Monday, June 17, 2013

नीली आँखों के जादूगर चंद्रमोहन

नीली आँखों के जादूगर चंद्रमोहन


चंद्र मोहन
जन्म - 1905  
    निधन ---- मार्च, 1949 
फिल्मी दुनिया में कई कलाकार शराब और जुए की लत के मारे काल-कवलित हो गए। उनमें पिछली सदी के तीस और चालीस के दशक के लोकप्रिय और प्रतिभावान अभिनेता चंद्रमोहन भी शरीक थे। लोग गायक-अभिनेता कुंदनलाल सहगल के असामयिक अवसान को भूले भी नहीं थे के दो साल बाद चंद्रमोहन का भी वही हश्र हुआ। सफलता की पायदान चढ़ते ही उन्होंने ‘व्हिस्की’ को अपनी जीवन-संगिनी बना लिया था। उन्हें अपने परममित्र मोतीलाल के समान ही घुड़दौड़ में पैसा लगाने का शौक भी था। फिर भी चंद्रमोहन ने कई ऐतिहासिक और सामाजिक फिल्मों में दमदार भूमिकाएँ निभाकर हिन्दी-सिनेमा को सम्पन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उनकी ‘अमृत-मंथन’, ‘पुकार’ और ‘शकुंतला’ फिल्में अविस्मरणीय हैं। 

वी. शांताराम की बहुचर्चित फिल्म ‘अमृत-मंथन’ (34) चंद्रमोहन की पहली फिल्म थी, जिसमें उन्होंने खलनायक राजगुरू की केंद्रीय भूमिका निभाई। इसके लिए शांताराम को उनके जैसे नीली बिल्लोरी आँखों वाले अभिनेता की ही जरूरत थी। इस फिल्म में शांताराम ने उनकी आँखों के ‘क्लोज-अप’ का बारम्बार उपयोग कर फिल्म को सनसनीखेज और प्रभावोत्पादक बनाया। चंद्रमोहन पहली ही फिल्म से हिट हो गए। शांताराम ने अपनी दो अगली फिल्मों, ‘धर्मात्मा’ (34) और ‘अमरज्योति’ (35) में भी उन्हें महत्वपूर्ण भूमिकाएँ दीं, लेकिन नायक के रोल नहीं। इन फिल्मों के नायक बाल गंधर्व थे, मगर चंद्रमोहन को सितारा हैसियत प्राप्त हो गई थी। 
चंद्रमोहन की पहली बहुचर्चित फिल्म अमृत-मंथन थी, जिसमें वी. शांताराम ने उनकी नीली बिल्लोरी आँखों के क्लोज-अपका बारम्बार उपयोग कर फिल्म को सनसनीखेज और प्रभावोत्पादक  बनाया। चंद्रमोहन पहली ही फिल्म से हिट हो गए।

‘अमृत-मंथन’ बनाने वाली प्रभात फिल्म कम्पनी पहले कोल्हापुर में थी। पुणे में उसकी यह पहली फिल्म थी। कोल्हापुर में बाबूराव पेंढारकर खलनायकी के लिए बहुत मकबूल हो चुके थे, लेकिन वे पुणे नहीं आए, इसलिए शांताराम को राजगुरू के रोल के लिए चंद्रमोहन का चुनाव करना पड़ा। बाद में स्वयं पेंढारकर ने चंद्रमोहन के अभिनय की तारीफ में बहुत कशीदे पढ़े। 1941 में पेंडारकर ने ‘अमृत’ नामक फिल्म में एक चमार की बेजोड़ भूमिका निभाई। यह भूमिका चंद्रमोहन को ध्यान में रखकरी लिखी गई थी, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए तो पेंढारकर को यह रोल दे दिया गया। बाद में पेढ़ारकर ने कहा, चंद्रमोहन होते तो मुझसे अच्छा अभिनय करते। 

‘अमृत-मंथन’ में चंद्रमोहन की आँखों का उपयोग खौफ पैदा करने के लिए किया गया था और सचमुच दृश्य इतने डरावने थे कि कोई निर्माता उन्हें हीरो के रूप में लेने की हिम्मत नहीं कर सकता था। लेकिन सोहराब मोदी ने अपनी ऐतिहासिक फिल्म ‘पुकार’ (39) में उन्हें बादशाह जहाँगीर की भूमिका देकर बड़ा जोखिम उठाया। इसमें चंद्रमोहन ने अभिनय-क्षमता का ऐसा जौहर दिखाया के वे खलनायक से नायक बनने वाले पहले सफल अभिनेता साबित हुए। इस फिल्म में उनकी नायिका सायरा बानू की माता नसीम थीं। ‘पुकार’ में चंद्रमोहन को न्यायप्रिय बादशाह जहाँगीर की भूमिका में देखकर के. आसिफ ने उन्हें ‘मुगल-ए-आजम’ में अकबर की भूमिका के लिए चुना था। अनारकली और सलीम की भूमिका के लिए नरगिस और सप्रू लिए गए थे। भारत-पाक विभाजन और चंद्रमोहन के असामयिक निधन की त्रासदियों के कारण आसिफ की योजना धरी रह गई, जबकि आधी शूटिंग हो गई थी। 

आसिफ ने 1951-52 में ‘मुगल-ए-आजम’ की योजना को फिर हाथ में लिया। इस बार चंद्रमोहन की जगह पृथ्वीराज कपूर को लीड रोल दिया गया और नरगिस सप्रू के स्थान पर मधुबाला-दिलीपकुमार लिए गए। यह बात अलग है कि पृथ्वीराज भी अकबर के जामे में खूब फबे और दिलीप-मधुबाला की जोड़ी भी हिट रही। अकबर में पृथ्वीराज अजर-अमर हो गए। जीवन के अंतिम वर्षों में सोहराब मोदी ‘पुकार’ का रिमेक बनाना चाहते थे। उन्होंने जहाँगीर के रोल के लिए दिलीपकुमार का चयन किया, मगर साथ ही यह भी कहा था कि चंद्रमोहन जैसा जहाँगीर दोबारा मिलना मुश्किल है। 

सारी जिंदगी अविवाहित रहने वाले और स्कॉच व्हिस्की की लत तथा घुड़सवारी के शौक की वजह से चंद्रमोहन तंगहाली में मरे। उनका अंतिम संस्कार सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन ने कराया।

बेगम अख्तर के साथ चंद्रमोहन ने मेहबूब की फिल्म रोटी में अभिनय किया था।   

चंद्रमोहन का जन्म नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे कश्मीरी ब्राह्मण थे उनके पिता ग्वालियर स्टेट की सेवा में थे। चंद्रमोहन की युवावस्था में ही उनके पिता चल बसे, इसलिए वे रोजगार की खातिर घर से निकल पड़े। उन्होंने तरह-तरह की नौकरियाँ कीं, जिसमें से एक फिल्म वितरण कम्पनी थी। इस कम्पनी के लिए फिल्म का अनुबंध करने के सिलसिले में ही उनकी मुलाकात शांताराम जी से हुई। शांताराम को चंद्रमोहन का व्यक्तित्व आकर्षक लगा। उन्होंने उनके समक्ष अभिनेता बनने का प्रस्ताव रख दिया, लेकिन वे राजी न हुए। दो साल बाद, जब चंद्रमोहन नैनीताल के एक थिएटर में मैनेजर थे, फिर शांताराम से मिले तो अभिनय के लिए तैयार हो गए और तीन फिल्मों में वे लगातार आए। 

शांताराम चंद्रमोहन को लेकर चौथी फिल्म भी बनाना चाहते थे, लेकिन मेहनताने के मामले को लेकर बात बिंगड़ गई। शांताराम पुराने रेट पर ही उन्हें अनुबंधित करना चाहते थे, लेकिन चंद्रमोहन के यह बात जँची नहीं कि एक स्थापित कलाकार के रूप में भी वे नवागत कलाकार जैसी फीस लें, जबकि बाजार में उनके दाम बढ़ गए थे। चंद्रमोहन के इंकार से शांताराम तल्ख हो गए और कह बैठे कि वह दूसरा चंद्रमोहन भी पैदा कर सकते है। चंद्रमोहन भी कम स्वाभिमानी नहीं थे। उन्होंने जवाब दिया कि दूसरा चंद्रमोहन तो उनके पिता भी पैदा नहीं कर सके, अब आप भी कोशिश करके देखिए। मगर बाद में दोनों के बीच सुलह भी हुई और चंद्रमोहन ने शांताराम की यादगार फिल्म ‘शकुंतला’ में जयश्री के साथ दुष्यंत की भूमिका निभाई। 

अपने पंद्रह वर्षीय फिल्म करीयर मे चंद्रमोहन ने कुल जमा तीस फिल्मों में काम किया। 1934 से 39 तक प्रतिवर्ष उनकी एक फिल्म प्रदर्शित हुई। 1940 में ‘भरोसा’ और ‘गीता’ नामक दो फिल्में रिलीज हुई। ‘गीता’ में उन्होंने पहली बार डबल राल किया। आगे हिन्दी में बनने वाली डबल-रोल फिल्मों के लिए इसने आदर्श-प्रारूप का काम किया। 1941 में उनकी तीन फिल्में सिनेमाघरों में लगी, जिनमें मेहबूब की ‘रोटी’ भी थी, जिसमें वे प्रख्यात गायिका बेगम अख्तर के साथ आए। दो अन्य फिल्में थी – ‘झंकार’ और ‘अपनाघर’। 43 में उनकी ‘फैशन’, ‘शकुंतला’ और ‘तकदीर’ फिल्में आईं। 44 में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ एकदम चढ़ा, जब छः फिल्में प्रदर्शित हुई। इनमें ऐतिहासिक फिल्म ‘मुमताजमहल’ भी शरीक थी। 45 में भी चार फिल्में रिलीज हुई, जिनमें ‘हुमायुँ’ और ‘पन्नादाई’ शामिल थीं। 46 और 48 में तीन-तीन फिल्में आईं। दिलीपकुमार और कामिनी कौशल अभिनीत फिल्मीस्तान की ‘शहीद’ (48) चंद्रमोहन की अंतिम फिल्म थी, जिसमें उन्होंने दिलीपकुमार के पिता रायबहादूर द्वारकादास का रोल किया था। 

उनकी यादगार फिल्मों में ‘अमृत-मंथन’ के अलावा ‘शकुंतला’, ‘मुमताज महल’, ‘श्रवणकुमार’ (46) और ‘रामबाण’ (48) प्रमुख हैं, जिनमें उन्होंने क्रमशः दुष्यंत शाहजहाँ राजा दशरथ और रावण के बहुआयामी किरदार निभाए। मार्च 1949 में सिर्फ 45 साल की उम्र में उनका देहावसान हो गया। इतनी फिल्मों काम करने के बावजूद चंद्रमोहन कंगाल की मौत मरे । उनका अंतिम संस्कार सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन ने करवाया। चंद्रमोहन के जीवन में कंगाली का आगमन 1945-46 में ही हो गया था। वे शाही खर्च व्यक्ति थे। उनके मंहगे शगल थे, ‘स्कॉच’ और ‘घुड़दौड़’। आखिरी दिनों में मजबूरन उन्हें ठर्रा भी पीना पड़ा। किस्सा मशहूर है कि एक बार मोतीलाल उनसे मिलने गए तो वे स्कॉच की बोतल लिए बैठे थे और मोतीलाल को ऑफर किये बिना अकेले पीते रहे, जबकि वे हमपियाला और हमनिवाला रहे थे। यह रहस्य बाद में उजागर हुआ कि स्कॉच की बोतल में ठर्रा भरा था। 

सोहराब मोदी की फिल्म पुकार में चंद्रमोहन को न्यायप्रिय मुगल बादशाह जहाँगीर की भूमिका में देख के. आसिफ ने उन्हें मुगल-ए–आजम में अकबर की भूमिका के लिए चुना था। भारत-पाक विभाजन तथा चंद्रमोहन की अकाल मौत की वजह से अधिकांश शूटिंग रद्द हो गई।

चंद्रमोहन की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। चंद्रमोहन ने विवाह नहीं किया था। उनकी दिनचर्या अनियमित थी। वे नास्तिक थे, ऊपर से ‘ड्रग-एडिक्ट’ भी। इसलिए पैसा बचने का तो सवाल ही नहीं था। नतीजतन पीने के लिए घर का सारा सामान एक-एक कर बिक गया। बहुत बुरे दिन देखने के बाद उन्होंने सुधरने के प्रयत्न किए, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आखिरी दिनों में वे देवी-माँ के भक्त हो गए थे और अकसर मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि धर्म-स्थलों पर जाया करते थे। वे मतिभ्रंश के रोगी भी हो गए थे। उनके जीवन पर मित्र मोतीलाल ‘जुआरी’ नामक फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन बाद में मोतीलाल भी चंद्रमोहन की तरह तंगहाली के शिकार हुए और ‘जुआरी’ की योजना धरी रह गई। चंद्रमोहन और मोतीलाल की जोड़ी परदे पर पिता-पुत्र के रूप में दिखाई दी। 1943-44 में बनी ‘तकदीर’ ‘रौनक’ और 

‘उमंग’ में चंद्रमोहन ने मोतीलाल के पिता बनने का साहस दिखाया था। 
उनकी पहली फिल्म अमृत-मंथन में पहली बार टेलीफोटो लैंस और कई नई-नई जर्मन फिल्म तकनीकों  प्रयोग किया गया।  यह पहली भारतीय फिल्म है जिसने सिल्वर जुबली मनाई। 

सोहराब मोदी की फिल्म ‘पुकार’ में चंद्रमोहन को न्यायप्रिय मुगल बादशाह जहाँगीर की भूमिका में देख के. आसिफ ने उन्हें ‘मुगल-ए–आजम’ में अकबर की भूमिका के लिए चुना था। भारत-पाक विभाजन तथा चंद्रमोहन की अकाल मौत की वजह से अधिकांश शूटिंग रद्द हो गई।

INTRODUCTION to the BUDWIG PROTOCOL

 INTRODUCTION to the BUDWIG PROTOCOL
With Diet Details

The following is an example of Dr.Budwig's protocol. It is based on her book "Cancer - The Problem and the Solution" [1999], her cookbook "The Oil-Protein Diet" [1952] as well as on the Files and experiences of members of this group.

Most people begin gradually, adding healthy foods & liquids and
eliminating damaging ones. The diet seems simple, but foods are
powerful and can damage or heal a person.
In liver, pancreatic and gall bladder disease it may be best to
begin with a "Transition Diet".
To read more about it, go to Folder 3 and then read File 1.

Dr.Budwig had over a 90% success rate with this protocol with
all kinds of cancer patients over a 50 year period. Many research
studies done in the last ten years support the cancer-fighting value
of foods, juices, sun exposure and relaxation Dr.Budwig recommended.
There are many testimonials in the Files of this group written by
members who have regained their health by following this protocol
after being diagnosed with cancer - many of them terminal.

To start the diet, it helps to have 3 appliances:
1- A coffee bean grinder to grind the whole brown flaxseeds sold
in health food stores or online.
2- An immersion hand-held mixer (a stick-shaped mixer), to blend
flaxseed oil [FO] and cottage cheese [CC] together so that they
become one food, making the oil water-soluble and more absorbable.
3- A vegetable juicer. A masticating-type may give a more healthful
juice than a centrifugal type.

FLAXSEED OIL and COTTAGE CHEESE (fo/cc) or quark: 
Generally, each tablespoon of Flaxseed Oil (FO) is mixed with 2 or
more tablespoons of low-fat organic Cottage Cheese (CC)or quark.
That is a FO/CC ratio of 1:2. Cold-pressed refrigerated liquid organic
FO is used. Most members like either Barlean's or Spectrum brands.
It is best to buy regular FO rather than FO with Lignan. Plenty of
high quality lignans are obtained at a lower cost by the freshly
ground flaxseeds in the diet.

Patients with liver, gallbladder or pancreatic cancer, should begin
very slowly with a transition diet found in the Files.
The FULL PROTOCOL FOR THE UNWELL may include the following:

TO START THE DAY -
A glass of sauerkraut juice - it has valuable cancer-fighting benefits.
Home-made is best in order to get the digestive enzymes [recipe in Files].
Anything pasteurized has lost its enzymes.

BREAKFAST -
Start with a cup of green tea or herbal tea. It provides the liquid
required for the ground flaxseeds to swell properly. That is important.
Then eat your Muesli [Muesli in the Budwig diet refers to the recipe
below].

Budwig Muesli recipe: [Prepare only enough for one meal - avoid storing].
[1] Blend 3 tbs flaxseed oil with 6 tbs organic low-fat CC and 2 tbs milk
(no water or watery liquids at this point) with a hand-held immersion electric
blender. The mixture (in this group we often call it FO/CC) should be like
rich whipped cream with no separated oil.
[2] Grind 2 tbs whole flaxseeds and add to the mixture.
[3] Add fresh [frozen if necessary] organic berries which contain cancer-fighting ellagic acid.
[4] Mix in other fresh organic fruit that you like.
[5] Add some fruit juice [e.g. dark grape, blueberry] or milk if mixture is
too thick.
[6] Add organic raw nuts such as almonds, pecans, walnuts or Brazil
nuts [no peanuts] and, if you wish, raw honey or vanilla. Try various fresh
[or frozen if necessary] organic fruits and flavorings for variety.

MID-MORNING -
Freshly-pressed vegetable juice from carrot and/or radish, stinging
nettle, beet, celery, lemon, apple [carrot and beet juices are
especially helpful to the liver and are excellent cancer fighters.]

GO OUTSIDE FOR SUNSHINE - Sun on the skin is very healthful
for vit.D and other benefits. Dr.Budwig. stressed the value of sunlight.
Avoid burning and avoid sunscreen and sunglasses.

If you feel up to having some exercise, individualize it according to your
strength - DON'T OVERDO IT.
Some quotes by Dr.Budwig regarding exercise:
"Often yoga or sport is very important, but sometimes the patient should
not do this" and "I would never allow a cancer patient with metastases to
jog, ride a bicycle, or to practice yoga. His body must relax." She added,
"There is no one treatment that applies for everyone. The patient must
also feel for himself what is good for him." and "The whole subject of
sport must be treated on a very individual basis."

One form of exercise that is beneficial for most people is using a rebounder
because it helps clear the lymph system and promotes better drainage.
See www.healthbounce.com & www.needakrebounder.com]

BEFORE LUNCH -
A cup of warm green or herbal tea. Use honey if desired (no sugar).

LUNCH -
RAW vegetable salad with FO/CC Salad Dressing including 1 or more
tbs FO blended with 2 or more tbs organic low-fat CC plus 1 tbs organic
apple cider vinegar or lemon juice and spices. For sweeter dressing, add
red grape juice or another fruit juice. If still hungry, add cooked/steamed
veggies & grains.
LUNCH DESSERT: Similar to breakfast with varied fresh raw organic fruits.
Never eat too much so that you are uncomfortable. Smaller amounts of food are
digested better. Work up to six to eight tbs FO per day if possible mixed with
twice as much CC, depending on digestive ability and size. Many people do well
with 6 tbs FO per day. Chew very well to aid and optimise digestion.
Predigestion starts in the mouth. Make sure to take your meals in a peaceful
atmosphere.

MID-AFTERNOON -

2 tbs freshly ground flaxseeds stirred into a glass of sparkling wine
or Champagne or stirred into a glass of freshly made fruit juice.

RELAX... IN THE SUN IF POSSIBLE - Relax to relieve stress. It's
healing. Seek out nature, music, chat, laughter, or what pleases you.

LATE AFTERNOON -
Fresh papaya or pineapple juice [both fruits have lots of digestive
enzymes] if they are fresh. Most bottled juices have lost their enzymes.

DINNER -
Vegetable soup or a variety of veggies and starch-containing foods,
well spiced. Add Oleolux and nutritional yeast flakes after cooking.
Choices of cooked starchy foods - buckwheat groats (JB's top choice -
digests well), millet, brown rice, lentils, beans and potatoes.
Add Oleolux 'to taste' to cooked food AFTER COOKING. Also use
it on bread [such as Ezekiel] as a spread. It is made with coconut oil,
flaxseed oil, garlic and onion [recipe in Files under 'Foods'].

EVENING -
A glass of organic red wine if desired.

The above diet can be varied for instance by the many recipes in Dr. Budwig's
book "The Oil-Protein Diet Cookbook," sold on Amazon and Barlean's
websites for under $10.

THE FOLLOWING IS VERY IMPORTANT:
Dr.Budwig stressed that we must AVOID UNHEALTHY FOODS
and SUBSTANCES such as hydrogenated fats, most animal fats, sugar,
white flour, preservatives and processed foods.

++ Avoid leftovers - food should be prepared fresh and eaten soon after
preparation to maximize intake of health-giving electrons & enzymes.

++ At least 3x a day drink warm green or herbal teas, unsweetened or
sweetened only with honey.

++ Stress is very damaging. Avoid stress and anxiety; take time to
relax & enjoy each day. Listen to beautiful music, laugh, do deep
breathing, connect with nature, spend time with people you like.

++ ELDI oils are oils for external application. Dr.Budwig had her
patients use them extensively. [See Files for information].

++ Dr.Budwig did not include supplements in her protocol.
Also, as far as we can tell, she did not use drugs with her protocol
and generally discontinued those that were taken.
Some supplements, especially high amounts of man-made antioxidants,
can seriously interfere with how well the diet works, as can/will some
drugs and treatments (particularly cytostatic [chemo and radiation]
treatments, cortisones, hormones and many pain killers).

Dr.Budwig's book Flax Oil as a True Aid Against Arthritis, Heart
Infarction, Cancer and other Diseases
 offers an understanding of
the scientific principles behind this protocol. Her cookbook
The Oil-Protein Diet gives practical diet information and recipes.
 

Wednesday, June 12, 2013

देव आनंद और सुरैया की रूमानी प्रेम कहानी

देव आनंद और सुरैया की रूमानी  प्रेम कहानी

पहली मुलाकात में ही हो गया था प्यार 


देवानंद की सुरैया से पहली मुलाकात फिल्म विद्या के सेट पर हुई थी। देवानंद बहुत खुश हो रहे थे कि लाखों लोग जिस हंसीन सुरैया के दीवाने हैं वो आज उन्हें बाहों में लेने वाली है। वे चाहते थे कि बाहों में लेते समय कोई उनकी तस्वीर खींच ले। देव ने अपना परिचय देते हुए सुरैया से कहा था, ‘सब लोग मुझे देव कहते हैं। आप मुझे किस नाम से पुकारना पसंद करेंगी?’ सुरैया ने हँसते हुए जवाब दिया था, ‘देव।’ 

इसके बाद उन्होंने सुरैया की आँखों में देखते हुए अपनी चार्मिंग मुस्कान बिखेरी। सुरैया ने सवाल किया, ‘आप देख क्या रहे हैं ?’’ आप के अंदर कुछ’ देव ने जवाब दिया। सुरैया की जिज्ञासा बढ़ निकली, ‘मेरे अंदर क्या?’’ यह मैं आपको बाद में बताउँगा।’ 

इस बीच, निर्देशक ने कहा था,’सुरैया जी शॉट रेडी है। आपको गाते हुए देवानंद की कमर में अपनी बाहें डालनी हैं और उनके बालों में उंगलियाँ फेरनी हैं।’ देव ने सुरैया से कहा, ‘उंगलियाँ फेरते हुए मेरे बाल मत बिगाड़िएगा।’ ’हाँ मुझे पता है। मैं आपकी ज़ुल्फ़ों के पफ्स को बिल्कुल नहीं छेड़ूँगी। ’ सुरैया ने कहा। गाना चला, कैमरा रोल हुआ। सुरैया ने देवानंद को पीछे से आलिंगन में लिया। उसने देव की साँसों की गर्माहट महसूस की। 

देवानंद ने उनके हाथों का चुम्बन लेकर छोड़ दिया और फिर उनकी तरफ एक फ़्लाइंग किस उछाला। सुरैया ने उनके हाथ के पीछे का हिस्सा चूम कर उसका जवाब दिया। 

निर्देशक ने चिल्ला कर कहा, ‘ग्रेट शॉट’। वहाँ पर मौजूद फ़ोटोग्राफर चिल्लाए, ‘एक बार फिर उन्हें चूमिए।’ देवानंद ने सुरैया से पूछा। उन्होंने हां में सिर हिलाया। इस बार देवानंद ने उन्हें गालों पर चूमा। फ़ोटोग्राफ़र पागल हो गए। जब सुरैया को एकांत मिला जो उन्होंने कहा, ‘तो आप कुछ कह रहे थे... मेरे बारे में !’ 

देवानंद ने फ़्लर्ट किया, ‘मैं आपके भाव नहीं बढ़ाना चाहता।’ ’लेकिन मैं अपने भाव बढ़ाना चाह रही हूँ।’ सुरैया को इस छेड़छाड़ में मज़ा आने लगा था।’ अगर मैं आपको बताऊँ कि मैं आपके बारे में क्या सोच रहा था तो क्या आप उस पर यकीन करेंगी?’ सुरैया ने कहा, ‘बिलकुल।’ ‘आपकी आँखें एक रानी के चेहरे पर चमकते हुए हीरे की तरह हैं। लेकिन...’ ‘लेकिन क्या?’ सुरैया ने ज़ोर दिया। देवानंद ने कहा, ‘आपकी नाक सुँदर तो है लेकिन थोड़ी लंबी है।’ सुरैया ने अपनी नाक छुई और कहा आप सही कहते हैं। देवानंद ने बात आगे बढ़ाई, ‘लेकिन यह आपके चेहरे पर सुँदर लगती है। मेरा जी चाह रहा है कि मैं आपका कोई नाम रखूँ।’ ‘क्या?’ सुरैया ने पूछा। देवानंद ने कहा, ‘मैं अपने साथ काम करने वाली हर लड़की का नाम रखता हूँ।’ ‘तुम ने बहुत सी लड़कियों के साथ काम किया है?’ सुरैया ने सवाल किया। देवानंद ने कहा बहुत तो नहीं... हाँ थोड़ी बहुत ज़रूर... लेकिन चुनिंदा। सुरैया की ख़ूबसूरत आँखें मुस्कराईं, ‘तो आप मेरा क्या नाम रखना चाह रहे थे?’ देवानंद ने शब्द को लंबा करते हुए जवाब दिया, ‘नोओओ...ज़ीईई ...।’ सुरैया ने देवानंद की आँखों में देखते हुए उन्हीं के अंदाज़ में शब्द को लंबा करते हुए कहा, ‘ स्वीईई......ट’। 



अगले दिन, एक आउटडोर शूटिंग के दौरान उन्होंने देवानंद से पूछा, ‘आपको पता है आपकी शकल किससे मिलती है ?’ किससे? सुरैया ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा,’ किसी ने आपको बताया नहीं?’ ‘मुझे पता नहीं।’ ‘ग्रेगरी पेक।’ सुरैया ने कहा और देवानंद के चेहरे पर आने वाले भावों को पढ़ने लगीं। देवानंद ने कहा मुझे यह तुलना पसंद नहीं। बहुत दिनों से लोग ऐसा कह रहे हैं। ‘लेकिन क्यों नहीं? देखने में वह इतना अच्छा लगता है।’ सुरैया ने देवानंद की तारीफ़ की। 

देवानंद ने मज़ाक किया, ‘देखने में मैं उससे ज़्यादा अच्छा हूँ।’ सुरैया ने कहा मैं तुम्हारे आत्मविश्वास की दाद देती हूँ। देवानंद को यह अहसास हो गया कि सुरैया उन्हें पसंद करने लगी है। उन्होंने बात आगे बढ़ाई, ‘क्यों नहीं तुम मुझे ग्रेगरी पेक से बेहतर नाम देतीं?’ सुरैया सोचने लगीं। 

 तभी शॉट लेने का बुलावा आ गया। जैसे ही कैमरा घूमा, देवानंद ने एक फूल को तोड़ा और हवा मे उछाल दिया। जब वह नीचे गिरने लगा तो उन्होंने उसे अपने होठों से कैच कर लिया। सुरैया ने उस फूल को देवानंद के होठों से निकाला और चूम लिया। कैमरे ने इस दृश्य को कैद किया और सेट पर मौजूद लोगों ने तालियाँ बजाईं। सुरैया ने देवानंद को अपने पीछे आने का इशारा किया। जब देवानंद उनके पास पहुँचे तो वह पलटीं और उनसे कहा,’ मैं तुम्हे स्टीव कह कर बुलाउँगी।’ स्टीव क्यों ?’ बस यूँ ही। क्योंकि मुझे यह नाम पसंद है।’ 

देवानंद ने कहा अगर तुम्हें पसंद है तो मुझे भी पसंद है। दोनों ने हाथ मिलाए.... कुछ ज़्यादा ही देर तक... देवानंद ने उनके हाथ को दबाया। सुरैया ने उनका हाथ दबा कर उसका जवाब दिया। अच्छे दोस्त से नज़दीकी दोस्त और फिर आशिक बनने की यह शुरुआत थी। 

“जीवन की नैया को खोते हुए ... चले जायेगे” पर नहीं मिल सका किनारा 


1948 में फिल्म विद्या में इसी गाने की शूटिंग के दौरान सुरैया की नाव पानी में पलट गई और देव आनंद ने हीरो की तरह झील में कूद कर उनकी जान बचाई। वे कहने लगी अगर तुमने मुझे नहीं बचाया होता तो आज मैं खत्म हो जाती, तो देव ने जवाब दिया अगर आपकी जान चली जाती तो मैं भी खत्म हो जाता। सुरैया ने बाद में माना कि शायद वही पल था जब हमें एक दूसरे से बेइंतहा मुहब्बत हो गई थी। सुरैया-देवआनंद ने एक साथ सात फिल्मों में काम किया, ये सातों फिल्में बॉक्स ऑफिस बहुत हिट नहीं रही। देव और सुरैया ने बहुत ख्वाब देखे कि वे “जीवन की नैया को खोते हुए ... चलते जायेगे ... “ लेकिन नहीं मिल सका उनकी मुहब्बत को किनारा... 

आगे की कहानी, देव की जुबानी 

वह सुरैया का स्वर्णिम युग था। मैं नया-नया फिल्म उद्योग में आया था और अपने पाँव जमाने की कोशिश कर रहा था। मैं ट्रेन से स्टूडियो आता था और वो मंहगी गाड़ियों में आती थी। लेकिन हम दोनों चुंबक की तरह नजदीक आते चले गए। हम एक-दूसरे को पसंद करते थे और फिर प्रेम करने लगे। मुझे याद है, मैं अपने दोस्तों के साथ चर्च गेट स्टेशन पर उतरकर पैदल मैरिन ड्राइव में “कृष्ण महल” जाया करता था, जहाँ सुरैया रहती थीं। मेरे दोस्त उसकी नानी को घेर कर बातों में उलझा कर रखते और हम छत जा कर पर घंटों बतियाते रहते। 

उन दिनों सेट के अलावा अन्यत्र कहीं मिलना संभव नहीं था। बाद में नानी के कारण सेट पर भी हमें आपस में बात नहीं करने दिया जाता था, इसलिए हमारे बीच खतो-किताबत चलती रहती थी। खत पहुँचाने का काम करते थे मेरे दोस्त केमरामेन देवेजा, ओम प्रकाश और कामिनी कौशल। हम शादी करना चाहते थे। सुरैया की माँ ने तो हमारी आशनाई को स्वीकार कर लिया था लेकिन सुरैया की नानी इस शादी के लिए तैयार नहीं हुईं। उनके घर कई लोग आने-जाने लगे थे, जिससे वे भ्रमित रहने लगीं। निहित स्वार्थी तत्वों ने हिन्दू-मुसलमान की बात उठाकर हमारे लिए मुश्किलें पैदा कर दीं। उन दिनों की पत्रिकाओं ने भी गुलगपाड़ा मचाया। हमारा अफेयर रोजाना सुर्खियों में छपता था। मूवी-टाइम्स के बी.के. करंजिया हमारे रोमांस की हर खबर खुल कर लिखते थे। 

बॉलीवुड की चर्चित प्रेम कहानी, जिसमें वैम्प बनी नानी.... 

सुरैया और देव आनंद का रोमांस पूरे शबाब पर था। उनका प्यार परवान चढ़ रहा था। दोनों ने तो अपने बच्चों के नाम भी सोच लिए थे। सुरैया कहा करती थी कि उसे लड़की चाहिये, ताकि वो उसे अच्छी-अच्छी ड्रेस पहना सके। देव कहते थे कि तुम्हारे पास तो इतनी ढेर सारी गुड़ियां हैं फिर तुम्हें लड़की क्यों चाहिये। वो जिद पर अड़ी रहती और कहती कि लड़की होगी तो उसका नाम देवीना रखेगी। 

शुरुआत की तीन फिल्मों में काम करने के दौरान तो किसी को इनके रिश्ते की खबर नहीं लगी मगर 1951 में रूढीवादी परिवार से संबंध रखने वाली सुरैय्या का परिवार उन पर नजर रखने लगा। फिल्म अफसर की शूटिंग के दौरान दोनों के अफेयर की खबर सबको लग गई और इसका जमकर विरोध हुआ। दोनों शादी करना चाहते थे मगर इनका रिश्ता धार्मिक कट्टरता के की भेंट चढ़ गया। देव साहब हिंदू थे जबकि सुरैय्या मुस्लिम और इसी वजह से इनका रिश्ता शादी में नहीं बदल पाया। 

देव आनंद ने अपने और सुरैया के रिश्ते के बारे में बताते हुए यह लिखा है कि अगर सुरैया उनकी जिंदगी में होती तो कुछ और ही बात होती। 

सुरैय्या की नानी इन दोनों के रिश्ते की सबसे बड़ी दुश्मन थीं, बाद में उनकी दादी भी रिश्ते के सख्त खिलाफ हो गयीं। सुरैय्या को देव साहब से मिलने नहीं दिया जाता था। देव जब भी उनसे मिलने के लिए उनके घर जाते वहां पहरेदार मौजूद रहते जिनसे वह तंग आ गए। 

जीत फिल्म के सेट पर होने वाली थी असली शादी 

तभी जीत फिल्म के लिए देव और सुरैया की शादी का सीन शूट होना था। सुरैया के घर वालों से परेशान देव और सुरैया ने इस शूटिंग में अपनी असली शादी करने का प्लान बना लिया। पंडित भी असली बुलाया गया, सब कुछ असली था और मंत्र भी असली पढ़े जाने वाले थे। लेकिन ऐन वक्त पर एक असिसटेंट डायरेक्टर ने सुरैया की नानी को फोन कर दिया, बस फिर क्या था नानी ने सेट पर आकर हंगामा कर दिया और सुरैया को पकड़ कर घर ले गई। इसके बाद नानी ने उसकी शादी मशहूर डायरेक्टर एम. सादिक से करनी चाही पर देव की यादों में तड़पती सुरैया किसी और से शादी करने को कहाँ तैयार होने वाली थी। फिर हर रोज उसे समझाने के लिए फिल्म इंडस्ट्री के करीबी लोगों को बुलाया जाता, जो उसे समझाते कि देव के साथ शादी उसकी सबसे बड़ी भूल होगी । अभिनेत्री नादिरा के पति तो कुरान ले आए और बोले, “इस पर हाथ रख कर कसम खाओ कि तुम देव से शादी नहीं करोगी। अगर तुम देव से शादी करोगी तो देश में दंगे भी हो सकते हैं।” सुरैया के मामा और मानी ने देव को जान से मारने की धमकी तक दे डाली थी। सुरैया डर गई थी। वह हिम्मत नहीं जुटा पाई। वह देव से बोली, मैं तुम्हारी मौत का कारण नहीं बनना चाहती। देव ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी। इसके बाद देव इतने जजबाती हो गए कि उसे तमाचा मार दिया, सुरैया फूट फूट कर रोने लगी। उस समय तो देव चले गये लेकिन बाद में वे सुरैया को बाहों में लेकर रोए और बहुत पछताए। 

सुरैया से मिलने रात को, मम्मी ने बुलाया देव को 

उसके बाद उन्होंने सुरैय्या से फोन पर बात करने की कोशिश की मगर हर बार उनकी नानी फ़ोन उठाती और उन्हें सुरैय्या से दूर रहने की हिदायत देतीं। एक बार उन्होंने देव को धमकाया था कि अगर वह बाज नहीं आए तो वह उनकी शिकायत पुलिस में कर देंगी। मुहब्हत पर सख्त पहरे लग गये थे। एक बार सुरैय्या की मां ने फोन उठा लिया और देव को कहा कि सुरैया भी तुमसे मिलना चाहती है और वह अगले दिन रात को 11.30 बजे छत पर सुरैया से मिलने आ जाये। देव डर को डर था कि कहीं उन्हें फंसाने की प्लानिंग तो नहीं है, फिर उन्होंने सोचा कि एक सुरैया की मम्मी ही तो है जिस पर वो भरोसा कर सकते हैं। फिर भी वो अपने दोस्त तारा को लेकर गये जो पुलिस इंस्पेक्टर था। तारा अपनी पिस्टल और टॉर्च अदि लेकर पूरी तैयारी के साथ देव के साथ गये। इस तरह दूसरी रात “कृष्ण महल” की छत पर रात 11.30 बजे देव सुरैया से मिलने पहुँचे, जहाँ सुरैया पहले से ही देव का इंतजार कर रही थी। जाते ही उन्होंने सुरैया को गले लगा लिया और काफी देर तक एक दूसरे को बाहों में भर कर चुपचाप खड़े रहे। इसके बाद देव ने सुरैया का चुम्बन लिया और फिर सुरैया फूट फूट कर रोने लगी। देव उसे समझाते रहे और शादी करने की इच्छा जाहिर की। सुरैया कुछ नहीं बोली बस बार बार देव को बाहों में भर कर आई लव यू आई लव यू कहती रही। देव ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैं उस चुम्बन को कभी नहीं भूल पाया। 

सगाई की अंगूठी ने मचाया बवाल 

अगले दिन देव ने झवेरी बाजार से हीरे की एक मंहगी अंगूठी खरीदी। उसमें तीन पेशकीमती हीरे जड़े हुए थे। पैसे दोस्तों से उधार लिये गए, क्योंकि तब देव के पास इतने पैसे नहीं होते थे। सुरैया के दरवाजे उनके लिए बंद हो चुके थे, इसलिए उन्होंने सुरैया तक इस सगाई की अंगूठी और खत भेजने का जिम्मा दिया देवेजा को। सुरैया ने अंगूठी को छुपा लिया और देवेजा को कहा कि वो देव से कह दे कि सुरैया उन्हें बहुत प्यार करती है। एक दिन शूटिंग के दौरान सुरैया ने देव की दी हुई अंगूठी पहन ली। लेकिन नानी की एक्सरे जैसी नजर से अंगूठी छुप नहीं पाई। नानी बहुत गुस्सा हुई हाथ पकड़ कर सुरैया को घर ले आई। उसकी घर से बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी गई। सुरैया के घर का माहौल बहुत खराब हो चुका था। अगर वो घर वालों की मर्जी के खिलाफ देव से शादी करती तो उसे रास्ते से हटा दिया जाता या नानी अपनी जान दे देती। 

उसके बाद देव की सुरैया से मुलाकात नहीं हो पा रही थी। उनकी फिल्म की शूटिंग भी पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने फिर से केमरामेन देवेजा को सुरैया के घर भेजा। लेकिन नानी को माजरा समझ में आ चुका था इसलिए उन्होंने उससे साफ कह डाला कि उसे अब इस घर में आने की इजाजत नहीं हैं और वह बाहर से ही लौट आया। 

मजहब बना दीवार, असफल हुआ प्यार 

आखिर घर वालों के डर से सुरैया ने देव से शादी नहीं करने का फैसला कर ही लिया। वो डर गई थी या शायद ईश्वर को यही मंजूर था। फिर एक दिन सुरैया ने अपनी मुहब्बत को याद करते हुए देव की दी हुई सगाई की अंगूठी को समुंदर में फैंक कर अपने प्रेम की आहुति दे डाली। इस तरह बॉलीवुड की सबसे मशहूर प्रेम कहानी कभी पूरी न हो सकी।

उस रात देव घर जाकर चेतन के कंधे पर सिर रखकर खूब रोए और उन्हें अपनी सारी दास्तान सुना दी। चेतन ने देव को बहुत समझाया और कहा कि जीवन के इस दौर में हरेक के साथ ऐसा कुछ घटता है। आज मैं समझता हूँ, जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। 

मगर सुरैय्या इस रिश्ते के टूटने से बहुत टूट गयीं और उन्होंने कभी शादी ना करने का फैसला किया। उन्होंने इसके बाद फिल्मों में गाना और एक्टिंग करना भी छोड़ दिया। काश नानी उनके बीच न आती तो शायद कई दशकों तक हमें हुस्न की मल्लिका सुरैया की फिल्में और गीत और सुनने को मिलते। 

 बरसों बाद जब एक दिन किसी पार्टी में देव और सुरैया मिले तो बहुत सारी बातें हुई और देव ने बताया कि उनके एक बेटा व एक बेटी भी है तो सुरैया ने पूछा कि आपकी बेटी का क्या नाम है? तो देव ने कहा कि तुम्हें तो उसका नाम मालूम होना चाहिये... जी मैंने उसका नाम देवीना ही रखा है। 

देव साहब के बारे में कहा जाता था कि उन्हें काले कपड़ों में देखकर लड़कियां बेहोश हो जाया करती थीं। उनकी एक मुस्कान पर हसीनाओं के दिलों की धड़कनें रुक जाती थीं, जिनकी एक अदा पर बॉलीवुड की हीरोइनें कुर्बान हो जाया करती थीं। बॉलीवुड के सबसे हैंडसम हीरो देवानंद अपने जमाने की सबसे हसीन और नजाकत वाली हीरोइन सुरैया की अदाओं पर अपना दिल हार बैठे लेकिन अफसोस अंजाम में सामने आई एक अधूरी प्रेम कहानी।

मैं गेहूं हूँ

लेखक डॉ. ओ.पी.वर्मा    मैं किसी पहचान का नहीं हूं मोहताज  मेरा नाम गेहूँ है, मैं भोजन का हूँ सरताज  अडानी, अंबानी को रखता हूँ मुट्ठी में  टा...