बुडविग प्रोटोकोल में क्या क्या वर्जित है
बुडविग ने निम्न चीजों और खाद्य
पदार्थों का सेवन करने के लिए कठोरता पूर्वक मना किया है।
चीनी
किसी भी तरह की चीनी, गुड़, मिश्री, कृत्रिम
शर्करा (एस्पार्टेम, जाइलिटोल आदि), चाकलेट, मिठाई, डिब्बावंद फलों के रस या सॉफ्ट
ड्रिंक कभी भी नहीं लेना है। चीनी कैंसर को पोषक देती है।
ट्रांस
फैट, हाइड्रोजनीकृत और रिफाइंड तेल
तात्पर्य यह है कि आपको मिष्ठान भंडार, नमकीन
विक्रेता, बेकरी, जनरल स्टोर और सुपरमार्केट में मिलने वाले सभी खुले या पैकेट बंद
बने-बनाये खाद्य पदार्थों से पूरी तरह परहेज करना है। बाजार और फेक्ट्रियों में
बनने वाले सभी खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पेस्ट्री, कुकीज, बिस्कुट, मिठाइयां,
नमकीन, कचोरी, समोसे, बर्गर, पिज्जा, भटूरे आदि (लिस्ट बहुत लंबी है) कैंसरकारी ट्रांसफैट
से भरपूर रिफाइंड तेल या वनस्पति घी से ही
बनाये जाते हैं। मार्जरीन, शोर्टनिंग,
वेजीटेबल ऑयल या रिफाइंड ऑयल सभी
हाइड्रोजनीकृत वनस्पति घी के ही मुखौटे है। हाइड्रोजनीकरण बहुत ही घातक प्रक्रिया
है जो तेलों और वसा की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए की जाती है, जिससे उनमें ट्रांसफैट बनते हैं, जैविक तथा पोषक
गुण खत्म हो जाते हैं और शेष बचता है मृत, कैंसरकारी और पोषणहीन तरल प्लास्टिक।
मांसाहार
बुडविग ने हर तरह का मांस, मछली और अंडा
खाने को मना किया है। प्रिजर्व किया हुआ मीट तो विष के समान है। मीट को प्रिजर्व
करने के लिए उसे गर्म किया जाता है, घातक एंटीबायोटिक, परिरक्षण रसायन, रंग और कृत्रिम
स्वादवर्धक रसायन मिलाये जाते हैं।
रिफाइंड
कार्बोहाइड्रेट
कैंसर के रोगी को रेशे और विटामिन रहित रिफाइंड
कार्बोहाइड्रेट जैसे मैदा, पॉलिश्ड चावल या दालों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। बाजार
में उपलब्ध ब्रेड, बन, पाव, बिस्कुट आदि सभी मैदा से ही बनाये जाते हैं।
बाजार
में उपलब्ध सोयाबीन और दुग्ध उत्पाद
कैंसर के रोगी को घी, मक्खन, पैकेटबंद
दुग्ध और सोयाबीन उत्पाद नहीं लेना चाहिये।
माइक्रोवेव
भोजन पकाने के लिए माइक्रोवेव का प्रयोग
कभी नहीं करे। टेफ्लोन कोटेड, एल्युमीनियम, हिंडोलियम और प्लास्टिक के बर्तन की
काम में न लें। एल्युमीनियम फॉइल भी काम में नहीं लें। स्टेनलेस स्टील, लोहा, एनामेल,
चीनी या कांच के बर्तन काम में लेना ही श्रेयस्कर है।
कीमोथैरेपी
और रेडियोथैरेपी
डॉ. बुडविग कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी के
सख्त खिलाफ थी और कहती थी कि यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार नहीं करता है। बल्कि उनके
अनुसार तो यह एक निरर्थक, दिशाहीन, कष्टदायक और मारक उपचार है, जो कैंसर कोशिकाओं को
मारने के साथ साथ शरीर की बाकी स्वस्थ कोशिकाओं को भी भारी क्षति पहुँचाता है। जिससे
शरीर की कैंसर को त्रस्त और ध्वस्त करने की क्षमता (Immunity) और घट जाती है। इन सबके बाद भी
अधिकतर मामलों में एलोपैथी नाकामयाब ही रहती है। डॉ. बुडविग कड़े और स्पष्ट शब्दों
में गर्व से सिर उठा कर कहा करती थी कि मेरा उपचार कैंसर के मुख्य कारण (कोशिका
में ऑक्सीजन की कमी) पर प्रहार करता है, कैंसर कोशिका में ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स
का संचार करता है, कोशिका को प्राणवायु (ऑक्सीजन) से भर देता है तथा कैंसर कोशिका खमीरीकरण
(ऑक्सीजन के अभाव में ऊर्जा उत्पादन का जुगाड़ू तरीका) छोड़ कर वायवीय सामान्य श्वसन
द्वारा भर पूर ऊर्जा बनाने लगती है और कैंसर का अस्तित्व खत्म होने लगता है। और
उन्होंने इसे सिद्ध भी किया। वे तो एलोपैथी की दर्दनाशक व अन्य दवाओं और सिंथेटिक
विटामिन्स की जगह प्राकृतिक, आयुर्वेद और होमियोपैथी उपचार की अभिशंसा करती थी।
अन्य
निषेध
बुडविग उपचार में कीटनाशक, रसायन, सिंथेटिक
कपड़ों, मच्छर मारने के स्प्रे,
घातक रसायनों से बने सौदर्य प्रसाधन, सनस्क्रीन लोशन, धूप के चश्में,
बीड़ी, सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, सिंथेटिक (नायलोन, एक्रिलिक, पॉलीएस्टर आदि)
कपड़े, फोम के गद्दे-तकिये आदि भी वर्जित हैं। सी.आर.टी. टीवी, मोबाइल फोन से भी
कैंसरकारी खतरनाक विकिरण निकलता है। एल.सी.डी. या प्लाज्मा टीवी सुरक्षित माने गये
हैं। कैंसर के रोगी को तनाव, अवसाद और क्रोध छोड़ कर संतुष्ट, शांत और प्रसन्न
रहने की आदत डाल लेनी चाहिये।
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