इलेक्ट्रोन
परिवहन श्रंखला
माइटोकॉंड्रियम की संरचना
ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स चक्र में हमने देखा कि एक ग्लूकोज
के अणु से दस उच्च ऊर्जा-वाहक तत्व NADH और दो FADH2 बनते हैं, जो
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में मुख्य इलेक्ट्रोन दानदाता के रूप में कार्य
करते हैं। औसतन एक NADH तीन और एक FADH2 दो ATP
बनाता है। इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला
माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में संपन्न होती है, जिसके निम्न घटक या
कॉम्प्लेक्स होते हैं।
एन.ए.डी.एच. डीहाइड्रोजिनेज या कॉम्प्लेक्स I
कॉम्प्लेक्स I या एन.ए.डी.एच. ऑक्सीडोरिडक्टेज या डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम, जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला की पहली प्रोटीन
संरचना है, जो अंग्रेजी के अक्षर L के आकार का, जटिल और सबसे बड़ा (मात्रा 880 किलोडाल्टन) होता है और इसमें कम
से कम 46 प्रोटीन इकाइयाँ और FMN और आठ Fe-S क्लस्टर होते हैं। संक्षेप में यह
एंजाइम NADH से दो इलेक्ट्रोन अलग करता है और उसे NAD+ के रूप में ऑक्सीकृत करता है और ये दोनों इलेक्ट्रोन
कोएंजाइम क्यू-10 (ubiquinone) या UQ का अपघटन कर
यूबीक्विनोल या UH2 बनाते
हैं। इस क्रिया में 4 हाइड्रोजन मेट्रिक्स
से लिये जाते हैं और 4 हाइड्रोजन
अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप कर दिये जाते हैं। इस मुख्य क्रिया को निम्न समीकरण में
दर्शाया जा सकता है।
NADH + 1H+ + Q + 4H+मेट्रिक्स à NAD+ + QH2 + 4H+अन्तरझिल्लीय
इस क्रिया में सबसे पहले NADH कॉम्प्लेक्स
I से संपर्क करता है और दो ऊर्जावान इलेक्ट्रोन कॉम्प्लेक्स I को देकर NAD+ के रूप में
ऑक्सीकृत होता है। NAD+ क्रेब्स चक्र में पुनर्चक्रित हो जाता
है। ये
दोनों इलेक्ट्रोन कॉम्प्लेक्स I के उपघटक फ्लेमिन मोनोन्युक्लियोटाइड (FMN) को
अपघटित कर FMNH2 बनाते हैं।
यहाँ
मैं आपको बतला दूँ कि ऑक्सीकरण का मतलब ऑक्सीजन से जुड़ना और अपघटन का मतलब
हाइड्रोजन से जुड़ना होता है। इलेक्ट्रोन की दृष्टि से देखें तो इलेक्ट्रोन का
जुदा होना ऑक्सीकरण है और इलेक्ट्रोन से मिलन अपघटन है (Oil Rig)। इसके बाद इलेक्ट्रोन लोह व गंधक
युक्त यौगिकों (Fe-S क्लस्टर्स) से क्रिया करते-करते और
ऊर्जा दान करते-करते आगे बढ़ते हैं और यूबीक्विनोन को दे दिये जाते हैं।
कॉम्प्लेक्स I में Fe-S क्लस्टर्स ऑक्सीकृत और
अपघटित दोनों अवस्थाओं [2Fe–2S] और [4Fe–4S] में विद्यमान होते हैं। FMNH2 पहले Fe-S क्लस्टर्स को एक इलेक्ट्रोन देकर FMNH· के रूप में अपघटित करता है। FMNH· अगले Fe-S क्लस्टर को इलेक्ट्रोन देकर उसे भी FMN के रूप में अपघटित
करता है। इस क्रिया को निम्न समीकरणों में दर्शाया गया
है।
FMNH· + (Fe-S)ox à FMN + (Fe-S)red + H+
इलेक्ट्रोन के
परिवहन से उत्पन्न ऊर्जा दो हाइड्रोजन ऑयन मेट्रिक्स से उठा कर अन्तरझिल्लीय कक्ष
में पंप कर देती है। यहाँ ध्यान देने
योग्य बात यह है कि हाइड्रोजन ऑयन का अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप होना और
कॉम्प्लेक्स I में से इलेक्ट्रोन का गुजरना दोनों क्रियाएँ एक दूसरे
से जुड़ी हैं। यदि आप हाइड्रोजन ऑयन को अन्तरझिल्लीय कक्ष में जाने से रोक देते
हैं तो इलेक्ट्रोन भी कॉम्प्लेक्स I को पार नहीं कर पायेंगे या इलेक्ट्रोन
को कॉम्प्लेक्स I से गुजरने नहीं देंगे तो हाइड्रोजन ऑयन भी अन्तरझिल्लीय कक्ष को पार नहीं कर पायेंगे। दोनों क्रियाओं का साथ घटित होना नियम है।
कोएंजाइम क्यू
कोएन्ज़ाइम क्यू-10 विटामिन की तरह एक एन्जाइम है जो
कोशिकीय ऊर्जा के निर्माण में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे यूबीक्विनोन,
मिटोक्विनोन, यूबीडेकारेनोन और कोक्यू-10
भी कहते है। इसे यूबीक्विनोन (यूबी = सर्वत्र) इसलिए कहते हैं कि यह हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में पाया जाता
है और संरचना की दृष्टि से यह एक क्विनोन है। इसकी पूँछ में 10 आइसोप्रेनाइल उपघटक
होते हैं। कोक्यू-10 वसा में घुलनशील पदार्थ है और अत्यंत शक्तिशाली एन्टीऑक्सीड्न्ट
और स्वास्थ्यवर्धक है। यह कोशिकाओं में माइटोकोन्ड्रिया की आँतरिक झिल्ली में
कार्य करता है। इसकी तीन अवस्थाएँ यूबीक्विनोन (पूर्णतः ऑक्सीकृत),
यूबीसोमीक्विनोन और यूबीक्विनोल (पूर्णतः अपघटित) होती हैं। कोक्यू-10 कॉम्प्लेक्स I (NADH dehydrogenase) और कॉम्प्लेक्स II ( succinate dehydrogenase) से
कॉम्प्लेक्स III (ubiquinone-cytochrome
c reductase) में
अपघटन (reduction) द्वारा इलेक्ट्रोन्स का स्थानांतरण करता है।
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में इलेक्ट्रोन-वाहक एक विशिष्ट
अणु से ही इलेक्ट्रोन ग्रहण कर सकते हैं। गतिशील इलेक्ट्रोन Fe-S क्लस्टर की श्रंखला से गुजरते हुए कोएंजाइम क्यू को
स्थानांतरित कर दिये जाते हैं। कोएंजाइम क्यू दो इलेक्ट्रोन ग्रहण करते है और
मेट्रिक्स से दो हाइड्रोजन ऑयन भी उठाते हैं और
QH2 रूप में अपघटित (Reduced) हो जाते हैं।
सक्सीनेट-क्यू ऑक्सीडोरिडक्टेज या कॉम्प्लेक्स II
सक्सीनेट-क्यू ऑक्सीडोरिडक्टेज या कॉम्प्लेक्स II या सक्सीनेट डिहाइड्रोजिनेज इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का
दूसरा प्रवेश द्वार भी है। लेकिन एक वैकल्पिक द्वार है और कम ही काम में लिया जाता
है। इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का यह एक मात्र एन्जाइम है जो क्रेब्स-चक्र और
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला दोनों में अपनी भूमिका निभाता है। कॉम्प्लेक्स
II में चार प्रोटीन उपइकाइयाँ होती हैं, जिनमें दो जलस्नेही (hydrophilic) और दो जलरोधी (hydrophobic) होती हैं। पहली
जलस्नेही इकाइयों को SdhA और SdhB कहते हैं, पहली से एक FAD सह-घटक जुड़ा रहता है जिसमें सक्सीनेट का बन्धन-स्थल होता
है। दूसरी जलस्नेही इकाई एक Fe-S प्रोटीन है, जिसमें तान लोह-गंधक
गुच्छ 2Fe-2S, 3Fe-4S और 4Fe-4S होते
हैं। जलरोधी इकाइयों को SdhC and SdhD कहते हैं। ये
माइटोकोन्ड्रिया में फैले एक प्रोटीन से बंधी रहती हैं। इस कॉम्प्लेक्स II में छः अल्फा कुण्डलियाँ (α-helices), हीम बी ग्रुप और SdhB, SdhC और SdhD से घिरा यूबीक्विनोन के लिए बन्धन-स्थल होता है।
हीम समूह इलेक्ट्रोन परिवहन में कोई सहायता नहीं करता
है। कॉम्प्लेक्स II क्रेब्स-चक्र की आठवीं क्रिया में
सक्सीनेट को फ्यूमरेट में ऑक्सीकृत करता है और इस क्रिया से निकले इलेक्ट्रोन FAD को अपघटित कर FADH2
बनाते हैं। इलेक्ट्रोन FADH2 से निकल कर Fe-S क्लस्टर की
श्रंखला से गुजरते हुए कोएंजाइम क्यू को स्थानांतरित
कर दिये जाते हैं। कोएंजाइम क्यू दो इलेक्ट्रोन ग्रहण करते है और मेट्रिक्स से दो
हाइड्रोजन ऑयन भी उठाते हैं और QH2 रूप में अपघटित (Reduced) हो जाते हैं। इस क्रिया में NADH के ऑक्सीकरण की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा उत्पन्न
होती है इसलिए कॉम्प्लेक्स II हाइड्रोजन ऑयन को
अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप नहीं कर पाता है। कॉम्प्लेक्स II
की मुख्य क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है।
क्यू-साइटोक्रोम सी ऑक्सीडोरिडक्टेज या साइटोक्रोम बी-सी1 या
कॉम्प्लेक्स III
क्यू-साइटोक्रोम सी ऑक्सीडोरिडक्टेज को साइटोक्रोम बी-सी1
कॉम्प्लेक्स या कॉम्प्लेक्स III भी कहते हैं। यह एंजाइम दो प्रोटीन खंडो से बना होता है, हर खंड में 11
प्रोटीन इकाइयाँ (पेप्टाइड), Fe-S कैन्द्र, और तीन साइटोक्रोम (एक साइटोक्रोम सी1 और दो
साइटोक्रोम-बी) होते हैं। साइटोक्रोम एक प्रोटीन होता है जो इलेक्ट्रोन का
स्थानांतरण करने में सक्षम होता है और इसमें कम से कम एक हीम घटक होता है। हीम घटक के मध्य में लोह अणु होते हैं, जो
इलेक्ट्रोन के स्थानांतरण के आधार पर अपघटित फैरस (+2) या ऑक्सीकृत फैरिक (+3) के रूप में हो
सकते हैं। यह यूबीक्विनोल QH2 से इलेक्ट्रोन ग्रहण करता है और साइटोक्रोम सी
को स्थानांतरित करता है। (ध्यान रखें मैंने कई जगह साइटोक्रोम को संक्षिप्त में साइटो लिखा है, आप इसे
साइटोक्रोम ही पढ़ें।)
हर प्रोटीन खण्ड का एक पेप्टाइड दूसरे खण्ड में फैला रहता
है। हर खण्ड की तीन सक्रिय इकाइयाँ
इलेक्ट्रोन्स के स्थानान्तर में सीधी भूमिका निभाती हैं, अन्य इकाइयाँ दूसरे कार्य
करती हैं। दोनों साइटोक्रोम-बी का अधिकांश
भाग आन्तरित झिल्ली में धंसा रहता है और मेट्रिक्स तथा अंतरझिल्लीय कक्ष से संपर्क
कम रहता है। साइटोक्रोम-सी1 साइटोक्रोम-बी
के ऊपर स्थित होता है और अंतरझिल्लीय कक्ष के संपर्क में रहता है। इसकी पूँछ या
कुण्डली के आकार का हिस्सा कॉम्प्लेक्स तथा झिल्ली में धंसा रहता है और इसे स्थिर
रखता है। रेस्की उप-इकाइयाँ Fe-S प्रोटीन
(ISP) से
बनती हैं, जिनके तीन भाग होते हैं – पहला एक पूँछ या कुण्डली (Tail)जो झिल्ली में फैली रहती है – दूसरा कब्जा (Hinge) जो पूँछ तथा सर को जोड़ता है व तीसरा मुण्ड (Head) जिसमें Fe-S प्रोटीन (ISP) होते हैं और दूसरे प्रोटीन खण्ड साइटोक्रोम-सी1 में धँसा रहता है तथा उसके रसायनिक
संपर्क बनाये रहता है।
हर साइटोक्रोम-बी में दो हीम घटक होते हैं। एक में हीम 501 व हीम 502 तथा
दूसरे में में
हीम 521 व हीम 522 होते हैं। चूँकि दोनों हीम घटक अलग-अलग
परिस्थिति में रहते हैं इसलिए उनके गुणधर्म जैसे अपघटन विभव (reduction potential) भी अलग-अलग होते हैं। हीम 501 व हीम 521 का
विभव कम होता है इन्हें bL कहते
हैं और 502 व हीम 522 का विभव ज्यादा होता है जिनको bH कहते हैं। हर साइटोक्रोम-बी में दो बंधन-स्थल (binding sites) क्रमशः
QP और QN होते
हैं। QP bL के समीप होता है और यूबीक्विनोल से जुड़ता है और QN bH के समीप होता है जो यूबीक्विनोन से जुड़ता है।
साइटोक्रोम-सी1 में एक हीम होता है। इसे अंतरझिल्लीय कक्ष
की तरफ से देखा जाये तो इसमें एक छिद्र होता है, जिसमें से साइटोक्रोम-बी के हीम
दिखाई देते हैं। इस छिद्र द्वारा साइटोक्रोम-सी1 हीम रेस्की प्रोटीन से संपर्क
करता है। साइटोक्रोम-सी1 की सतह पर भी एक छिद्र होता है, जो साइटोक्रोम-सी से
संपर्क तब करता है जब दूसरे छेद द्वारा वह रेस्की प्रोटीन से संपर्क करता है।
इसमें कुछ ऋणात्मक आवेश के अवशेष भी रहते हैं, जो
साइटोक्रोम-सी पर घनात्मक आवेश को खींचते हैं और साइटोक्रोम-सी से उनका बेहतर संपर्क बनाते हैं।
रेस्की प्रोटीन के मुण्ड में Fe-S कैन्द्र
स्थित होते हैं। Fe-S कैन्द्र दो His बन्धक से जुड़े रहते हैं। रेस्की प्रोटीन का
कब्जा साइटोक्रोम-सी1 से
जुड़ा रहता है, इसलिए मुण्ड तीन स्थितियों में मुड़ सकता है। पहली स्थिति (प्रारंभिक स्थिति) में Fe-S/His कॉम्पेल्क्स
का His साइटो-बी के QP से नहीं जुड़ा रहता है। दूसरी स्थिति (साइटो-बी स्थिति) में Fe-S/His कॉम्पेल्क्स
का His बन्धक साइटो-बी के QP से जुड़े यूबीक्विनोल के संपर्क में रहता है। तीसरी
स्थिति (साइटो-सी1 स्थिति) में Fe-S/His कॉम्पेल्क्स
का दूसरा His बन्धक साइटो-सी1 के
हीम से हाइड्रोजन-बन्ध द्वारा संपर्क करता है।
क्यू चक्र
क्यू चक्र के प्रारंभ में साइटो-बी का QP मुक्त रहता है और रेस्की प्रोटीन का Fe-S कैन्द्र
प्रारंभिक स्थिति में रहता है। इसके बाद
साइटो-बी स्थिति में रेस्की प्रोटीन का मुण्ड घूम जाता है (क्योंकि रेस्की प्रोटीन सोइटो-सी1
से एक कब्जे द्वारा जुड़ा रहता है), Fe-S का His बन्धक यूबीक्विनोल UQH2 से जुड़ जाता है और एक प्रोटोन को त्याग कर UQH •– बन जाता है। यह प्रोटोन अंतरझिल्लीय कक्ष में चंपत हो जाता
है। प्रोटोन त्याग कर UQH •– बनने के
बाद यह His के
द्वारा एक इलेक्ट्रोन Fe+3 को देता है और उसे Fe+2 के रूप में अपघटित करता है। एक इलेक्ट्रोन अलग होने के बाद यह UQH •– से सेमीयूबीक्विनोन UQH • बन जाता है, जो एक प्रोटोन त्याग कर UQ •– (conjugate base of the semiquinone) बन
जाता है। पहले प्रोटोन की तरह यह प्रोटोन भी अंतरझिल्लीय कक्ष में चंपत हो जाता
है। Fe-S कैन्द्र का Fe अपघटित होने के बाद रेस्की प्रोटीन का मुण्ड घूम कर साइटो-सी1 स्थिति
में आ जाता है और Fe-S का दूसरा His साइटो-सी1 के हीम से संपर्क करता है। यह संपर्क
होते ही Fe-S से एक इलेक्ट्रोन दूसरे His बन्धक से होता हुआ
फुर्ती से साइटो-सी1 हीम के Fe
से जा मिलता है और रेस्की प्रोटीन का Fe-S कैन्द्र
ऑक्सीकृत होकर प्रारंभिक स्थिति में आ जाता है। इलेक्ट्रोन पाकर साइटो-सी1 का हीम
अपघटित हो जाता है। और जब यह साइटो-सी से संपर्क स्थापित करता है तो साइटो-सी1 हीम
से एक इलेक्ट्रोन निकल कर साइटो-सी के हीम से जा मिलता है। साइटो-सी इलेक्ट्रोन
लेकर झिल्ली से बाहर निकलता है और अंतरझिल्लीय कक्ष में तैरते हुए कॉम्प्लेक्स IV पहुँचता
है।
अब हम पुनः साइटो-बी के बंधन-स्थल पर QP पर
लौटते हैं जहाँ UQ •– निर्मित हुआ था। यह UQ •– हीम bL को एक और इलेक्ट्रोन देकर UQ के रूप में पूर्णतः ऑक्सीकृत होता है। अब एक इलेक्ट्रोन हीम bL के Fe से हीम bH के Fe को पहुँचता है। हीम bH साइटो-बी
के बंधन-स्थल QN से
जुड़े UQ के बिलकुल समीप होता है, एक इलेक्ट्रोन UQ देकर अपघटित करता है और UQ •– बनता है। जब यह UQ •– मेट्रिक्स से एक प्रोटोन उठाता है और अपघटित होकर UQH • बनता है। इस
तरह क्यू चक्र के पहली पारी के उत्पाद QP बंधन-स्थल पर UQ, अपघटित सोइटो-सी और QN बंधन-स्थल पर UQH • सेमीयूबीक्विनोन हैं।
क्यू चक्र की दूसरी पारी की शुरूआत भी पहली पारी की भाँति
होती है और यूबीक्विनोल UQH2 के बंधन-स्थल
QP से जुड़ता है। दूसरी पारी बिलकुल पहली पारी की
तरह ही संपन्न होती है सिर्फ पारी के अन्त में मेट्रिक्स से दो हाइड्रोजन ऑयन लिए
जाते हैं और QN बंधन-स्थल पर UQH • सेमीयूबीक्विनोन अपघटित होकर यूबीक्विनोल UQH2 बनता है, इस पूरे तरह क्यू चक्र में यूबीक्विनोन UQ का यूबीक्विनोल UQH2 के रूप में पूर्ण अपघटन यहीं होता है।
संक्षेप में क्यू चक्र
·
दो
यूबीक्विनोल UQH2 ऑक्सीकृत होकर यूबीक्विनोन UQ बनते हैं।
·
दो
साइटोक्रोम-सी अपघटित होते हैं (पूरे चक्र में कुल एक यूबीक्विनोन UQ बनता है)।
·
एक
यूबीक्विनोन UQ के अपघटन से यूबीक्विनोल UQH2 बनता है।
·
चार
हाइड्रोजन मेट्रिक्स से अंतरझिल्लीय कक्ष में
भेजे जाते हैं।
साइटोक्रोम बी-सी1 की मुख्य क्रिया में यूबीक्विनोल UQH2 के एक अणु का ऑक्सीकरण होता है, मेट्रिक्स से दो
हाइड्रोजन ऑयन लिए जाते हैं और कोएंजाइम क्यू का एक अणु बनता है। साइटोक्रोम सी
(यह एक छोटा सा हीम युक्त प्रोटीन है) के दो अणुओं का अपघटन होता है और चार
हाइड्रोजन ऑयन अंतरझिल्लीय कक्ष में पंप कर दिये जाते हैं। चूँकि साइटोक्रोम सी एक
बार में एक ही इलेक्ट्रोन को स्थानांतरित
कर सकता है, इसीलिए यह क्यू चक्र दो पारियों में संपन्न होता है। निम्न समीकरणों से यह क्रिया स्पष्ट हो जाती है।
QH2 à E- + 2H+ + Q.-
QH2 à 2E- + 2H+ + Q
Q.- + E- + 2H+matrix à QH2
एक समीकरणमें पूरी क्रिया को इस तरह प्रदर्शित
करेंगे।
QH2 + 2Cyt cox + 2H+matrix à Q + 2Cyt cred
+ 4H+intermembrane
साइटोक्रोम-सी
साइटोक्रोम-सी
माइटोकोन्ड्रिया की आँतरिक झिल्ली में स्थित एक गमनशील छोटा हीम प्रोटीन है, जो
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का आवश्यक
एन्जाइम है। अन्य साइटोक्रोम्स के विपरीत यह पानी में अति घुलनशील है। हीम ग्रुप
एक जटिल संरचना है जिसके कैंद्र में में एक या अधिक हीम ग्रुप होते हैं, जो एक या
ज्यादा सामान्यतः दो थायोईथर बन्ध
द्वारा प्रोटीन में सिस्टीन अवशेष के
सल्फहाइड्रिल ग्रुप से जुड़े रहते हैं। इसमें 100 अमाइनो एसिड लड़ें होती हैं।
इसके हीम ग्रुप में एक पोरफाइरिन का छल्ला होता है और मध्य में लोह ऑयन होता है।
यहाँ लोहे की अपघटित Fe2+ और ऑक्सीकृत Fe3+दोनों अवस्थाएं हो सकती हैं। इसीलिए इसमें ऑक्सीकृत और अपघटित होने की
क्षमता होती है, लेकिन यह ऑक्सीजन से जुड़ने में अक्षम है। यह कॉम्प्लेक्स III से एक इलेक्ट्रोन कॉम्प्लेक्स IV को
स्थानांतरित करता है। मानव में CYCS जीन इसे कूटबद्ध (encode) करते हैं।
साइटोक्रोम ऑक्सीडेज या कॉम्प्लेक्स IV
साइटोक्रोम-सी
ऑक्सीडेज या कॉम्प्लेक्स IV इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का
आखिरी प्रोटीन कॉम्प्लेक्स है। यह एंजाइम कोशिकीय श्वसन के सबसे महत्वपूर्ण क्रिया
को उत्प्रेरित करता है. जो चार
साइटोक्रोम-सी से चार इलेक्ट्रोन लेकर अंतिम इलेक्ट्रोन-प्राप्तकर्ता (final electron acceptor) ऑक्सीजन O2 (प्राणवायु) को समर्पित
करता है, उसकी इलेक्ट्रोन पिपासा शान्त करता है और ऑक्सीजन को अपघटित होकर जल के दो अणु और ऊर्जा
बनाता है। इस प्रक्रिया में मेट्रिक्स से आठ प्रोटोन्स लिए जाते हैं, चार
प्रोटोन्स पानी के दो अणु बनने के लिए आवश्यक होते हैं और चार
प्रोटोन्स झिल्ली के बाहर पंप कर दिये जाते हैं और झिल्ली के बाहर प्रोटोन का
विद्युत-रसायन विभव (gradient) बढ़ता है। इस अतिम श्वसन क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा
व्यक्त करते हैं।
4 Fe2+-cytochrome c + 8 H+in
+ O2 → 4 Fe3+-cytochrome c + 2 H2O + 4
H+out
माइटोकॉंड्रियम
की आंतरिक झिल्ली में स्थित यह बहुत जटिल प्रोटीन होता है जिसमें 13 प्रोटीन
इकाइयाँ होती हैं। इनमें से दस इकाइयाँ नाभिक से ली जाती हैं शेष तीन
माइटोकोन्ड्रिया में बनती हैं। इस
कॉम्प्लेक्स में दो हीम ग्रुप साइटोक्रोम-ए तथा साइटोक्रोम-ए3 और दो
तांम्र कैंद्र CuA तथा CuB होते हैं। साइटोक्रोम-ए3 और CuB द्वि-नाभिकीय कैन्द्र में रहते हैं
जहाँ ऑक्सीजन का अपघटन होता है।
साइटोक्रोम-सी
के दो अणु जो पिछले कॉम्प्लेक्स
साइटोक्रोम- बीसी1 में अपघटित होते हैं,
द्वि-नाभिकीय कैन्द्र के पास CuA से संपर्क
करते है और उसे दो इलेक्ट्रोन देकर Fe3+ युक्त साइटोक्रोम-सी के रूप में पुनः आक्सीकृत हो जाते
हैं। अपघटित CuA यह इलेक्ट्रोन साइटोक्रोम-ए को देता है जो उसे द्वि-नाभिकीय कैन्द्र साइटोक्रोम-ए3 और CuB को थमा देते हैं और धातुएँ Fe+2
और Cu+1 के रुप में अपघटित हो जाती हैं। हाइड्रोक्साइड
लाइगेन्ड प्रोटोन से जुड़ कर पानी के रूप में पृथक हो जाता है। इससे रिक्तता पैदा
होती है, जिसे ऑक्सीजन भर देती है। Fe+2 साइटोक्रोम a3 दो इलेक्ट्रोन्स देकर ऑक्सीजन को फुर्ती से
अपघटित करते हैं और फैरिल ऑक्सो (Fe+4=O) अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। CuB के पास का दूसरा ऑक्सीजन परमाणु Cu+1 से एक इलेक्ट्रोन लेता है और दूसरा इलेक्ट्रोन और प्रोटोन Tyr (244) के हाइड्रोक्सिल से लेता है और जो टायरोसिल रेडिकल बन जाता है।
यह दूसरा ऑक्सीजन दो इलेक्ट्रोन और एक प्रोटोन लेकर हाइड्रोक्सिल ऑयन बन जाता है।
तीसरा इलेक्ट्रोन एक अन्य साइटोक्रोम-सी से आता है और इलेक्ट्रोन-वाहकों से होता
हुआ साइटोक्रोम-ए3 और CuB द्वि-नाभिकीय कैन्द्र पहुँचता है, यह
इलेक्ट्रोन और दो प्रोटोन्स टायरोसिल रेडिकल को पुनः टाइर में और CuB+2 से जुड़े हाइड्रोक्सिल को पानी परिवर्तित कर
देते हैं । चौथा इलेक्ट्रोन एक अन्य साइटोक्रोम-सी से आता है और CuA और साइटोक्रोम-ए से होता हुआ साइटोक्रोम-ए3 और CuB द्वि-नाभिकीय कैन्द्र पहुँचता है, Fe+4=O
को Fe+3 के रूप में अपघटित
करता है, साथ ही ऑक्सीजन परमाणु प्रोटोन लेकर साइटोक्रोम-ए3 और CuB द्वि-नाभिकीय कैन्द्र में
हाइड्रोक्सिल ऑयन के रूप में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह कुल चार इलेक्ट्रोन
ऑक्सीजन के अणु को दिये जाते हैं। और ऑक्सीजन का अपघटन होता हैं। संक्षेप में कहे तो इस क्रिया में चार
अपघटित साइटोक्रोम-सी तथा चार प्रोटोन्स
प्रयोग में आते हैं और ऑक्सीजन के एक अणु का ऑक्सीकरण होता है और पानी के दो अणु बनते हैं।
ए.टी.पी
सिन्थेज
ए.टी.पी. का निर्माण माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में
स्थित ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम द्वारा होता है। यह एंजाइम एक उत्कृष्ट मोटर की
तरह कार्य करता है। लगभग 6000 चक्कर प्रति मिनट की गति से घूमने वाली यह मोटर सूक्ष्मीकरण की पराकाष्टा है
। यह इतनी सूक्ष्म होती है कि एक पिनहैड जितनी जगह में दो लाख मोटरें समा जायें।
हर कोशिका में ऐसी सैंकड़ों मोटरें होती हैं और हमारे शरीर में लगभग 10
क्वाड्रिलियन (यानी इसे लिखने के लिए आपको एक के आगे 16 शून्य लगाने होंगे) मोटरें होती हैं।
ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम की संरचना अत्यंत जटिल होती
है। यह आकार में काफी बड़ी और 31
तरह के प्रोटीन्स (जो 3000 अमाइनो एसिड्स की मदद से तैयार होते हैं) से बनी होती है। माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में स्थित
इसका घूमने वाला चक्का 12 सी-प्रोटीन
उप-इकाइयों से बना होता है, जिसे F0 कहते हैं। इस चक्के से एक मुड़ी हुई धुरी जुड़ी
होती है, जो चक्के के साथ घूमती है। यह चक्का
गामा प्रोटीन उप-इकाइयों से बना होता है। धुरी का दूसरा सिरा छः प्रोटीन
उप-इकाइयों, 3 अल्फा और 3 बीटा से बनी एक टोपी में धँसा रहता है। ए.टी.पी. का
निर्माण इन्हीं अल्फा और बीटा उप-इकाइयों में होता है। यह टोपी घूमती नहीं है,
बल्कि a और
b1 उप-इकाइयों
द्वारा झिल्ली से स्थिर रहती है। यह टोपी F1 कहलाती
है।
ए.डी.पी. का अणु (जिसमें दो फोस्फेट होते हैं) एक फोस्फेट
के मिल कर ऊर्जावान ए.टी.पी. बनाता है। माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला द्वारा पैदा हुई ऊर्जा के प्रभाव से हाइड्रोजन ऑयन
मेट्रिक्स से बाहर भेज दिये जाते हैं। धीरे-धीरे बाहरी अन्तर झिल्लीय कक्ष में
हाइड्रोजन ऑयन की संख्या बढ़ती जाती है, जिसके फलस्वरूप मेट्रिक्स की तुलना में
बाहरी कक्ष का पीएच
कम होने लगता है अर्थात अम्लता बढ़ने लगती है और हाइड्रोजन ऑयन में घनात्मक आवेश
होने के कारण बाहरी कक्ष अपेक्षाकृत अधिक घनात्मक होने लगता है। बाहरी कक्ष में बढ़ते विद्युत और रसाकर्षण के
दबाव और अम्लता से छटपटाते हाइड्रोजन ऑयन पुनः मेट्रिक्स में जाना चाहते हैं।
लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए एक ही मार्ग बचता है जो ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम से
होकर गुजरता है। यह एंजाइम हाइड्रोजन ऑयन के सामने शर्त रखता है कि वे उसकी मोटर
के चक्के को तेजी से घुमाकर ही मेट्रिक्स में प्रवेश कर सकते हैं। लाचार हाइड्रोजन
ऑयन हर शर्त मानने को तैयार हो जाते हैं और मोटर के चक्के F1 को तेजी से टर्बाइन की भाँति 1200 अंश के स्टेप्स में घुमाते हुए मेट्रिक्स में
लौटने लगते हैं।
मोटर के चक्के F1 के साथ उसकी मुड़ी हई धुरी भी टोपी में घूमती है। लेकिन 3 अल्फा और 3 बीटा इकाइयों से बनी टोपी F1 नहीं घूमती है। 3 अल्फा और 3 बीटा इकाइयों और टोपी की विशिष्ट संरचना के
कारण ए.डी.पी. और फोस्फेट इनके अंदर जाते हैं और ये अपनी याँत्रिक ऊर्जा से
ए.डी.पी. और फोस्फेट से जोड़ कर ए.टी.पी. बना कर बाहर फैंकते जाते हैं। ठीक उसी
तरह जैसे टकसाल में सिक्के बनते हैं। तीन हाइड्रोजन ऑयन या प्रोटोन्स एक ए.टी.पी.
का निर्माण करते हैं। इस तरह एक ए.टी.पी.सिन्थेज एक चक्कर में तीन ए.टी.पी., एक
मिनट में 18000, एक घंटे में दस लाख और एक दिन में ढ़ाई करोड़ से ज्यादा ए.टी.पी. बनाता
है। यह मोटर विश्राम की अवस्था में कम और
परिश्रम की अवस्था में अधिक ए.टी.पी. बनाती है। शरीर में यदि ऊर्जा (ए.टी.पी.) की
मांग बढ़ती है तो यह हाइड्रोजन ऑयन के प्रवाह को तेज कर अपनी घूमने की गति बढ़ा
लेती है और ए.टी.पी. का निर्माण भी बढ़ जाता है। यही है प्रकृति की सबसे अनूठी,
सबसे जटिल और सबसे सूक्ष्म मोटर जिसके बिना हमारी सारी जीवन क्रियाएँ संभव ही नहीं
हैं। यह श्रीप्रभु की उच्च-तकनीक का उत्कृष्ट नमूना है। ये जीवन की मोटर मनुष्य ही
नहीं बल्कि सभी जन्तुओं और वनस्पतियों की कोशिकाओं में सर्वत्र विद्यमान हैं। इस Motor of Life की खोज, कार्य-प्रणाली का अध्ययन
और चित्रण प्रोफेसर पॉल बॉयर (USA) और
डॉ. जॉन वॉकर (UK) ने किया था जिनको इसके लिए सन् 1997 में नोबेल पुरस्कार मिला था।
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