कलौंजी रेनुनकुलेसिया परिवार का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम “निजेला सेटाइवा” है जो लेटिन शब्द नीजर (यानी काला) से बना है, यह भारत सहित दक्षिण पश्चिमी एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकाई देशों में उगने वाला वार्षिक पौधा है जो 20-30 सें. मी. लंबा होता है। इसके लंबी पतली-पतली विभाजित पत्तियां होती हैं और 5-10 कोमल सफेद या हल्की नीली पंखुड़ियों व लंबे डंठल वाला फूल होता है। इसका फल बड़ा व गैंद के आकार का होता है जिसमें काले रंग के, लगभग तिकोने आकार के, 3 मि.मी. तक लंबे, खुरदरी सतह वाले बीजों से भरे 3-7 प्रकोष्ठ होते हैं। इसका प्रयोग औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए पकवानों में किया जाता है।
“निजेला सेटाइवा” को अंग्रेजी में फेनेल फ्लावर, नटमेग फ्लावर, लव-इन-मिस्ट (क्योंकि इसका फूल लव-इन-मिस्ट के फूल जैसा होता है), रोमन कारिएंडर, काला बीज, काला केरावे और काले प्याज का बीज भी कहते हैं। अधिकतर लोग इसे प्याज का बीज ही समझते हैं क्योंकि इसके बीज प्याज जैसे ही दिखते हैं। लेकिन प्याज और काला तिल बिल्कुल अलग पौधे हैं। इसे संस्कृत में कृष्णजीरा, उर्दू में كلونجى , बंगाली में कालाजीरो, मलयालम में करीम जीराकम, रूसी में चेरनुक्षा, तुर्की में çörek otu कोरेक ओतु, ईरान में शोनीज, अरबी में हब्बत-उल-सौदा, मिस्र मे हब्बा-अल-बराकाحبه البركة seed of blessing , पर्शिया में سیاهدانه siyâh dâne सिया दाने, तमिल में करून जीरागम और तेलगू में नल्ला जीरा कारा कहते हैं। इसका स्वाद हल्का कड़वा व तीखा और गंध तेज होती है। इसका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों नान, ब्रेड, केक और आचारों में किया जाता है। चाहे बंगाली नान हो या पेशावरी खुब्जा (ब्रेड नान) या कश्मीरी पुलाव हो कलौंजी के बीजों से जरूर सजाये जाते हैं।
इतिहास:-
कलौंजी का इतिहास बहुत पुराना है। सदियों से कलौंजी का प्रयोग एशिया, उत्तरी अफ्रीका और अरब मुल्कों में मसाले व दवा के रूप में होता आया है। आयुर्वेद और पुराने इसाईयों के ग्रंथों में इसका वर्णन है। ईस्टन के बाइबल शब्दकोष में हेब्र्यू शब्द का मतलब कलौंजी लिखा गया है। पहली शताब्दी में दीस्कोरेडीज नामक ग्रीक चिकित्सक कलौंजी से जुकाम, सरदर्द और पेट के कीड़ों का उपचार करते थे। उन्होंने इसे दुग्ध वर्धक और मूत्र वर्धक के रुप में भी प्रयोग किया। रोम में इसे 'पेनासिया’ यानी हर मर्ज की रामबाण दवा माना जाता है। लेकिन मिस्र के इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि कलौंजी सबसे पहले मिस्र में तूतन्खामन के मकबरे में पाई गई। 3000 वर्ष पहले यह मिस्र के शासकों के पुतलों या मम्मियों के साथ रखे जाने वाली, मरणोपरांत काम आने वाली आवश्यक सामग्री में शामिल थी। फेरोज़ के चिकित्सक कलौंजी का प्रयोग जुकाम, सिरदर्द, दांत के दर्द, संक्रमण, एलर्जी आदि रोगों के उपचार में करते थे। कलौंजी का तेल स्त्रियों का प्रिय सौंदर्य प्रसाधन माना जाता था। मिस्र की सुंदर, रहस्यमय व विवादास्पद महारानी क्लियोपेट्रा की खूबसूरती के रहस्य कलौंजी के तेल से निर्मित सौंदर्य प्रसाधन थे।
इस्लाम के अनुसार हज़रत मुहम्मद कलौंजी को मौत के सिवा हर मर्ज की दवा बताते थे। इसका ज़िक्र कई जगह हदीसों में मिलता है जैसे कि:-
साहीह मुस्लिम: 26 किताब अस सलाम, संख्या 5489
इसी सिलसिले में खालिद बिन साद ने लिखा है, “एक बार मैं और गालिब बिन अब्जार मदीना जा रहे थे और रास्ते में उनकी तबियत खराब हो गई। जब हम मदीना पहुंचे तो इब्न अबी अतीक हमसे मिलने आये, गालिब की तबियत पूछी और कहा कि इनकी नाक में 1-2 बूंद कलौंजी का तेल डाल दो तबियत ठीक हो जायेगी, उनके साथ आये हज़रत आइशा ने हमसे कहा कि उन्होंने मुहम्मद साहब को किसी से यह कहते हुए सुना है कि कलौंजी ‘सम’ के सिवा हर मर्ज़ की दवा है। मैंने पूछा कि ‘सम’ क्या है? उन्होंने कहा कि सम का मतलब मौत है।”
ورد حديث في صحيح البخاري عن عائشة - رضي الله عنها - أنها قالت: قال رسول الله -
صلى الله عليه وسلم: " إن هذه الحبة السوداء شفاء من كل داء إلا السام، قلت: وما السام؟ قال الموت
कलौंजी तिब-ए-नब्वी की दवाओं की फेहरिस्त या प्रोफेट मुहम्मद की दवाओं में भी शामिल है। एविसिना ने अपनी किताब ‘केनन आफ मेडीसिन’ में लिखा है कि कलौंजी शरीर को ताकत से भर देती है, कमजोरी व थकान दूर करती है तथा पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र तथा प्रजनन तंत्र की बीमारियों का इलाज करती है।
पोषक तत्वों का अंबार:-
कलौंजी में पोषक तत्वों का अंबार लगा है। इसमें 35% कार्बोहाइड्रेट, 21% प्रोटीन और 35-38% वसा होते है। इसमें 100 ज्यादा महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। इसमें आवश्यक वसा अम्ल 58% ओमेगा-6 (लिनोलिक एसिड), 0.2% ओमेगा-3 (एल्फा- लिनोलेनिक एसिड) और 24% ओमेगा-9 (मूफा) होते हैं। इसमें 1.5% जादुई उड़नशील तेल होते है जिनमें मुख्य निजेलोन, थाइमोक्विनोन, साइमीन, कार्बोनी, लिमोनीन आदि हैं। निजेलोन में एन्टी-हिस्टेमीन गुण हैं, यह श्वास नली की मांस पेशियों को ढीला करती है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करती है और खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस आदि को ठीक करती है।
थाइमोक्विनोन बढ़िया एंटी-आक्सीडेंट है, कैंसर रोधी, कीटाणु रोधी, फंगस रोधी है, यकृत का रक्षक है और असंतुलित प्रतिरक्षा प्रणाली को दुरूस्त करता है। तकनीकी भाषा में कहें तो इसका असर इम्यूनोमोड्यूलेट्री है।
कलौंजी में केरोटीन, विटामिन ए, बी-1, बी-2, नायसिन व सी और केल्शियम, पोटेशियम, लोहा, मेग्नीशियम, सेलेनियम व जिंक आदि खनिज होते हैं। कलौंजी में 15 अमाइनो एसिड होते हैं जिनमें 8 आवश्यक अमाइनो एसिड हैं। ये प्रोटीन के घटक होते हैँ और प्रोटीन का निर्माण करते हैं। ये कोशिकाओं का निर्माण व मरम्मत करते हैं। शरीर में कुल 20 अमाइनो एसिड होते हैं जिनमें से आवश्यक 9 शरीर में नहीं बन सकते अतः हमें इनको भोजन द्वारा ही ग्रहण करना होता है। अमाइनो एसिड्स मांस पेशियों, मस्तिष्क और केंन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं, एंटीबॉडीज का निर्माण कर रक्षा प्रणाली को पुख्ता करते है और कार्बनिक अम्लों व शर्करा के चयापचय में सहायक होते हैं।
कैंसर
जेफरसन फिलडेल्फिया स्थित किमेल कैंसर संस्थान के शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग कर निष्कर्ष निकाला है कि कलौंजी में विद्यमान थाइमोक्विनोन अग्नाशय कैंसर की कोशिकाओं के विकास को बाधित करता है और उन्हें नष्ट करता है। शोध की आरंभिक अवस्था में ही शोधकर्ता मानते है कि शल्यक्रिया या विकिरण चिकित्सा करवा चुके कैंसर के रोगियों में पुनः कैंसर फैलने से बचने के लिए कलौंजी का उपयोग महत्वपूर्ण होगा। थाइमोक्विनोन इंटरफेरोन की संख्या में वृध्दि करता है, कोशिकाओं को नष्ट करने वाले विषाणुओं से स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा करता है, कैंसर कोशिकाओं का सफाया करता है और एंटी-बॉडीज का निर्माण करने वाले बी कोशिकाओं की संख्या बढ़ाता है।
कीटाणुरोधी गतिविधि
कलौंजी का सबसे ज्यादा कीटाणुरोधी प्रभाव सालमोनेला टाइफी, स्यूडोमोनास एरूजिनोसा, स्टेफाइलोकोकस ऑरियस, एस. पाइरोजन, एस. विरिडेन्स, वाइब्रियो कोलेराइ, शिगेला, ई. कोलाई आदि कीटाणुओं पर होती है। यह ग्राम-नेगेटिव और ग्राम-पोजिटिव दोनों ही तरह के कीटाणुओं पर वार करती है। विभिन्न प्रयोगशालाओं में इसकी कीटाणुरोधी क्षमता ऐंपिसिलिन के बराबर आंकी गई। यह फंगस रोधी भी होती है।
यकृत का रक्षक और मुक्त कणों (फ्री रेडिकल्स) का भक्षक-
कलौंजी में मुख्य तत्व थाइमोक्विनोन होता है। विभिन्न भेषज प्रयोगशालाओं ने चूहों पर प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला है कि थाइमोक्विनोन टर्ट-ब्यूटाइल हाइड्रोपरोक्साइड के दुष्प्रभावों से यकृत की कोशिकाओं की रक्षा करता है और यकृत में एस.जी.ओ.टी व एस.जी.पी.टी. के स्राव को कम करता है।
प्रति-मधुमेह गतिविधिः-
कई शोधकर्ताओं ने वर्षों की शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि कलौंजी में उपस्थित उड़नशील तेल रक्त में शर्करा की मात्रा कम करते हैं।
प्रति-शोथ गतिविधिः-
कलौंजी दमा, अस्थिसंधि शोथ आदि रोगों में शोथ (इन्फ्लेमेशन) दूर करती है। कलौंजी में थाइमोक्विनोन और निजेलोन नामक उड़नशील तेल श्वेत रक्त कणों में शोथ कारक आइकोसेनोयड्स के निर्माण में अवरोध पैदा करते हैं, सूजन कम करते हैं ओर दर्द निवारण करते हैं। कलौंजी में विद्यमान निजेलोन मास्ट कोशिकाओं में हिस्टेमीन का स्राव कम करती है, श्वास नली की मांस पेशियों को ढीला कर दमा के रोगी को राहत देती हैं।
प्रति-आंत्र कृमिः-
शोधकर्ता कलौंजी को पेट के कीड़ो (जैसे टेप कृमि आदि) के उपचार में पिपरेजीन दवा के समकक्ष मानते हैं। पेट के कीड़ो को मारने के लिए आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल को एक बड़ी चम्मच सिरके के साथ दस दिन तक दिन में तीन बार पिलाते हैं। मीठे से परहेज जरूरी है।
एच.आई.वी.
मिस्र के वैज्ञानिक डॉ. अहमद अल-कागी ने कलौंजी पर अमेरीका जाकर बहुत शोध कार्य किया, कलौंजी के इतिहास को जानने के लिए उन्होंने इस्लाम के सारे ग्रंथों का अध्ययन किया। उन्होंने माना कि कलौंजी, जो मौत के सिवा हर मर्ज को ठीक करती है, का बीमारियों से लड़ने के लिए अल्ला ताला द्वारा हमें दी गई प्रति रक्षा प्रणाली से गहरा नाता होना चाहिये। उन्होंने एड्स के रोगियों पर इस बीज और हमारी प्रति रक्षा प्रणाली के संबन्धों का अध्ययन करने के लिए प्रयोग किये। उन्होंने सिद्ध किया कि एड्स के रोगी को नियमित कलौंजी, लहसुन और शहद के केप्स्यूल (जिन्हें वे कोनीगार कहते थे) देने से शरीर की रक्षा करने वाली टी-4 और टी-8 लिंफेटिक कोशिकाओं की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से वृध्दि होती है। अमेरीकी संस्थाओं ने उन्हें सीमित मात्रा में यह दवा बनाने की अनुमति दे दी थी।
कलौंजी-एक रामबांण दवाः-
मिस्र, जोर्डन, जर्मनी, अमेरीका, भारत, पाकिस्तान आदि देशों के 200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में 1959 के बाद कलौंजी पर बहुत शोध कार्य हुआ है। मुझे पता लगा कि 1996 में अमेरीका की एफ.डी.ए. ने कैंसर के उपचार, घातक कैंसर रोधी दवाओं के दुष्प्रभावों के उपचार और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुदृढ़ करने के लिए कलौंजी से बनी दवा को पेटेंट पारित किया था। कलौंजी दुग्ध वर्धक और मूत्र वर्धक होती है। कलौंजी जुकाम ठीक करती है और कलौंजी का तेल गंजापन भी दूर करता है। कलौंजी के नियमित सेवन से पागल कुत्ते के काटे जाने पर भी लाभ होता है। लकवा, माइग्रेन, खांसी, बुखार, फेशियल पाल्सी के इलाज में यह फायदा पहुंचाती हैं। दूध के साथ लेने पर यह पीलिया में लाभदायक पाई गई है। यह बवासीर, पाइल्स, मोतिया बिंद की आरंभिक अवस्था, कान के दर्द व सफेद दाग में भी फायदेमंद है। कलौंजी को विभिन्न बीमारियों में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है।
1-कैंसरः- कैंसर के उपचार में कलौजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक ग्लास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लें। लहसुन भी खुब खाएं। 2 किलो गैंहू और 1 किलो जौ के मिश्रित आटे की रोटी 40 दिन तक खिलाएं। आलू, अरबी और बैंगन से परहेज़ करें।
2-खांसी व दमाः- छाती और पीठ पर कलौंजी के तेल की मालिश करें, तीन बड़ी चम्मच तेल रोज पीयें और पानी में तेल डाल कर उसकी भाप लें।
3-उदासी और सुस्तीः- एक ग्लास संतरे के रस में एक बड़ी चम्मच तेल डाल कर 10 दिन तक सेवन करें। आप को बहुत फर्क महसूस होगा।
4-स्मरणशक्ति और मानसिक चेतनाः- एक छोटी चम्मच तेल 100 ग्राम उबले हुए पुदीने के साथ सेवन करें।
5-डायबिटीजः- एक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।
6-गुर्दे और पेशाब की थैली की पथरीः- पाव भर कलौंजी को महीन पीस कर पाव भर शहद में अच्छी तरह मिला कर रख दें। इस मिश्रण की दो बड़ी चम्मच को एक कप गर्म पानी में एक छोटी चम्मच तेल के साथ अच्छी तरह मिला कर रोज नाश्ते के पहले पियें।
7-सुन्दर व आकर्षक चेहरे के लिएः- एक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक बड़ी चम्मच जैतून के तेल में मिला कर चेहरे पर मलें और एक घंटे बाद चेहरे को धोलें। कुछ ही दिनों में आपका चेहरा चमक उठेगा।
8-उल्टी और उबकाईः- एक छोटी चम्मच कार्नेशन और एक बड़ी चम्मच तेल को उबले पुदीने के साथ दिन में तीन बार लें।
9-स्वस्थ और निरोग रहने के लिएः- एक बड़ी चम्मच तेल को एक बड़ी चम्मच शहद के साथ रोज सुबह लें, आप तंदुरूस्त रहेंगे और कभी बीमार नहीं होंगे।
10-हृदय रोग, ब्लड प्रेशर और हृदय की धमनियों का अवरोधः- जब भी कोई गर्म पेय लें, उसमें एक छोटी चम्मच तेल मिला कर लें, रोज सुबह लहसुन की दो कलियां नाश्ते के पहले लें और तीन दिन में एक बार पूरे शरीर पर तेल की मालिश करके आधा घंटा धूप का सेवन करें। यह उपचार एक महीनें तक लें।
11-सफेद दाग और लेप्रोसीः- 15 दिन तक रोज पहले सेब का सिरका मलें, फिर कलौंजी का तेल मलें।
12-कमर दर्द और आर्थाइटिसः- हल्का गर्म करके जहां दर्द हो वहां मालिश करें और एक बड़ी चम्मच तेल दिन में तीन बार लें। 15 दिन में बहुत आराम मिलेगा।
13-सिर दर्दः- माथे और सिर के दोनों तरफ कनपटी के आस-पास कलौंजी का तेल लगायें और नाश्ते के पहले एक चम्मच तेल तीन बार लें कुछ सप्ताह बाद सर दर्द पूर्णतः खत्म हो जायेगा।
14-अम्लता और आमाशय शोथः- एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल एक कप दूध में मिलाकर रोज पांच दिन तक सेवन करने से आमाशय की सब तकलीफें दूर हो जाती है।
15-बाल झड़नाः- बालों में नीबू का रस अच्छी तरह लगाये, 15 मिनट बाद बालों को शेम्पू कर लें व अच्छी तरह धोकर सुखा लें, सूखे बालों में कलौंजी का तेल लगायें एक सप्ताह के उपचार के बाद बालों का झड़ना बन्द हो जायेगा।
16-नेत्र रोग और कमजोर नजरः- रोज सोने के पहले पलकों ओर ऑखो के आस-पास कलौजी का तेल लगायें और एक बड़ी चम्मच तेल को एक कप गाजर के रस के साथ एक महिने तक लें।
17-दस्त या पैचिशः-एक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक चम्मच दही के साथ दिन में तीन बार लें दस्त ठीक हो जायेगा।
18-रूसीः- 10 ग्राम कलौंजी का तेल, 30 ग्राम जैतून का तेल और 30 ग्राम पिसी मेंहन्दी को मिला कर गर्म करें। ठंडा होने पर बालों में लगाएं और एक घंटे बाद बालों को धो कर शैम्पू कर लें।
19-मानसिक तनावः- एक चाय की प्याली में एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर लेने से मन शांत हो जाता है और तनाव के सारे लक्षण ठीक हो जाते हैं।
20-स्त्री गुप्त रोगः- स्त्रियों के रोगों जैसे श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, प्रसवोपरांत दुर्बलता व रक्त स्त्राव आदि के लिए कलौंजी गुणकारी है। थोड़े से पुदीने की पत्तियों को दो ग्लास पानी में डाल कर उबालें, आधा चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर दिन में दो बार पियें। बैंगन, आचार, अंडा और मछली से परहेज रखें।
21-पुरूष गुप्त रोगः- स्वप्नदोष, स्थंभन दोष, पुरुषहीनता आदि रोगों में एक कप सेब के रस में आधी छोटी चम्मच तेल मिला कर दिन में दो बार 21 दिन तक पियें। थोड़ा सा तेल गुप्तांग पर रोज मलें। तेज मसालेदार चीजों से परहेज करें।
कलौंजी के बारे में कई प्राचीन ग्रन्थों में पढ़ने के बाद मैं भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि कलौंजी एक महान औषधि है जिसमें हर रोग से लड़ने की अपार, असिमित और अचूक क्षमता है। अन्त में मुझे मेरे एक शायर दोस्त की पंक्ति याद आ रही है।
खुदा ने क्या खूब ये कलौंजी बनाई है।
जो मौत के सिवा हर मर्ज की दवाई है।
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