य
(2-6 माइको ग्राम लिगनेन प्रति ग्राम) होती है जबकि अलसी में लिगनेन की मात्रा 800
माइक्रोग्राम प्रतिग्राम होती है। लिगनेन बीज के बाहरी हिस्से में होता है। लिगनेन
अलसी के तेल में नहीं होता है। अलसी में पाये जाने वाले लिगनेन का रसायनिक नाम
सीकोआइसोलेरिसि रेज़ीनोल डाई-ग्लूकोसाइड (SDG) है। ये
पोलीफेनोल श्रेणी में आते हैं। SDG की खोज तो 1956 में हो गई
थी, पर विभिन्न खाद्यान्नों में लिगनेन की मात्रा नगण्य होने
के कारण शोधकर्ताओं ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। 1980 में हुए परीक्षणों में यह देखा गया कि
स्तन कैंसर से ग्रसित महिलाओं के शरीर में
लिगनेन की मात्रा सामान्य महिलाओं से बहुत कम होती थी और शाकाहारियों के शरीर में
लिगनेन की मात्रा ज्यादा होती थी, तो दुनिया भर के
शोधकर्ताओं ने लिगनेन को कैंसर के उपचार में एक आशा की किरण के रूप में देखा और
दुनिया भर में लिगनेन पर शोध होने लगी। लिगनेन पर अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर
संस्थान भी शोध कर रही है और और इस नतीजे पर पहुंचा है लिगनेन कैंसररोधी है। लिगनेन
हमें प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन,
आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं। जो
स्त्रियां प्रचुर मात्रा में लिगनेन युक्त भोजन करती है उन्हें स्तन कैंसर,
युट्रस कैंसर, आंत का कैंसर होने की सम्भावना
कम रहती हैं। एड्स रिसर्च असिस्टेंस इंस्टिट्यूट (ARAI) सन् 2002
से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही है और
आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। ARAI के निर्देशक डॉ. डेनियल
देव्ज कहते हैं कि जल्दी ही लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और
कारगर उपचार साबित होने वाला है।
लिगनेन दो प्रकार के होते हैं। 1-
वानस्पतिक लिगनेन (SDG)
और स्तनधारियों में पाये जाने वाले कोआइसोलेरिसिरेज़ीनोललिगनेन सी (SECO), एन्ट्रोडियोल(ED) और एन्ट्रोलेक्टोन (EL) । जब हम वनस्पतिक लिगनेन (SDG) सेवन करते हैं तो
आंतो में विद्यमान कीटाणु इनको स्तनधारी
लिगनेन क्रमशः ED और EL में परिवर्तित
कर देते हैं।
कैंसर समेत कई बीमारियों की शुरूआत
मुक्त कणों से होने वाली क्षति के कारण होती है। आजकल रिफाइंड तेल, ट्रांसफैट,
फास्टफूड, जंकफूड, तले
हुए खाद्य पदार्थ, विभिन्न प्रकार के विकिरण, प्रदूषण आदि के कारण शरीर में मुक्त कणों से होने वाली क्षति में भारी
वृद्धि हुई है। सामान्य एंटीऑक्सीडेंट मुक्त कणों के इस आक्रमण को निष्क्रिय करने
में असमर्थ होते हैं, फलस्वरूप हम विभिन्न रोगों से ग्रसित
हो जाते हैं। शरीर में उपस्थित एन्टीऑक्सीडेन्ट और मुक्त कणों का सन्तुलन ही
स्वास्थ्य और रोग या जीवन और मृत्यु के बीच संतुलन तय करता है।
विश्व कि कई संस्थाओं मे लिगनेन पर शोध हुआ है और शोधकर्ता इस
निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लिगनेन
विटामिन-ई से भी ज्यादा शक्तिशाली एन्टी-ऑक्सीडेन्ट है। स्तन धारी
SGD
लिगनेन तो विटामिन-ई से लगभग पांच गुना ज्यादा शक्तिशाली
एन्टीऑक्सीडेन्ट है। लिगनेन कॉलेस्ट्रोल कम करता है और ब्लड शुगर नियंत्रित रखता
है। लिगनेन जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, एन्टी-फंगल और कैंसररोधी है।
डॉ. केनेथ शेसेल ई.एच. डी. जो
चिल्ड्रनस होस्पिटल मेडिकल सेंटर सिनसिनाटी के आचार्य डॉ. केनेथ शेसेल ई.एच.डी. ने
पहली बार यह पता लगाया था की लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी है। हुआ यूँ था की
1978 में डॉ. केनेथ और उनके साथी लिगनेन पर शोध कर रहे थे। और इस हेतु वे लोगों के
मूत्र में लिगनेन की मात्रा नापा करते थे लेकिन एक बार किसी सेम्पल में लिगनेन की
मात्रा असाधारण रूप से ज्यादा थी। उन्होंने सोचा की शायद टेस्ट करने में गलती हो
गई है परन्तु उस सेम्पल में हर बार लिगनेन की मात्रा ज्यादा आ रही थी। जब उस
व्यक्ति को बुलाकर पूछताछ की तो उसने बताया कि वह रोजाना अपनी रोटी में अलसी
मिलाता था।
लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला महत्वपूर्ण पौषक तत्व है जो
स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न
अवस्थाओं जैसे रजस्वला,
गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व
और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन
मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन बांझपन और अभ्यस्त गर्भपात का
प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है, यदि मां के आंचल
में स्तन में दूध नहीं आ रहा है तो अलसी खिलाने के 24 घंटे के भीतर स्तन दूध से भर
जाते हैं। यदि मां अलसी का सेवन करती है तो उसके दूध में पर्याप्त ओमेगा-3 रहता है और बच्चा अधिक बुद्धिमान व स्वस्थ पैदा होता है। कई महिलाएं अक्सर
प्रसव के बाद मोटापे का शिकार बन जाती हैं, पर लिगनेन ऐसा
नहीं होने देते। रजोवनिवृत्ति के बाद ईस्ट्रोजन का बनना कम हो जाने से महिलाओं में
हॉट फ्लेशेज़, अस्थि-क्षय, शुष्कयोनि
जैसी कई परेशानियां होती हैं, जिनमें यह बहुत राहत देता है। यदि शरीर में प्राकृतिक
ईस्ट्रोजन का स्राव अधिक हो जैसे स्तन कैंसर में तो यह कोशिकाओं के ईस्ट्रोजन
अभिग्राहकों से ईस्ट्रोजन को स्थानच्युत कर स्वयं कोशिकाओं से संलग्न होकर
ईस्ट्रोजन के प्रभाव को कम करता है और स्तन कैंसर से बचाव करता है।
हालांकि आजकल अलसी को आवश्यक वसा
अम्ल के अच्छे स्रोत के लिये जाना जाता है। लेकिन हाल ही में लिगनेन के बारे में
दुनिया भर के संस्थानों में जो शोध हो रही है और जो जानकारियां पतली गलियों में
हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि भविष्य में अलसी को लिगनेन के सबसे बड़े स्रोत
के रूप में जाना जायेगा।
पाचन तंत्र और फाइबरः-
अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज) और अघुलनशील दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं अतः अलसी कब्ज़ी, मस्से, बवासीर, भगंदर, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्जी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्ज़ी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियां बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियां तो घुलने लगती हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधनः-
यदि आप त्वचा, नाखून और बालों की सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चाहती हैं तो उत्तर है “ओमेगा-3 या ॐ-3 वसा अम्ल ”। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान मुक्त कणों या फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद ऑक्सीडेंट्स के कण त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। स्वस्थ त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण दे कर बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती हैं।
अलसी एक उत्कृष्ट भोज्य
सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। अलसी त्वचा की बीमारियों
जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद,
खाज, सूखी त्वचा, खुजली,
छाल रोग (सोरायसिस), ल्यूपस, बालों का सूखा व पतला होना, बाल झड़ना आदि में काफी
असरकारक है। अलसी सेवन करने वाली स्त्रियों के बालों में न कभी रूसी होती है और न
ही वे झड़ते हैं। अलसी नाखूनों को भी स्वस्थ व सुन्दर आकार प्रदान करती है। अलसी
युक्त भोजन खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के दाग, धब्बे,
झाइयां व झुर्रियां दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाये रखती है। आप
अपनी उम्र से काफी छोटी दिखती हैं। अलसी आपकी उम्र बढ़ाती है।
रोग
प्रतिरोधक क्षमताः-
अलसी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। आर्थ्राइटिस, गाउट, मोच आदि में अत्यंत लाभकारी है। ओमेगा-3 से भरपूर अलसी यकृत, गुर्दे, एडरीनल, थायरायड आदि ग्रंथियों को सुचारु रूप से काम करने में सहायक होती है। अलसी ल्यूपस नेफ्राइटिस और अस्थमा में राहत देती है।
अलसी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। आर्थ्राइटिस, गाउट, मोच आदि में अत्यंत लाभकारी है। ओमेगा-3 से भरपूर अलसी यकृत, गुर्दे, एडरीनल, थायरायड आदि ग्रंथियों को सुचारु रूप से काम करने में सहायक होती है। अलसी ल्यूपस नेफ्राइटिस और अस्थमा में राहत देती है।
मस्तिष्क
और स्नायु तंत्र के लिए दैविक भोजनः-
स्वस्थ मस्तिष्क में 60 प्रतिशत
वसा होती है और इसका 50 प्रतिशत ओमेगा-3 वसा अम्ल होते हैं, जिनका सबसे बड़ा स्रोत
अलसी है। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि ओम-3 वसा अम्ल मस्तिष्क और स्नायु तंत्र
के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। अलसी से
बुद्धिमत्ता,
शैक्षणिक क्षमता, सृजनशीलता, कल्पनाशीलता व स्मरणशक्ति बढ़ती है। अलसी हमारे मन को शांत रखती है, इस के
सेवन से चित्त प्रसन्न रहता है, सकारात्मक दृष्टिकोण बना रहता है, चुस्ती फुर्ती
रहती है, किसी भी काम में आलस्य नहीं आता, रचनात्मक कार्यों में रुचि बढ़ती है,
अच्छे विचार आते हैं, तनाव दूर होता है, सहनशीलता आती है तथा क्रोध कोसों दूर रहता
है। अच्छे चरित्र का निर्माण होता है, बुरे विचार नहीं आते व युवा वर्ग बुरी आदतों या व्यसनों से बचता है। अलसी के सेवन
से मन और शरीर में एक दैविक शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। योग, प्राणायाम,
ईश्वर की भक्ति और आध्यात्मिक कार्यों में मन लगता है। अलसी के सेवन से मन और शरीर
में एक दैविक शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। अलसी एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, अवसाद (Depression), माइग्रेन, शीज़ोफ्रेनिया व पार्किनसन्स आदि
बीमारियों में बहुत लाभदायक है। गर्भावस्था में शिशु की ऑखों व मस्तिष्क के समुचित
विकास के लिये ओमेगा-3 अत्यंत आवश्यक होते हैं। ओमेगा-3
से हमारी नज़र अच्छी हो जाती है, रंग ज्यादा
स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं।
ऑखों में अलसी का तेल डालने से
ऑखों का सूखापन दूर होता है और काला पानी व मोतियाबिंद होने की संभावना भी बहुत कम
होती है। अलसी बढ़ी हुई प्रोस्टेट ग्रंथि, नामर्दी, शीघ्रपतन, नपुंसकता आदि के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
डायबिटीज़ और मोटापे पर अलसी का
चमत्कारः-
अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है, डायबिटीज़ के शरीर
पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। चिकित्सक डायबिटीज़ के रोगी को कम
शर्करा और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक
होती है। इस कारण अलसी सेवन से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती है। यह बी.एम.आर. को बढ़ाती है, शरीर की चर्बी कम करती है और हम ज्यादा कैलोरी खर्च करते हैं। अतः मोटापे
के रोगी के लिये अलसी उत्तम आहार है।
डायबिटीज के रोगियों के लिए अलसी
एक आदर्श और अमृत तुल्य भोजन है, क्योंकि यह
जीरो
कार्ब भोजन है। चौंकियेगा नहीं, यह सत्य है। मैं
आपको समझाता हूँ। 14 ग्राम अलसी में 2.56 ग्राम प्रोटीन, 5.90
ग्राम फैट, 0.97 ग्राम पानी और 0.53 ग्राम राख होती है। 14
में से उपरोक्त सभी के जोड़ को घटाने पर जो शेष (14-{0.97+2.56+5.90+0.53}=4.04 ग्राम) 4.04 ग्राम बचेगा
वह कार्बोहाइड्रेट की मात्रा हुई। विदित रहे कि फाइबर कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी
में ही आते हैं। इस 4.04 कार्बोहाइड्रेट
में 3.80 ग्राम फाइबर होता है जो न रक्त में अवशोषित होता है और न ही रक्तशर्करा
को प्रभावित करता है। अतः 14 ग्राम अलसी में कार्बोहाइड्रेट की व्यावहारिक मात्रा
तो 4.04 - 3.80 = 0.24 ग्राम ही हुई, जो 14 ग्राम के सामने
नगण्य मात्रा है इसलिये आहार शास्त्री अलसी को
जीरो
कार्ब भोजन मानते हैं।
डाक्टर योहाना बुडविज का कैंसर रोधी
प्रोटोकोलः-
1931
में डॉ. ओटो वारबर्ग ने सिद्ध कर दिया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में
होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है और यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन
मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व ही संभव नहीं है। इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार
दिया गया था। परन्तु तब वारबर्ग यह पता नहीं कर सके कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित
श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये।
डॉ. योहाना बुडविज जर्मनी की विश्व
विख्यात कैंसर वैज्ञानिक थी। डॉ. योहाना अपने परिक्षणों से यह सिद्ध कर चुकी थी कि
अलसी के तेल में विद्यमान इलेक्ट्रोन युक्त, असंतृप्त ओमेगा-3 वसा कोशिकाओं में
ऑक्सीजन को आकर्षित करने की अपार क्षमता रखती हैं। पर मुख्य समस्या रक्त में
अघुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक पहुंचाने की थी। वर्षों तक शोध करने के बाद
वे मालूम कर पाई कि सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल को धुलनशील बना
देते हैं और तेल सीधा कोशिकाओं तक पहुंच कर ऑक्सीजन को कोशिकाओं में खींचता है व
कैंसर खत्म होने लगता है।
इस तरह उन्होंने अलसी के तेल, पनीर, कैंसर रोधी फलों और
सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविज प्रोटोकोल के नाम
से विख्यात हुआ। यह क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग
का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान माना
जाता है। उन्होंने सभी प्रकार के कैंसर, गठिया, हृदयाघात, डायबिटीज आदि बीमारियों का इलाज अलसी के
तेल व पनीर से किया। इन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे
रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि
अब कोई इलाज नहीं बचा, सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। अमेरीका में
हुई शोध से पता चला है कि अलसी में 27 से ज्यादा कैंसर रोधी तत्व होते हैं। डॉ.
योहाना का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित तो हुआ पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि उनके सामने शर्त रखी गई थी कि वे
अलसी पनीर के साथ-साथ कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी भी काम में लेंगी जो उन्हें मंजूर
नहीं था।
बॉडी बिल्डिंग के लिए भी नंबर वनः-
अलसी बॉडी बिल्डर के लिए आवश्यक व संपूर्ण आहार है। अलसी में 20 प्रतिशत आवश्यक
अमाइनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन से ही मांस-पेशियों का विकास
होता है। अल्फा-लेनोलेनिक एसिड स्नायु कोशिका में इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ाते
है, स्टिरोयड हार्मोन का स्राव बढ़ाते हैं, स्वस्थ कोष्ठ भित्तियों का निर्माण
करते हैं, हार्मोन्स का स्त्राव नियंत्रित करते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित
करते हैं, हार्मोन्स को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करते हैं, बुनियादी
चयापचय दर बढ़ाते हैं, कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं, रक्त में वसा को गतिशील
रखते हैं नाड़ी और स्वायत्त नाड़ी तंत्र को नियंत्रित करते हैं, नाड़ी-संदेश
प्रसारण का नियंत्रण करते हैं और हृदय की पेशियों को सीधी ऊर्जा देते हैं। कसरत के
बाद मांस पेशियों की थकावट चुटकियों में ठीक हो जाती है। बॉडी बिल्डिंग पत्रिका
मसल मीडिया 2000 में प्रकाशित आलेख “बेस्ट
ऑफ द बेस्ट” में अलसी को बॉडी के लिए सुपर फूड माना गया है।
मि. डेकन ने अपने आलेख ‘ऑस्क द गुरु’ में
अलसी को नम्बर वन बॉडी बिल्डिंग फूड का खिताब दिया। हॉलीवुड की विख्यात अभिनेत्री
हिलेरी स्वांक ने मिलियन डॉलर बेबी फिल्म के लिये मांसल देह बनाने हेतु अलसी मां
का ही सहारा लिया था, तभी उसने ऑस्कर जीता। अलसी हमारे शरीर को भरपूर ताकत प्रदान
करती है, शरीर में नई ऊर्जा का प्रवाह करती है तथा स्टेमिना बढ़ाती
है।
उपरोक्त सभी बातों का सीधा अर्थ है
शरीर की वसा कम होना,
स्नायु कोशिकाओं में थकान न होना,
ऊर्जा का सर्वोत्तम स्रोत,
ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की उपयोगिता में वृद्धि,
स्वास्थ्य में वृद्धि,
यानी छरहरी बलिष्ठ मांसल देह
सेवन का तरीकाः-
हमें प्रतिदिन 30-60 ग्राम अलसी का
सेवन करना चाहिये। रोज 30-60 ग्राम अलसी को मिक्सी के चटनी
जार में सूखा पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, परांठा आदि बनाकर
खायें। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज़,
सेव, चटनियां, आइसक्रीम, अलसी भोग लड्डू आदि
स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं। अलसी के बाफले बाटी कोटा में बड़े चाव से
खाये जाते हैं। अलसी भोग लड्डू पूरे विश्व में प्रशंसित हो रहे हैं। अलसी के गट्टे
मेरे दोस्तों को कबाब जैसे स्वादिष्ट लगते हैं। अंकुरित अलसी का स्वाद तो कमाल का
होता है। इसे आप सब्ज़ी, दही, दाल,
सलाद आदि में भी डाल कर ले सकते हैं। इसे पीसकर नहीं रखना चाहिये।
इसे रोजाना पीसें। ये पीसकर रखने से खराब हो जाती है। अलसी के नियमित सेवन से
व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी कायाकल्प हो जाता है।
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