Friday, February 25, 2011

Sauerkraut


सॉवरक्रॉट 


बन्दगोभी ब्रेसीकेसिया परिवार का सदस्य है। ब्रॉकोली, फूलगोभी, ब्रूसल्स स्प्राउट्स, सरसों, केल, कोलार्ड, शलगम, बॉकचोइ आदि इस परिवार के अन्य सदस्य हैं। उपरोक्त सभी सब्जियों में कैंसर-रोधी तत्व होते हैं। अक्टूबर 2002 में कृषि और भोजन रसायनशास्त्र, फिनलैंड के जरनल में प्रकाशित प्रपत्र के अनुसार बन्दगोभी के खमीर करने पर उनके ग्लुकोसाइनोलेट आइसोथायोसायनेट में विघटित हो जाते हैं, जो शक्तिशाली कैंसर-रोधी हैं। प्रपत्र की लेखिका इवा लिज़ा रेहानेन के अनुसार अपक्व या पकी बन्दगोभी की अपेक्षा खमीर की हुई बन्दगोभी में ज्यादा कैंसर-रोधी गुण होते हैं।

अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के जरनल की वेब साइट पर निम्न जानकारियां उपलब्ध हैं।

सॉवरक्रॉट में कैंसर-रोधी तत्व

फिनलैंड की अनुसंधानकर्ता इवा लिज़ा रेहानेन और साथियों ने सॉवरक्रॉट में कैंसर-रोधी तत्वों का पता लगाया है। इवा के अनुसार बन्दगोभी को खमीर करने पर कुछ किण्वक बनते हैं जो उनके ग्लुकोसाइनालेट को विघटित कर कैंसर-रोधी आइसोथायोसायनेट बनाते हैं। कुछ वर्षों पहले जानवरों पर हुए परीक्षणों से सिद्ध हुआ था कि आइसोथायोसायनेट स्तन, आंत, फेफडे और यकृत के कैंसर की संवृद्धि को शिथिल करते हैं। मनुष्य में आइसोथायोसायनेट के कैंसररोधी प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए और शोध होनी चाहिये। 

पाचनक्रिया में सहायक है सॉवरक्रॉट

कैंसर-रोधी होने के साथ साथ सॉवरक्रॉट पाचनक्रिया में बहुत सहायक हैं। इसे खमीर करने की प्रक्रिया में लेक्टोबेसीलस जीवाणु पैदा होते हैं जो पाचन में सहायक हैं, विटामिन की मात्रा बढ़ाते हैं, विभिन्न लाभदायक एंजाइम बनाते हैं और पाचन-पथ में मित्र जीवाणुओं की सेना में वृद्धि करते हैं। हर स्वास्थ्य समस्या या रोग में पाचन का बहुत महत्व है। खमीर की हुई बन्दगोभी में लेक्टिक एसिड, प्रोबायोटिक जीवाणु होते हैं जो पाचन में सहायक हैं और कीटाणुओं का सफाया करते हैं। लेक्टिक एसिड कीटाणु ई-कोलाई और फफूंद जैसे केनडिडा एल्बिकेन्स के विकास को बाधित करते हैं। हालांकि लेक्टिक एसिड प्रोबायोटिक जीवाणुओं के विकास को बाधित नहीं करते हैं। सॉवरक्रॉट सेवन करने से आहारपथ की लाभदायक जीवाणु सेना सशक्त और संतुलित रहती है। सॉवरक्रॉट में एक दुर्लभ जीवाणु लेक्टोबेसीलस प्लान्टेरम भी पाया जाता है जो पाचन के लिए बहुत ही अहम जीवाणु है। यह अन्य मित्र जीवाणुओं की सहायता से महान एन्टीऑक्सीडेन्ट ग्लुटाथायोन और सुपरऑक्साइड डिसम्युटेज बनाता है। ये दोनों कठिन दुग्ध शर्करा लेक्टोज को आसानी से पचा लेते हैं। यह अन्नों में पाये जाने वाले कुपोषक तत्व फाइटिक एसिड और सोयाबीन में मौजूद ट्रिप्सिन इन्हिबीटर्स को निष्क्रिय कर देते हैं। सॉवरक्रॉट प्रोटीन के विघटन और पाचन में भी सहायक हैं। यह मस्तिष्क को शांति देता है। सॉवरक्रॉट सदियों से कैंसर और अपच के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है।

सॉवरक्रॉट का विज्ञान 

सॉवरक्रॉट पत्ता गोभी के फर्मेंटेशन द्वारा तैयार होता है। फर्मेंटेशन एक जीवरसायन प्रक्रिया है जिसमें जीवाणुओं द्वारा कार्बोहाइड्रेट का अवायवीय अथवा आंशिक अवायवीय ऑक्सीकरण होता है, जो लेक्टोबेसीलाई (LABs) द्वारा सम्पन्न होती है। सॉवरक्रॉट में लेक्टिक एसिड बनाने वाले जीवाणु पत्तागोभी को जल्दी जल्दी फर्मेंट करना शुरू कर देते हैं। ये लेक्टोबेसीलाई (LABs) पीएच कम करते हैं, माध्यम को अम्लीय बनाते हैं और यह अम्लीय माध्यम अनावश्यक हानिकारक जीवाणुओं के लिए उपयुक्त नहीं होता है। सॉवरक्रॉट बनाते समय हमारा मुख्य उद्देश्य लेक्टोबेसीलाई के विकास हेतु उपयुक्त वातावरण बनाये रखना होता है। 

लेक्टोबेसीलाई जीवाणु कार्ब का अवायवीय विघटन करते हैं और लेक्टिक एसिड बनाते हैं। आमतौर पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में इनको फलने-फूलने में बड़ी परेशानी होती है। इनकी कुछ प्रजातियां जैसे माइक्रोएरोफिल्स लेक्योबेसीलाई और ल्युकोनोस्टोक सॉवरक्रॉट के लिए बहुत अहम मानी जाती हैं। इन प्रजातियों को अपने जीवनयापन के लिए थोड़ी सी ऑक्सीजन की भी जरूरत होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमे सॉवरक्रॉट को ढकने की आवश्यकता नहीं होगी। जार में जो थाड़ी सी ऑक्सीजन बचती है वह इनके लिए पर्याप्त होती है। 

सॉवरक्रॉट की अवस्थाएं

सॉवरक्रॉट के फर्मेंट होने की पूरी प्रक्रिया को हम तीन अवस्थाओं में विभाजित कर सकते हैं। 

प्रथम अवस्था
फर्मेंटेशन की शुरुआत ल्युकोनोस्टोक मेजेंटरॉयड्स जीवाणु करते हैं। ये कार्बन डाईऑक्साइड बनाते हैं, और जार की ऑक्सीजन को बाहर निकाल देते हैं और अंदर ऑक्सीजन रहित वातावरण तैयार करते हैं। जैसे ही लेक्टिक एसिड का स्तर 0.25 और 0.3% के बीच पहुँचता है, ल्युकोनोस्टोक मेजेंटरॉयड्स निष्क्रिय हो जाते हैं और मरने लगते हैं। हालांकि इनसे बने एंजाइम्स कार्य करते रहते हैं। यह अवस्था तापक्रम के अनुसार एक से तीन दिन में पूरी होती है।

द्वितीय अवस्था
लेक्टोबेसीलस प्लांटेरम और क्युकमेरिस फर्मेंटेशन को आगे बढ़ाते हैं, जब तक लेक्टिक एसिड का स्तर 1.5-2% तक पहुँचता है। नमक की मात्रा का ज्यादा होना और तापक्रम ज्यादा ही कम हो तो इन जीवाणुओं की कार्य क्षमता बाधित होती है। यह अवस्था तापक्रम के अनुसार 10-30 दिन में पूरी होती है। 

तृतीय अवस्था
लेक्टोबेसीलस ब्रेविस (और कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार लेक्टोबेसीलस पेंटोएसिटिकस) फर्मेंटेशन की क्रिया को पूरा करते हैं। लेक्टिक एसिड का स्तर 2-2.5% पहुंचने पर जीवाणुओं का कार्य पूरा हो जाता है और फर्मेंटेशन बंद हो जाता है। यह अवस्था एक सप्ताह से कम में पूरी हो जाती है। जब जार में बुलबुले उठना बंद हो जाये तो आप समझ सकते हैं कि सॉवरक्रॉट बनने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। 

कुछ अहम पहलू

सॉवरक्रॉट बनाने का तरीका बहुत सरल है और यदि नमक की सही मात्रा प्रयोग की गई है तो अच्छा सॉवरक्रॉट तैयार हो जाता है। लेकिन कुछ पहलुओं पर चर्चा करना जरूरी है जो सॉवरक्रॉट की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। 

नमी 

यदि जार में ब्राइन या पानी की मात्रा कम हो तो सॉवरक्रॉट को खराब करने वाले जीवाणुओं के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। ब्राइन कम होने की स्थिति में जार की सतह पर अनावश्यक वायवीय जीवाणु और यीस्ट पैदा हो जाते हैं। ये दुर्गंध भी पैदा कर सकते हैं और क्रॉट को बदरंगा बना सकते हैं। कुछ लोगों को इनसे ऐलर्जी भी हो सकती है। हालांकि यदि क्रॉट की सतह पर यीस्ट (“scum”) जम जाये तो उसे आराम से अलग किया जा सकता है और क्रॉट को कोई नुकसान भी नहीं होता है। लेकिन फफूंद या मोल्ड नहीं बनना चाहिये। मोल्ड को बढ़ने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, इसलिए ध्यान रखे कि जार में ऑक्सीजन की मात्रा न्यूनतम बनी रहे। 
ऑक्सीजन 
द्वितीय अवस्था में लेक्टोबेसीलस प्लांटेरम मुख्यकर्ता है, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही अच्छी तरह काम कर पाता है। अवायवीय स्थिति में यह पत्तागोभी को बेहतरीन तरीके से फर्मेंट करता है और लेक्टिक एसिड बनाता है। लेकिन ऑक्सीजन की उपस्थिति में तो यह एसीटिक एसिड (विनेगार) बनाने लगेगा, मोल्ड बनने की पूरी संभावना बनी रहेगी और विटामिन-सी भी नहीं बनेगा। इसलिए ऑक्सीजन रहित वातावरण बनाये रखना जरूरी है। यदि क्रॉट की सतह पर बार बार मोल्ड बन रहा है तो समझ लीजिये कि जार में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा है। ऑक्सीजन की उपस्थिति में गुलाबी यीस्ट भी अधिक बनती है और क्रॉट भी नरम बनता है। आपको ब्राइन की भी ज्यादा छेड़ छाड़ नहीं करना चाहिये, क्योंकि इससे भी हवा अंदर जायेगी और फालतू जीवाणु पैदा होंगे। 

तापक्रम 

फर्मेंटेशन की पहली अवस्था में ल्युकोनोस्टोक मेजेंटरॉयड्स जीवाणु 65-72° F पर बढ़िया काम करता है, लेकिन थोड़ा ऊपर नीचे चल जाता है। दूसरी और तीसरी अवस्था में सभी जीवाणु 72°–90° F तापक्रम पर कार्य करते हैं। यह बात आपके जहन में रहना जरूरी है। इन जीवाणुओं को सही तापक्रम उपलब्ध करवाना आपका पहला दायित्व होना चाहिये। तापक्रम एंजाइम्स की गतिविधि को भी प्रभावित करता है। 115° F पर एंजाइम्स नष्ट हो जाते हैं।

पोषक तत्व

सॉवरक्रॉट में नमक की मात्रा 2-3% होनी चाहिये। यदि इससे ज्यादा नमक होगा तो लेक्टोबेसीलाई पनप नहीं पायेंगे। मोटा नाप याद रखिये कि एक किलो पत्तागोभी में एक टेबलस्पून नमक उपयुक्त रहता है। रिफाइंड नमक प्रयोग कभी नहीं करें, सैंधा नमक या शुद्ध समुद्री नमक ही प्रयोग करें। यह भी जरूरी है कि पत्तागोभी में नमक एकसा अच्छी तरह मिला लिया जाये।

पीएच 

किसी भी पदार्थ में हाइड्रोजन ऑयन के स्तर को पीएच कहते हैं। सॉवरक्रॉट का पीएच 4.6 या और कम होना चाहिये। यह अम्लीय व्यंजन है और इसीलिए खट्टा होता है। इस अम्लीय पीएच पर यह खराब नहीं होता है। लेक्टोबेसीलाई को अम्लीय माध्यम बहुत पसंद है। यीस्ट और मोल्ड भी अम्लीय माध्यम में ही पैदा होते हैं, लेकिन इन्हें ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसलिए याद रखें इनसे बचने का सबसे आसान तरीका यही है कि जार में ऑक्सीजन की मात्रा न्यूनतम रखनी चाहिये।

सॉवरक्रॉट बनाने की विधियां

पहली विधि - साधारण सॉवरक्रॉट

सामग्री -
  • खमीर करने के लिए उपयुक्त कांच या चीनी मिट्टी का बड़ा जार।
  • काटने के लिए चोपिंग बोर्ड और चाकू।
  • पत्तागोभी को दबाने के लिए कांच या चीनी का बाउल और कूटने के लिए लकड़ी का दस्ता या पॉटेटो मेशर।
  • प्लेट को दबाने के लिए वजन जैसे पानी से भरा कोई जार या पॉलीथीन की थैली।
  • तराजू और जार को ढकने के लिए तौलिया।
  • किलो बन्दगोभी (बाहर के कुछ पत्ते और अंदर का डंठल निकालने के बाद)। 
  • ग्राम सैंधा या प्राकृतिक समुद्री नमक।
विधि -
पहले तो बन्दगोभी के दो तीन बाहरी पत्ते निकाल कर डस्ट बिन में डाल दीजिये। फिर दो तीन पत्ते और निकाल कर अलग रख लीजिये। ये बाद में काम आयेंगे। अब बन्दगोभी के दो टुकड़े कीजिये। बन्दगोभी को बीच से थोड़ा हट कर काटिये, आसानी रहेगी। बस अब बन्दगोभी को बारीक बारीक काटते जाइये। बन्दगोभी को जितना बारीक काटेंगे उतना ही अच्छा है और यह पानी भी ज्यादा छोड़ेगी। इसी तरह सारी बंदगोभी को बारीक काट लीजिये। बीच के डंठल के भी बारीक टुकड़े कर लीजिये, इसमें भी बहुत पोषक तत्व होते हैं।

अब थोड़ी सी कटी हुई बन्दगोभी जार में डालिये और उस पर थोड़ा सा नमक छिड़किये। दोनों को अच्छी तरह मिला कर मुट्ठी या किसी लकड़ी के दस्ते से अच्छी तरह हल्के हाथ से दबाते या कूटते जाइये। दबाने के लिए आप पोटेटो मेशर का भी प्रयोग कर सकते हैं। नमक के
कारण बन्दगोभी पानी छोड़ने लगेगी। अब फिर से थोड़ी कटी हुई बन्दगोभी और नमक जार में डालिये और लकड़ी के दस्ते से कूटते जाइये। यह मेहनत का काम है। ऐसा तब तक करते रहिये जब तक पूरा बन्दगोभी खत्म नहीं हो जाये। ध्यान रहे जार में पानी (ब्राइन) का स्तर बन्दगोभी से एक या दो इंच ऊपर तक पहुँच जाना चाहिये। यदि ब्राइन कम हो तो आप जार में फिल्टर्ड पानी मिला सकते हैं ताकि बन्दगोभी अच्छी तरह ब्राइन में डूब जाये। अब क्रॉट के ऊपर बचे हुए बंदगोभी के पत्ते रख दीजिये। क्रॉट को दबाने के लिए जार में एक पॉलीथीन की थैली रखिये और उसमें साफ पानी भर कर बांध दीजिये। पानी से भरी पॉलीथीन की थैली क्रॉट को दबा कर रखेगी और जार में हवा भी बहुत कम बचेगी। क्रॉट को दबाने के लिए चीनी या कांच की प्लेट भी काम में ले सकते हैं। प्लेट जार के मुँह से थोड़ी सी ही छोटी हो ताकि वह बन्दगोभी को ढक भी दे और उसे निकालने में परेशानी भी न हो। अंत में जार को ढक्कन से बंद करके किसी ठंडी जगह पर एक थाली में रख दीजिये। जार को किसी साफ तौलिये से ढक देना चाहिये ताकि धूल आदि अंदर नहीं जा सके।

हर दो तीन दिन में इसे खोल कर देखते रहिये और यदि कोई गंदगी या झाग दिखाई दे तो अलग कर दीजिये। अच्छा
सॉवरक्रॉट बनने के लिए उपयुक्त तापमान 65-720 F (18-220 C) माना गया है। सॉवरक्रॉट 3-4 सप्ताह में तैयार हो जाता है। सॉवरक्रॉट तैयार होने का समय तापमान पर निर्भर करता है। यदि तापक्रम कम हो तो अच्छा सॉवरक्रॉट बनता है। यदि तापक्रम अदिक हो तो अच्छा सॉवरक्रॉट नहीं बन पाता है, क्योंकि कुछ तरह के लेक्टोबेसीलाई पनप ही नहीं पाते हैं और ठीक से फर्मेंटेशन नहीं हो पाता है। 

यदि बाहरी तापमान 90-96° F (32-36° C) हो तो सॉवरक्रॉट तैयार होने में 10 दिन लगेंगे।
यदि बाहरी तापमान 650 F (180 C) हो तो सॉवरक्रॉट तैयार होने में 20 दिन लगेंगे।
परंतु यदि बाहरी तापमान 550 F (130 C) से कम है तो सॉवरक्रॉट बनने में 6 महीने भी लग सकते हैं या शायद खमीर उठे ही नहीं।

याहू के flaxseedoil2 ग्रुप की संपादिका सांद्रा ऑलसन ने सॉवरक्रॉट तैयार होने का सही समय 5 सप्ताह माना है। हमें 7-10 दिन में संतोषजनक खमीर हो जाता है अतः 7-10 दिन बाद इसका सेवन शुरू कर देना चाहिये। हालांकि पूरा खमीर होने में 5 सप्ताह का समय लगता है और स्वाद भी उम्दा होने लगता है। सॉवरक्रॉट में नया स्वाद लाने के लिए आप कसी हुई गाजर, काला जीरा, लाल बन्दगोभी, लहसुन, सेब, अनन्नास आदि भी मिला सकते हैं। लेकिन आरंभ में आप सामान्य सॉवरक्रॉट ही बनायें।

दूसरी विधि आसान विधि - अन्नानास युक्त सॉवरक्रॉट

सामग्री - छः कप बारीक कटी हुई बन्दगोभी, चौथाई कप अनन्नास का रस या बारीक कटा अनन्नास (या सेब का रस) और 2% सैंधा नमक।

विधि –
ऊपर दी गई विधि के अनुसार उपरोक्त मिश्रण को अच्छी तरह मिला कर एक जार में खूब दबा दबा कर ऊपर तक भर दीजिये। ध्यान रहे क्रॉट में हवा नहीं रहे और बन्दगोभी अच्छी तरह ब्राइन में डूब जाये। यदि ब्राइन कम हो तो थोड़ा पानी डाल कर ढक्कन बन्द कर दीजिये। अब जार को छः दिन के किसी ठंडी जगह पर एक थाली में रख दीजिये (गर्मी में छः दिन से भी कम समय लगेगा)। इस विधि में क्रॉट के ऊपर गंदगी या फफूंद नहीं जमती है। इसलिए इसे बार बार देखने और गंदगी हटाने का झंझट नहीं है। बस तैयार होते ही ढक्कन खोलिये और लजीज़ सॉवरक्रॉट का लुफ्त लीजिये। स्वाद में बदलाव के लिए इसमें कसी हुई चुकंदर या गाजर
भी मिलाई जा सकती है।

मोनिका द्वारा विकसित सॉवरक्रॉट

1. 5 लीटर के बर्तन के लिए आपको 5.5 से 6 पौंड बन्दगोभी (आकार के अनुसार ढाई से तीन नग) चाहिये। हार्श पॉट और पत्थर को साफ कीजिये और उबलते पानी से धोकर सुखा लीजिये। थोड़ा उबला पानी अलग रख लीजिये, जो पांचवें चरण में काम आयेगा।

2. अब बन्दगोभी को चाकू से काट कर दो हिस्से कर लीजिये और बाहरी एक-दो पत्ते अलग कर लीजिये। बन्दगोभी को चाकू से बारीक-बारीक काटिये और एक बर्तन में रख लीजिये। आप इसे फूड प्रोसेसर से भी काट सकते हैं। 

3. कटी हुई बन्दगोभी को तोल कर उसमें एक किलो में एक टेबलस्पून के हिसाब से नमक ले लीजिये। 

4. अब धीरे-धीरे नमक और कटी हुई बंदगोभी ताकत लगा कर हाथ से या पोटेटो मेशर से अच्छी तरह दबाते जाइये।

इसके बाद बर्तन को साफ कपड़े से ढक कर आधे घंटे के लिए रख दीजिये, ताकि बन्दगोभी अच्छी तरह पानी छोड़ दे। 

5. इसके बाद कटी हुई बन्दगोभी को हार्श पॉट में किसी लकड़ी के दस्ते या पोटेटो मेशर से दबा-दबा कर भरते जाइये। जब हार्श पॉट बन्दगोभी से 80% भर जाये तो गोभी के ऊपर दोनों पत्थर रख दीजिये। उसमें बचा हुआ साफ पानी भर दीजिये ताकि पानी का लेवल पत्थर से एक इंच ऊपर रहे। 

6. अब हार्श पॉट का ढक्कन बन्द कर दीजिये। ढक्कन के चारों तरह नाली में साफ पानी भर दीजिये ताकि आधा ढक्कन पानी में डूब जाये। हार्श पॉट को चार सप्ताह के लिए एक ठंडी जगह पर रख दीजिये, इस बीच इसे कभी नहीं खोलें। यह सुनिश्चित करलें कि ढक्कन के चारों तरह बनी नाली में पानी का लेवल दिखता देता रहे। यदि पानी का लेवल कम होने लगे तो इसका मतलब यह है कि पॉट में निर्वात पैदा हो रहा है। अमूमन ऐसा तीन सप्ताह के बाद होता है और ऐसी स्थिति में आप ढक्कन को आहिस्ता से थोड़ा ऊपर उठा कर हवा अन्दर जाने दीजिये और पुनः ढक्कन को अपनी जगह रख दीजिये। 

7. जब पॉट का ढक्कन खोलना हो तो पहले ढक्कन के चारो तरह भरा पानी सावधानी से किसी वेक्यूम बल्ब से खाली करें और सॉवरक्रॉट को निकाल लीजिये। यदि पॉट में तरल का रंग हरा या काला पड़ जाये तो समझ लीजिये कोई गड़बड़ है अन्यथा सब ठीक है। क्रॉट में गंदे मौजे जैसी गन्ध आ सकती है, जो सामान्य है। यदि तेज सर्दी पड़ रही हो तो पॉट को छः सप्ताह तक रख सकते हैं। मोनिका के अनुसार पॉट को 3 से 4 महीने तक रख सकते हैं और समय के साथ स्वाद में भी सुधार आने लगता है।
 

8. अंत में हार्श पॉट और पत्थरों को गर्म पानी से अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर धो कर सूखा लीजिये। सूखने के बाद पत्थरों को टिश्यू में लपेट कर किसी दराज या अलमारी में रख दीजिये। इन्हें पॉट में नहीं रखें क्योंकि फफूंद लगने का खतरा रहता है। धोने के लिए साबुन का प्रयोग कभी नहीं करें। 

सॉवरक्रॉट का ज्यूस निकालना – 

फर्मेंट फर्मेंट आप मेस्टीकेटिंग ज्यूसर से सॉवरक्रॉट का ज्यूस निकाल कर शीशियों में भर कर फ्रीज़ में रख दीजिये। इसके लिए आप वही ज्यूसर काम में ले सकते हैं जिससे आप फल और सब्जियों का ज्यूस निकालते हैं। आप चाहें तो ज्यूस में बचा हुआ ब्राइन भी मिला सकते हैं, हालांकि इसमें ज्यादा पोषक तत्व नहीं होते हैं। यह फ्रीज़ में कई हफ्तों तक खराब नहीं होता है इसलिए आप एक महीने का सॉवरक्रॉट बना कर फ्रीज़ में सकते हैं।

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