Wednesday, October 5, 2011

Kidney Transplant



गुर्दा प्रत्यारोपण

ई.एस.आर.डी. या वृक्कवात के रोगियों के लिए गुर्दा प्रत्यारोपण सस्ता, सही, सफल, सम्पूर्ण, सुरक्षित, सर्वश्रेष्ठ और सुविधाजनक विकल्प है। गुर्दा प्रत्यारोपण चिकित्सा विज्ञान की प्रगति की निशानी है और वृक्कवात के रोगियों लिए ईश्वर का वरदान है। गुर्दा प्रत्यारोपण में एक स्वस्थ कार्यात्मक गुर्दा रोगी के शरीर मेंजिके दोनों गुर्दे विफल हो गये हों लगाया जाता है। भले गुर्दा प्रत्यारोपण का आरंभिक खर्चा ज्यादा हो परन्तु पाँच वर्ष के व्यय को ध्यान में रखा जाये तो यह डायलिसिस से काफी किफायती और सस्ता पड़ता है। गुर्दे दूषित पदार्थों के उत्सर्जन के अलावा विटामिन डी, इरेथ्रोपोइटिन (जो अस्थिमज्जा में जाकर लाल रक्त-कणों का निर्माण करता है), रक्तचाप नियंत्रण करने वाले विभिन्न तत्वों का स्राव भी करते हैं। डायलिसिस में सिर्फ दूषित पदार्थों का उत्सर्जन होता है, जब कि प्रत्यारोहित गुर्दा 10-12 वर्ष या इससे भी लम्बी अवधि तक ये सारे कार्य करता है। डायलिसिस में रोगी स्वयं को अपाहिज सा महसूस करता है और हर बात के लिए परिवारजनों पर निर्भर रहता है।  डायलिसिस की उत्सर्जन क्षमता सामान्य गुर्दे की तुलना में 10-15 प्रतिशत ही होती है। यदि प्रत्यारोहित गुर्दा भी काम करना बंद करदे तो दूसरी बार गुर्दा प्रत्यारोपण का विकल्प बचता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के विफल होने की संभावना मात्र 5-10 प्रतिशत रहती है। अच्छे जीवन के लिए इतना जोखिम तो लिया ही जा सकता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद रोगी सामान्य जीवन जीता है और जीवन की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है। ये ऊर्जावान, प्रसन्न और आशावान महसूस करते हैं तथा मनोरंजन व खेलकूद कर सकते हैं। ये अपनी नौकरी या व्यवसाय सहजता से कर सकते हैं। ये लैंगिक संसर्ग सामान्य रूप से कर सकते हैं। स्त्रियाँ बच्चे को जन्म दे सकती हैं।  डायलिसिस कराने के बंधन से रोगी मुक्त हो जाता है। आहार में कम परहेज करना पड़ता है। रोगी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।
गुर्दा दान कौन कर सकता है?
सामान्यतः 18 से 55 साल की उम्र के दाता की गुर्दा ली जाती है। स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे को गुर्दा दे सकते हैं। जुड़वा भाई-बहन आदर्श माने जाते हैं। पर यह आसानी से नहीं मिलते हैं। माता पिता, भाई, बहन सामान्य रूप से गुर्दा देने के लिए पसंद किए जाते हैं। यदि इनसे गुर्दा नहीं मिल सके तो अन्य पारिवारिक सदस्य जैसे चाचा, बुआ, मामा, मौसी वगैरह की गुर्दा ली जा सकती है। यदि यह भी संभव नहीं हो, तो पति-पत्नी  की गुर्दा की जाँच करानी चाहिए। विकसित देशों में पारिवारिक सदस्य की गुर्दा नहीं मिलने पर ब्रेन डेथ (दिमागी मृत्यु) हुए व्यक्ति के गुर्दे (केडेवर गुर्दा) को प्रत्यारोपित किया  जाता है। गुर्दा दान करने वालों को सीधे मोक्ष प्राप्त होती है।
गुर्दा दान कौन नहीं कर सकता है 
               मनोरोगी क्योंकि उसकी सहमति मान्य नहीं होती है।
               जो किसी दवा या मदिरा का व्यसन करता हो।
               जिसे गुर्दे का कोई गम्भीर रोग या गुर्दे में पथरी हो।
               डायबिटीज के साथ गुर्दा रोग भी हो।
               जिसे तीव्र उच्च-रक्तचाप, कैंसर, जीर्ण विषाणु या कीटाणु संक्रमण या जीर्ण यकृत रोग हो।
               जो गर्भवती हो।
               जिसे बहुत ज्यादा मोटापा हो।
               जिसकी उम्र <18 या >65 हो।
विफल गुर्दे के सभी मरीज किस कारण से गुर्दा प्रत्यारोपण नहीं करा सकते हैं?
गुर्दा उपलब्ध न होनाः
गुर्दा प्रत्यारोपण के इच्छुक रोगियों को पारिवारिक सदस्यों से योग्य गुर्दा या केडेवर गुर्दा न मिलना। यह गुर्दा प्रत्यारोपण के अल्प उपयोग का प्रमुख कारण है।
महँगा उपचारः
वर्तमान समय में, गुर्दा प्रत्यारोपण का कुल खर्च जिसमें ऑपरेशन, जाँच, दवाइयाँ और अस्पताल का खर्च शामिल है, करीब-करीब तीन से पाँच लाख या ज्यादा होता है। अस्पताल से घर जाने के पश्चात दवाईयाँ और जाँच कराने का खर्च भी काफी ज्यादा लगता है। पहले साल यह खर्च दस से पंद्रह हजार रूपये प्रतिमाह तक पहुँच जाता है।
पहले साल के बाद इस खर्च में कमी आने लगती है। फिर भी दवाईयों का सेवन जिन्दगी भर करना जरूरी होता है। इतना ज्यादा खर्च की वजह से कई मरीज गुर्दा प्रत्यारोपण नहीं करवा सकते हैं।
गुर्दा प्रत्यारोपण की सलाह कब नहीं दी जाती है?
मरीज की उम्र अधिक होना, मरीज का एड्स अथवा कैंसर से पीड़ित होना इत्यादि स्थिति में गुर्द प्रत्यारोपण जरूरी होने पर भी नहीं किया जाता है। हमारे देश में बच्चों में भी बहुत कम गुर्दा प्रत्यारोपण होता है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए क्या आवश्यक है?
               रोगी जिसका जिसके दोनों गुर्दे पूरी तरह विफल हो गये हैं और वह शल्यक्रिया के लिहाज़ से पूरी तरह स्वस्थ हो।
               गुर्दा दानदाता जिसका रक्त रोगी के रक्त से मेल खाता हो।
               नेफ्रोलोजिस्ट जो प्रत्यारोपण की सारी गतिविधियों का प्रबंधन करता है।
               यूरोलोजिस्ट जो मुख्य शल्यक्रिया करता है।
               गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए मान्यता प्राप्त अस्पताल जहाँ सारे संसाधन उपलब्ध हों। 
दानदाता की जाँच
रोगी के परिवार से विस्तृत बात-चीत के बाद दानदाता से भूत, वर्तमान और व्यक्तिगत चिकित्सकीय इतिहास पूछा जाता है, चिकित्सकीय और कई तरह के परीक्षण किये जाते हैं। सबसे पहले रोगी से दानदाता का रक्त मेच किया जाता है। रक्त मेच होने के बाद दानदाता के गुर्दों की कार्य क्षमता को विस्तार से परखा जाता है। यदि गुर्दे ठीक से कार्य कर रहे हों तभी दानदाता को प्रत्यारोपण के लिए स्वस्थ माना जाता है। कुछ विशिष्ट परीक्षणों से कीटाणु संक्रमण और CMV और EBV विषाणु की उपस्थिति का पता लगाया जाता है। यदि गुर्दे या मूत्रपथ में संक्रमण हो तो उसका पूरी तरह उपचार किया जाता है। गुर्दे के कई अन्य परीक्षण जैसे क्रियेटिनिन क्लियरेंस,  DTPA GFR किये जाते हैं। गुर्दों की संरचना अध्ययन करने के लिए रीनल एन्जियोग्राम, डिजिटल सब्सट्रेक्शन एन्जियोग्राम या सी.टी. एन्जियोग्राम किये जाते हैं।

एच.एल.ए. टेस्ट और लिम्फोसाइट क्रोसमेच
ल्यूकोसाइट एंटीजन मेचिंग प्रत्यारोपण की दीर्घकालीन सफलता का द्योतक है। आइडेन्टीकन जुड़वाँ बच्चों में यह 100मेच करता है। इसके अलावा भी कुछ एंटीजन होते हैं जो प्रत्यारोपित गुर्दे का तिरस्कार कर सकते हैं। इसके लिए लिम्फोसाइट भी मेच किये जाते हैं।
मुख्य शल्य क्रिया  
यदि रोगी शल्य क्रिया के लिए स्वस्थ है तो दो शल्य-चिकित्सकों की टोलियां रोगी और दानदाता की शल्यक्रिया एक साथ शुरू करते हैं। इस शल्य चिकित्सा के में 3-4 घंटे लगते हैं। दानदाता के शरीर से गुर्दा निकाल कर उसे एक विशेष द्रव में अच्छी तरह धोकर रोगी के पेट की श्रोणि गुहा में उदरावरण के बाहर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। गुर्दे की धमनी और शिरा को श्रोणिफलक (Rt. Iliac Artery & Vein) धमनी और शिरा से तथा मूत्र नली को मूत्राशय से जोड़ देते हैं। दानदाता का गुर्दा आजकल दूरबीन शल्यक्रिया से भी निकाला जाता है। एक सफल ऑपरेशन के बाद नए गुर्दे में रक्त प्रवाह शुरू हो जाता है। आमतौर पर नए गुर्दे सर्जरी के बाद 24 घंटे के भीतर काम शुरू कर देते हैं सामान्यतः रोगी के पुराने गुर्दों को वैसे ही शरीर में छोड़ देते हैं।
शरीर द्वारा नये गुर्दे का अपमान, तिरस्कार तथा रेगिंग और उसका उपचार 
दानदाता और रोगी की सारी क्रोसमेचिंग करने के उपरान्त भी शरीर के रक्षा विभाग के सिपाही पराये गुर्दे को पहचान लेते हैं तथा इसे एक आतंकवादी घुसपेठ मानते हुए नये गुर्दे से लड़ने और रेगिंग करने निकल पड़ते हैं। इसलिए इन्हें शांत रखने के लिए विशेष तरह की सलेक्टिव इम्युनोसप्रेसिव दवाएँ दी जाती हैं जिनके प्रभाव से ये सिपाही नये गुर्दे को तो बक्श देते हैं पर शरीर का बाकी रक्षा कार्य सुचारु रूप से करते रहते हैं। इसके लिए साइक्लोस्पोरिन या ट्रेकोलिमस, माइकोफेनोलेट या एज़ाथायोप्रिन कोर्टिज़ोन्स के साथ दी जाती हैं। सिरोलिमस और एवरोलिमस नई दवाएँ हैं। ये दवाएँ आजीवन लेनी पड़ती हैं।
गुर्दा प्रत्यारोपण की हानियाँ क्या हैं?
               बड़ी शल्यक्रिया की जरूरत पडती है, परन्तु वह संपूर्ण सुरक्षित है।
               शुरू में सफलता मिलने के बावजूद कुछ रोगियों में बाद में गुर्दा फिर से खराब होने की संभावना रहती है।
               गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद नियमित दवा लेने की जरूरत पडती है। शुरू में यह दवा बहुत ही महँगी होती है। यदि दवा का सेवन थोड़े समय के लिए भी बन्द हो जाए, तो प्रत्यारोपित गुर्दा काम करना बंद कर सकती है।
               यह उपचार बहुत महँगा है। ऑपरेशन और अस्पताल का खर्च, घर जाने के बाद नियमित दवा एवं बार-बार लेबोरेटरी से जाँच कराना इत्यादि खर्च बहुत महँगा (तीन से पांच लाख तक) होता है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद जानने योग्य सूचनाएँ
संभावित खतरेः
गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद संभावित प्रमुख खतरे नये गुर्दे का शरीर द्वारा अस्वीकार होना (गुर्दा रिजेक्शन), संक्रमण होना, ऑपरेशन संबंधित खतरों का भय होना और  दवा का उल्टा असर होना है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद क्या अन्य कोई दवा लेने की जरूरत पडती है?
हाँ, जरूरत के अनुसार गुर्दा प्रत्यारोपण कराने के बाद मरीजों द्वारा ली जाने वाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्सियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ हैं। अन्य कोई बीमारी के लिए यदि दवा की जरूरत पडे, तो नये डॉक्टर से दवा लेने से पहले उसे यह बताना जरूरी होता है कि मरीज का गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ है और हाल में वह कौन कौन सी दवाई ले रहा है।
नये गुर्दा की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएँ
गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद गुर्दा पाने वाले मरीज को दी जानेवाली महत्वपूर्ण सूचनाएँ निम्नलिखित हैं।
               डॉक्टर के निर्देशानुसार नियमित ढंग से दवा लेनी अत्यंत जरूरी है। यदि दवा अनियमित रूप से ली जाए, तो नया गुर्दा के खराब होने का खतरा रहता है।
               प्रारंभ में मरीज का ब्लडप्रेशर, पेशाब की मात्रा और शरीर के वजन को नियमित रूप से नापकर एक डायरी में लिखना जरूरी होता है।
               डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित रूप से लेबोरेटरी में जाकर जाँच करानी चाहिए और फिर नेफ्रोलोजिस्ट से नियमित चेकअप कराना जरूरी है।
               रक्त और पेशाब की जाँच विश्वासपात्र लेबोरेटरी में ही करानी चाहिए। रिपोर्ट में यदि कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई दे तो लेबोरेटरी बदलने के बजाय नेफ्रोलॉजिस्ट को तुरंत सूचित करना आवश्यक है।
               बुखार आना, पेट में दर्द होना, पेशाब आना, अचानक शरीर के वजन में वृद्धि होना या कोई अन्य तकलीफ हो रही हो, तो तुरंत नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करना जरूरी है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण से बचने के लिए निर्देश
               शुरू-शुरू में संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ, जीवाणुरहित मास्क पहनना जरूरी है, जिसे रोज बदलना चाहिए।
               रोज साफ पानी से नहाने के बाद धूप में सुखाएं एवं प्रेस किये कपड़े पहनने चाहिए।
               घर को पूरी तरह से स्वच्छ रखना चाहिए।
               बीमार व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। प्रदूषणवाली, भीड़-भाड़ वाली जगह जैसे मेला वगैरह में जाने से बचना चाहिए।
               हमेशा स्वच्छ उबला हुआ पानी पीना चाहिए।
               घर में ताजा बना भोजन साफ बरतनों में लेकर खाना चाहिए।
               खाने पीने संबंधित सभी निर्देशों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।

गुर्दा प्रत्यारोपण में स्टेम कोशिका तकनीक का उपयोग

अब गुर्दा प्रत्यारोपण करवाने के बाद मरीज को जीवनपर्यन्त दवाएं नहीं खानी पड़ेंगी और साथ ही प्रति वर्ष एक से डेढ़ लाख दवाइयों पर होना वाला खर्चा भी बचेगा। है।  सवाई मानसिंह अस्पतालजयपुर के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एल. सी. शर्मा और यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. टी. सी. सदासुखी ने 2011 में देश  में पहली बार स्टेम सैल (स्टेम कोशिका) तकनीक का इस्तेमाल कर गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया है।  दो माह बाद प्रतिरोध क्षमता कम करने वाली (इम्यूनोसप्रेसिव) दवाएं बंद कर दी गई।

डॉक्टरों ने रोगी को टोटल लिम्फोइड रेडियेशन (रेडियेशन थैरेपी) दी फिर उसकी मां के कूल्हे के हिस्से की अस्थि-मज्जा (बोन मैरो) से स्टेम सैल लिए। एंटीबॉडी ड्राइव सैल साइटोटॉक्सिन तकनीक से कैमपैथ दवा डाल कर इससे किलर सेल्स को अलग किया फिर 225-250 मिली तक स्टेम सेल रोगी के शरीर में डाले। इसमें करीब छह घंटे का समय लगा। इसके बाद गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया। प्रत्यारोपण के बाद रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को कम करने के लिए उसे खास तरह की दवाएं दी गई। इससे मरीज का शरीर नए गुर्दे व स्टेम सैल को स्वीकार कर सकता है। इससे पहले हावर्ड मेडिकल स्कूलबोस्टनअमेरिका में ऐसा गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ था।


1 comment:

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