हृदय संरचना और कार्य प्रणाली
आइये सबसे पहले हम जाने हृदय के भावनात्मक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्वरूप को जो उसके संरचनात्मक स्वरूप से ज्यादा अनूठा और महत्वपूर्ण है। कभी यह बहुत विशाल है पर कभी बहुत संकीर्ण भी है, यह कभी सफेद तो कभी काला है, किसी का अच्छा तो किसी का बुरा है। कहानियाँ, उपन्यास, गीत, गज़ल और कविताएँ बिना दिल की बातों के कहाँ पूरी होती हैं। यह कवियों और शायरों की रोज़ी-रोटी है। शम्मीकपूर ने एक फिल्म में दिल को झरोखा ही बना दिया और उसमें प्रेमिका को बैठा कर खूब झूला झुलाया था। देवआनंद ने इसे कलम समझ कर खूब प्रेम-पातियाँ लिखीं थी। अक्सर लोग सारी सुख-सुविधा वाले घर छोड़ कर प्रेमी या प्रेमिकाओं के दिल में रहना पसन्द करते हैं। मुफ़लिस प्रेमियों के पास तो प्रेमिकाओं के दिल में रहने के सिवा कोई बसेरा होता भी नहीं है। मीरा ने तो अपने दिल को पिया श्याम का मंदिर ही बना लिया था। यदि दिल न होता तो इस दुनियाँ में प्यार मुहब्बत भी नहीं होती। शरीर में केवल यही एक अंग है जिसमें भावनाएँ होती है, प्यार की अनुभूति होती है। इस दुनिया में प्यार, दुलार, अनुराग और मुहब्बत कुछ इसी के दम पर है। इसमें दया है, करुणा हैं, ममता है, अनुराग है, घमन्ड है, ईर्षा है, द्वेश है, नफरत है। यह दीवाना है, पागल है, प्रेमी है, आशिक है, झूँठा है, फरेबी है, चोर है, कमीना है, कातिल है। यह दिल ही है जो विपरीत लिंग को आकर्षित कर अपने प्रेमजाल में बाँध कर उससे विवाह कर लेता है, और फिर दोनों आपस में मिल कर एक नये जीवन का सृजन करते हैं। इस तरह धरालोक में जीवनचक्र को आगे बढ़ाने का महान कार्य भी बिना दिल के संभव नहीं है।
दिल से जुडे दिलचस्प तथ्य
- स्त्रियों का दिल अपेक्षाकृत तेज़ धड़कता है।
- हृदय की पहली शल्य क्रिया डॉ. डेनियल हॉल ने 1893 में की थी।
- मानव हृदय एक मिनट में 72 बार, एक दिन में 1 लाख बार, एक वर्ष में 3.5 करोड़ बार और पूरे जीवनकाल में 3 अरब बार धड़कता है।
- अपने पूरे जीवनकाल में हृदय 10 लाख बैरल रक्त पंप करता है।
- विश्व का पहला हृदय-प्रत्यारोपण 1967 में केपटाउन, साउथ अफ्रीका में हुआ था।
- विश्व में रोज 2700 लोग हृदय-रोग से मरते हैं।
- हृदय मात्र 12 ऑन्स का होता है पर रोज 2000 गैलन रक्त 60,000 मील लम्बे वाहिकाओं के जाल में प्रवाहित करता है।
- फ्राँस के चिकित्सक रेने लेनेक को स्त्रियों के वक्षस्थल पर कान रख हृदय की धड़कन सुनना बहुत असहज लगता था, इसलिए उन्होंने स्टेथोस्कोप का आविष्कार किया था।
- 1903 में विलेम इन्थोवेन ने ई.सी.जी. का आविष्कार किया था।
- मानव भ्रूण के विकास काल के 23 वें दिन, जब बह भ्रूण माँ के पेट में सिर्फ़ मटर के दाने के बराबर होता है, दिल धड़कना आरंभ करता है और उम्र भर धड़कता रहता है।
- करीब 150 टन भारी व्हेल मछली का दिल एक मिनट मे 7 बार धड़कता है, जबकि 3 टन के हाथी का 46 बार, बिल्ली (1.3 किग्रा) का 240 बार और पीतचटकी नामक पक्षी का हृदय 1000 बार धड़कता है।
- मनुष्य का हृदय जीवन भर जितना काम करता है, उतने श्रम से एक मालगाड़ी को यूरोप के सबसे ऊंचे पहाड़ माउन्ट ब्लैक ऊंचाई 4810 मीटर तक पहुंचाया जा सकता है।
हृदय की संरचना
हृदय हमारे शरीर का सबसे आवश्यक बंद मुट्ठी के आकार का माँसल अंग है जिसका मुख्य कार्य शरीर को निरन्तर रक्त प्रेषित करना है। यह सामान्यतः 72 बार प्रति मिनट आजीवन अविरत धड़कता है और हमें मोक्ष की राह दिखा कर ही सेवानिवृत्ति लेता है। इसका भार औसतन महिलाओं में 250 से 300 ग्राम और पुरुषों में 300 से 350 ग्राम होता है। यह वक्ष-गुहा (छाती) में मध्य से थोड़ा बाँई तरफ दोनों फुफ्फुसों के बीच स्थित होता है और एक आघातरोधी विशिष्ट द्रव से भरे दोहरी तह वाले खोल, जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं, में सुरक्षित और स्थिर रहता है। हृदय की भित्ती में तीन तहें क्रमशः 1- इपीकार्डियम जो सबसे बाहर की तह है। 2- मायोकार्डियम जो एक अनैच्छिक पेशी involuntary muscle उतक है। और 3- एन्डोकार्डियम जो सबसे अन्दर की तह है।
हृदय की संरचना चतुर्कक्षी, चतुर्द्वारी और चतुर्मुखी है अर्थात इसमें चार कक्ष होते हैं, चार कपाट (Valves) होते हैं जो एक ही तरफ खुलते हैं और यह चार रक्त-सरिताओं द्वारा ही शरीर के रक्त-वाहिका तंत्र से जुड़ा रहता है। ऊपर के कक्षों को क्रमशः बाँया और दाँया अलिन्द तथा नीचे के कक्षों को बाँया और दाँया निलय कहते हैं। यूँ समझ लीजिये कि यह एक प्रकार से यह चार कमरों वाला ड्युप्लेक्स फ्लेट है। दोनों आलिन्द पतली भित्तियों वाले कक्ष है जो शिराओं से रक्त ग्रहण करते हैं और निलय मोटे व मांसल मायोकार्डियम वाले कक्ष हैं जो बलपूर्वक रक्त को हृदय से बाहर पंप करते हैं। दोनों आलिन्दों और निलयों के बीच एक भित्ती होती है, जो हृदय के दाँयें और बाँयें हिस्सों को अलग करती है। प्रकृति ने हृदय को एक ही तरफ खुलने वाले चार कपाट या वाल्व भी दिये हैं ताकि रक्त एक ही दिशा में प्रवाहित हो। दाँये आलिन्द और दाँये निलय के बीच के वाल्व को ट्राइकस्पिड वाल्व कहते हैं। इसी तरह बाँये आलिन्द और बाँये निलय के बीच के वाल्व को माइट्रल वाल्व कहते हैं। दांये निलय और मुख्य पलमोनरी-धमनी के बीच के अर्धचन्द्राकार वाल्व को पलमोनरी वाल्व और बांये निलय और महा-धमनी के बीच के अर्धचन्द्राकार वाल्व को एओर्टिक वाल्व कहते हैं। जब निलय का संकुचन होता है तो आलिन्द और निलय के बीच के वाल्व बन्द हो जाते हैं जो रक्त को आलिन्द में जाने से रोकते हैं। जब निलय का विस्तारण होता है, ये अर्धचन्द्राकार वाल्व बन्द होकर रक्त को धमनियों से निलय में आने से रोकते हैं।
हृदय में रक्त परिवहन की कार्यप्रणाली
यह महत्वपूर्ण है कि दोनो आलिन्द और निलय आकुंचन और विस्तारण एक साथ करते हैं। हृदय में दांये और बांये दोनों निलय रक्त को एक साथ बाहर पम्प करते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रक्त महाशिरा द्वारा दांये आलिन्द में कार्बन-डाई-ऑक्साइड से भरे सूक्ष्म सिलेन्डरों से लदे लाल-कणों को लेकर पहुँचता है। शरीर की विभिन्न कोशिकाएँ और ऊतक प्राणवायु (ऑक्सीजन) ग्रहण कर सिलेन्डरों में कार्बन-डाई-ऑक्साइड भर देते हैं। आप ऐसे समझिये कि प्रोटीन और लोहे से बने ये सिलेन्डर हिमोग्लोबिन का काल्पनिक रूप हैं और लाल रक्तकण इन सिलेन्डरों का वाहन हैं (जैसे इन्डेन गैस के लाल सिलेन्डरों से लदी लारी)। ट्राइकस्पिड वाल्व खुलने पर रक्त दांये निलय में भर जाता है और जब निलय का आकुंचन होता है तो ट्राइकस्पिड वाल्व बन्द हो जाता है तथा पलमोनरी वाल्व खुल जाता है। फलस्वरूप रक्त पलमोनरी धमनियों द्वारा शुद्धिकरण हेतु फुफ्फुसों में चला जाता है। फुफ्फुसों में रक्त का शुद्धिकरण होता है, यानी कार्बन-डाई-ऑक्साइड से भरे सिलेन्डर खाली हो जाते हैं और फुफ्फुस उनमें जीवन-उर्जा से परिपूर्ण प्राणवायु (ऑक्सीजन) भर देते है। प्राणवायु में उर्जा की इतनी आभा और चमक होती है कि इनसे भरे सिलेन्डर उजले और लाल दिखाई देते हैं। इन प्राणवायु से भरे सिलेन्डरों के कारण ही रक्त लाल दिखाई देता है। अब रक्त प्राणवायु से भरे चमकते लाल सिलेन्डर लेकर खुशी-खुशी बांये आलिन्द में पहुचाता है। जब बाँये निलय का विस्तारण होता है तो माइट्रल वाल्व खुल जाता है और रक्त बाँये निलय में भर जाता है। इसके बाद बाँया निलय एक शक्तिशाली आकुंचन करता है, जो माइट्रल वाल्व को बन्द करता है तथा एओर्टिक वाल्व को खोलता है और बलपूर्वक चमकता लाल रक्त महाधमनी द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को पम्प हो जाता है।
हृदय का परसनल इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन और ट्रांसमीशन सिस्टम
हृदय हर पहलू में आत्मनिर्भर तथा खुदगर्ज हैं और अपनी सारी कार्य प्रणाली और गति का नियंत्रण भी खुद ही करता है। विदित रहे कि किसी भी पेशी का आकुंचन तभी होता है जब उसे कोई विद्युत-आवेश (Electric Signal) प्रेरणा या आदेश दे। हृदय को शरीर में रक्त-संचार करने के लिए धौंकनी की तरह अपनी माँस-पेशियों का लयबद्ध आकुंचन और विस्तारण करना पड़ता है। इसके लिए यह अपना खुद का विद्युत उत्पादक और प्रसारण तंत्र रखता है, जो इसकी पेशियों के आकुंचन के लिये विद्युत-आवेश पैदा करता है। इस तंत्र का पहला संभाग साइनोएट्रियल एस.ए. नोड है, यह एक प्राकृतिक पेसमेकर है जो हृदय के आकुंचन की गति और बल सुनिश्चित करता है और इसके लिये विद्युत आवेश पैदा करता है। एस.ए. नोड से विद्युत आवेश दोनो आलिन्दों में फैल जाते हैं, जिससे आलिन्दों का आकुंचन होता है। एस.ए. नोड आलिन्दों में होता हुआ विद्युत आवेश एक अन्य संभाग एक्ट्रियोवेन्ट्रीकुलर ए.वी. नोड को जाता है, यह एक रिले की तरह कार्य करता है और आवेश को लगभग 0.1 सैकण्ड तक रोक कर (इस बीच आलिन्दों के आकुंचन से रक्त निलय में भर जाता है) एट्रियो-वेन्ट्रिकुलर बंडल में भेजता है। एट्रियो-वेन्ट्रिकुलर बंडल AV Bundle दोनों निलय के बीच के सेप्टम (Interventricular Septum) में बाँये और दाँये बंडल ब्राँच (LBB और RBB) विभाजित होकर परकंजी फाइबर्स द्वारा विद्युत आवेश दोनों निलय को प्रेषित करता है । अब रक्त से भर चुके निलय आकुंचन कर रक्त को हृदय से बाहर पम्प कर देते हैं। इस तरह हृदय की एक धड़कन, जिसकी अवधि 0.8 सैकण्ड होती है, संपूर्ण होती है।
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