पिछले कुछ दशकों में भारत समेत पूरे विश्व में डायबिटीज टाइप-2 के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है व अब तो यह किशोरों और बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज एक महामारी का रुप ले चुकी है। आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि पिछले कुछ दशकों में हमारे खान-पान, जीवनचर्या या वातावरण में ऐसा क्या बदलाव आया है। शोधकर्ताओं के अनुसार जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं।
पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।
अलसी के तेल का अदभुत संरचना और ॐ खंड की क्वांटम भौतिकीः
अलसी के तेल में अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) नामक ओमेगा-3 वसा अम्ल होता है। डा. बुडविज ने ए.एल.ए. और एल.ए. वसा अम्लों की अदभुत
संरचना का गूढ़ अध्ययन किया था। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रृंखला होती है जिसके एक सिरे से , जिसे ओमेगा एण्ड कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से जिसे डेल्टा एण्ड कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) ग्रुप जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में तीन द्वि बंध क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं। चुंकि ए.एल.ए. में पहला द्वि बंध तीसरे और एल.ए. में पहला द्वि बंध छठे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इनको क्रमशः ओमेगा-3 और ओमेगा-6 वसा अम्ल कहते हैं। ए.एल.ए. और एल.ए. हमारे शरीर में नहीं बनते, इसलिए इनको “आवश्यक वसा अम्ल” कहते हैं तथा इनको भोजन के माध्यम से लेना आवश्यक है। आवश्यक वसा अम्लों की कार्बन लड़ी में जहां द्वि-बंध बनता है और दो हाइड्रोजन अलग होते हैं, उस स्थान पर इलेक्ट्रोनों का बादलनुमा समुह, जिसे पाई-इलेक्ट्रोन भी कहते हैं, बन जाता हैं और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है।
इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आने वाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन (जो असिमित, गतिशील, अनंत, जीवन शक्ति से भरपूर व ऊर्जावान हैं और अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं) को आकर्षित करते हैं। ये फोटोन सूर्य से निकल कर, जो 9.3 अरब मील दूर हैं, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में निश्चत आवृत्ति पर सदैव गतिशील रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यही है जीवन का अलसी फलसफा, प्रेम का उत्सव, यही है प्रकृति का संगीत। यही है फोटोन रूपी सूर्य और इलेक्ट्रोन रूपी चंद्र का परलौकिक गंधर्व विवाह, यही है शिव और पार्वती का तांण्डव नृत्य, यही है विष्णु और लक्ष्मी की रति क्रीड़ा, यही है कृष्ण और राधा का अंनत, असीम प्रेम।
पाई-इलेक्ट्रोन कोशिकाओं में भरपूर ऑक्सीजन को भी आकर्षित करते हैं। ए.एल.ए कोशिकाओं की भित्तियों को लचीला बनाते हैं जिससे इन्सुलिन का बड़ा अणु आसानी से कोशिका में प्रवेश कर जाता है। ये पाई-इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक केपेसिटर की तरह काम करते हैं। यही जीवन शक्ति है जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, आँखों, मांसपेशियों और स्नायु तंत्र की कोशिकाओं में भरपूर ऊर्जा भरती है। डायबिटीज के रोगी को ऐसे ऊर्जावान इलेक्ट्रोन युक्त अलसी के 30 एम.एल. तेल और 80-100 एम.एल. दही या पनीर को विद्युत चालित हाथ से पकड़ने वाली मथनी द्वारा अच्छी तरह फेंट कर फलों और मेवों से सजा कर नाश्ते में लेना चाहिये। इसे एक बार लंच में भी ले सकते हैं। जिस तरह ॐ में सारा ब्रह्मांड समाया हुआ है ठीक उसी प्रकार अलसी के तेल में संम्पूर्ण ब्रह्मांड की जीवन शक्ति समायी हुई है। इसीलिए अलसी और दही, पनीर के इस व्यंजन को हम “ॐ खंड” कहते हैं। अलसी का तेल शीतल विधि द्वारा निकाला हुआ फ्रीज में संरक्षित किया हुआ ही काम में लेना चाहिए। इसे गर्म नहीं करना चाहिये और हवा व प्रकाश से बचाना चाहिये ताकि यह खराब न हो। 42 डिग्री सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है।
अलसी की फाइबर युक्त स्वास्थयप्रद रोटीः
अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है व डायबिटीज से शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती है। डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो) 50 प्रतिशत कार्ब, 16 प्रतिशत प्रोटीन व 20 प्रतिशत फाइबर होते हैं यानी इसका ग्लायसीमिक इन्डेक्स गैहूं के आटे से काफी कम होता है। जबकी गैहूं के आटे में 72 प्रतिशत कार्ब, 12.5 प्रतिशत प्रोटीन व 12 प्रतिशत फाइबर होते हैं। डायबिटीज पीडित के लिए इस मिश्रित आटे की रोटी सर्वोत्तम मानी गई है।
डायबिटीज के रोगी को रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पैकेट बंद सभी खाद्य पदार्थ, जंक फूड, फास्ट फूड, सोफ्ट ड्रिंक आदि का सेवन कतई नहीं करना चाहिये। रोज 4 से 6 बार परन्तु थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिये। सांयकालीन भोजन सोने के 4-5 घण्टे पहले ग्रहण करना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, नीबू आदि हरी सब्जीयां भरपूर खानी चाहिये। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, आम, केला आदि सभी फल खाने चाहिये। खाद्यान्न व दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं। अंकुरित दालों का सेवन अवश्य करें। रोज सुबह एक घण्टा व शांम को आधा घण्टा पैदल चलना चाहिये। सुबह कुछ समय प्राणायाम, योग व व्यायाम करना चाहिये। रोजाना चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में मिला कर लेना चाहिये।
सर्व विदित है कि क्रोमियम और अल्फा-लाइपोइक एसिड शर्करा के चयापचय में सहायक हैं अतः डाटबिटीज के रोगी को रोज 200 माइक्रोग्राम क्रोमियम और 100 माइक्रोग्राम अल्फा-लाइपोइक एसिड लेना ही चाहिये। अधिकतर एंटीऑक्सीडेंट केप्स्यूल में ये दोनो तत्व होते हैं। मेथीदाना, करेला, जामुन के बीज, आंवला, नीम के पत्ते, घृतकुमारी (गंवार पाठा) आदि का सेवन करें। एक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।
डायबिटीज के दुष्प्रभावों में अलसी का महत्वः-
हृदय रोग एवं उच्च रक्तचापः-
डायबिटीज के रोगी को उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटेक आदि की प्रबल संभावना रहती हैं। अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती हैं। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्राल (HDL Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कोलेस्ट्रोल (LDL Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात से बचाव करती हैं। हृदय की गति को नियंत्रित कर वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होने वाली मृत्यु दर को बहुत कम करती है।
नैत्र रोगः-
डायबिटीज के दुष्प्रभावों के कारण आँखों के दृष्टि पटल की रक्त वाहिनियों में कहीं-कहीं हल्का रक्त स्राव और रुई जैसे सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसे रेटीनोपेथी कहते हैं जिसके कारण आँखों की ज्योति धीरे-धीरे कम होने लगती है। दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है। अंतिम अवस्था में रोगी अंधा तक हो जाता है। अलसी इसके बचाव में बहुत लाभकारी पाई गई है। डायबिटीज के रोगी को मोतियाबिन्द और काला पानी होने की संभावना ज्यादा रहती है। ऑखों में रोजाना एक बूंद अलसी का तेल डालने से हम इन तकलीफों से बच सकते हैं। इससे नजर अच्छी हो जाती हैं, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं तथा धीरे-धीरे चश्मे का नम्बर भी कम हो सकता है।
वृक्क रोगः-
डायबिटीज का बुरा असर गुर्दों पर भी पड़ता है। गुर्दों में डायबीटिक नेफ्रोपेथी नामक रोग हो जाता है, जिसकी आरंम्भिक अवस्था में प्रोटीन युक्त मूत्र आने लगता है, बाद में गुर्दे कमजोर होने लगते हैं और अंत में गुर्दे नाकाम हो जाते हैं। फिर जीने के लिए डायलेसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता हैं। अलसी गुर्दे के उत्तकों को नयी ऊर्जा देती है। शिलाजीत भी गुर्दे का कायाकल्प करती है, डायबिटीज के दुष्प्रभावों से गुर्दे की रक्षा करती है व रक्त में शर्करा की मात्रा कम करती है। डायबिटीज के रोगी को शिलाजीत भी लेना ही चाहिये।
पैरः-
डायबिटीज के कारण पैरों में रक्त का संचार कम हो जाता है व पैरों में एसे घाव हो जाते हैं जो आसानी से ठीक नहीं होते। इससे कई बार गेंग्रीन बन जाती है और इलाज हेतु पैर कटवानाक पड़ जाता हैं। इसी लिए डायबिटीज पीड़ितों को चेहरे से ज्यादा अपने पैरों की देखभाल करने की सलाह दी जाती है। पैरों की नियमित देखभाल, अलसी के तेल की मालिश व अलसी खाने से पैरों में रक्त का प्रवाह बढ़ता हैं, पैर के घाव व फोड़े आदि ठीक होते हैं। पैर व नाखुन नम, मुलायम व सुन्दर हो जाते हैं।
अंतिम दो शब्दः-
डायबिटीज में कोशिका स्तर पर मुख्य विकृति इन्फ्लेमेशन या शोथ हैं। जब हम स्वस्थ आहार-विहार अपना लेते हैं और अलसी सेवन करते हैं तो हमें पर्याप्त ओमेगा-3 ए.एल.ए. मिलता हैं और हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल का अनुपात सामान्य हो जाता है व डायबिटीज का नियंत्रण आसान हो जाता है और इंसुलिन या दवाओं की मात्रा कम होने लगती है।
अंत में डायबिटीज़ के रोगी के लिए मुख्य निर्देशों को क्रमबद्ध कर देता हूँ।
1) आपको परिष्कृत शर्करा जैसे आलू, सफेद चावल, मेदा, चीनी और खुले हुए या पेकेट बंद खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पास्ता, मेगी, नूडल्स, बिस्कुट, अकंलचिप्स, कुरकुरे, पेप्सी, लिमका, कोकाकोला, फैंटा, फ्रूटी, पिज्जा, बर्गर, पेटीज, समोसा, कचोरी, भटूरा, नमकीन, सेव आदि का सेवन नहीं करना है। उपरोक्त सभी खाद्य पदार्थ मैदा व ट्रांसफैट युक्त खराब रिफाइंड तेलों से बनते हैं। तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म किया जाता हैं जिससे उसमें अत्यंत हानिकारक कैंसर पैदा करने वाले रसायन जैसे एच.एन.ई. बन जाते हैं।
2) आपको खराब फैट जैसे परिष्कृत या रिफाइंड तेल जिसे बनाते वक्त 400 सेल्सियम तक गर्म किया जाता है व अत्यंत हानिकारक रसायन पदार्थ जैसे हैक्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि-आदि मिलाये जाते हैं, का सेवन कतई नहीं करना है। आपको अच्छे वसा जैसे घाणी का निकला नारियल (हालांकि अमरीकी संस्था FDA ने अभी तक नारियल के तेल को सर्वश्रेष्ठ खाद्य तेल का दर्जा नहीं दिया है) , तिल या सरसों का तेल ही काम में लेना है। नारियल का तेल खाने के लिये सर्वोत्तम होता है, यह आपको दिल की बीमारियों से बचायेगा व आपके वज़न को भी कम करेगा।
3) यदि ठंडी विधि से निकला, फ्रीज में संरक्षित किया हुआ अलसी का तेल उपलब्ध हो जाये तो रोजाना दो चम्मच तेल को चार चम्मच दही या पनीर में हेंड ब्लेंडर से अच्छी तरह मिश्रण बना कर फलों या सलाद के साथ लें। अलसी का तेल हमेशा फ्रीज में रखें। 42 सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है। यदि शुद्ध मिल सकता है तो आप थोड़ा घी या बटर भी काम में ले सकते हैं। हो सके तो आप सब्जियों को पानी में पकाये व बाद में तेल डालें। तली हुई चीजें कम से कम खायें।
4) रोजाना 30-60 ग्राम अलसी का सेवन करें। इसे ताज़ा पीस कर ही काम में लें। अलसी पीस कर रखने से खराब हो जाती है। डायबिटीज़ के रोगी को दोनों समय की रोटी के आटे में अलसी मिलानी चाहिए। आटा मिश्रित अन्नों जैसे गेहूँ, बाजरा, जौ, ज्वार, चना और कूटू को बराबर मात्रा में मिलाकर पिसवायें।
5) आप रोज 4 से 6 बार भोजन ले परंतु बहुत थोड़ा-थोड़ा। रात को सोने के 4-5 घण्टे पहले हल्का डिनर ले लें। आपको भोजन में सभी फल व सब्जियों का समावेश होना चाहिये। प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर, गोभी, पत्तागोभी, मेथी, भिण्डी, मूली, पालक, बैंगन, लौकी, ऑवला, गाजर, चुकंदर, नींबू आदि सभी हरी सब्जियां खूब खाएं। फलों में जामुन, सेब, संतरा, अंगूर, पपीता, चीकू, आम, केला आदि सभी फल खाएं। फलों का रस निकालकर नहीं बल्कि पूरा छिलके समेत फल खूब चबाकर खाए। अधिकतर कैंसर के रोगी यह समझते हैं कि उन्हें मीठे फल नहीं खाने चाहिये। जबकि दुनिया की कोई भी चिकित्सा पद्धति नहीं कहती है कि डायबिटीज के रोगी को मीठे फल और सूखे मेवे नहीं खाने चाहिये। फलों में पर्याप्त रेशे या फाइबर जटिल शर्करायें होती है जिनका ग्लाइसीमिक इन्डेक्स कम होता है अत: ये रक्त शर्करा की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाती है। दालें भी छिलके समेत खाएं। छिलकों में फाइबर व महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं। अंकुरित अन्न का सेवन अवश्य करें।
6) रोज सुबह एक घण्टा व शाम को आधा घण्टा घूमना है। सुबह आधे घण्टे से पौन घंटे, प्राणायाम, योग व व्यायाम करना है।
7) रोजाना आधा चम्मच पिसी हुई दालचीनी सब्जी या चाय में डालकर लें। रोज एक क्रोमियम व एल्फालाइपोइक एसिड युक्त (ये दोनों मधुमेह उपचार में बहुत लाभ दायक है) एन्टीऑक्सीडेंट का केप्सूल जैसे Cap. Ebiza-L और Shilajit Dabur के दो केप्सूल सुबह शाम लेना है। मेथीं दाना, करेला, जामुन, आंवला, नीम के पत्ते आदि का सेवन करें। आजकल रोगी को अपनी रक्त शर्करा की नियमित जांच ग्लूकोमीटर द्वारा घर पर ही करने की सलाह दी जाती है।
8) हर तीन महीनों में HbA1C टेस्ट भी करवाये। इससे पिछले तीन महीने में आपकी बल्ड शुगर नियंत्रण की स्थिति मालूम हो जाती है। साल में एक बार आंखो की जांच (फन्डोस्कोपी), गुर्दे व यकृत के रक्त परिक्षण, ई.सी.जी. व हृदय की विस्तृत जांच अवश्य करवाये।
9) डायबिटीज के रोगी को हमेशा अपने पास एक कार्ड रखना चाहिए जिसमें इस बात का वर्णन हो की वह डायबिटीज से पिड़ित है डायबिटीज के रोगी को स्वास्थ्य बीमा भी करवाना चाहिये।
10) डायबिटीज के रोगी की कभी-कभी रक्त शर्करा बहुत कम हो जाती है जिसे हाइपो-ग्लाइसीमिया या शर्कराल्पता कहते हैं, जिसके लक्षण है – भूख लगना, घबराहट, पसीना आना, चक्कर आना, आवाज लड़खड़ाना, कमजोरी, अस्त-व्यस्तता, बेहोशी आदि हैं। ये बड़ी भयावह स्थिति होती है। इसमे तुरन्त चीनी, कोई मीठी वस्तु जैसे बिस्किट या मिठाई खा लेना चाहिए और तुरन्त किसी चिकित्सालय में जाकर जाँच करवाना चाहिये।
7 comments:
बहुत ही लाभ दायक जानकारी ..,
अलसी में इतने गुण है जान कर आश्चर्य हुआ,
पचपन में माँ अलसी की पुलटन जरुर लगाती थी जब कभी फोड़े की तकलीफ होती थी .
आपका तहे दिल से स्वागत करते हुए उम्मीद करता हूँ की इसी तरह हमें लाभप्रद जानकारी मिलती रहेगी.. मक्
http://www.youtube.com/mastkalandr
मैं इस पूरे लेख को पढकर ही आपका इतनी ज्यादा जानकारी युक्त आलेख के लिये आभार व्यक्त करता हूं।अलसी के बारे में विस्तृत सूचनासे शर्करा रोगी तो लाभान्वित होंगे ही अन्य रोगी भी इस माहिती का लाभ ले सकेंगे।
इस नए ब्लॉग के साथ आपका हिंदी चिट्ठाजगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
बहुत ही लाभ दायक लेख बचपन से अलसी खाते आरहे है पर आज उनके बारे मै जाना ... शुक्रिया !
बहुत ज्ञानप्रद लेख है !
alsi ka thande tariqe se nikala hua tel kahan milega main mangana chahta hoon. Om prakash, Lucknow
Dear Dr. Verma,
The link for Alsi-Mahima is not working. Please send me this on rgupta197@gmail.com
http://dl.dropbox.com/u/36450880/Alsi_Mahima.PDF
Post a Comment