मल्टीपल माइलोमा
मल्टीपल माइलोमा ओवरव्यू |
रक्षातंत्र में कई तरह की सेल्स होते हैं, जो साथ मिल कर इन्फेक्शन या किसी बाहरी आक्रमण का मुकाबला करते हैं। इनमें लिम्फोसाइट्स प्रमुख हैं जो मुख्यतः दो तरह के होती हैं पहले टी-सेल्स और दूसरे बी-सेल्स।
जब शरीर पर किसी बैक्टीरिया का आक्रमण होता है तब बी-सेल्स मेच्यौर होकर प्लाज्मा सेल्स बनते हैं। ये प्लाज्मा सेल्स अपनी सतह पर एंटीबॉडीज़ (जिन्हें इम्युनोग्लोब्युलिन भी कहते हैं) बनाते हैं, जो बैक्टीरिया से युद्ध करके उनका सफाया करते हैं। लिम्फोसाइट्स शरीर के कई हिस्सों जैसे लिम्फनोड्स, बोनमेरो, आंतों और ब्लड में पाए जाते हैं। लेकिन प्लाज्मा सेल्स अमूमन बोनमेरो में ही रहते हैं।
जब प्लाज्मा सेल्स कैंसरग्रस्त होते हैं, तो वे अनकंट्रोल्ड होकर तेज़ी से बढ़ने लगते हैं और ट्यूमर का रूप ले लेते हैं, जिसे प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। यदि एक ही ट्यूमर बनता है तो इसे आइसोलेटेड या सोलिटरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं, लेकिन यदि एक से अधिक ट्यूमर बनते हैं तो इसे मल्टीपल माइलोमा कहते हैं। ये गांठें मुख्यतः बोनमेरो में बनती हैं।
मल्टीपल माइलोमा में तेजी से बढ़ते प्लाज्मा सेल्स बोनमेरो में फैल जाते हैं और दूसरे सेल्स को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। परिणाम स्वरूप अन्य कोशिकाओं की आबादी कम होने लगती है। यदि आर.बी.सी. का बनना कम होता है तो मरीज एनीमिया का शिकार हो जाता है, उसे कमजोरी व थकान होती है और शरीर सफेद पड़ जाता है। प्लेटलेट्स कम (Thrombocytopenia) होने पर ब्लीडिंग होने का खतरा बना रहता है। डब्ल्यु.बी.सी. कम (Leucopenia) होने पर इन्फेक्शन्स हो सकते हैं।
माइलोमा में बोन्स भी कमजोर होने लगती है। बोन्स को स्वस्थ और मजबूत रखने का कार्य दो तरह के सेल्स मिल जुलकर काम करते हैं। जहां ओस्टियोब्लास्ट सेल्स नये बोन टिश्यू बनाते हैं, वहीं ओस्टियोक्लास्ट सेल्स पुराने बोन टिश्यूज़ को गलाने का काम करते हैं। माइलोमा सेल्स ओस्टियोक्लास्ट एक्टिवेटिंग फेक्टर सीक्रीट करते हैं, जिसके प्रभाव से ओस्टियोक्लास्ट तेजी से हड्डियों को गलाने लगते हैं। दूसरी तरफ ओस्टियोब्लास्ट को नये बोन टिश्यूज़ बनाने के आदेश नहीं मिल पाते हैं, फलस्वरूप हड्डियां कमजोर व खोखली होने लगती हैं, मरीज को दर्द होता है और अचानक हड्डियां चटकने व टूटने लगती है। हड्डियां कमजोर होने से उनका कैल्सियम भी पिघलने लगता है और पिघल कर ब्लड में मिल जाता है, जिससे ब्लड में कैल्सियम का लेवल बढ़ने लगता है।
असामान्य और कैंसरग्रस्त प्लाज्मा सेल्स इन्फेक्शन से लड़ने लायक एंटीबॉडीज बनाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए ये शरीर की रक्षा करने में पूरी तरह बेबस और नाकामयाब रहते हैं। माइलोमा सेल्स एक ही प्लाज्मा सेल की अनेक कार्बन कॉपीज़ की तरह होते हैं और ये एक ही तरह की मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज या M प्रोटीन बनाते हैं। यह माइलोमा का खास डिफेक्ट है। इस प्रोटीन को पेराप्रोटीन या M स्पाइक भी कहते हैं। जब बोनमेरो और ब्लड में इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ने लगती है तो मरीज को कई तकलीफें होती हैं। इम्युनोग्लोब्युलिनेज़ प्रोटीन चेन्स 2 लंबी चेन्स (heavy) और 2 छोटी चेन्स (light) से बनी होती हैं। कई बार किडनी इस M प्रोटीन का यूरीन में एक्सक्रीट करते हैं। यूरीन में निकलने वाले इस प्रोटीन को लाइट चेन या बैन्स जोन्स प्रोटीन कहते हैं। ये किडनी को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेती हूं, मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है,
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत, यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है।
- लिजा रे
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