ट्रांस फैट - टेक्नोलोजी की मार दुनिया हुई बीमार
( डॉ. आशा मिश्रा उपाध्याय से)
नयी दिल्ली 02 फरवरी (वार्ता)। अमेरिका और यूरोप समेत विश्व के अधिकांश देशों ने कई साल पहले जिस खतरनाक ट्रांस फैट पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी, उस फैट का हमारे यहां अभी भी वनस्पति और रिफांइड तेलों में भरपूर प्रयोग हो रहा है। इस वजह से देश में हृदय, मधुमेह, अल्ज़ाइमर, कैंसर आदि घातक बीमारियां तेजी से पैर पसार रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्रांस फैट को हमारे शरीर को दिनभर में मिलने वाली ऊर्जा का एक प्रतिशत हिस्सा से कम रखने की अनुशंसा की है। गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एडं इनवायरमेंट (सीएसई) ने वर्ष 2012 में 30 ब्रांडेड तेलों पर अनुसंधान करके बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया था। सीएसइ ने इन तेलों का अपनी प्रयोगशाला में परीक्षण करके कहा था,“हमें रसोई के तेल से धीमा जहर मिल रहा है और हम हर रोज खतरनाक बीमारियों की गिरफ्त में जा रहे हैं।” इस संस्था ने इन तेलों में डेनमार्क के अंतरराष्ट्रीय मानक दो प्रतिशत से कहीं अधिक पांच से 23 प्रतिशत तक ट्रांस फैट की मौजूदगी की पुष्टि की थी। सीएसई की इस पहल के बाद भारतीय खाद्य एवं सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफसएएसएआई) ने तेल कंपनियों के लिए भार से 10 प्रतिशत से कम ट्रांस फैट का मानक तय किया और इस वर्ष फरवरी तक इसे पांच प्रतिशत लाने के लिए अधिसूचना जारी की गयी है। सीएसई के खाद्य एवं सुरक्षा डिविजन के प्रोग्राम मैनेजर अमित खुराना ने यूनीवार्ता को बताया,“सरकार ने ट्रांस फैट के बारे में नोटिफिकेशन जारी किया है कि इसे पांच प्रतिशत पर लाना है लेकिन देखिए कब तक इसे अमल में लाया जाता है। दस से पांच प्रतिशत पर लाए जाने का सरकार का कदम स्वागतयोग्य है। इससे हमारे स्वास्थ्य पर काफी फर्क पड़ेगा। लेकिन भविष्य में इसे ‘नीयर जीरो’ लाना होगा। हमारी मांग है कि खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग पर इसकी लेबलिंग होनी चाहिए। साफ-साफ अक्षरों में सेचुरेटेड और ट्रांस फैट की मात्रा के बारे में उल्लेख होना चाहिए। हमने बाजार में मौजूद कई नामी -गिरामी कंपनियों के खाद्य तेलों पर अध्ययन किया था और उनमें स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक ट्रांस फैट की मौजूदगी पांच से 23 गुना अधिक पायी थी। वर्ष 2012 में हमारे अध्ययन के बाद एफएसएसएआई ने वर्ष 2013 में ट्रांस फैट का लेबल 10 प्रतिशत करने और वर्ष 2015 तक इसे पांच प्रतिशत करने के बारे में नोटिफिकेशन जारी किया था। फिलहाल यह लेबल 10 प्रतिशत है लेकिन पांच प्रतिशत के लेबल की समय सीमा को बढ़ा कर इस वर्ष फरवरी तक कर दिया गया है। उम्मीद है इस पर गंभीरता से अमल किया जायेगा।” सीएसई की निदेशक सुनिता नारायण ने कहा है कि पी गोपीचंद राष्ट्रीय हीरो इसलिए नहीं हैं कि उन्होंने दो ऑलंपिक मेडलिस्ट, साइना नेहवाल और पीवी सिंधु को तैयार किया है। वह इसलिए आदरणीय और सम्मानीय हैं कि सॉफ्ट ड्रींक के लिए विज्ञापन करने से मना करने वाले वह इकलौते स्पोर्ट्स मैन हैं। सुश्री नारायण के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में एफएसएसएआई से जंक फूड और प्रसिद्ध हस्तियों से अस्वास्थ्यकर खाद्य एवं पेय पदार्थों के बारे में विज्ञापन के संबंध में गाइडलाइंस तैयार करने को कहा था। लेकिन इस दिशा में कहां कुछ हुआ है। ब्रांड लॉबी की कोशिश होती है कि इस तरह की कोई अच्छी चीज अमल में नहीं आए।
स्पेन में “बडविग प्रोटोकॉल” के तहत कैंसर के खिलाफ वैकल्पिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र का संचालन करने वाले डॉक्टर एल जेनकिंस ने यूनीवार्ता से आज विशेष बातचीत में कहा कि मानवीय हितों के लिए अद्वितीय काम करने वाली सीएसई ने केवल भारत की जनता की आंखें ही नहीं खोल दीं बल्कि कुंभकर्ण की नींद सो रहे एफएसएसएआई को भी झकझोर कर उठा दिया है। डॉ. जेनकिंस ने कहा “आपकी सरकार को जागना ही होगा और अपने लोगों की रक्षा करनी ही होगी क्योंकि एक देश मुट्ठी भर “कंपनियों” से नहीं, एक-एक नागरिक को मिलाकर बनता है और देश का स्वास्थ्य हर हाल में सर्वोपरि है।” उन्होंने बताया कि दिल की बीमारियों समेत कई गंभीर रोगों के लिए जिम्मेदार ट्रांस फैट पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा,“हमारे देश में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन फूड सेक्यूरिटी एडं न्यूट्रीशन एजेंसी (एईएसएएन) ने वर्ष 2009 में विधेयक का प्रारूप तैयार किया और कानून लाकर देश के बाजार में ट्रांस फैट का मानक अधिकतम दो प्रतिशत तय किया गया है। मेरी इच्छा है कि इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाये।” उन्होंने कहा,“कैंसर की प्राकृतिक चिकित्सा की खोज करने और इसके बाद इस बीमारी से जूझ रहे कई लोगों को नयी जिंदगी देने वाली जर्मनी की डॉक्टर जॉहाना बडविग ने कई साल पहले ने घोषणा कर दी थी कि ट्रांस फैट हमारी सेहत का बड़ा दुश्मन है। लेकिन तेल कंपनियों और सरकार की मिलीभगत के कारण इस पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया गया और ना ही उनकी खोज को महत्व दिया गया। कैंसर पर नियंत्रण की दिशा में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए डॉ. बडविग को नोबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित किया गया था। उन्होंने नोबल समिति की उस शर्त को मानने से इनकार कर दिया था कि वह अपनी प्राकृतिक उपचार पद्धति में कैंसर के उपचार में आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी शामिल करें और उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला। हमें लाभ से ऊपर उठकर काम करना होगा तभी हम सच्चे अर्थों में विश्व को एक परिवार के रूप में समेट सकते हैं।”
ट्रांस फैट के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जाने-माने चिकित्सक डॉ ओ पी वर्मा ने कहा कि बच्चे और युवा जिस तेजी से फास्ट फूड और चटपटे खाद्य पदार्थों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, उसी रफ्तार से बाजारों में बिकने वाले कुकिंग तेलों और पैक्ड फूड जहरीले होते जा रहे हैं। हम जो रकम ट्रांस फैट खाने से बीमार हो रहे लोगों के इलाज पर खर्च कर रहे हैं, वह हम हमारी प्रगति पर खर्च करते। दुख की बात है कि आज हमारी हैल्थ केयर सर्विसेज़ हैल्थ इंडस्ट्री बन चुकी हैं। आज इनका सिद्धांत है, पहले बीमार करो फिर उपचार करो और दोनों से कमाओ। पहले 50 रुपये की लागत से बना पिज्जा 500 रुपये में खिलाएंगे और जब हमें कैंसर या कोई दूसरा रोग हो गया तो मुट्ठी भर दवा के हजारों और लाखों वसूलेंगे।” उन्होंने कहा “ट्रांस फैट टॉक्सिक, अखाद्य और कृत्रिम फैट है। इसे सस्ते तेलों का आंशिक हाइड्रोजिनेशन करके फैक्टरी में बनाया जाता है। प्राकृतिक तेल और जीव-वसा में प्राय: यह फैट नहीं होता है। यह देखने में घी और मक्खन की तरह होता है और इसकी शेल्फ लाइफ बहुत अधिक होती है, यानी इसमें बने व्यंजन अधिक देर तक चलते हैं। इसको बनाने में लगात भी कम आती है। इसलिए यह बेकरी, हलवाई और प्रोसेस्ड फूड निर्माताओं का मनपंसद फैट है। घरों में इस्तेमाल होने वाले रिफाइंड ऑयल और वनस्पतियों में भी यह फैट होता है। फैटी एसिड मूलत: एक हाइड्रो-कार्बन की लड़ होती है जो अनसेचुरेटेड अथवा सेचुरेटेड हो सकती है। अनसेचुरेटेड फैटी एसिड़ की लड़ से एक ही तरफ के दो हाइड्रोजन अलग होते हैं और एक डबल बांड बनता है। यहां यह लड़ कमजोर पड़ने के कारण मुड़ जाती है और भरपूर मात्रा में ऊर्जावान इलेक्ट्रोन इकट्ठे हो जाते हैं। मुड़ने से इसके भौतिक और रासायनिक गुण प्रभावित होते हैं। ये सामान्य तापमान पर तरल बने रहते हैं। इसे सिस विन्यास कहते हैं । सिस विन्यास के विपरीत ट्रांस फैट में उलटी दिशा में हाइड्रोजन अलग होते हैं यानी एक ऊपर की तरफ तो दूसरा नीचे की तरफ। इसके कारण फैटी एसिड की लड़ सीधी रहती है और आपस में जमी रहती है। यही कारण है कि ये सामान्य तापमान पर संतृप्त वसा अम्ल की तरह ठोस रहते हैं। यह असामान्य और अप्राकृतिक विन्यास है।” उन्होंने कहा,“हाइड्रोजिनेशन की प्रक्रिया में केटेलिस्ट निकल धातु की उपस्थिति में तेल को तेज तापमान पर गर्म करके भारी दबाव से हाइड्रोजन गैस प्रवाहित की जाती है। इससे तेल ठोस होने लगता है। तेल का आंशिक हाइड्रोजिनेशन ही किया जाता है, क्योंकि पूरा करने पर यह पत्थर की तरह कठोर हो जाता है और इसका उपयोग संभव नहीं होता । जानी-मानी कंपनियों के नमकीन चिप्स, बर्गर, छोले भटूरे, समोसा, कचौडी, पकौडी, कैंडी, पिज्जा, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि में भारी मात्रा में ट्रांस फैट पाया जाता है।”
Read more at http://www.univarta.com/due-to-trans-fat-we-are-getting-sick/science-and-technology/news/769105.html#.WJMzRjpcjhI.gmail#uZCI0tVbbAlobuUX.99
No comments:
Post a Comment