पुनर्जन्म
जब हाईस्कूल का परीक्षाफल निकला तो मुझे हर विषय में बहुत अच्छे नंबर मिले थे, जिले मैं प्रथम आयी थी। उस समय बुआ ने कहा था-‘भाभी’! तुम्हारी पुष्पा मेधवी है, तुम्हारी और जिस घर में जायेगी दोनों घर का नाम रोशन करेगी। यह तन और मन दोनों से सुन्दर है। इसके पंखुडियों जैसे नर्म होंठ, लम्बी नाक, घने बाल, लम्बा कद, गोरा रंग इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाते हैं। इसकी शादी में कोई परेशानी ही नहीं आयेगी।
एकांत प्रिय पुष्पा की कई खूबियां थीं, लिखने, और संगीत सुनने का उसे बेहद शौक था। समय पंख लगाकर उड़ता गया, पुष्पा भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगी। विश्वविद्यालयी पढ़ाई में भी वह हमेशा आगे रहती थी। अंत में उसने अपने विभाग में टाप करके, गोल्ड मेडल भी प्राप्त किया। टापर होने की वजह से उसे बिहार में वैज्ञानिक की नौकरी मिल गयी।
जैसे हर जवान लड़की के मन में सतरंगी सपने पैदा होते हैं, वैसे सपने पुष्पा के मन में भी पलने लगे लेकिन शर्मीली पुष्पा व्यक्त नहीं करती थी क्योंकि संयम और लज्जा पुष्पा का गहना था।
शादी की मंड़ी में अप्रवासी भारतीय एक सामयिक विषय है। (अमरीका) में बसे एन.आर.आई. लड़कों के प्रति भारतीय,खासकर पंजाब की लड़कियों के माँ-बाप का आकर्षण और एन.आर.आई. लड़कों द्वारा पंजाबी लड़कियों को विलायत,अमेरिका ले जाकर उनका अपमान और शोषण एक ज्वलन्त समस्या है। ऐसे मामलों की संख्या हजारों में है इतने हजार कि भारतीय राष्ट्रीय महिला आयोग को अलग से एक एन.आरआई. सेल का गठन करना पड़ा। अपने बिगड़े हुए आधे देशी और आधे अमेरिकी लड़कों को राह पर लाने के लिए उनके पुरातन पंथी बाप पंजाब तथा देश के अन्य प्रांतों से लड़की को चुन लाते हैं। जो अमरीका में नौकरीनुमा जीवन व्यतीत करती हैं और कुछ दिन बाद ‘बिगड़े हुए’ पति द्वारा पिटकर या जला कर उसकी कहानी का अंत हो जाता है।
पुष्पा देखने में सुन्दर तो थी ही, गुणी और कमाऊ भी थी। जिससे तमाम रिश्ते आने लगे। ऐसे में एक एनआर. आई. लड़के के बाप ने भी जोर-आजमाइश शुरु कर दी। पुष्पा के आफिस में जाना, उसके पिताजी से बात करना, पीछे ही पड़ गया वह पुष्पा के पिताजी को भी लगा कि इससे अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा, उन्होंने भी हामी भर दी। बिगडैल लडके को अमेरिका से बुलाकर शादी कर दी गयी।
दिल की अच्छी पुष्पा ने सोचा कि अब जिन्दगी को सलीके से जिया जायेगा लेकिन जो ईश्वर को मंजूर होता है वही होता है। शादी के बाद लड़के को अमेरिका जाना था वह गया और अकेला छोड़ गया नवविवाहिता पुष्पा को। पढ़ी लिखी अच्छे समझवाली पुष्पा अमेरिका जाना चाहती थी, वह नहीं ले जाना चाहता था लेकिन अब वह अमेरिका गयी तब उसे मामला समझ में आने लगा कि जनाब का गोरी मेम के साथ चक्कर हैं।
फिर भी परिस्थितियों से समझौता करके पुष्पा ने बात को संभालना चाहा दोनों के प्रेम का फल ‘लड़के’ के रूप में मिला। पुष्पा ने सोचा कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा लेकिन स्थितियां दिनों-दिन बद से बदतर होती गयीं।
प्रतिदिन सुबह-शाम रवि और पुष्पा के बीच घमासान वाकयुद्ध चलता। आखिर बातों ही बातों में पुष्पा ने रवि से कहा कि ‘रोज-रोज’ के झगड़े से तो अच्छा है कि आज फैसला ही हो जाय। जब हमारे विचार आपस में नहीं मिलते, जब तक आप के उपर पश्चात्य सुंदरी का जादू चल रहा है, हम लोग एक छत के नीचे शांति से नहीं रह सकते, जबरदस्ती एक दूसरे के साथ नहीं रहा जा सकता।
रवि ने कहा-‘तुम्हें रोका किसने है’, जल्दी फैसला करो और मुझे छुटकारा दो....... मैं भी यही चाहता हूँ कि अब तुम्हारे और मेरे संबंध सदा के लिए खत्म हो जायं।
रवि, पुष्पा में झगड़ा होना कोई नयी बात नहीं थी परन्तु आज तो सारी हदें ही टूट गयीं तो पुष्पा ने भी निश्चय किया कि रवि से तलाक लेकर अकेले ही जीवन यापन करुंगी। मिले हैं जख्म तो अपने मसीहा बन जाओं, तुम्हारे वास्ते पैदा ईशा नहीं होगा।
व्यथित मन से पुष्पा, रवि के जिन्दगी से दूर-बहुत दूर चली गयी, रवि प्रसन्न था कि चलो अब अमेरिकन लड़की से शादी करने में कोई अड़चन नहीं होगी। पुष्पा सोच रही थी उसने अपने जीवन के स्वर्णिम समय को एक गलत आदमी के साथ गुजारा इसके बदले में क्या मिला?
प्रतिशोध के तेवर पुष्पा के मस्तिष्क में भूचाल उत्पन्न करने लगे। नारी व्यथा उसके हृदय को बींधने लगी। उसका चिंतन भावनाओं से उबरकर आम नारी की स्थिति का आकलन करने लगा। उसने निश्चय किया कि वह शादी नहीं करेगी जिस दलदल से वह अभी निकली है उस दलदल में फिर नहीं फंसना चाहती इसलिए जीविकोपार्जन करती हुई असहाय और बेवश महिलाओं के लिए काम करेगी जो दुष्ट पुरुषों से सतायी जाती हैं।
चुनौतियों के भंवर में फंसी पुष्पा अपनी और अपनी जैसी स्त्रिायों की अस्मिता की रक्षा के लिए ‘लेखिका’ के रूप में आगे आयी। पहले उसने अपने आपको अमेरिकी समाज में इज्जत से खड़ी होने के लायक बनाया क्योंकि अमेरिकी परिवेश में तो तलाक को गम्भीरता से नहीं लिया जाता परन्तु भारतीय परिवेश में पली-बढ़ी पुष्पा के लिए यह बड़ी बात थी क्योंकि भारत में नारी माता है, पत्नी है। नारी करुणा है, ममता है। नारी रोशनी है, भावना है, बेबसी है। नारी धारित्री है, खुश्बू है। जिसकी जीवन ही साधना है। नारी जिसने पुरुष को सदा दिया है, मांगा कुछ नहीं। चाहा है प्रेम, मगर पाया है दहशत के अभ्रभेदी पहाड़ों का सिलसिला, हलाल की चीत्कार जैसा लम्बा अतीत। फिर पुष्पा सोचने लगी कि नारी प्रकृति है, जननी है, जगत को उसने जना है। पुरुष को उसीने पैदा किया है अपने गर्भ से। रक्त से सींच-सींच कर पाला है। उसी की शक्ति से पुरुष में शक्ति का संचार हुआ,पौरुष जगा और उसने इस पौरुष को नारी पर ही आजमाया।
मद में चूर पुरुष ने नारी को कामिनी (काम को जगाने वाली), रमणी (रमण करने वाली) तथा प्रमदा (प्रमाद देने वाली) कहा। पुरुष ने अपनी जननी को ही गंदी-गंदी गालियाँ दी, उत्पीड़ित किया, फिर भी नारी घुट-घुटकर जी रही है, सृष्टि रच रही है आखिर वह प्रकृति है न। नारी ने पुरुष से कभी घृणा नहीं की, उसके अत्याचार सहे। एक जमाना था जब भारत की धरती पर नारियों का ही अधिकार था। समाज में मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी। नारियों को उनके वैध अधिकार प्राप्त थे।
मुगलों के शासनकाल में नारियों की दयनीय स्थिति के बारे में सोचकर पुष्पा कांप गयी-अर्ब्दुर रहीम खान खाना के पिता बैरम खाँ के अनुसार-रईस को चार बीबियां रखनी चाहिए। बातचीत के लिए इरानी, सेज के लिए हिन्दुस्तानी, खाना बनाने के लिए तुरानी और पिटाई के लिए खुरासानी ताकि उसकी दुर्गति होते देखकर बाकी तीनों बीबियां खौफ खाएं। पूंजीवादी देश यू.एस.ए. में निवास कर रही पुष्पा ने देखा की पूंजीवादी समाज में तलाक बहुत होता है, पूंजीवाद मनुष्य को अकेला बनाता है, पूंजीवादी देशों में जब चाहा शादी जब चाहा तलाक हो जाता है। इसलिए यहाँ बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं हो पाती है। तलाक के बाद अकेलापन हो जाता है। इसलिए फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन आदि पूंजीवादी देशों में अनिद्रा के रोगियों और पागलपन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
भारतीय समाज संयुक्त परिवार की व्यवस्था पर टिका है। आज संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री पुरुष में समन्वय था, इसलिए प्यार था। पति-पत्नी आजीवन एक दूसरे के साथी बनकर रहते थे। आज पति-पत्नी एक दूसरे के जरुरत बन गये हैं इसलिए अपनापन, विश्वास और प्यार खो रहे हैं। महिलाएं ही पुरुषों को संगठित समाज देने का सपना साकार करती हैं।
पुरुष रचित समाज में पुष्पा चट्टान की तरह खड़ी स्त्री अस्मिता के लिए संपत्ति, सत्ता और स्वाभिमान की मौजूदगी के साथ स्वविवेक से फैसला लेकर सभी कार्य को अंजाम देती चली गयी। भारतीय सामाजिक छटपटाहट की बंदिशों को तोड़कर अपने कार्य और विचारों को गति देने लगी। अपने लड़के के परवरिश का भी बोझ उसके कोमल कंधों पर है। लेकिन पुष्पा, जीजाबाई की तरह अपने पुत्र की परवरिश भी कर रही है।
स्वावलम्बी पति-पत्नी के बीच पनपते वैचारिक मतभेद से पुष्पा अपनी सामाजिक, धर्मिक स्थिति के जिस बिन्दु से जिस यथार्थ को समझ पाती, उस विशिष्ट संवेदना को जकड़ पाना स्त्री के अलावा किसी और के बूते की बात नहीं। स्त्री के पुराने अर्थों और संदर्भों को पलट कर स्त्री के आधुनिक जटिल होती संवेदना को उकेरती हुई पुष्पा आगे बढ़ने लगीं। भारतीय और अमेरिकी दोनों संस्कृतियों में तालमेल बैठाती पुष्पा चुनौतियों की मंजिल पर अकेली चलती गयी।
भारतीय और वैश्विक समाज का परिवेश बदला तो यथार्थ की जटिलताएं और स्त्री जीवन की चुनौतियां भी बढ़ीं। पुष्पा की राहों में भी काफी जटिलताएं और चुनौतियां आयीं लेकिन उसने डटकर उसका मुकाबला किया इसलिए उसके सभी बंद रास्ते खुलते गये। परम्परागत पुरुषवादी फ्रेम को तोड़कर पुष्पा स्त्री के भीतरी व्यक्तित्व को पूरी निडरता से खोलती है। इससे उसका आत्मविश्वास और आत्म सम्मान की लौ प्रज्जवलित होती है। अपने सिद्धान्त और सच के लिए वह कोई भी समझौता नहीं करती, यही उसकी विशेषता है।
भारतीय परिवेश में दहेज हत्या, बलात्कार, पारिवारिक हिंसा, लिंग परीक्षण और परित्यक्ता, तलाकशुदा
स्त्रियों से जुड़े मुद्दों पर पुष्पा शिद्दत से लिखती है।
आज ग्लोबलीकरण के दौर में भारत और यू.एस.ए. में कमाऊ स्त्रियां भी अनकहे समझौते और दोहरे कार्य से ग्रस्त है। पुरुष सत्ता की जड़ें इतनी गहरी धंसी हैं जिन्हें तोड़ना या बदलने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। आज पुष्पा पूरे दमखम के साथ स्त्री के अनछुए पन्नों को बेबाकी से खोलने में लगी है। वह अपनी कर्मठता और जुझारूपन और जीवट्ता से खोए हुए वजूद को पाने लिए संघर्ष कर रही है। परदेश में रहकर भी देश के संस्कृति की महक पश्चिमी देशों में फैला रही है पुष्पा।
यू.एस.ए. में बसी पुष्पा जब अमेरिकी महिलाओं के बारे में सोचती है कि यहाँ की स्त्रियां भी घर और आफिस दोहरी जिन्दगी जी रही हैं। परन्तु अमेरिकी महिलाओं में दूसरों के बच्चों को अपनी कोख में पालने (सरोगेट मदर) की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। अमेरिका में पिछले साल तक सरोगेट बर्थ की संख्या 1000 थी यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहाँ इसको गलत नहीं समझा जाता लेकिन भारतीय दृष्टिकोण से देखने पर यह गलत है। ये स्त्रियां अपना घर बसाने के बाद पैसे के लिए अपना कोख बेचती है -यह कैसा मातृत्व है?
अमेरिका तथा भारत जैसे सामंती-पूंजीवादी समाज में नारी समाजवादी मूल्यों को अपना कर ही स्वतंत्र और आत्मनिर्भर रह सकती है। स्त्री-पुरुष एक साथ रहकर श्रम के सहयोग के आधार पर सामाजिक सहजीवन जी सकते हैं।
पुष्पा के जीवन में पश्चिम के क्षितिज पर एक नया सूरज उदय हो गया। पुष्पा अपने कमरे से नीचे देखती है तो उन क्यारियों में भी वसंत अंगडाई लेने लगा है जिसमें एक लम्बे समय से पतझड़ का साम्राज्य था। अब तो सम्पूर्ण यौवन को अपने में समेटे रजनीगंधा भी खिलखिलाकर हंसने लगी है। पुरानी जिन्दगी को पुष्पा कब की भूल चुकी है। ‘क्या भूल क्या याद करुँ, यह तो मेरा ‘पुनर्जन्म’ है। यह नया जन्म स्त्री अस्मिता को बचाने के लिए ही हुआ है। दुनिया में मेरा सब कुछ छिन गया लेकिन फिर से मैंने नयी दुनिया बसा ली है, पूरा विश्व ही मेरा कुटुम्ब है। इन्हीं सब भावनाओं में पुष्पा डूबती-उतराती रही क्योंकि आज उसका‘जन्म दिन’ है। तभी बेटे ने कहा ‘मम्मी! मेहमान आ गए।’ तब उसकी तन्द्रा टूटी।
संपर्क सूत्र: जयशंकर मिश्र/ वरिष्ठ पत्रकार/लेखक विभागाध्यक्ष/ सह-संपादक ‘योग संदेश’ पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार ; भारत मो. 09760095211 ई-मेलः jaishankermishra62@gmail.com
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