Tuesday, July 12, 2011

Bruce met Dr. Budwig





मैं डॉ. यॉहाना बुडविज  द्वारा फैट और तेलों पर गई महान खोज से बहुत ज्यादा प्रभावित था। मैं तो क्या पूरा विश्व उनकी खोज से अचंभित था। उनका नाम सात बार नोबेल पुरस्कार के लिए चयनित हुआ था, यह कोई साधारण घटना तो नहीं थी। अब तक पूरे विश्व के लोग इसी धारणा को अंतिम रूप दे चुके थे कि फैट हमारे लिए एक खलनायक के सिवा कुछ नहीं, जो हमारा कॉलेस्ट्रोल बढ़ाता है और हमारे दिल को नुकसान पहुंचाता है। दरअसल कई दशकों  से  फैट के बारे में हमें अधूरा ज्ञान ही परोसा   जा रहा था।  बुडविज  की  खोज लोगों को फैट्स के बारे में ज्ञान का नया प्रकाश दे रही थी। लोग  बड़े आश्चर्य चकित थे  कि  जिस  अलसी के तेल का  प्रयोग वे  दशकों  पहले छोड़ चुके थे, वह उनके स्वास्थ्य के लिए इतना ऊर्जावान और गुणकारी है। उडो इरेस्मस की बेस्ट सेलर बुक “Fats that heal and fats that kill” उन्हीं दिनों आई थी, जब अमेरिका के लोग फैट के स्वास्थ्यवर्धक गुणों से प्रभावित हो रहे थे या यूं कहें कि पुनः प्रभावित हो रहे थे। अभी तक इस बुक के दस संस्करण मुद्रित हो चुके हैं और दो लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। इस पुस्तक में भी बुडविज के सिद्धांतों और अलसी के तेल के गुणों का ही बखान किया गया है।




हमने भी उन्हीं दिनों अमरीका में अलसी के उत्पाद बनाना शुरू किया था। यह सन् 1990 की घटना है और तब मैं 24 साल का था। मैं चाहता था कि डॉ. बुडविज से उत्कृष्ट अलसी का तेल बनाने की सही तकनीक सीखूं। मैंने उन्हें कई फोन किये और बतलाया कि मैंने उनके बारे में जितना भी साहित्य अंग्रेजी में उपलब्ध हो सका, पढ़ा है और मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। उन्होंने मेरी बातों को ध्यान से सुना। लेकिन वे ज्यादा नहीं बोली। मैं रोज उनसे बातें करने लगा। उनकी बातें बड़ी स्पष्ट और सम्मोहक थी तथा उनकी आवाज में गहराई और आत्मविश्वास था। वे चाहती थी कि मैं जर्मनी जाकर उनसे मिलूं।



बस फिर क्या था मैं तुरंत फ्लाइट से स्ट्रॉसबर्ग, फ्रांस पहुंचा। वहां से डॉ. बुडविज का छोटा सा शहर फ्रूडेनस्टेड-डाइटर्सवीलर 59 किलोमीटर था। एयरपोर्ट पर टेक्सी मेरा इंतजार कर रही थी। वहां कड़ाके की सर्दी थी, बर्फ गिर रही थी, ठंडी हवाएं चल रही थी। ब्लैक फोरेस्ट के लुभावने और मनोरम दृश्य देख कर लंबे सफर की सारी थकावट चुटकियों में गायब हो चुकी थी। फ्रूडेनस्टेड पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो चुका था। वहां के शानदार पॉम फोरेस्ट हॉटल में मेरा कमरा बुक था, जो डॉ. बुडविज के बंगले के पास ही था। रात को कड़ाके की सर्दी थी। मैंने वेटर को बुलाया और एक क्रेस ज्युकिनी सूप, एक जर्मन चिकन फ्रिकेसी और रेड वाइन की एक बोतल का ऑर्डर दे दिया। मैंने टी.वी. ऑन किया और धीरे-धीरे वाइन की चुस्चियाँ लेता रहा। चिकन सचमुच लजीज था।  





अगले दिन सुबह 10 बजे मैं छाता लेकर पैदल ही उनके घर पहुंचा। रात को बहुत बर्फ गिरी थी। घरों और सड़कों पर काफी बर्फ जमी थी। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी के साथ मेरा स्वागत किया। वे असीम ऊर्जा सराबोर थी, उनकी आँखों में एक विशेष चमक थी और वे अपनी उम्र से काफी युवा और आकर्षक दिखाई दे रही थी। उनका लिविंग रूम काफी गर्म था। उन्होंने मेरे लिये सॉवरक्रॉट-बीन्स सलाद और गर्म हर्बल चाय मंगवाई।

पहली बार मैंने सात दिन उनके साथ बिताये। रोज मैं उनके घर जाता, हम ढेरों बाते करते और वे मुझे उनके द्वारा बनाये गये अच्छे, लज़ीज और स्वास्थ्यप्रद व्यंजन खिलाती। वे बहुत अच्छी कुक थी। उनका मसालों का चयन बड़ा संतुलित होता था। वे कई तरह के सलाद और सॉस भी बनाती थी। अपने घर में वह पूरी तरह रिसर्च और मरीजों के इलाज में मसरूफ रहती थी। उनके लिविंग रूम में चारों तरफ बड़ी बड़ी अलमारियां रखी थी, जिनमें तीन इंच मोटे सैंकड़ों फोल्डर्स रखे थे, जिनमें उनके रिसर्च पेपर्स, किताबें, ओमेगा-3 फैटी एसिड, ट्रांस फैट, फोटोन, इलेक्ट्रोन युक्त तेलों आदि विषयों पर लिखे सैंकड़ों लेख रखे हुए थे।

उनका टीवी लिविंग रूम के एक कोने में रखा हुआ था, जिस पर भी कुछ फाइलें रखी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे वे टीवी कभी-कभार ही देखती होंगी। मरीजों के इलाज के लिए उनके कमरे में एक अत्याधुनिक और काफी विशाल रूबी लेज़र मशीन भी रखी हुई थी। इससे निकलने वाली हानिकारक किरणों से बचने के लिए उन्होंने एक खास तरह का चश्मा भी बनाया हुआ था। उन्होने घर में एक सुन्दर बगीचा भी था, जिसमें एक विशाल, आकर्षक और बहुमूल्य एलोवेरा का प्लांट भी लगा था जो सबका ध्यान आकर्षित कर लेता था। इसके बाद भी मैं कई बार उनसे मिलने जर्मनी गया। जर्मनी प्रवास के दौरान मैंने उनकी कुछ पुस्तकों को अंग्रेजी में अनुवाद भी करवाया। लोग उनकी खोज से प्रभावित हो रहे थे। यह उनके शब्दों का ही जादू था, तभी तो हमने 500,000 से ज्यादा पुस्तकें बेचीं। मैंने उन्हें हमारे तेल के नमूने बताये जो मैं साथ ले गया था। उन्होंने हमारे नमूनों को बहुत पसंद किया।


उन्होंने बताया कि बाजार में बिकने वाली ऐक्सपेलर मशीनें अच्छा अलसी का तेल निकालने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उन्होंने बताया कि तेल गर्म नहीं होना चाहिये। आप 100 डिग्री  फारेन्हाइट  के  ऊपर  नहीं  जा  सकते। आपको अपनी मशीन स्वयं बनवानी होगी। उन्होंने यह भी बताया कि आपको बीजों  में 40% तेल  छोड़ देना चाहिये। अच्छी  गुणवत्ता  वाले  और स्वादिष्ट इलेक्ट्रोन युक्त तेल के लिए आवश्यक है कि आप बीजो में 40% तेल छोड़ दें। यदि आप ज्यादा तेल निकालोगे तो तेल की गुणवत्ता कम हो जायेगी। वे मुझे वहाँ के अच्छे एक्सेलर प्लांट दिखाने भी ले गयी और मुछे इस विषय की कई बारीकियां भी समझाई।



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