खुबानी - कैंसररोधी विटामिन बी-17 का सबसे बड़ा स्रोत
अनेक वर्षों तक शोध करने के बाद सेन फ्रांसिस्को के विख्यात जीव रसायन विशेषज्ञ डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स जूनियर ने 1950 में एक कैंसर रोधी विटामिन की खोज की जिसे उन्होंने विटामिन बी-17 या लेट्रियल या एमिग्डेलिन नाम दिया। यह उन्होंने खुबानी के बीज से विकसित किया। क्रेब्स ने वर्षों तक कैंसर के रोगियों का उपचार विटामिन बी-17 से किया और आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त किये। क्रेब्स ने पाया कि विटामिन बी-17 कैंसर कोशिकाओं के लिए अत्यंत घातक होता है, लेकिन यह सामान्य कोशिकाओं के लिए पूर्णतया सुरक्षित है।
विटामिन बी-17 के अन्य स्रोत -
विटामिन बी-17 या लेट्रियल प्राकृतिक, पानी में घुलनशील पदार्थ है जो सभी जगह पाये जाने वाले लगभग 1200 पौधों के बीजों में पाया जाता है। इसके सबसे बड़े स्रोत खुबानी, आड़ू, आलू बुखारा, बादाम, सेब के बीज हैं। इनके अलावा ये नाशपाती, चेरी, बाजरा, काबुली चना, अंकुरित मूंग, अंकुरित मसूर, काजू, स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, जामुन, अखरोट, चिया, तिल, अलसी, ओट, कूटू, भूरे चावल, रतालू, गैंहू के जवारे आदि में भी पाया जाता है।
विटामिन बी-17 या लेट्रियल प्राकृतिक, पानी में घुलनशील पदार्थ है जो सभी जगह पाये जाने वाले लगभग 1200 पौधों के बीजों में पाया जाता है। इसके सबसे बड़े स्रोत खुबानी, आड़ू, आलू बुखारा, बादाम, सेब के बीज हैं। इनके अलावा ये नाशपाती, चेरी, बाजरा, काबुली चना, अंकुरित मूंग, अंकुरित मसूर, काजू, स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, जामुन, अखरोट, चिया, तिल, अलसी, ओट, कूटू, भूरे चावल, रतालू, गैंहू के जवारे आदि में भी पाया जाता है।
विटामिन बी-17 कैंसर कोशिका के लिए खतरनाक विषः-
विटामिन बी-17 लगभग सभी अंगों जैसे फेफड़े, स्तन, ऑत, प्रोस्टेट के कैंसर और लिम्फोमा आदि के उपचार में सहायक है। विटामिन बी-17 में ग्लूकोज़ के दो अणु, एक सायनाइड रेडिकल और एक बेन्जेल्डिहाइड आपस में मजबूती से जुड़े रहते हैं या हम यूं समझें कि ये तीनों एक ताले में बंद रहते हैं। हम जानते हैं कि सायनाइड अत्यंत खतरनाक विष होता है। लेकिन विटामिन बी-17 में सायनाइ, बेन्जेल्डिहाइड और ग्लूकोज के साथ मजबूती से जुड़ा होने के कारण यह हमारे शरीर के लिए पूर्णतया सुरक्षित है। बीटा ग्लूकोसाइडेज़ एंजाइम जो सिर्फ और सिर्फ कैंसर कोशिकाओं में ही होता है, जिसे कुंजी एंजाइम कहते हैं, जो विटामिन बी-17 का ताला खोल कर उसे ग्लूकोज के दो अणु, हाइड्रोजन सायनाइड (HCn) और बेन्जेल्डिहाइड में विभाजित कर देता है। विटामिन बी-17 के अणु से मुक्त होकर सायनाइड और बेन्जेल्डिहाइड कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। यह क्रिया कैंसर कोशिका के अंदर होती है। वो कहते हैं ना कि जहर को जहर ही काटता है। हमारी सभी कोशिकाओं में रोडेनीज़ नामक एंजाइम होता है, जिसे सुरक्षा एंजाइम भी कहते हैं। जो मुक्त सायनाइड को तुरंत निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है।
रोडेनीज़ कैंसर कोशिकाओं में नहीं होते हैं। विटामिन बी-17 हमारी कोशिकाओं मे बड़ी आसानी से प्रवेश करने की क्षमता रखता है। सामान्य तौर पर हमारे शरीर में विटामिन बी-17 का विभाजन असंभव है। और अवशेष सायनाइड रोडेनीज़ की उपस्थिति में गंधक से क्रिया करके थायोसाइनेट्स में और बेन्जेल्डिहाइड ऑक्सीकृत होकर बेंजोइक एसिड में परिवर्तित हो जाते हैं जो शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। थायोसाइनेट हाइड्रोकोबाल्मिन से मिलकर सायनेकोबाल्मिन यानी विटामिन बी-12 बनाते हैं। थायोसाइनेट रक्तचाप नियंत्रित रखता है और बेंजोइक एसिड दर्द निवारक है। यदि शरीर में कैंसर कोशिकांए नहीं है तो शरीर में बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ भी नहीं होगा। और यदि शरीर में बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ नहीं होगा तो शरीर के लिए अत्यंत घातक सायनाइड भी नहीं बनेगा।
हंजा एक कैंसर मुक्त प्रजातिः-
आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही खुबानी का प्रयोग कैंसर के उपचार के लिए होता आया है। यह भी देखा गया है कि हिमालय की तराइयों में रहने वाली हंजा प्रजाति के लोगों में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ है। क्योंकि इनका मुख्य भोजन खुबानी और बाजरा है। ये खुबानी, उसके बीज और तेल सभी का भरपूर प्रयोग करते हैं। इनके भोजन में विटामिन बी-17 की मात्रा अमेरीकी भोजन से 200 गुना ज्यादा होती है। खुबानी के पेड़ ही इनकी सम्पत्ति होती है । ये लोग बहुत लम्बी उम्र जीते हैं। 115-120 वर्ष तक की उम्र आम बात है। इनकी महिलाओं की त्वचा बहुत मुलायम होती है और ये अपनी उम्र से 15-20 वर्ष युवा दिखती हैं। क्योंकि ये त्वचा पर खुबानी का तेल जो लगाती हैं। माता वेष्णों देवी हमें प्रसाद में खुबानी देकर यही संदेश देती है कि खुबानी खाओ और कैंसर मुक्त रहो। लंबे समय से अमेरीका व अन्य देशों के वैज्ञानिक यहॉं रह कर शोध कर रहे हैं और मालूम करना चाह रहे कि क्यों यहॉ कैंसर नहीं होता है, क्या वाकई कैंसर का कारण विटामिन बी-17 की कमी ही है ? वैज्ञानिकों ने जब यहॉ के लोगों को अमेरीका में बसाया और अमेरीकी भोजन खिलाया तो धीरे-धीरे उनको भी कैंसर होने लगा। एस्किमो प्रजाति के लोगों को भी कभी कैंसर नहीं होता है क्योंकि वे केरेबू मछली बहुत खाते हैं जिसमें विटामिन बी-17 की मात्रा बहुत अधिक होती है।
विटामिन बी-17 में सायनाइड होने पर भी पूर्णतया सुरक्षित है ? ? ?
आप सोच रहे होंगे कि विटामिन बी-17 जिसके अणु में हाइड्रोजन सायनाइड जैसा खतरनाक विष होता है, किस प्रकार हमारे शरीर के लिए पूर्णतया सुरक्षित है ? विदित रहे कि विटामिन बी-17 में सायनाइड बेन्जेल्डिहाइड और ग्लूकोज़ मजबूत ताले में बंद रहते हैं और सिर्फ कैंसर कोशिकाओं में मौजूद बीटा-ग्लूकोसाइडेज़ नामक कुंजी एंजाइम ही विटामिन बी-17 का ताला खोल कर सायनाइड को मुक्त कर सकता है। डॉ. अर्नेस्ट ने सिद्ध किया है कि विटामिन बी-17 हमारे लिए उतना ही सुरक्षित है जितना ग्लूकोज़ है। सायनाइड रेडिकल तो अलसी, विटामिन बी-12, स्ट्रॉबेरी, चेरी, रसबेरी आदि में भी होते हैं। पर इनको खाने से हम मर नहीं जाते हैं ? याद कीजिये सोडियम और क्लोरीन दोनों ही खतरनाक तत्व हैं परंतु जब ये दोनों तत्व जुड़ते हैं तो नमक बनता है जिसके बिना जीवन संभव नहीं है।
विटामिन बी-17 मानवता को शर्मसार कर देने वाला विवादास्पद इतिहासः-
डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स की खोज के बाद लोगों को लगने लगा कि अब कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं रही है। कैंसर के रोगी इस उपचार से ठीक होने लगे थे। फिर क्या था, कई देशों के चिकित्सक और कैंसर वैज्ञानिक बी-17 पर शोध करने में जुट गये। कोशिका रसायन विभाग, नेशनल कैंसर इन्स्टिट्यूट, यू.एस.ए. के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष और सहसंस्थापक डॉ. डीन बर्क भी लेट्रियल पर अनुसंधान कर रहे थे और उन्हें आश्चर्यजनक परिणाम मिल रहे थे। उन्होंने अपने शोध पत्रों में वर्णन किया है, ‘जब हमने कैंसर कोशिकाओं के घोल में लेट्रियल मिलाया और सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा तो पाया कि कैंसर कोशिकाऐं मक्खियों की तरह मर रही थी। ठीक उसी तरह जैसे कीट नाशक स्प्रे से मक्खी व मच्छर मरते हैं। क्या दृश्य था। जिसकी एक झलक ने मुझे पल भर में World WITHOUT CANCER के करोड़ों स्वप्न दिखा दिये।’ कैंसर कोशिकाओं में एंजाइम बीटा-ग्लूकोसाइडेज होता ही है जो लेट्रियल का विभाजन कर सायनाइड और बेन्जेल्डिहाइड को मुक्त कर देता है जो कैंसर कोशिका का सफाया कर देता है। डॉ. अर्नेस्ट की खोज हर बार सच साबित हो रही थी।
एक बार बफेलो, न्यूयार्क के एक समारोह में कैंसर विशेषज्ञ और लेट्रियल के समर्थक डॉ. हेरॉल्ड मेनर अपने व्याख्यान में लेट्रियल की बहुत प्रशंसा कर रहे थे तब एक व्यक्ति खड़ा होकर बोला, “डॉ. मेनर, एफ.डी.ए. तो लेट्रियल को घातक विष करार देती है, सायनाइड का बम कहती है, नीम हकीम का इलाज बताती है और आप इसकी इतनी प्रशंसा कर रहे हैं ?” डॉ. मेनर तेज स्वर में बोले, “एफ.डी.ए. झूठ बोलती है।” उसने जवाब में कहा, “अपने पिता की लेट्रियल गोलियां खाने से न्यूयार्क में जो एक लड़की की मृत्यु हुई थी, उस बारे में आप क्या कहेंगे ?” तभी एक महिला उठी और क्रोधित होकर बोली, “डॉ. मेनर, इसका स्पष्टीकरण मैं दूंगी, इस प्रश्न का उत्तर शायद मुझे ही देना चाहिये क्योंकि मैं उस बच्ची की बदनसीब मॉ हूं। उसने कभी अपने पिता की गोलियां नहीं खाई। चूंकि मेरे पति लेट्रियल ले रहे थे और डॉक्टर यह जानता था, इसलिए उसने समझ लिया कि लेट्रियल खाने से ही उसकी तबियत बिगड़ी है। किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मेरी बच्ची को विषहर दवा की सुई लगा दी गई जिसके करण उसकी मृत्यु हुई। लेकिन सच जानते हुए भी ये कभी इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”
सभी देशों के चिकित्सकों और वैज्ञनिकों को लेट्रियल पर अनुसंधान में अच्छे परिणाम मिल रहे थे। प्रयोग सफल हो रहे थे और लोग इस सरल, सस्ते और सुरक्षित उपचार को अपना रहे थे। इससे कैंसर व्यवसाय, जो 200 बिलियन डालर का है, से जुड़ी कैंसर दवाइयां और विकिरण उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद हराम हो रही थी। ये फूड एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरीकन मेडीकल एसोसिएशन और नेशनल कैंसर इन्स्टिट्यूट आदि अमेरीकी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को मोटी रिश्वत या कंपनी में आर्थिक हिस्सेदारी देते हैं, उनके अनेकों काम करते हैं और उनके परिवारजनों को ऊंचे वेतन पर नौकरियां देते है, ताकि बदले में उनसे जो चाहे करवा सकें और हमेशा अपनी अंगुलियों पर नचा सकें। अतः अमेरीका की संस्थाएं विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर रोगियों के उपचार पर प्रतिबंध लगाने के लिए हर संभव प्रयत्न करने में जुट गई। इन्होंने टी.वी., रेडियो, अखबारों आदि सभी में लेट्रियल के विरूद्ध विज्ञापन देने का सिलसिला शुरू कर दिया, झूठे पर्चे बंटवाए, चिकित्सकों को रिश्वत देकर लेट्रियल के विरूद्ध शोध पत्र बनवाए और बंटवाए। लेट्रियल से संबंधित किसी भी सामग्री के चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशन पर रोक लगा दी। किसी भी समारोह में लेट्रियल पर व्याख्यान देना अपराध था। विटामिन बी-17 के समर्थकों को परेशान किया गया। यानी लेट्रियल को बदनाम करने के लिए हर संभव प्रयत्न किये। जितनी विवादास्पद घटनाएं और पंगे विटामिन बी-17 के मामले में हुए उतने शायद चिकित्सा जगत के पूरे इतिहास में नहीं हुए।
एक बार अखबारों में झूठी खबर छपवा दी गई कि खुबानी खाने से एक दम्पत्ति की मौत हो गई है। रातों रात अमेरीका के डिपार्टमेंटल स्टोर्स से खुबानी की थैलियां कचरे में फैंक दी गई, अमेरीका में खुबानी के सारे पेड़ कटवा दिये गये और आनन फानन मे एफ.डी.ए. ने विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर के उपचार और इस पर किसी भी तरह की शोध करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन मेक्सिको, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, रुस आदि देशों में डॉक्टर विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार करते रहे। और अमेरीका वहां हो रही शोध पर गुपचुप नज़र रखे हुए है। अमेरीका के लोग दूसरे देशों में जाकर बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार करवाते रहे। लेट्रियल द्वारा उपचार लेने वालों में ड़ॉक्टर व उनके परिवार जनों की संख्या भी कम नहीं थी। जब भी एफ.डी.ए. को मालूम पड़ता कि कोई ड़ॉक्टर विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर का उपचार कर रहा है तो एफ.डी.ए. उसे प्रताड़ित करती या मुकदमा चलाती।
एक बार सन् 1974 के आरंभ में केलीफोर्निया मेडीकल बोर्ड ने डॉ. स्टीवर्ड एम.जोन्स, एम.डी. पर आरोप लगाया कि उसने विटामिन बी-17 द्वारा कैंसर के रोगियों का उपचार किया है। मेडीकल बोर्ड ने डॉ. जोन्स पर मुकदमा ठोक दिया। बोर्ड के एक सदस्य डॉ. ज्यूलियस लेविन थे जो स्वयं भी विटामिन बी-17 द्वारा अपने कैंसर का उपचार कर रहे थे, राजनितिक दबाव के कारण डॉ. जोन्स के पक्ष में खुल कर बोलने में असमर्थ थे, अतः उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देना ही उचित समझा। डॉ. स्टीवर्ड एम. जोन्स को आखिरकार सजा भुगतनी ही पड़ी। यह सब उस देश में हुआ जहां का राष्ट्रीय चिन्ह “स्टेचू ऑफ लिबर्टी” है।
मेक्सिको के डॉ. अर्नेस्टो कोन्ट्रेरास के ऑएसिस ऑफ होप, चिकित्सालय में पिछले 30 सालों में 1,00,000 से ज्यादा कैंसर के रोगियों को ठीक किया जा चुका है। महान वैज्ञानिक और लेखक जी. एडवर्ड ग्रिफिन ने अपनी 400 पृष्ठ की पुस्तक “वर्ल्ड विदाउट कैंसर” में अमेरीकी संस्थाओं (एफ.डी.ए., ए.एम.ए. आदि) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इन सारे वाद विवादों, झूठ के पुलंदों, लालची मनसूबों, घिनौनी राजनीति, भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और षड़यंत्र का खुल कर वर्णन किया है। इन्हें पढ़ कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। यदि आप उपरोक्त पुस्तक का चलचित्र देखना चाहते हैं या पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो अंतर्जाल के इस पते पर http://worldwithoutcancer.org.uk क्लिक करें, वहां आपको सारी कड़ियां मिल जायेंगी।
विटामिन बी-15
सन् 1951 में डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स जूनियर और उनके पिता ने खुबानी के बीज से ही विटामिन बी-15 या पेन्गेमिक एसिड की भी खोज की थी। इसे ‘त्वरित ऑक्सीजन’ भी कहते हैं। विटामिन बी-15 मीथियोनीन नामक एमाइनों एसिड के निर्माण में मदद करता है। यह एक उत्कृष्ट एन्टी-ऑक्सीडेंट भी हैं। यह ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण में मदद करता है और कोशिकाओं को भरपूर शक्ति और लंबी उम्र देता है। यह यकृत का शोधन करता है, कॉलेस्ट्रोल कम करता है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है और अंतः स्रावी ग्रंथि तंत्र व स्नायु तंत्र को नियंत्रित रखता है। यह भी विवादास्पद विटामिन रहा है। अमेरीका में सन् 1970 तक विटामिन बी-15 बी-कोम्प्लेक्स ग्रुप में शामिल था, पर बाद में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रूस में इस पर बहुत शोध हुआ है। यह मांस पेशियों में लेक्टिक एसिड का संचय कम करता है, मांस पेशियों की थकावट कम करता है और इनकी कार्यक्षमता बढ़ाता है। इसलिए रुस ओलंपिक्स में अपने खिलाड़ियों को भरपूर विटामिन बी-15 खिलाते थे। विटामिन बी-15 खुबानी तिल व कद्दू के बीज, भूरे चावल आदि में पाया जाता है। विटामिन बी-15 का प्रयोग अहल्कोलिज्म, ड्रग एडिक्शन, ब्रेन डेमेज, शीज़ोफ्रेनिया, हृदय रोग, उच्च रक्त चाप, मधुमेह, यकृत रोग, अस्थमा, गठिया, त्वचा रोग, थकान आदि बीमारियों में किया जाता है। यह अच्छा स्वास्थ्यवर्धक व आयुवर्धक है।
उपसंहारः-
खुबानी विटामिन बी-17 व बी-15 के अलावा विटामिन-ए, बी ग्रुप के विटामिन, खनिज, एन्टिआक्सीडेन्ट, और प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है, एक आदर्श भोजन है। विटामिन बी-17 व बी-15 कैंसर रोधी हैं और कैंसर के उपचार में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। सुन्दर, निरोग व कैंसर मुक्त जीवन के लिए रोज हमें खुबानी के रोज़ 8-10 बीज खाना ही चाहिये।
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