दिल का दौरा या हृदय रोधगलन M.I. (Heart Attack या Myocardial Infarction)
दिल का दौरा या हृदय-रोधगलन M.I. (Heart Attack या Myocardial Infarction) एक प्राणलेवा रोग है जिसमें हृदय की पेशियाँ उसकी धमनियों में थक्का बनने के कारण रक्त की आपूर्ति अचानक बाधित होने से मृत होने लगती है। धमनी में आये अचानक अवरोध के कारण हृदय की पेशियों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और वे मृत होने लगती हैं। इस तरह हृदय की धमनियाँ शरीर को निर्बाध रक्त संचार करने में असमर्थ पाती हैं, इसलिये रोगी की छाती को कुरेद-कुरेद कर (जिससे छाती में तीव्र दर्द होता है) उसे चेतावनी देती है कि हे मानव तेरी जान खतरे में है, यमराज भैंसा लेकर द्वार पर आ बैठा है, तू बिना एक पल गँवाये जीवन का आखिरी युद्ध लड़ने रणभूमि (अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई) पहुँच।
यदि हृदय में रक्त-प्रवाह 30-40 मिनट में पुनः स्थापित नहीं किया जा सके तो अगले 6-8 घन्टे में हृदय की पेशियां स्थाई रूप से मृत या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और दिल का दौरा सम्पूर्ण हो जाता है। अन्ततः इन पेशियों के घाव भरते हैं और मृत पेशियों का स्थान स्कार टिश्यू ले लेता है।
भारत में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण दिल का दौरा है। अमेरिका में प्रति वर्ष दस लाख लोगों को दिल का दौरा पड़ता है, जिनमे से आधों की मृत्यु हो जाती है। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि शीघ्र ही हमारा देश इस रोग के लिए भी विश्व की राजधानी बन जायेगा।
लक्षण
अधिकतर दिल के दौरे सुबह चार से दस बजे के बीच ही पड़ते हैं। शायद इसलिए कि इस दौरान एडरिनेलीन का स्राव ज्यादा होता है जिसके प्रभाव से धमनियों के प्लाक आसानी से टूटते हैं। इस रोग का मुख्य लक्षण छाती में तीव्र दर्द या दबाव होना है। लेकिन रोगी के कई तरह के अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। जैसे
• जबड़े, दाँत या सर में दर्द होना।
• श्वास लेने में कष्ट होना।
• जी धबराना, उबकाई या उलटी आना, उदर के ऊपरी और मध्य में अम्लता जैसा दर्द।
• पसीना आना, चेहरा सफेद पड़ जाना, बैचेनी, छाती में जलन या अपच होना, पीठ के उपरी भाग में दर्द होना।
• डायन डायबिटीज बड़ी धूर्त है दिल के दौरे को भी डरा-धमका कर बिना शोर मचाये, चुपचाप आक्रमण करने को बाध्य करती है। यह एक बुरी स्थिति है इसलिए डायबिटीज के रोगियों को बहुत सतर्क रहना चाहिये।
यह रोग एक आपातकालीन स्थिति है, जिसमें बिना वक्त गँवाये तुरन्त किसी अच्छे संस्थान में उपचार हेतु पहुँचना चाहिये। कई बार जब घबराहट, बैचेनी, अपच, अम्लता जैसे मामूली लक्षण होते हैं, ऐसी स्थिति में अम्लता की गोली या कोई घरेलू उपचार कर संतुष्ट होकर बैठ जाना जानलेवा साबित हो सकता है। मधुमेह के रोगियों को विशेष सतर्कता रखना जरूरी है। हृदय-रोधगलन में रोगी की कभी भी वेन्ट्रिकल फिब्रिलेशन, हृदय के फटने या अन्य प्राणलेवा स्थिति से मृत्यु हो सकती है।
निदान
दिल के दौरे में जब लक्षण मामूली होते हैं तब कई बार दिल का दौरा होने का सन्देह नहीं होता है और उसके परीक्षण नहीं हो पाते हैं। इसलिए निदान का पहला सूत्र यही है कि इसके मामूली लक्षणों की भी अनदेखी न करें।
ई.सी.जी.
हृदय में एक विशिष्ट विद्युत संयंत्र होता है जो हृदय के विभिन्न सम्भागों को संकुचन और विस्तारण द्वारा रक्त संचारित करने लिए विद्युत सन्देशों के माध्यम से निरन्तर आदेश प्रसारित करता रहता है। इन्ही विद्युत सन्देशों के चित्रण को ई.सी.जी. या इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम कहते हैं। ई.सी.जी. विद्युत सन्देशों को तरंग के रूप में प्रदर्शित करता है। तरंग का पहला भाग P वेव एट्रियम के संकुचन को प्रतिबिन्बित करती है, QRS वेव्ज वेन्ट्रिकल्स के संकुचन को प्रतिबिन्बित करती हैं और T वेव वेन्ट्रिकल्स के पुनर्ध्रुवीकरण repolarisation को प्रदर्शित करती है। हार्ट अटेक होने पर इन विद्युत सन्देशों के प्रवाह में बदलाव होना स्वाभाविक है और विशेषज्ञ रोगी के ई.सी.जी. को देख कर हृदय के क्षतिग्रस्त क्षेत्रों को चिन्हित कर लेते हैं। हृदय रोधगलन M.I. में मुख्य परिवर्तन तरंग के ST उपभाग का उँचा होना और गहरी व चौड़ी Q वेव होना या उलटी T वेव होना है।
रक्त के परीक्षण
दिल का दौरा पड़ने पर हृदय की क्षतिग्रस्त पेशियाँ कुछ एन्जाइम जैसे क्रियेटिनीन फोस्फोकाइनेज का उपघटक एम.बी. (CPK-MB), ट्रोपोनिन I और T, मायोग्लोबिन आदि रक्त में छोड़ देती हैं। रक्त में इनके स्तर का क्रमिक परीक्षण निदान और फलानुमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ट्रोपोनिन का स्तर दौरे के 3-12 घन्टे बाद बढ़ना शुरू होता है, 24-48 घन्टे बाद चरम सीमा पर होता है और 5-14 दिन में सामान्य हो जाता है। CPK के तीन उपघटक होते हैं, BB मस्तिष्क में, MM सामान्य पेशियों में और MB हृदय की पेशियों में होता है। CPK के MB उपघटक का स्तर दौरे के 4-8 घन्टे बाद बढ़ना शुरू होता है, 10-24 घन्टे बाद चरम सीमा पर होता है और 2-3 दिन में सामान्य हो जाता है।
एन्जियोग्राफी
यह परीक्षण हृदय रोधगलन M.I. या हृदय की धमनियों में अवरोध के संकेत मिलने पर हृदय की धमनियों की संरचना, रक्त-प्रवाह और अवरोध की स्थिति का अवलोकन करने हेतु किया जाता है। एन्जियोग्राफी एक विशेष एक्स-रे मशीन द्वारा की जाती है। इस परीक्षण में कलाई या जाँघ की धमनी में एक महीन नलिका (केथेटर) डाली जाती है जिसे हृदय की धमनियों तक पहुँचा कर उसमें एक अपारदर्शी डाई (एक्सरे की दृष्टि से) प्रवाहित कर दी जाती है और मशीन द्वारा विभिन्न कोणों से एक्सरे ले लिया जाता है। इस एन्जियोग्राम से हृदय-धमनियों की पूरी संरचना और उनमें अवरोध की स्थिति का सही आंकलन हो जाता है।
कम्प्यूट्राइज्ड टोमोग्राफी (CT)
उपचार
अस्पताल पूर्व-चिकित्सा
दिल का दौरा (छाती में दर्द होना) पड़ने पर बिना समय नष्ट किये रोगी का उपचार हो जाना चाहिये। जब तक सही निदान हो तब तक उसे हार्ट अटेक ही मानना चाहिये। थोड़ा सा विलम्ब भी जानलेवा साबित हो सकता है। छाती में दर्द होने पर रोगी को 300 मिलिग्राम घुलनशील एस्पिरिन की गोली को पीस कर पानी में घोलें और पिला दें। साथ ही यदि उपलब्ध हो तो 300 मिलिग्राम क्लोपिडोग्रेल, 80 मिलिग्राम एटोरवास्टेटिन भी दे दें। आइसोर्डिल की एक गोली जीभ के नीचे रख दें। रोगी को तुरन्त किसी अच्छे अस्पताल पहुँचाना चाहिये, जहाँ हार्ट अटेक के उपचार की सारी सुविधायें उपलब्ध हो। ध्यान रखें कभी भी रोगी स्वयं वाहन चला कर अस्पताल नहीं जाये। बड़े शहरों में आजकल अच्छे अस्पताल सभी उच्चस्तरीय जीवन-रक्षक उपकरणों, दवाओं और अनुभवी चिकित्साकर्मी और डाक्टर्स से सुसज्जित चिकित्सा-वाहन (एम्बुलेन्स) रखते हैं। इनमें ई.सी.जी., ऑक्सीजन, वेन्टीलेटर, डीफिब्रीरिलेटर, दवाइयाँ, नर्सें और डाक्टर मौजूद रहते हैं। यदि उपलब्ध है तो रोगी को इसी चिकित्सा-वाहन के द्वारा अस्पताल पहुँचाना चाहिये, ताकि रोगी का विधिवत उपचार वाहन में ही शुरू हो जाये। अस्पताल को जितना जल्दी संभव हो, सूचित कर दिया जाना चाहिये ताकि रोगी के अस्पताल पहुँचते पहले ही उसके उपचार की तैयारी शुरू हो जाये और “द्वार से दवा की अवधि” या Door to Drug Time तथा “द्वार से हवा की अवधि” या Door to Balloon Time (रोगी के अस्पताल पहुँचने से एन्जियोप्लास्टी करने के बीच की अवधि) कम से कम रहे।
चिकित्सा-वाहन में निम्न उपचार दे दिया जाता है।
• यदि घर पर नहीं दी गई तो एस्पिरिन, क्लोपिडोग्रेल, एटोरवास्टेटिन और आइसोर्डिल दे दी जाती है। एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल बिम्बाणुओं का चिपचिपापन कम करती हैं और थक्का बनने में अवरोध पैदा करती हैं।
• शिरा में केन्यूला, अंगुली में पल्स-ऑक्सीमीटर लगा दिया है और ई.सी.जी. कर दी जाती है।
• दर्द के लिए मार्फीन का इन्जेक्शन दे दिया जाता है तथा तनाव, अम्लता, घबराहट आदि के लिए इन्जेक्शन भी दे दिये जाते हैं।
• जैसे ही ई.सी.जी. द्वारा हृदय-रोधगलन M.I.की पुष्टि हो एलाक्सिम या अन्य थ्रोम्बोलाइटिक और हिपेरिन आदि भी दिये जा सकते हैं। यदि 90 मिनट के भीतर थ्रोम्बोलाइटिक्स दे दिये जाते हैं तो रोगी के बचने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
हार्ट अटेक में 65% रोगियों की मृत्यु पहले घन्टे में हो जाती है। इनमें से हम 60% को बचा सकते हैं यदि हम वेन्ट्रीकुलर फिब्रिलेशन होने पर डीफिब्रिलेटर या दवाओं से तुरन्त उपचार कर पायें। इसलिए ज्यों ही रोगी को वेन्ट्रीकुलर फिब्रिलेशन हो, बिना समय गँवाये तुरन्त उपचार किया जाता है।
अस्पताल में उपचार
अस्पताल पहुँचते ही रोगी को तुरन्त गहन चिकित्सा इकाई में स्थानान्तरित कर दिया जाता है और पूरी टोली अपने-अपने काम में जुट जाती है। हार्ट अटेक का उपचार निम्न पहलुओं पर केन्द्रित रहता है।
• हृदय का रक्त-संचार जितना जल्दी हो सके पुनरस्थापित करना और हृदय की पेशियों की क्षति न्यूनतम रखना।
• ऑक्सीजन की आपूर्ति और माँग के बीच सन्तुलन बनाये रखना।
• दर्द निवारण।
• दुष्प्रभावों की रोकथाम और उनका त्वरित उपचार।
सबसे पहले रोगी से पूछताछ, शारीरिक परीक्षण, ई.सी.जी., केन्यूला लगाना, जांच के लिए रक्त लेना, छाती का एक्स-रे, रोगी को कार्डियक मोनीटर पर रखना आदि कार्य कर लिए जाते हैं। पल्स-ऑक्सीमीटर ऑक्सीजन का स्तर 90% से कम बताये तो ऑक्सीजन शुरू कर दी जाती है, ताकि रक्त में ऑक्सीजन का स्तर अच्छा रहे। रोगी को छाती में दर्द हो तो 5 मिनट के अंतराल में आइसोर्डिल की दो अतिरिक्त गोलियाँ दे दी जाती हैं। मोर्फीन, फोर्टविन या नार्फिन का इन्जेक्शन दर्द के लिए दिया जाता है, दर्द न मिटे तो 5-15 मिनट बाद पुनः इन्जेक्शन दर्द दिया जाता है। सिस्टोलिक रक्तचाप 100-140 mm के बीच रखा जाता है। यदि हृदय गति कम हो तो 0.5 mg एट्रोपीन की सुई हर पाँच मिनट में दी जाती है ( कुल एट्रोपीन 2-4 mg तक दे सकते हैं)।
दूसरी ओर रोगी के ICU में पहुँचने के 10 मिनट के भीतर विशेषज्ञ ई.सी.जी., अन्य संकेतों एवम् उपलब्ध संसाधनों का अवलोकन कर निर्णय कर लेते हैं कि उसे थ्रोम्बोलाइज करना है या एन्जियोप्लास्टी करनी है। इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि “द्वार से दवा की अवधि” या Door to drug time 30 मिनट और “द्वार से हवा की अवधि” या Door to balloon time 90 मिनट से कम रखा जाये। सुक्रलफेट और रेनीटिन दी जाती है ताकि अम्लता और आमाशय में फोड़े न हों। रोगी को आराम करने की सलाह दी जाती है।
बीटाब्लॉकर
बीटाब्लॉकर का हार्ट अटेक के उपचार में बहुत महत्व है। यदि कोई विशेष वर्जना न हो तो दौरा पड़ने के 12 घन्टे के अंदर बीटाब्लॉकर्स शुरू कर दिये जाते हैं जिन्हें लम्बी अवधि तक जारी रखा जाता है। हृदय की पेशियों में बीटा-अभिग्राहक (Beta receptors) होते हैं जो एडरिनेलीन और नोरएडरिनेलीन नामक हार्मान्स के संपर्क में आकर हृदय की आकुंचन-शक्ति, गति और रक्तचाप बढ़ाते हैं। बीटाब्लॉकर्स इन अभिग्राहकों पर चिपक जाते हैं और उपरोक्त हार्मोन्स के हृदय पर होने वाले प्रभावों को बाधित या ब्लॉक कर देते हैं। इसतरह बीटाब्लॉकर्स हृदय हृदय-गति, हृदय की पेशियों (मायोकार्डियम) की आकुन्चन शक्ति और ऑक्सीजन की आवश्यकता को कम करते हैं, जिससे हृदय की पेशियों की क्षति न्यूनतम होती है। बीटाब्लॉकर्स वेन्ट्रीकुलर ऐरिद्मिया, हृदय रोधगलन M.I.की पुनरावृत्ति तथा बार-बार अरक्तता की संभावना को कम करते हैं और रोगी के जीवित रहने की संभावना बढ़ाते हैं। हृदयवात, हृदयगति कम होना और श्वासनली का संकुचन बीटाब्लॉकर्स के मुख्य कुप्रभाव हैं। मेटोप्रोलोल 15 मिलि ग्राम की मात्रा शिरा-पथ में धीरे-धीरे देने के बाद मुख द्वारा 200 मिलिग्राम/दिन दी जाती है। एटीनोलोल की 5-10 मिलि ग्राम/दिन शिरा में देने के बाद मुख द्वारा 100 मिलि ग्राम/दिन देते हैं।
ए.सी.ई.इन्हिबीटर्स
यदि रोगी का रक्तचाप सामान्य रहे तो पहले 24 घंटे में ही ए.सी.ई.इन्हिबीटर्स शुरू कर दिये जाते हैं और लम्बे समय तक दिये जाते हैं। ये रक्त में एन्जियोटेन्सिन नामक एन्जाइम को प्रभावशून्य कर रक्तवाहिकाओं के विस्तारण द्वारा रक्तचाप कम करके हृदय पर बोझ कम करते हैं। इसके अलावा ए.सी.ई.इन्हिबीटर्स का हृदय पर सीधा सुरक्षात्मक प्रभाव भी होता है। इस तरह ये बीटाब्लॉकर्स के साथ मिल कर ऑक्सीजन की आपूर्ति और माँग के बीच सन्तुलन बनाते हैं।
नाइट्रेट्स
हार्ट अटेक M.I. के रोगियों में नाइट्रेट्स का प्रयोग बहुत आवश्यक है, खासतौर पर जिन रोगियों में हृदयवात (congestive heart failure), पल्मोनरी ऐडीमा, सतत अरक्तता (Persistent Ischemia), उच्च रक्तचाप या बाएं निलय के अग्र भाग में बड़े हृदय रोधगलन (Large anterior wall M.I.) होता है। नाइट्रेट्स चयापचित हो कर नाइट्रिक-ऑक्साइड बनाते हैं, जो वाहिकाओं का विस्तारण करते हैं, हृदय की ऑक्सीजन की जरूरत कम करते हैं, रक्तचाप कम करते हैं, फेफड़ों की वाहिकाओं और वेन्ट्रिकल में रक्त का दबाव कम करते हैं, बिम्बाणुओं का चिपचिपापन कम करते हैं, कोरोनरी-धमनियों में रक्त-संचार बढ़ाते हैं और इनफार्क्ट का आकार छोटा करते हैं। नाइट्रोजेक्ट के नाम से मिलता है, यह 200 mcg/mL (50 mg मात्रा 250 mL सेलाइन में मिला कर) और 400 mcg/mL की साँद्रता में मिलता है। इसे शिरा-पथ में इन्फ्यूजन पंप द्वारा 10-20 mcg/minute से देना शुरू करते हैं। फिर वाँछित लाभ मिलने तक 10-20 mcg/minute हर 5 मिनट में बढ़ाते हैं। सामान्यतः अधिकतम मात्रा 50 mcg/minute से ज्यादा होती है। यदि रक्तचाप 90 mm से कम हो तो इसे नहीं देना चाहिये। इसके मुख्य दुष्प्रभाव सरदर्द, रक्तचाप और हृदयगति कम होना है।
थ्रोम्बोलाइसिस
हृदय की धमनी में बने थ्रोम्बस को धोलने लिए जितना जल्दी हो सके थ्रोम्बोलाइटिक्स दिये जाने चाहिये। कौशिश की जाती है कि द्वार से दवा की अवधि 30 मिनट से कम हो यानी इन्हें 30 मिनट के भीतर दे दिया जाय क्योंकि जितना जल्दी वाहिकाएँ खुलेंगी हृदय को क्षति उतनी ही कम होगी। यदि दौरे पड़ने के दो घन्टे के भीतर थ्रोम्बोलाइटिक्स दे दिये जाते हैं तो हृदय-रोधगलन M.I. से हो रही क्षति रुक जाती है और रोगी के बचने की संभावना में नाटकीय लाभ होता है। थ्रोम्बोलाइटिक्स के निम्न स्पष्ट संकेत हैं।
• अरक्तता के कारण 30 मिनट से छाती में दर्द हो रहा हो।
• दौरा पड़े 12 घन्टे न हुए हों।
• ई.सी.जी. की दो छाती की लीड्स के ST संभाग में कम से कम 2 mm का नया उठाव हो।
• ई.सी.जी. की दो लिम्ब लीड्स के ST संभाग में कम से कम 1 mm का उठाव हो या
• नया लेफ्ट बन्डल ब्राँच ब्लॉक हो।
आजकल स्टेप्टोकाइनेज, यूरोकाइनेज और टेनेक्टाफेज आदि थ्रोम्बोलाइटिक्स उपलब्ध हैं। स्टेप्टोकाइनेज की मात्रा 15 लाख यूनिट है, इसे 100 mL सेलाइन में मिला कर 2.5 लाख सीधा शिरा में गटका दिया जाता है और शेष धीरे-धीरे 1 लाख यूनिट प्रति घंटे की दर से दिया जाता है। यूरोकाइनेज की सामान्य मात्रा भी 15 लाख है, जिसका 2.5-5 लाख सीधा शिरा में और शेष इन्फ्यूजन द्वारा आधे से एक घन्टे में दिया जाता है।
टेनेक्टाफेज recombinant DNA तकनीक द्वारा बनाया गया टिश्यु प्लाज्मिनोजन एक्टीवेटर है। यह अच्छा है, इसे लगाना सरल है परन्तु यह मँहगा है। इसे लगाने के पहले हिपेरिन की एक खुराक भी शिरा-पथ में दी जाती है। इसे साथ आये तरल में धोल कर शिरा-पथ में गटका दिया जाता है। इसे लगाने के पहले और बाद में थाड़ा सा 0.9% सेलाइन शिरा-पथ में प्रवाहित कर देना चाहिये। टेनेक्टाफेज 75-80% रोगियों में अवरुद्ध कोरोनरी-धमनियों का पुनर्नलीकरण (recanalization) कर देती हैं जबकि स्टेप्टोकाइनेज सिर्फ 50% रोगियों में ही पुनर्नलीकरण कर पाती हैं।
Weight of Patient | Tenecteplase (IU) | Tenecteplase (mg) | Volume of reconstituted solution (mL) |
< 60 | 6,000 | 30 | 6 |
60 to < 70 | 7,000 | 35 | 7 |
70 to < 80 | 8,000 | 40 | 8 |
80 to < 90 | 9,000 | 45 | 9 |
90 and up | 10,000 | 50 | 10 |
टेनेक्टाफेज की वर्जना
इसे निम्न स्थितियों में नहीं देना चाहिये।
1- आन्तरिक रक्तस्त्राव 2- एओर्टिक डिस्सेक्शन 3- रक्तस्त्राव संबन्धी रोग 4- जिन्हें हाल ही गहन चोट लगी है। 5- मस्तिष्क में कोई अर्बुद (tumor) हो। 6- रक्तचाप बहुत ज्यादा हो। 7- आमाशय में फोड़ा हो। 8- पिछले तीन महीने में स्ट्रोक या सर में चोट लगी हो। 9- गर्भावस्था 10- यकृत की विफलता।
एन्टीकोएगुलेन्ट्स
STEMI हार्ट-अटेक में पहले 48 घन्टे तक अक्सर हिपेरिन दिया जाता है, यह रक्त को जमने से रोकता है। इसके प्रयोग से दोबारा हार्ट-अटेक होने की संभावना कम होती है, मृत्युदर भी कम होती है। यदि प्राइमरी एन्जियोप्लास्टी करनी हो तो विशेषतौर पर इसका प्रयोग लाभदायक रहता है। हिपेरिन देना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है, रक्त के कुछ विशेष परीक्षण करवाने पड़ते हैं और पूरी सतर्कता बरती जाती है।
Heparin Dosing |
Loading Dose |
60 U/kg IV bolus Max 5000 U if >65 kg or 4000 U if <65 kg |
Maintenance Dose |
12 U/kg/hr IV Max 1000 U/hr if >65 kg or 800 U/hr if <65 kg |
आजकल कम आणविक भार वाले हिपेरिन या Low-molecular-weight heparin (LMWH) ज्यादा आसान व सुरक्षित माने जाते हैं। इनकी निश्चित मात्रा देना आसान है, रक्त के परीक्षण का झमेला भी इनके साथ नहीं है। अस्थिर एन्जाइना और NSTEMI में इनका प्रयोग बहुत होता है। आजकल प्रमुख LMWH डाल्टेपेरिन और एन्डोक्सेपेरिन (लोपेरिन) हैं।
Generic name | t1/2 (after SC dosing) | Dosing in ACS |
Dalteparin | 3-5 hr | 120 U/kg SC bid |
Enoxaparin (Loparin) | 4.5 hr | 100 U/kg (1 mg/kg) SC q12h |
ग्लाइकोप्रोटीन IIb/IIIa रोधक
बिम्बाणुओं या प्लेटलेट्स के एकत्रीकरण के कार्यपथ में प्लेटलेट्स पर स्थित ग्लाइकोप्रोटीन IIb/IIIa अभिग्राहक फाइब्रिनोजन से चिपकते हैं। ग्लाइकोप्रोटीन IIb/IIIa रोधी प्लेटलेट्स के एकत्रीकरण को अवरुद्ध करते हैं। ग्लाइकोप्रोटीन IIb/IIIa रोधी जैसे एब्सिक्सीमेब को प्राइमरी एन्जियोप्लास्टी और STEMI हार्ट-अटेक में प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग से दोबारा हार्ट-अटेक होने की संभावना कम होती है, मृत्युदर भी कम होती है।
Agent | Loading Dose (IV) | Maintenance Dose (IV) | Duration of Infusion | FDA Approved Indications |
Abciximab | 0.25 mg/kg | 0.125 µg/kg/min max 10 µg/min | 12-24 hr | Coronary intervention |
Eptifibatide | 180 µg/kg | 2 µg/kg/min | Up to 72 hr | Acute coronary syndrome Coronary intervention |
Tirofiban | 0.4 µg/kg/min for 30 min | 0.1 µg/kg/min | 12-24 hr | Acute coronary syndrome Coronary intervention |
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