Thursday, June 30, 2011

Discovery of Insulin

मानव की मधुमेह पर विजय की अमर  गाथा

हम मधुमेह पर बातचीत कर रहे हैं और इन्सुलिन के खोज की अनूठी और अमर दास्तान की चर्चा न करें, यह ठीक नहीं होगा। यह मधुमेह की इस ई-पुस्तक के साथ भी अन्याय होगा। प्राचीन काल में हमारे महान आयुर्वेद शास्त्री सुश्रुत ने मधुमेह के बारे में बहुत कुछ लिखा है। 1500 वर्ष ईसा पूर्व पापायरस ने मधुमेह के उपचार के कई नुस्के बताये थे। अरेटियस ने दूसरी शताब्दी में मधुमेह के बारे में बताया था कि इस रोग में शरीर का मांस गलकर मूत्र द्वारा निकल जाता है और अन्ततः रोगी की मृत्यु हो जाती है। 

उन्नीसवीं शताब्दी में यह देखा गया कि डायबिटीज से मरने वाले रोगियों का पेन्क्रियास अक्सर क्षतिग्रस्त होता था। 1869 में युवा चिकित्सक पॉल लेंगरहेम्स ने पाया कि पेन्क्रियास, जिसका मुख्य कार्य पाचन रस बनाना है, में कुछ विशिष्ट तरह की कोशिकाओं के झुंड होते हैं। ये पूरे पेन्क्रियास में फैले होते हैं और इनका कार्य अभी तक किसी को मालूम नहीं था। कालांतर में हुई खोज से स्पष्ट हो गया था कि कोशिकाओं के इस झुंड में कुछ कोशिकाएं, जिन्हें बीटा कोशिकाएं कहा गया, इन्सुलिन का स्राव करती हैं। कोशिकाओं के इस झुंड को “आइलेट्स ऑफ लेंगरहेम्स" नाम दिया गया क्योंकि इस झुंड को पहली बार इन्होंने ही पहचाना था।
सन् 1889 में अपने परीक्षणों से फिजियोलोजिस्ट मिनकोस्की और चिकित्सक वोन मेरिंग ने यह सिद्ध कर दिया था कि यदि कुत्ते का पेन्क्रियास निकाल दिया जाये तो कुत्ते को डायबिटीज हो जाती है। लेकिन यदि कुत्ते के पेन्क्रियास की नलिका, जिसके द्वारा पाचन रस आंत तक पहुंचता है, को बांध दिया जाये तो कुत्ते को थोड़ी पाचन संबम्धी तकलीफ जरूर होती है पर डायबिटीज नहीं होती है। इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि शरीर में पेन्क्रियास के कम से कम दो कार्य हैं। एक पाचन रस बनाना और दूसरा कोई अज्ञात तत्व बनाना जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है। यदि इस अज्ञात तत्व को पहचान लिया जाये तो डायबिटीज के सारे रहस्य परत दर परत खुलते चले जायेंगे।


परंतु उन्नीसवीं शताब्दी के आखिर तक डायबिटीज एक गम्भीर और लाइलाज महामारी मानी जाती रही। इसके कारणों का पता लगाने के लिये विश्वभर में वैज्ञानिक और चिकित्सक शोध कर रहे थे, पर कहीं से भी कोई अच्छे परिणाम सामने नहीं आ रहे थे। तब 14 नवंबर, 1891 को कनाडा में एलिस्टन, ओनारियो के मेहनती और अमीर कृषक परिवार में एक महान सितारा पैदा हुआ, जिनका नाम था फ्रेडरिक बेंटिंग। उनका परिवार उत्तरी आयरलैंड से आकर ओनारियो में बसा था। बेंटिंग लिखाई पढ़ाई में ज्यादा तेज-तर्रार नहीं थे और मुश्किल से ही हाई स्कूल पास कर सके थे। फिर बैंटिग ने विक्टोरिया कालेज के आर्टस संकाय में प्रवेश लिया और पहली छमाही परीक्षा में ही जनाब फेल हो गये। 

परिवार वालों ने उन्हें समझाया, बुझाया, सांत्वना दी और अपने प्रभाव से टोरोन्टो यूनिवर्सिटी के मेडीसिन स्कूल में दाखिला दिलवा दिया। लेकिन मेडिकल स्कूल ने उसे हिदायत दी कि उन्हें आर्टस स्कूल में जाकर पुनः परीक्षा पास करने पर ही यह प्रवेश मान्य होगा। मेडिकल स्कूल में भी वह कभी अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सके। तभी प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया और वे कनाडा की सेना में भर्ती होना चाहते थे। वे साक्षातकार देने भी गये पर दो बार तो उनकी नजर खराब होने के कारण उन्हें वापस भेज दिया गया। तीसरी बार उन्होंने फिर प्रयास किया, इस बार वे सेना में भर्ती होने में सफल हो ही गये। इसके साथ उन्होंने अपना अध्ययन भी जारी रखा। मेडीसिन स्कूल से पास होते ही वह सेना में मेडीकल ऑफिसर के पद के लिए चुन लिए गये। 1917 में उनको सेना के एक खास मिशन पर विदेश भेजा गया जिसमें उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय दिया। रोगियों की सेवा करते करते एक बार वे घायल भी हो गये थे। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें “मिलेट्री क्रॉस" पुरस्कार दिया गया।

1919 उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और लन्दन, ओनारियो में मेडिकल प्रेक्टिस शुरू कर दी। यहां उन्होंने अपनी पुरानी मित्र एडिथ से सगाई भी की। इसके साथ ही उन्होंने पश्चिमी ओनारियो के विश्वविद्यालय में ऑर्थोपेडिक्स विभाग में विख्याता का पद स्वीकार कर लिया और प्रोफेसर विल्सन की रिसर्च टीम में भी शामिल हो गये। लेकिन वे अच्छा व्याख्यान नहीं दे पाते थे। उन्हीं दिनों एक बार उन्होंने मेडिकल जर्नल में मोसेज बेरोन का लेख पढ़ा, जिसमें यह परिकल्पना की गई थी कि यदि मिनकोस्की के प्रयोगों को आगे बढ़ाया जाये तो पेन्क्रियास से निकलने वाले स्राव को अलग किया जा सकता है, जिससे मधुमेह का इलाज किया जा सके। 

बेंटिग इस लेख से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इस विषय पर काफी चिंतन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि पेनक्रियाज में बनने वाले पाचन रस हो न हो “आइलेट्स ऑफ लेंगरहेम्स" में बनने वाले अज्ञात स्राव को नष्ट कर देते हों। इसलिए वे पेनक्रियाज की नलिका को बांध देना चाहते थे, इससे पेनक्रियाज क्षतिग्रस्त होगी, सिकुड़ जायेगी और पाचन रस बनाना बंद कर देगी। फिर इस पेनक्रियाज से अज्ञात स्राव को निकाल लिया जायेगा जिससे डायबिटीज के रोगियों का इलाज किया जा सकता है। प्रोफेसर विल्सन ने बेंटिग को टोरोंटो विश्वविद्यालय में फिजियोलोजी के प्रोफेसर जे.जे.आर. मेक्लियोड से मिलने की सलाह दी और कहा कि वे उन्हें परीक्षण करने के लिए प्रयोगशाला उपलब्ध करवा लकते हैं।

बेंटिग ने प्रोफेसर मेक्लियोड को अपनी परिकल्पना बताई। पहले तो वे बेंटिग पर भड़के और फिर बोले, “क्या तुम पागल हुए हो? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि बड़े बड़े महारथी सूरमां बरसों से इस विषय पर रिसर्च कर रहे हैं और आज तक किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ है तो तुम जैसा अनुभहीन व्यक्ति कौन से तीर मार लेगा।” परंतु बेंटिग ने हार न मानी, मेक्लियोड को मनाने का हर संभव यत्न किया, खूब मिन्नते की। वे माने तो जरूर पर झुंझला कर बोले, " ठीक मैं तुम्हें दो महीने के लिए एक पुरानी प्रयोगशाला और परीक्षण करने के लिए कुछ कुत्ते दे देता हूं। पर याद रहे ठीक दो महीने बाद तुम्हें प्रयोगशाला खाली करनी पड़ेगी। (वे थोड़ा रुके और बेंटिंग को ऊपर से नीचे तक देख फिर बोले) पर तुम्हें रसायनशास्त्र का ज्यादा ज्ञान भी नहीं है, मैं कौशिश करता हूं कि तुम्हारी सहायता के लिए एक रसायनशास्त्री को नियुक्त कर दूं।”


27 फरवरी, 1899 को वेस्ट पेम्ब्रोक, वाशिंगटन काउन्टी, मायने में चार्स हरबर्ट बेस्ट नाम का एक और महान सितारा पैदा हुआ। इनके पिता डॉक्टर थे। बेस्ट टोरोंटो विश्वविद्यालय में फिजियोलोजी और बायोकेमिस्ट्री में ग्रेजुएशन कर रहे थे। जब वे फाइनल इयर में थे तब उन्हें और नोबेल को प्रोफेसर मेक्लियोड ने डायबिटीज की खोज हेतु एक चिकित्सक के साथ कार्य करने के लिए बुलाया। मेक्लियोड को दोनों में से एक को चुनना था पर दोनों ही यह कार्य करना चाहते थे। इसलिए यह निर्णय हुआ कि सिक्का उछाला जायेगा। टॉस भाग्यशाली बेस्ट ने जीता। यह चिकित्सक और कोई नहीं बेंटिग ही थे। दोनों युवा चिकित्सकों को प्रयोगशाला देकर मेक्लियोड छुट्टियां मनाने स्कॉटलैंड के लिए रवाना हो गये। 

इस तरह बेंटिंग और बेस्ट मिले और कुत्तों पर अपने परीक्षण करने की रूपरेखा बनाने लगे। वे दोनों पक्के दोस्त बन गये थे। दोनों में उत्साह की कोई कमी नहीं थी। ये 1921 की गर्मियों के दिन थे। रोज सुबह दोनों उस छोटी सी, पुरानी लेब में पहुंच जाते। लेब ऐसी कि थी कि उसमें ठीक से सूरज का प्रकाश भी नहीं आता था, कई वर्षों से उसका रंग रोगन भी नहीं हुआ था। लेब में एक बैंच पड़ी थी और एक लकड़ी की पुरानी मेज पर कुछ शीशियां रखी हुई थी। कुत्तों का कमरा ऊपर था। कुत्तों के कमरे के बगल में एक बदबूदार छोटी सी कोठरी थी जिसमें कुछ औजार और बेकार फटे पुराने चिथड़े रखे थे। उनके पास पैसों और साधनों की भारी कमी थी। कुत्तों को सिखाने, नहलाने और उनकी ब्लड शुगर करने के लिए एक सहायक रखने के भी पैसे नहीं थे। तब किसको मालूम था कि इस पुरानी, गंदी, बदबूदार और बेकार पड़ी लेब में एक जानलेवा और लाइलाज बीमारी डायबिटीज का उपचार की खोज होने जा रही थी।
सबसे पहले उन्होंने कुछ कुत्तों का ऑपरेशन करके उनका पेनक्रियाज निकाल लिया। ऑपरेशन के बाद कुत्तों की ब्लड शुगर बढ़ने लगी और डायबिटीज के लक्षण दिखने लगे यानी उन्हें डायबिटीज हो गई। दूसरे परीक्षण में उन्होंने कुछ कुत्तों के पेन्क्रियास की डक्ट को बांध दिया। जिससे पेन्क्रियास में पाचन रस बनना बंद हो गया और वह सिकुड़ने लगा। 5-6 हफ्ते बाद उन्होने दूसरे कुत्ते का पेन्क्रियास निकाला और उसके छोटे छोटे टुकड़े करके नमक के घोल में डाल कर फ्रीजर में जमने के लिए रख दिया। आधा जमने पर पेन्क्रियास को पीसा और छान कर उसका रस निकाल लिया। इसे उन्होंने “आइलेटिन” का नाम दिया।



अब आई शनिवार 30 जुलाई, 1921 की वो एतिहासिक सुबह, इन्सुलिन के खोज की घड़ी। उन्होंने उस रस “आइलेटिन” का 4 एम.एल. कुत्ते नं. 391 से 410 को इंजेक्ट किया। कुत्तों का ब्लड शुगर 0.20 से 0.12 प्रतिशत कम हो गया। उन्होंने दो घंटे बाद कुत्तों को फिर इंजेक्ट किया। कुत्ते में डायबिटीज के लक्षण ठीक होने लगे। चिकित्सा जगत में एक बड़ी खोज हो चुकी थी। यह दिन इतिहास के पन्नों में सुनहरी स्याही से लिखा जा चुका था। उन्होंने पूरी रिपोर्ट प्रोफेसर मेक्लियोड को तार द्वारा भेजी। तार पढ़ कर मेक्लियोड अचंभित थे। वे जान चुके थे कि एक महान खोज हो चुकी है। उसे यह बात हज़म नहीं हो रही थी कि आज के दो अनाड़ी लड़के इतनी महान खोज कर चुके थे। वे यह सोचते हुए तुरंत वापस लौटे कि कैसे इस विजय का सेहरा अपने माथे पर बांधें। 



मेक्लियोड ने आते ही ऐसा जाल बिछाना शुरू कर दिया कि खोज का पूरा श्रेय उन्हीं को मिले। उन्होंने “आइलेटिन” का नाम बदल कर "इन्सुलिन” रख दिया। मेक्लियोड ने उन्हें अच्छी लेब, पर्याप्त धन और सभी संभव संसाधन भी मुहैया करवाए। उनकी मदद के लिए अपने एक बायोकेमिस्ट्री के स्कॉलर कोलिप को भी उनकी टीम में शामिल कर दिया। कोलिप को इंसुलिन को शोधन करने का कार्य सौंपा गया। उसने इस पूरे प्रकरण की जानकारी टोरोंटो विश्वविद्यालय को दे दी। 


उनकी खोज की खबरें चिकित्सा जगत में चर्चित होने लगी थी। तभी मई 1922 में वाशिंगटन में हुई एक मेडिकल कान्फ्रेन्स में पूरी रिसर्च के बारे में विस्तार से चर्चा हुई। अब बारी थी इंसुलिन के मानव परीक्षणों की। उनके द्वारा शोधित किये गये “आइलेटिन” को सबसे पहले भाग्यशाली लियोनार्ड थोमस को दिया गया जिन्हें टोरेन्टो हॉस्पिटल में डायबिटीज के कारण बेहोशी की हालत में भर्ती करवाया गया था। पहली बार उसे इन्सुलिन का इन्जेक्शन दिया गया, जिससे उन्हें चमत्कारी लाभ हुआ और कुछ ही दिनों में पूर्णतया स्वस्थ होकर वह घर लौट गये। कई वर्षों तक स्वस्थ जीवन जीने के बाद एक मोटरसायकिल दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई। 

अब बेंटिंग और बेस्ट के लिये टोरेन्टो विश्वविद्यालय परिसर में एक शोध केन्द्र स्थापित किया गया, जिसका नाम “बेंटिंग और बेस्ट रिसर्च सेन्टर” रखा गया। अभी भी बहुत काम होना बाकी था इन्सुलिन को शुद्ध करने की तकनीक विकसित करनी थी। अपने परीक्षणों के लिए अब उन्हें ज्यादा “आइलेटिन” की आवश्यकता थी, जो कुत्तों से मिल पाना मुश्किल था। अतः उन्होंने बैलों के पेन्क्रियास से “आइलेटिन” निकालना शुरू किया। 

लेकिन तभी नोबेल प्राइज कमेटी ने मेडीकल और फिजियोलोजी में नोबेल प्राइज के लिये बेंटिग और मेक्लियोर्ड का नाम प्रसारित हुआ। 1923 में यह सुनकर बेंटिग को बहुत बुरा लगा। इस बात पर बहुत वाद-विवाद हुआ और नोबेल प्राइज कमेटी की बहुत छीछालेदर हुई। कई बार नोबेल प्राइज कमेटी अपने पक्षपातपूर्ण रवैये के लिए विवादों में रही है। बेंटिंग ने कहा कि यदि बेस्ट को नोबल प्राइज नहीं मिलता है तो वे भी नोबेल प्राइज स्वीकार नहीं करेंगे। पर उनके मित्रों और सहयोगियो ने उसे समझाया कि पहली बार किसी कनाडा के नागरिक को नोबेल प्राइज मिलने जा रहा है, उनकी महान खोज को दुनिया के हर डायबिटीज रोगी को पहुंचाने का वास्ता दिया गया तब बड़ी मुश्किल से वे नोबेल पुरस्कार लेने के लिये तैयार हुऐ लेकिन अपनी नोबेल प्राइज की राशि का आधा भाग अपने बेस्ट मित्र को दे दिया। मेक्लियॉड ने भी आधी इनाम की आधी राशि कोलिप को सौंपी।

इस पूरी टीम ने "इन्सुलिन” का पेटेन्ट करवाया और इससे अर्जित होने वाली धनराशि के पूरे अधिकार टोरोंटो विश्वविद्यालय को समर्पित कर दिये। इन्सुलिन की खोज के तुरंत बाद इलि लिली कंपनी ने बड़े जोर शोर से व्यावसाइक स्तर पर इन्सुलिन का निर्माण शुरू कर दिया। 

बेंटिग के उनकी प्रेमिका एडिथ से अच्छे संबंध नहीं रहे और वे शादी भी नहीं हो सकी। तब उनकी जिंदगी में आई टोरेन्टो की रईस धनाड्य स्त्री मेरियोन रोबिन्सन, जिससे उन्होंने विवाह किया, परंतु यह विवाह ज्यादा नहीं चला और 1929 में उनका विवाह-विच्छेद हो गया। फिर कुछ वर्षों बाद उन्हें हेनरिता बोर्न नाम की सुन्दर स्त्री से प्यार हुआ, जिससे उन्होंने 1939 में विवाह रचाया। 

द्वितीय विश्व युद्ध में बेंटिग पुनः कनाड़ा की सेना में भर्ती हो गये और 1941 में मेडिकल मिशन पर न्यूफाउंडलेंड से इंग्लेंड जाते समय प्लेन क्रेश होने के कारण मृत्यु हो गयी। बेंटिग की मृत्यु के बाद बेस्ट ने टोरेन्टो विश्वविद्यालय के बेंटिग और बेस्ट रिसर्च सेन्टर का संचालन पुनः सम्भाला। वहां उन्होंने हिपेरिन पर काफी शोध किया और 1978 में उनकी भी मृत्यु हो गयी।

Wednesday, June 29, 2011

Alsi Durga ka Panchvan Swaroop

नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।
स्कंदमाता अर्थात् अलसी के संबंध में शास्त्रों में कहा गया है-
 अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरुः।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
अर्थात् वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।



नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें
माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है।
जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।



प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍रतिl चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।



ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।
ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।


अलसी का वानस्पतिक नाम LINUM USITATISSIMUM
परिवार LINACEAE


अन्य नाम
संस्कृत  Atasi, Auma, Budrapatni, Chanaka, देवी, Haimwati सैन, Kshauma, Kshaumi, Ksuma, Madagandha, Madotkata, Malina, Masina, Masrina, Masrind, Masrna, Masruna, Masuna, Mauverchala, Nilapushpi, Nilapushpika, Nilapuspi, पार्वती, Pichhila, Sunila, Tailottama, उमा, Lika
हिंदी Alsi, Tisi, Tisi, Alsi
उर्दू Alasi, Alsee, Katan, Alsi nim bariyan, Alsi, Roghan alsi
अरबी Kattan, Bazarulkatan, Bazarutkattan, Bazrul-Kattan, Dhonul-Kattan
असमिया Tisi Goch
कन्नड़ Alashi, Alasibija, Alsi, Agase naaru, Alashiberu, Athasi gida, Seeme agase beeja, Agase beeja, Agase gida, Alasee beeja, Athasee gida, अलसी enne
MALYALAM » Akasi, Cerucana, Cheru-chanattinte-vitta, Cheruchanavittintevilta, Kayavu
मणिपुरी Thoiding-amuba
मराठी Javas, Alashi, Javasa, Alsi-sanbyam
PERSIAN Zaghu, Zaghir, Kutan, Bazarug, Kuman, Tukhmekatan, Tukhme-zaqhir, Tukhme-zaghir, Tukhme-katan, Roghane-katan, Roghane-zaghir
तमिल Alivirai, Alshi, Alishi-virai, अली, अली vittu, Alici vitai, Alishivirai, Alisi virai, Alleverei, Serroo sanulverei, Alci, Alici, Cantiracura
TELGU Atasi, Avisi, Madana-ginjalu, Madanginjalu, Ullusulu, Madanaginja, अली, Athasee, Avishi, Madanaginjalu, नल्ला agisi, avisi नल्ला


आयुर्वेदिक गुण
गुना (गुणवत्ता)
रस (स्वाद)
VIPAK (चयापचय)
VIRYA (शक्ति)
PRABHAV (प्रभाव)
गुरू Snigdh, Pichil
मधुर, Tikt
कटु  Ushan
Mriduvirechan
औषधीय कार्रवाई Immunosuppressive, एनाल्जेसिक, tribolium castaneum के खिलाफ Repellant गतिविधि
चिकित्सीय का उपयोग करता शुक्राणु विध्वंसक • Micturitive • रेचक Pittaj vikaar • मूत्र पथ के संक्रमण
योगों (योग) Gojihvadi kvath churna Sarsapadi pralepa


Sunday, June 26, 2011

Obesity Management




आप मेरा यह आलेख पढ़ रहे हैं, तो मुझे यह आभास हो रहा है कि संभवतः आपका वज़न ज्यादा है और आप इसे घटाने का मानस बना रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है जैसे आपने पहले भी वज़न घटाने का प्रयास किया हो तथा सफलता न मिल पाई हो और आप निराश होकर बैठ गये हों। स्वाभाविक है कि आप ऋणात्मकता और हीन भावना से ग्रस्त भी हो गये होंगे। लेकिन मुझे तो ये सब अच्छे संकेत लग रहे हैं। आपने शायद सुना ही होगा कि असफलता ही तो सफलता की पहली कुंजी है। आपकी असफलता में मुझे तो कई अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं जैसे कि आपको इस बात का पूरा आभास था कि आपका वज़न ज्यादा है, आप अपना वज़न कम भी करना चाह रहे थे और आपने कौशिश भी की, यह अलग बात है कि आप सफल नहीं हो सके तो तनाव कतई न करें इस बार हो जायेंगे। वज़न कम करने की यह यात्रा आपके जीवन की एक अविस्मरणीय घटना बनने वाली है। यह आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। शीघ्र ही आपके परिजन और मित्र आपसे बहुत प्रभावित होने वाले हैं। अचानक सब आपको ज्यादा प्यार और सम्मान देने लगेंगे। सब लोग आपसे वजन घटाने के टिप पूछना चाहेंगे। 

बी.एम.आई. पर रखो नज़र  यह है स्थूलता का बेरोमीटर

आजकल स्थूलता का निदान हम बॉडी मास इंडेक्स (BMI) के आधार पर करते हैं, जिसका सूत्र बेल्जियम के वैज्ञानिक एडोल्फ क्वेटलेट ने खोजा था। इसे बॉडी मास इन्डिकेटर भी कहते हैं। सामान्य लोगों का BMI 18.5 से 24.9 के बीच रहता है। यदि आपका BMI 30 से ज्यादा है तो आप स्थूलता की श्रेणी में आते हैं। 25 से 29.9 के बीच की BMI वाले भले ही मोटापे की श्रेणी में न आते हों, पर उन्हें अपना कुछ वजन तो कम करना ही चाहिये। BMI 19-70 वर्ष की आयु के लोगों में शरीर के अनुमानित फैट की जानकारी दे देता है। हालांकि बॉडी बिल्डर्स, खिलाड़ियों और गर्भवती स्त्रियों में BMI शरीर के फैट की सही गणना नहीं कर पाता है।

ब्रिटिश प्रणाली में BMI का सूत्र

याद रहे इंच * इंच = वर्ग इंच

बी.एम.आई. (पाउन्ड प्रति वर्ग इंच) = (पाउन्डमें वजन* 703) / (लंबाई  X लंबाई इंचों में)


मीटरिक प्रणाली में BMI का सूत्र

याद रहे मीटर * मीटर = वर्ग मीटर

बी.एम.आई. (किलो प्रति वर्ग मीटर) = किलो में वजन / (लंबाई X  लंबाई  मीटर में)

कटि-नितंब अनुपाती बुरा सेब अच्छी नाशपाती


यदि शरीर में फैट का जमाव उदरके अंदर या आसपास ज्यादा होता है जिससे अपेक्षाकृत पेट ज्यादा मोटा दिखाई देता है और जिसे हम सेबाकार स्थूलता (Apple shaped Obesity) कहते हैं तो स्थूलता के दुष्प्रभावों का जोखिम ज्यादा रहता है। यदि फैट का जमाव नितंब और ऊपरी जांघों में ज्यादा होता है तो इसे नाशपाती स्थूलता (Pear shaped Obesity) कहते हैं। नाशपाती स्थूलता सामान्यतः स्त्रियों में होती है, इसमें स्थूलता के दुष्प्रभावों का जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है।

स्थूलता के आकार का अनुमान हम कटि-नितंब अनुपात या Waist to Hip Ratio से लगाते हैं, जिसे कमर के न्यूनतम माप में का सूत्र है।

कटि-नितंब अनुपात = कमर की न्यूनतम परिधि इंचों में / नितंबों की अधिकतम परिधि इंचों में

उदाहरण- यदि किसी स्त्री के कमर और नितंब नाप क्रमशः 35और 46 इंच है तो कटि-नितंब अनुपात 35/46 = 0.76 होगा। यदि कटि-नितंब अनुपात स्त्रियों में 0.8 और पुरुषों में 1.0 से ज्यादा हो तो उन्हें सेबाकार कहा जाता है।

'यानि जब पेट बने मटका, तो लगे स्वास्थ्य को झटका'

कैलोरी का रोजनामचा

कैलोरी की दैनिक खपत का आँकलन जरूरी है। विश्राम की अवस्था में शरीर प्रति दिन जितनी कैलोरी खर्च करता है उसे बी.एम.आर. कहते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको अपने मिफ्लिन के सूत्र से बी.एम.आर. की गणना करनी है, जो इस प्रकार है।

पुरुषों में बी.एम.आर. = (10 x w) + (6.25 x h) - (5 x a) + 5

स्त्रियों में बी.एम.आर.= (10 x w) + (6.25 x h) - (5 x a) - 161

यहाँ w = वजन किलो में h = लंबाई सेंटीमीटर में a = उम्र वर्षों में

इस गणना के लिए आपको अपनी उम्र वर्षों, वजन किलो में और लंबाई सेंटीमीटर में नापनी होगी। कैलोरी की खपत मालूम करने के लिए बी.एम.आर. को सक्रियता घटक से गुणा करके मालूम करेंगे। सक्रियता घटक नीचे दिये जा रहे हैं।

सक्रियता-घटक       श्रेणी                                            परिभाषा

1.2                       निष्क्रिय                        शारीरिक सक्रियता न के बराबर

1.375                   मामूली सक्रिय             हल्का व्यायाम या 1-3 दिन/सप्ताह खेलना

1.55                    मध्यम सक्रिय              मध्यम व्यायाम या 3-5 दिन/सप्ताह खेलना

1.725                  बहुत सक्रिय                  तेज व्यायाम या 6-7 दिन/सप्ताह खेलना

1.9                     अत्यधिक  सक्रिय           भरपूर व्यायाम या खेल या काम


उपचारशाला

कैलोरी प्रबंधन

आहार नियंत्रण का पहला लक्ष्य वजन को बढ़ने से रोकना है। उसके बाद हमें वजन कम करने का लक्ष्य तय करना है। 20-25 आदर्श BMI है लेकिन यह जरा मुश्किल होता है। यह बात भी काफी महत्वपूर्ण है कि यदि स्थूल व्यक्ति खपत से कम कैलोरी ले तो वजन कम होता है। 3500 कैलोरी कम लेने से एक पाउंड वजन कम होता है। यदि आप प्रति दिन की खपत से 350 केलारी कम खाएगे तो 10 दिन में आपका वज़न एक पाउण्ड कम होगा। एक वयस्क व्यक्ति प्रति दिन 1200-2800 कैलोरी की आवश्यकता होती है जो उसके वजन और क्रिया शीलता पर निर्भर करती है। यदि व्यक्ति का आरंभिक वजन ज्यादा है तो वह अपेक्षाकृत ज्यादा वजन कम करता है। बड़ी उम्र के व्यक्ति को वजन कम करना थोड़ा मुश्किल होता है क्यों कि उम्र बढ़ने के साथ चयापचयदर कम होती जाती है।एक पाउंड प्रति सप्ताह वजन कम करना सुरक्षित लक्ष्य है।

सामान्य बातें

• रोज 8-10 ग्लास गुनगुना पानी पिये।

• आप रोज 4 से 6 बार भोजन ले परन्तु बहुत थोड़ा-थोड़ा। रात को सोने के 4-5 घण्टे पहले हल्का डिनर ले लें।

• आपके भोजन में सभी फल व सब्ज़ियों का समावेश होना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, नींबू, आदि सभी हरी सब्ज़ियाँ आदि खूब खाएं। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, आम, केला आदि सभी फल खाएं। खाद्यान्न व दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं।

• अंकुरित दालों का सेवन अवश्य करें।

• रिफाइंड नमक बन्द करें और सैंधा नमक खाएं।

• रोजाना आघा चम्मच पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में डाल कर लें।

• नारियल का तेल खाने के लिये सर्वोत्तम होता है, यह आपके वज़न को कम करेगा। सरसों और तिल का कच्ची घाणी या एक्सेलर इकाइयों द्वारा निकला तेल बहुत अच्छा माना जाता है। हो सके तो आप सब्ज़ियों को पानी में पकायें व बाद में तेल डालें। तली हुई चीजें कम से कम खायें। वैसे अलसी से आपको अच्छे कारक वसा मिल जायेंगे।

बंद करो रिफाइन्ड तेल अगर चलानी हो जीवन की रेल  

आपको मारक वसा जैसे हाइड्रोजनीकृत फैट (डालडा) और रिफाइंड तेल का प्रयोग तुरन्त बन्द कर देना है। हाइड्रोजनीकरण या डालडाकरण करने के लिए निकिल धातु की उपस्थिति में तेलों में 4000 F पर भारी दबाव से 8 घंटे तक हाइड्रोजन प्रवाहित की जाती है। इससे तैयार होता है ट्रांस फैट से भरपूर निष्क्रिय (मृत) फैट जो हमारे शरीर के लिए खतरनाक विष है। बहुराष्ट्रीय संस्थान अपने सभी खाद्य पदार्थों जैसे ब्रेड, केक, मैगी, पास्ता, नूडल्स, बिस्कुट, चिप्स, कुरकुरे, पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि में ट्रांसफैट युक्त घातक हाइड्रोजनीकृत वसा का भरपूर प्रयोग करते हैं इसलिए इनको करो बाय-बाय। रिफाइंड तेल को बनाते वक्त 400 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है व अत्यंत हानिकारक रसायन पदार्थ जैसे हैक्सेन, कास्टिक सोड़ा, ब्लीचिंग एजेंट्स आदि-आदि मिलाये जाते हैं।

संतुलित रखो ओमेगा छः और तीन यही है स्टोरी की मेन थीम

हमारे शरीर के लिये ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फेटी एसिड दोनों ही बहुत आवश्यक हैं। ओमेगा-6 गर्म होते है और शरीर में इन्फ्लेमेशन पैदा करते है। परन्तु ओमेगा-3 ठण्ड़े होते हैं और एन्टीइन्फलेमेटरी होते हैं। शरीर में ओमेगा-6 ज्यादा होने से मोटापा समेत कई बीमारियाँ हो जाती है। इसलिए आपको अपने भोजन में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फेटी एसिड का अनुपात संतुलित यानी 1:1 या 1:2 रखना है। जो तेल ज्यादातर हम खाते हैं, ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं, पर उनमें ओमेगा-3 बहुत ही कम होते हैं। यह ओमेगा-3 की कमी आप प्रतिदिन 30-50 ग्राम अलसी खाकर पूरी कर सकते हैं।


रिफाइन्ड कार्ब होते बड़े खराब

आपको रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और बाजार में उपलब्ध खुले हुए या पेकेट बंद खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पास्ता, मेगी, नूडल्स, बिस्कुट, अंकल चिप्स, कुरकुरे, पेप्सी, लिमका, कोकाकोला, फेंटा, फ्रूटी, पिज्ज़ा, बर्गर, पेटीज, समोसा, कचोरी, भटूरा, नमकीन, सेव आदि का सेवन नहीं करना है। उपरोक्त सभी खाद्य पदार्थ मेदा व ट्राँसफेट युक्त खराब रिफांइड तेलों से बनते हैं। तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म किया जाता है। जिससे उसमें अत्यन्त हानिकारक कैंसर पैदा करने वाले रसायन जैसे एच.एन.ई. बन जाते है।


अलसी अपनाओ और स्थूलता घटाओ

अलसी सचमुच वज़न घटाने का बढ़िया हथियार है क्योंकि यह जीरो कार्ब भोजन है। चौंकियेगा नहीं, यह सत्य है। मैं आपको समझाता हूँ। 14 ग्राम अलसी में 2.56 ग्राम प्रोटीन, 5.90 ग्राम फैट, 0.97 ग्राम पानी और 0.53 ग्राम राख होती है। 14 में से उपरोक्त सभी के जोड़ को घटाने पर जो शेष (14-{0.97+2.56+5.90+0.53}=4.04 ग्राम) 4.04 ग्राम बचेगा वह कार्बोहाइड्रेट की मात्रा हुई। विदित रहे कि फाइबर कार्बोहाइड्रेट की श्रेणी में ही आते हैं। इस 4.04 कार्बोहाइड्रेट में 3.80 ग्राम फाइबर होता है जो न रक्त में अवशोषित होता है और न ही रक्तशर्करा को प्रभावित करता है। अतः 14 ग्राम अलसी में कार्बोहाइड्रेट की व्यावहारिक मात्रा तो 4.04 - 3.80 = 0.24 ग्राम ही हुई, जो 14 ग्राम के सामने नगण्य मात्रा है इसलिये आहार शास्त्री अलसी को जीरो कार्ब भोजन मानते हैं। मैंने अलसी के सेवन से कई लोगों का वज़न कम होते देखा है। दो-चार किलो वज़न तो मात्र अलसी खाने से ही हो जाता है। । 30-40 ग्राम अलसी मिक्सी के चटनी जार में सूखा पीस कर आटे में मिलाकर रोटी बना कर लें। अलसी पीस कर रखने से खराब हो जाती है।

वज़न घटाने में अलसी आपकी इस तरह मदद करेगी।

• सबसे पहले तो अलसी आपके मन में स्वस्थ, सुन्दर और युवा बने रहने की इच्छा जागृत करती है।

• अलसी आपमें दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास जगायेगी। आपको भरपूर ऊर्जा और शक्ति देगी और आपके मन से सारी ऋणात्मकता निकाल देगी।

• अलसी के सेवन करने से वजन घटाने हेतु व्यायाम या घूमने से होने वाली थकावट नहीं होगी और यदि हुई भी तो चुटकियों में दूर हो जायेगी।

• अलसी में 27 प्रतिशत रेशा होने के कारण पेट ज्यादा देर तक भरा रहता है, खाने की ललक कम होती है और भूख भी कम लगती है।

• अलसी में भरपूर लिगनेन और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड होते हैं जो आपके शरीर में माँस-पेशियों को विकसित करते हैं और फालतू जमा हुए चर्बी को कम करते हैं और आपका वजन कम करते हैं।

प्रोटीन खाओ स्थूलता घटाओ

आपको रोज 80-100 ग्राम प्रोटीन का सेवन करना चाहिये। महिलाओं को भी 80 ग्राम तो लेना ही है। यदि आप व्यायाम ज्यादा करते हो तो प्रोटीन और ज्यादा खाएँ। यदि आप प्रोटीन के लिये पनीर, दही व दालें खायें। प्रोटीन वज़न कम करने के लिए लेने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं में अत्यन्त आवश्यक है। प्रोटीन नहीं खाने से आपकी मांसपेशियाँ सिकुड़ना शुरू हो जायेगी व आपका बी.एम.आर. कम हो जायेगा। अंडा वज़न भी कम करता है।


औषधि का तड़का लगाये मोटा लड़का


यदि BMI 30 से ज्यादा हो तो स्थूलता के उपचार हेतु औषधियों का प्रयोग भी करना चाहिये। स्थूलता के उपचार के लिए वेज ओमेगा कंपनी का केप्स्यूल स्लिम फाइबर सर्वश्रेष्ठ है। इसमें ग्लूकोमनन नाम का जादुई फाइबर होता है, जो पेट में जाकर पानी सोखता है और 200 गुना फूल जाता है। इस वजह से पेट भरा-भरा लगता है, यह भोजन से र्काब तथा फैट को सोख कर मल के साथ विसर्जित कर देता है। इसके प्रभाव से आप खाना कम खाते हैं, कब्ज में फायदा होता है, शुगर और कॉलेस्टेरोल कम होते हैं। वेज ओमेगा का केप्स्यूल शेप भी लेना चाहिए जो भूख को कम करता है और कई तरह से मोटापे में उपयोगी है। दोनों का एक केप्स्यूल सुबह शाम खाने के एक घंटे पहले लेना चाहिए। इसके परिणाम शत-प्रतिशत मिलते हैं। हरी चाय के एक्सट्रेक्ट से बना ग्रीन ट्रिम केप्स्यूल भी सुबह-शाम लिया जा सकता है। यह आप हमसे भी मंगवा सकते हैं।   

रोज एक क्रोमियम व एल्फालाइपोइक एसिड युक्त एन्टी-ऑक्सीडेंट का केप्स्युल जैसे Cap. Ebiza-L और Dabur Shilajit के दो केप्स्युल सुबह शाम लिया जा सकता है। शिलाजीत उत्कृष्ट आयुवर्धक रसायन है जो मधुमेह, उच्च रक्त चाप, मोटापा आदि में बहुत लाभ देती है। गुर्दों को नया जीवन व उर्जा देती है। मदोहर गुग्गुल की दो गोली सुबह शाम ली जा सकती है।

नेगेटिव कैलोरी फूड खाते रहो मेरे ड्यूड

स्थूलता के उपचार हेतु कुछ वैज्ञानिकों ने ऋणात्मक कैलोरी भोजन (Negative Calorie food) की भी परिकल्पना की है। उनके अनुसार कुछ खाद्यान्नों इतनी कम कैलोरी होती है कि उससे ज्यादा कैलोरी उनको चबाने, पचाने और पूरे आहार-पथ से गुजारते हुए विसर्जित करने में खर्च होती है। ब्रोकोली, बंद गोभी, गाजर, टमाटर, पालक, शलगम, ककड़ी, फूल गोभी, पपीता आदि ऋणात्मक कैलोरी भोजन माने जाते हैं। आप इन खाद्य पदार्थों को अपने आहार में अवश्य शामिल करें।

बाबा सिखाएँ योग वज़न घटाएँ लोग 

जो लोग नियमित व्यायाम, प्रातः भ्रमण, योग या प्राणायाम करते हैं, वे स्थूल नहीं होते हैं। व्यायाम या कोई भी शारीरिक क्रिया करने से कैलोरी का ज्वलन होता है। कैलोरी के ज्वलन की मात्रा व्यायाम के प्रकार, अवधि, और तीवृता पर निर्भर करती है। यह व्यक्ति के वजन पर भी निर्भर करती है। उदाहरण के लिए एक किलोमीटर चलने से 100 किलो का व्यक्ति 60 किलो के व्यक्ति से ज्यादा कैलोरी ज्वलन करेगा क्योंकि उसे अतिरिक्त 40 किलो के वजन को भी एक किलोमीटर ढोने में कैलोरी खर्च करनी पड़ेगी। आहार नियंत्रण के साथ व्यायाम करना स्थूलता का आदर्श उपचार है। अकेले व्यायाम से काम चलने वाला नहीं है।

• सप्ताह में 5-7 बार 30-45 मिनट व्यायाम करें। तेज चलना, साइकिल चलाना, योग, प्राणायाम, ट्रेडमिल पर चलना, तैरना आदि अच्छे व्यायाम हैं।

• व्यायाम एक साथ न करके दस दस मिनट के टुकड़ों में भी कर सकते हैं।

• पहले थोड़ा वार्म-अप करें फिर धीरे धीरे व्यायाम तीवृता बढ़ावें।

• व्यायाम करने में उम्र बाधा नहीं डालती। 70 वर्ष से बड़े लोग भी व्यायाम कर सकते हैं।

 कम्प्यूटर की थाम लो कमान स्थूलता-नियंत्रण बने आसन

आजकल सभी लोग कम्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आप भी अपना वज़न घटाने के लिए कम्प्यूटर की मदद ले सकते हैं और इस अनुभव को रोचक व मनोरंजक भी बना सकते हैं। इस हेतु BWM 2.0 diet manager Software एक बहुत ही अच्छा सॉफ्टवेयर है जो आप http://www.tucows.com/thankyou.html?swid=520699 मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं। जो कुछ भी खाद्य-पदार्थ आप रोज खायें या व्यायाम आदि करें, उनकी मात्रा और विवरण आप सॉफ्टवेयर में भरते जायें। सॉफ्टवेयर इन सारी चीजों का लेखा-जोखा रखेगा और आपको बताता रहेगा कि आपका कैलोरी प्रबंधन कैसा चल रहा है, कितने दिनों में आप अपना वज़न घटा पायेंगे। आपको इस सॉफ्टवेयर में कई भारतीय व्यंजनों के विवरण नहीं मिलेंगे, लेकिन आप इन व्यंजनों के विवरण डाल स्वयं सकते हैं। http://kelpiesoft-food-file.en.softonic.com/ से आप केलपाईसॉफ्ट फूड फाइल सॉफ्टवेयर भी मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं। यह भारतीय व्यंजनों को छोड़ कर बाकी सब व्यंजनों की कैलोरी-मात्रा बतला देगा। गूगल की गलियों की खाक छानोगे तो और भी बहुत कुछ पाओगे। अपना वज़न घटाने के बाद लोग अक्सर यह समझते हैं कि उनकी स्थूलता की उपचार यात्रा पूरी हो गई है और वे व्यायाम करना घूमना छोड़ देते हैं, खूब खाने पीने लगते हैं और अपनी पुरानी जीवन शैली में लौट आते हैं। धीरे-धीरे वजन फिर बढ़ना शुरू हो जाता है और स्थूलता का दैत्य पुनः उनको जकड़ लेता है। इसलिए ऐसी भूल कभी नहीं करें। वजन कम होने के बाद भी अपनी जीवन शैली को नहीं बिगाड़ें, नियमित अपना वजन देखते रहें, स्वस्थ व नियंत्रित भोजन लेते रहें और व्यायाम करते रहें।  

भारतीय व्यंजनों की कैलोरी मात्रा, विभिन्न व्यायामों में खर्च होने वाली कैलोरी की मात्रा, बॉडी मास इंडेक्स और कटि-नितंब अनुपात आदि मालूम करने के लिए अंतरजाल पर आप गूगल की मदद ले सकते हैं। हमारी अलसी चेतना यात्रा (http://flaxindia.blogspot.com/) के मुख्य पृष्ठ पर ये सारे हथियार आपको हिन्दी भाषा में मिल जायेंगे।

Sunday, June 19, 2011

Apricot kills Cancer

खुबानी - कैंसररोधी विटामिन बी-17 का सबसे बड़ा स्रोत


अनेक वर्षों तक शोध करने के बाद सेन फ्रांसिस्को के विख्यात जीव रसायन विशेषज्ञ डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स जूनियर ने 1950 में एक कैंसर रोधी विटामिन की खोज की जिसे उन्होंने विटामिन बी-17 या लेट्रियल या एमिग्डेलिन नाम दिया। यह उन्होंने खुबानी के बीज से विकसित किया। क्रेब्स ने वर्षों तक कैंसर के रोगियों का उपचार विटामिन बी-17 से किया और आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त किये। क्रेब्स ने पाया कि विटामिन बी-17 कैंसर कोशिकाओं के लिए अत्यंत घातक होता है, लेकिन यह सामान्य कोशिकाओं के लिए पूर्णतया सुरक्षित है।
विटामिन बी-17 के अन्य स्रोत -

विटामिन बी-17 या लेट्रियल प्राकृतिक, पानी में घुलनशील पदार्थ है जो सभी जगह पाये जाने वाले लगभग 1200 पौधों के बीजों में पाया जाता है। इसके सबसे बड़े स्रोत खुबानी, आड़ू, आलू बुखारा, बादाम, सेब के बीज हैं। इनके अलावा ये नाशपाती, चेरी, बाजरा, काबुली चना, अंकुरित मूंग, अंकुरित मसूर, काजू, स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, जामुन, अखरोट, चिया, तिल, अलसी, ओट, कूटू, भूरे चावल, रतालू, गैंहू के जवारे आदि में भी पाया जाता है।




विटामिन बी-17 कैंसर कोशिका के लिए खतरनाक विषः-

विटामिन बी-17 लगभग सभी अंगों जैसे फेफड़े, स्तन, ऑत, प्रोस्टेट के कैंसर और लिम्फोमा आदि के उपचार में सहायक है। विटामिन बी-17 में ग्लूकोज़ के दो अणु, एक सायनाइड रेडिकल और एक बेन्जेल्डिहाइड आपस में मजबूती से जुड़े रहते हैं या हम यूं समझें कि ये तीनों एक ताले में बंद रहते हैं। हम जानते हैं कि सायनाइड अत्यंत खतरनाक विष होता है। लेकिन विटामिन बी-17 में सायनाइ, बेन्जेल्डिहाइड और ग्लूकोज के साथ मजबूती से जुड़ा होने के कारण यह हमारे शरीर के लिए पूर्णतया सुरक्षित है। बीटा ग्लूकोसाइडेज़ एंजाइम जो सिर्फ और सिर्फ कैंसर कोशिकाओं में ही होता है, जिसे कुंजी एंजाइम कहते हैं, जो विटामिन बी-17 का ताला खोल कर उसे ग्लूकोज के दो अणु, हाइड्रोजन सायनाइड (HCn) और बेन्जेल्डिहाइड में विभाजित कर देता है। विटामिन बी-17 के अणु से मुक्त होकर सायनाइड और बेन्जेल्डिहाइड कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। यह क्रिया कैंसर कोशिका के अंदर होती है। वो कहते हैं ना कि जहर को जहर ही काटता है। हमारी सभी कोशिकाओं में रोडेनीज़ नामक एंजाइम होता है, जिसे सुरक्षा एंजाइम भी कहते हैं। जो मुक्त सायनाइड को तुरंत निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है।


रोडेनीज़ कैंसर कोशिकाओं में नहीं होते हैं। विटामिन बी-17 हमारी कोशिकाओं मे बड़ी आसानी से प्रवेश करने की क्षमता रखता है। सामान्य तौर पर हमारे शरीर में विटामिन बी-17 का विभाजन असंभव है। और अवशेष सायनाइड रोडेनीज़ की उपस्थिति में गंधक से क्रिया करके थायोसाइनेट्स में और बेन्जेल्डिहाइड ऑक्सीकृत होकर बेंजोइक एसिड में परिवर्तित हो जाते हैं जो शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। थायोसाइनेट हाइड्रोकोबाल्मिन से मिलकर सायनेकोबाल्मिन यानी विटामिन बी-12 बनाते हैं। थायोसाइनेट रक्तचाप नियंत्रित रखता है और बेंजोइक एसिड दर्द निवारक है। यदि शरीर में कैंसर कोशिकांए नहीं है तो शरीर में बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ भी नहीं होगा। और यदि शरीर में बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ नहीं होगा तो शरीर के लिए अत्यंत घातक सायनाइड भी नहीं बनेगा।


हंजा एक कैंसर मुक्त प्रजातिः-

आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही खुबानी का प्रयोग कैंसर के उपचार के लिए होता आया है। यह भी देखा गया है कि हिमालय की तराइयों में रहने वाली हंजा प्रजाति के लोगों में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ है। क्योंकि इनका मुख्य भोजन खुबानी और बाजरा है। ये खुबानी, उसके बीज और तेल सभी का भरपूर प्रयोग करते हैं। इनके भोजन में विटामिन बी-17 की मात्रा अमेरीकी भोजन से 200 गुना ज्यादा होती है। खुबानी के पेड़ ही इनकी सम्पत्ति होती है । ये लोग बहुत लम्बी उम्र जीते हैं। 115-120 वर्ष तक की उम्र आम बात है। इनकी महिलाओं की त्वचा बहुत मुलायम होती है और ये अपनी उम्र से 15-20 वर्ष युवा दिखती हैं। क्योंकि ये त्वचा पर खुबानी का तेल जो लगाती हैं। माता वेष्णों देवी हमें प्रसाद में खुबानी देकर यही संदेश देती है कि खुबानी खाओ और कैंसर मुक्त रहो। लंबे समय से अमेरीका व अन्य देशों के वैज्ञानिक यहॉं रह कर शोध कर रहे हैं और मालूम करना चाह रहे कि क्यों यहॉ कैंसर नहीं होता है, क्या वाकई कैंसर का कारण विटामिन बी-17 की कमी ही है ? वैज्ञानिकों ने जब यहॉ के लोगों को अमेरीका में बसाया और अमेरीकी भोजन खिलाया तो धीरे-धीरे उनको भी कैंसर होने लगा। एस्किमो प्रजाति के लोगों को भी कभी कैंसर नहीं होता है क्योंकि वे केरेबू मछली बहुत खाते हैं जिसमें विटामिन बी-17 की मात्रा बहुत अधिक होती है।




विटामिन बी-17 में सायनाइड होने पर भी पूर्णतया सुरक्षित है ? ? ?

आप सोच रहे होंगे कि विटामिन बी-17 जिसके अणु में हाइड्रोजन सायनाइड जैसा खतरनाक विष होता है, किस प्रकार हमारे शरीर के लिए पूर्णतया सुरक्षित है ? विदित रहे कि विटामिन बी-17 में सायनाइड बेन्जेल्डिहाइड और ग्लूकोज़ मजबूत ताले में बंद रहते हैं और सिर्फ कैंसर कोशिकाओं में मौजूद बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ नामक कुंजी एंजाइम ही विटामिन बी-17 का ताला खोल कर सायनाइड को मुक्त कर सकता है। डॉ. अर्नेस्ट ने सिद्ध किया है कि विटामिन बी-17 हमारे लिए उतना ही सुरक्षित है जितना ग्लूकोज़ है। सायनाइड रेडिकल तो अलसी, विटामिन बी-12, स्ट्रॉबेरी, चेरी, रसबेरी आदि में भी होते हैं। पर इनको खाने से हम मर नहीं जाते हैं ? याद कीजिये सोडियम और क्लोरीन दोनों ही खतरनाक तत्व हैं परंतु जब ये दोनों तत्व जुड़ते हैं तो नमक बनता है जिसके बिना जीवन संभव नहीं है।

विटामिन बी-17 मानवता को शर्मसार कर देने वाला विवादास्पद इतिहासः-

डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स की खोज के बाद लोगों को लगने लगा कि अब कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं रही है। कैंसर के रोगी इस उपचार से ठीक होने लगे थे। फिर क्या था, कई देशों के चिकित्सक और कैंसर वैज्ञानिक बी-17 पर शोध करने में जुट गये। कोशिका रसायन विभाग, नेशनल कैंसर इन्स्टिट्यूट, यू.एस.ए. के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष और सहसंस्थापक डॉ. डीन बर्क भी लेट्रियल पर अनुसंधान कर रहे थे और उन्हें आश्चर्यजनक परिणाम मिल रहे थे। उन्होंने अपने शोध पत्रों में वर्णन किया है, ‘जब हमने कैंसर कोशिकाओं के घोल में लेट्रियल मिलाया और सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा तो पाया कि कैंसर कोशिकाऐं मक्खियों की तरह मर रही थी। ठीक उसी तरह जैसे कीट नाशक स्प्रे से मक्खी व मच्छर मरते हैं। क्या दृश्य था। जिसकी एक झलक ने मुझे पल भर में World WITHOUT CANCER के करोड़ों स्वप्न दिखा दिये।’ कैंसर कोशिकाओं में एंजाइम बीटा-ग्लूकोसाइडेज होता ही है जो लेट्रियल का विभाजन कर सायनाइड और बेन्जेल्डिहाइड को मुक्त कर देता है जो कैंसर कोशिका का सफाया कर देता है। डॉ. अर्नेस्ट की खोज हर बार सच साबित हो रही थी।




एक बार बफेलो, न्यूयार्क के एक समारोह में कैंसर विशेषज्ञ और लेट्रियल के समर्थक डॉ. हेरॉल्ड मेनर अपने व्याख्यान में लेट्रियल की बहुत प्रशंसा कर रहे थे तब एक व्यक्ति खड़ा होकर बोला, “डॉ. मेनर, एफ.डी.ए. तो लेट्रियल को घातक विष करार देती है, सायनाइड का बम कहती है, नीम हकीम का इलाज बताती है और आप इसकी इतनी प्रशंसा कर रहे हैं ?” डॉ. मेनर तेज स्वर में बोले, “एफ.डी.ए. झूठ बोलती है।” उसने जवाब में कहा, “अपने पिता की लेट्रियल गोलियां खाने से न्यूयार्क में जो एक लड़की की मृत्यु हुई थी, उस बारे में आप क्या कहेंगे ?” तभी एक महिला उठी और क्रोधित होकर बोली, “डॉ. मेनर, इसका स्पष्टीकरण मैं दूंगी, इस प्रश्न का उत्तर शायद मुझे ही देना चाहिये क्योंकि मैं उस बच्ची की बदनसीब मॉ हूं। उसने कभी अपने पिता की गोलियां नहीं खाई। चूंकि मेरे पति लेट्रियल ले रहे थे और डॉक्टर यह जानता था, इसलिए उसने समझ लिया कि लेट्रियल खाने से ही उसकी तबियत बिगड़ी है। किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मेरी बच्ची को विषहर दवा की सुई लगा दी गई जिसके करण उसकी मृत्यु हुई। लेकिन सच जानते हुए भी ये कभी इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”

सभी देशों के चिकित्सकों और वैज्ञनिकों को लेट्रियल पर अनुसंधान में अच्छे परिणाम मिल रहे थे। प्रयोग सफल हो रहे थे और लोग इस सरल, सस्ते और सुरक्षित उपचार को अपना रहे थे। इससे कैंसर व्यवसाय, जो 200 बिलियन डालर का है, से जुड़ी कैंसर दवाइयां और विकिरण उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद हराम हो रही थी। ये फूड एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरीकन मेडीकल एसोसिएशन और नेशनल कैंसर इन्स्टिट्यूट आदि अमेरीकी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को मोटी रिश्वत या कंपनी में आर्थिक हिस्सेदारी देते हैं, उनके अनेकों काम करते हैं और उनके परिवारजनों को ऊंचे वेतन पर नौकरियां देते है, ताकि बदले में उनसे जो चाहे करवा सकें और हमेशा अपनी अंगुलियों पर नचा सकें। अतः अमेरीका की संस्थाएं विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर रोगियों के उपचार पर प्रतिबंध लगाने के लिए हर संभव प्रयत्न करने में जुट गई। इन्होंने टी.वी., रेडियो, अखबारों आदि सभी में लेट्रियल के विरूद्ध विज्ञापन देने का सिलसिला शुरू कर दिया, झूठे पर्चे बंटवाए, चिकित्सकों को रिश्वत देकर लेट्रियल के विरूद्ध शोध पत्र बनवाए और बंटवाए। लेट्रियल से संबंधित किसी भी सामग्री के चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशन पर रोक लगा दी। किसी भी समारोह में लेट्रियल पर व्याख्यान देना अपराध था। विटामिन बी-17 के समर्थकों को परेशान किया गया। यानी लेट्रियल को बदनाम करने के लिए हर संभव प्रयत्न किये। जितनी विवादास्पद घटनाएं और पंगे विटामिन बी-17 के मामले में हुए उतने शायद चिकित्सा जगत के पूरे इतिहास में नहीं हुए।

एक बार अखबारों में झूठी खबर छपवा दी गई कि खुबानी खाने से एक दम्पत्ति की मौत हो गई है। रातों रात अमेरीका के डिपार्टमेंटल स्टोर्स से खुबानी की थैलियां कचरे में फैंक दी गई, अमेरीका में खुबानी के सारे पेड़ कटवा दिये गये और आनन फानन मे एफ.डी.ए. ने विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर के उपचार और इस पर किसी भी तरह की शोध करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन मेक्सिको, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, रुस आदि देशों में डॉक्टर विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार करते रहे। और अमेरीका वहां हो रही शोध पर गुपचुप नज़र रखे हुए है। अमेरीका के लोग दूसरे देशों में जाकर बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार करवाते रहे। लेट्रियल द्वारा उपचार लेने वालों में ड़ॉक्टर व उनके परिवार जनों की संख्या भी कम नहीं थी। जब भी एफ.डी.ए. को मालूम पड़ता कि कोई ड़ॉक्टर विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार कर रहा है तो एफ.डी.ए. उसे प्रताड़ित करती या मुकदमा चलाती।

एक बार सन् 1974 के आरंभ में केलीफोर्निया मेडीकल बोर्ड ने डॉ. स्टीवर्ड एम.जोन्स, एम.डी. पर आरोप लगाया कि उसने विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर के रोगियों का उपचार किया है। मेडीकल बोर्ड ने डॉ. जोन्स पर मुकदमा ठोक दिया। बोर्ड के एक सदस्य डॉ. ज्यूलियस लेविन थे जो स्वयं भी विटामिन बी-17 द्वारा अपने कैंसर का उपचार कर रहे थे, राजनितिक दबाव के कारण डॉ. जोन्स के पक्ष में खुल कर बोलने में असमर्थ थे, अतः उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देना ही उचित समझा। डॉ. स्टीवर्ड एम. जोन्स को आखिरकार सजा भुगतनी ही पड़ी। यह सब उस देश में हुआ जहां का राष्ट्रीय चिन्ह “स्टेचू ऑफ लिबर्टी” है।

मेक्सिको के डॉ. अर्नेस्टो कोन्ट्रेरास के ऑएसिस ऑफ होप, चिकित्सालय में पिछले 30 सालों में 1,00,000 से ज्यादा कैंसर के रोगियों को ठीक किया जा चुका है। महान वैज्ञानिक और लेखक जी. एडवर्ड ग्रिफिन ने अपनी 400 पृष्ठ की पुस्तक “वर्ल्ड विदाउट कैंसर” में अमेरीकी संस्थाओं (एफ.डी.ए., ए.एम.ए. आदि) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इन सारे वाद विवादों, झूठ के पुलंदों, लालची मनसूबों, घिनौनी राजनीति, भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और षड़यंत्र का खुल कर वर्णन किया है। इन्हें पढ़ कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। यदि आप उपरोक्त पुस्तक का चलचित्र देखना चाहते हैं या पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो अंतर्जाल के इस पते पर
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विटामिन बी-15

सन् 1951 में डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स जूनियर और उनके पिता ने खुबानी के बीज से ही विटामिन बी-15 या पेन्गेमिक एसिड की भी खोज की थी। इसे ‘त्वरित ऑक्सीजन’ भी कहते हैं। विटामिन बी-15 मीथियोनीन नामक एमाइनों एसिड के निर्माण में मदद करता है। यह एक उत्कृष्ट एन्टी-ऑक्सीडेंट भी हैं। यह ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण में मदद करता है और कोशिकाओं को भरपूर शक्ति और लंबी उम्र देता है। यह यकृत का शोधन करता है, कॉलेस्ट्रोल कम करता है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है और अंतः स्रावी ग्रंथि तंत्र व स्नायु तंत्र को नियंत्रित रखता है। यह भी विवादास्पद विटामिन रहा है। अमेरीका में सन् 1970 तक विटामिन बी-15 बी-कोम्प्लेक्स ग्रुप में शामिल था, पर बाद में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रूस में इस पर बहुत शोध हुआ है। यह मांस पेशियों में लेक्टिक एसिड का संचय कम करता है, मांस पेशियों की थकावट कम करता है और इनकी कार्यक्षमता बढ़ाता है। इसलिए रुस ओलंपिक्स में अपने खिलाड़ियों को भरपूर विटामिन बी-15 खिलाते थे। विटामिन बी-15 खुबानी तिल व कद्दू के बीज, भूरे चावल आदि में पाया जाता है। विटामिन बी-15 का प्रयोग अहल्कोलिज्म, ड्रग एडिक्शन, ब्रेन डेमेज, शीज़ोफ्रेनिया, हृदय रोग, उच्च रक्त चाप, मधुमेह, यकृत रोग, अस्थमा, गठिया, त्वचा रोग, थकान आदि बीमारियों में किया जाता है। यह अच्छा स्वास्थ्यवर्धक व आयुवर्धक है।

उपसंहारः-

खुबानी विटामिन बी-17 व बी-15 के अलावा विटामिन-ए, बी ग्रुप के विटामिन, खनिज, एन्टिआक्सीडेन्ट, और प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है, एक आदर्श भोजन है। विटामिन बी-17 व बी-15 कैंसर रोधी हैं और कैंसर के उपचार में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। सुन्दर, निरोग व कैंसर मुक्त जीवन के लिए रोज हमें खुबानी के रोज़ 8-10 बीज खाना ही चाहिये।
Dr. O.P.Verma Mobile 09460816360

Saturday, June 18, 2011

Rock Salt White Gold

प्राकृतिक, शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी नमक – सैंधा नमक
साल्ट शब्द का मतलब

साल्ट Salt लेटिन शब्द साल Sal से बना है, जो सोल Sol से लिया गया है और सोल Sol शब्द Sole का पर्याय है। सोल Sole का मतलब है नमक तथा पानी का घोल और सोल sole लेटिन भाषा में sun या सूर्य को कहते हैं। पौराणिक दृष्टि से sole का मतलब तरल सूर्य का प्रकाश Liquid Sunlight है, या सौर ऊर्जा का तरल रेखागणितीय रूपाँतर जो जीवन के सृजन और पोषण की क्षमता रखता है। सम्भवतः यही इस पृथ्वी पर फैले समन्दर में जीवन की उत्पत्ति का रहस्य है।
केल्टिक भाषा में साल्ट को hall कहा गया है, जो जर्मन शब्द heiling से प्रेरित है। heiling का मतलब holy है जो heil से बना है जिसका मतलब है whole या well-being या health और hall का अभिप्राय ध्वनि या sound (जर्मनी में schall) भी है। schall शब्द hall का लम्बा उच्चारण है, जर्मनी में जिसका मतलब प्रतिध्वनि या गुँजन है। गुँजन में vibration होती है। क्या केल्ट यह जानते थे कि नमक में सारे तत्वों की गुँजन होती है। Hall भी जर्मन शब्द heil (जर्मन में Health) की ही गुँजन है। वे ऊर्जाहीन शरीर में hall या नमक द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को सन्तुलित करना भी जानते थे। साल्ट को हेलाइट halite भी कहते हैं, यह भी दो केल्टिक शब्दों hall यानी नमक और lit यानी लाइट या सरल शब्दों में कहें तो लाइट वाइब्रेशन। हिमालय से निकले प्राकृतिक, शुद्ध, जैविक, पूर्णतः शाकाहारी और पवित्र नमक है (सैंधा नमक) में वे सारे 94 तत्व होते हैं जिनसे हमारा शरीर बना है, या वे सारे तत्व जो उस समन्दर में थे जहाँ जीवन की उत्पत्ति हुई। व्रत और उपवास में सैंधा नमक ही प्रयोग किया जाता है। रोचक तत्थ्य यह भी है कि हमारा रक्त भी सोल Sole है इसमें भी वे सारे तत्व हैं जो उस समन्दर में थे, जहाँ से जीवन की उत्पत्ति हुई थी।

सफेद सोने से सफेद जहर का सफर

एक ओर जहाँ कहा जाता है कि नमक के बिना जीवन अकल्पनीय है और इसे सफेद सोना कहा गया है और आज हम नमक खाने से कई रोगों के शिकार हो रहे हैं, मर रहे हैं। यह कैसा विरोधाभास है, यह क्या माजरा है। चलिये मैं आपको वास्तविकता बतलाता हूँ। जो परिष्कृत Refined नमक या टेबल सॉल्ट आज हम खा रहे हैं वह प्राचीन काल में प्रयुक्त होने वाले नमक (सैंधा नमक) से बिलकुल भिन्न है, वह नमक है ही नहीं वह सिर्फ सोडियम क्लोराइड है। नमक में तो वे सभी 94 तत्व होते हैं जिनसे हमारा शरीर बना है।

हमारे पूर्वज नमक की महत्ता को समझते थे। जहाँ भी उन्हें नमक मिला, उसकी हिफाजत खजाने की तरह की। नमक के लिए लड़ाइयाँ लड़ी गई। प्राचीन काल में रोम के सिपाहियों को पगार में नमक दिया जाता था। Salary शब्द भी salt शब्द से ही बना है। जीवित रहने के लिए नमक सोने से ज्यादा अहमियत रखता था। इसीलिए इसे सफेद सोना White Gold कहा जाता था।

आज का टेबल सॉल्ट समुद्र के गन्दे पानी से बनाया जाता है, जिसमें मरी हुई, सड़ी हुई मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु होते हैं। कारखाने में इस पानी से सिर्फ सोडियम क्लोराइड अलग कर लिया जाता है। बाकी बहुमूल्य तत्व अलग कर दिये जाते हैं। नमक बनने के समय से लेकर आपकी रसोई तक के सफर में नमी के कारण यह खराब न हो, इसमें डलियाँ न बने, इसलिए इसमें कुछ ऐन्टी-केकिंग रसायन जैसे सोडियम एल्यूमीनोसिलिकेट, सोडियम या पोटेशियम फेरोसायनाइड आदि मिलाये जाते हैं। हमारे देश में सोडियम एल्यूमीनोसिलिकेट का प्रयोग होता है। ये सब शरीर के लिए घातक विष हैं। एल्यूमीनियम हमारे मस्तिष्क और नाड़ियों को क्षतिग्रस्त करता है और एल्झाइमर जैसे रोग पैदा करता है। रतन टाटा बड़े चतुर व्यवसाई हैं। वे विज्ञापनों में फ्री फ्लोइंग बता कर अपने टाटा नमक की बड़ी तारीफ करते हैं, ताकि कभी कोई पूछ ले कि आप नमक में ऐन्टी-केकिंग रसायन क्यों मिलाते हो तो वे चट से सफाई दे सकें कि नमक को फ्री फ्लोइंग बनाने के लिए। आहारशास्त्री इस तरह के सोडियम क्लोराइड को सफेद ज़हर की संज्ञा देते हैं।

भारत में नमक का महत्व

हमारे यहाँ नमक पर कई कहावतें बनी हैं जैसे जले पर नमक छिड़कना, नमक-मिर्च लगाना, नमक का कर्ज चुकाना, आटे में नमक के बराबर आदि। नमक हराम और नमक हलाल फिल्में आपने जरूर देखी होंगी। नमक का हमारे जीवन में इतना महत्व है कि लोग नमक का नाम लेकर कसमें खाते रहे हैं और यह माना जाता है कि जो आपका नमक खा ले वह आपके साथ गद्दारी नहीं कर सकता। शोले में कालिया भी नमक का वास्ता देकर ही गब्बर से अपनी जान बचाने के लिए गुहार करता है और कहता है, "सरदार, मैंने आपका नमक खाया है!"। ऑकारा फिल्म का “जबां पे लागा लागा रे नमक इस्क का” गीत पर बिपाशा बासु के ठुमके सबको याद होंगे। नमक स्त्रियों की सुन्दरता के लिए भी पहली आवश्यकता है। आप मदर इन्डिया में राजकुमार का वह डायलोग नहीं भूले होंगे, जिसमें उन्होने नर्गिस के गाल चख कर तारीफ़ में कहा था, “तुम तो बड़ी नमकीन लग रही हो, लगता है जैसे सारे गाँव का नमक तुम्हीं में आ गया हो।” अमिताभ का ये गीत आज भी लोगों के कानों में गूँज रहा है, ... समन्दर में नहा कर तुम बड़ी नमकीन लग रही हो।

सन् 1930 की उस घटना को कौन भारतीय भूल सकता है, जब क्रूर अंग्रेजी हुकूमत ने नमक पर भारी कर लगा दिया था। कोई भी न तो इसे बना सकता था और न ही सरकार के अलावा किसी और से ख़रीद सकता था। तब महात्मा गाँधी ने नमक आँदोलन किया था और हजारों लोगों की विशाल भीड़ को साथ लेकर 12 मार्च 1930 को साबरमती से डाँडी तक 238 कि.मी. पैदल चल कर अपने लिए मुट्ठी भर नमक बनाया और नमक कानून की धज्जियाँ उड़ा दी थी। यह एक ऐसा सफल आंदोलन था जिसने न सिर्फ ब्रिटेन बल्कि सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। जिस नमक पर तानाशाही अंग्रेजी हुकूमत भी टेक्स नहीं लगा सकी, स्वतंत्र भारत में आज उसी नमक पर 4% वेट टेक्स कर लगा कर सोनियाँ जी आज महात्मा गाँधी की याद में डाँडी यात्रा करके लौटी  हैं। वाह री सोनिया मैं तुम्हें इसके सिवा क्या कहूँ कि नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ करने निकली है।

अधिक नमक शरीर पर एक बोझ है

हमारे शरीर को रोज 4-5 ग्राम  नमक की  आवश्यकता होती है। हम में से अधिकतर लोग नमक की कमी से ग्रसित हैं, हालाँकि हमारा शरीर सोडियम क्लोराइड की आवश्यकता से ज्यादा मात्रा के बोझ से पीड़ित है। हम रोज औसतन 12 से 21 ग्राम टेबल साल्ट या सोडियम क्लोराइड खा रहे हैं, जब कि हमारे गुर्दे रोज मात्र 5.29 से 7.77 ग्राम सोडियम क्लोराइड का उत्सर्जन कर सकते हैं। इससे ज्यादा सोडियम क्लोराइड हमारे शरीर के लिए एक कोशिकीय विष के समान है, हृदय, गुर्दों और सभी अंगों पर एक बोझ है और शरीर जल्दी से जल्दी इससे छुटकारा पाने की कौशिश करता है। सोडियम क्लोराइड की इस ओवर डोज़ को शरीर पानी में मिला कर, उसमें सोडियम तथा क्लोराइड को ऑयनाइज़ कर निष्क्रिय करने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में कोशिकाओं से उत्कृष्ट पानी बाहर निकल जाता है और कोशिकाएँ निर्जलीकृत (डिहाइड्रेट) होकर मरने लगती हैं। इस तरह टेबल साल्ट के ज्यादा सेवन से शरीर में सूजन आ जाती है, यानी ऊतकों में अम्लीय पानी इकट्ठा हो जाता है। इसलिए चिकित्सक नमक कम खाने की सलाह देते हैं।

सामान्य परिष्कृत (Refined) या टेबल सॉल्ट सेवन करने के घातक परिणाम

साधारण नमक में 97.5% सोडियम क्लोराइड और 2.5% रसायन जैसे आयोडीन, ऐन्टी-केकिंग एजेन्ट्स, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम-बायोकार्बोनेट, ऐल्यूमीनियम लवण, सोडियम-मोनो-ग्लूटामेट MSG आदि मिलाये जाते है, जो अस्वास्थ्यप्रद और शरीर के लिए घातक हैं।

उसे बनाते समय 1200 डिग्री F तापमान पर गर्म किया और सुखाया जाता है जिसके कारण उसकी आणविक संरचना बिगड़ जाती है।

इसमें वे  सभी 84 तत्व  जिनसे हमारा  शरीर बनता है और जो  हमारे लिए बहुत आवश्यक हैं, सोडियम क्लोराइड छोड़ कर बाकी को अलग कर दिया जाता है। साधारण रिफाइन्ड नमक प्रयोग करने से शरीर में इन तत्वों की कमी के कारण कई रोग होने की संभावना रहती है। इसे सफेद और उजला बनाने के लिए ब्लीचिंग एजेन्ट भी मिलाये जाते हैं, ये भी शरीर के लिए हानिकारक हैं।

नमक से इश्क़ बीमारियों को दे दावत

नमक से इश्क़ बीमारियों का कारण बन सकता है। नमक के प्रति बढ़ता चटोरापन हमें उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकता है। नमक में मौजूदा सोडियम से ब्लड प्रेशर बढ़ता है जिससे मोटापा, हृदय रोग और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है। उच्च रक्त चाप के दस मरीजों में से तीन की बीमारी का कारण नमक का अधिक सेवन होता हैं। अधिक नमक खाने के कारण दुनिया भर में हर साल 70 लाख लोग मरते हैं। यहीं नहीं ज्यादा नमक खाने से कैंसर और किडनी में पथरी जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं। दरअसल, अधिक नमक खाने से शरीर हड्डियों से अधिक कैल्शियम खींचता हैं जिससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं। छह देशों में एक लाख 75 हजार लोगों पर किये गये 13 अध्ययनों के विश्लेषण से पता चलता है कि रोजाना पांच ग्राम अधिक नमक खाने के कारण स्ट्रोक का खतरा 23 प्रतिशत और हृदय वाहिका रोग का खतरा 17 प्रतिशत बढ़ता है।

अन्तिम सन्देश

यह तो आपने समझ ही गये होंगे कि कि अब रिफाइन्ड नमक को छोड़ कर प्राकृतिक सैंधा नमक प्रयोग करना है। लेकिन नमक की मात्रा को तो हमें सिमित करना ही होगा। औसतन हमें 6 ग्राम नमक प्रति दिन सेवन करना चाहिये। इसमें आपके भोजन में छुपे हुए नमक की मात्रा भी शामिल है। अंत में मैं आपको नमक कम खाने के कुछ रहस्य भी समझा देता हूँ। भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक को कम कर काली मिर्च, नीबू, सिरका, टमाटर, प्याज, लहसुन, धनिया, पुदीना, मसाले आदि का प्रयोग करें। सब्जियाँ, सूप या अन्य व्यंजन बनाते समय ग्रहणियाँ ध्यान रखें कि नमक हमेशा व्यंजन पकने के बाद आखिर में डालें। व्यंजन में नमक कम डालने पर भी अपेक्षाकृत ज्यादा नमकीन व स्वादिष्ट लगेगे। बाजार में उपलब्ध सारे खाद्य पदार्थों में खूब नमक डाला जाता है (नमक को वे प्रिजर्वेटिव की तरह प्रयोग करते है) इसलिए हमें इनका प्रयोग कम से कम करना चाहिये। कच्ची सब्जियाँ और फल ज्यादा खाँये और उन पर ऊपर से नमक भी नहीं छिड़कें। डिब्बा बंद भोजन प्रयोग करते समय डिब्बे का नमकीन पानी, तरल फैंक दें। कुछ दिनों तक आप नमक कम खायेंगे तो कम नमक खाने की आदत पड़ जायेगी।

Dr. O.P.Verma

M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota (Raj.)
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मैं गेहूं हूँ

लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...