Wednesday, January 18, 2017

शाहजादी हल्दी ‘स्वास्थ्य सोना’ बरसाये, विज्ञान भी चमत्कृत


शाहजादी हल्दी ‘स्वास्थ्य सोना’ बरसाये, विज्ञान भी चमत्कृत


नयी दिल्ली 01 दिसंबर (वार्ता) आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में चमत्कारी औषधि के ‘खिताब’ से नवाजी गयी हल्दी वैज्ञानिकों की भी पसंद बन गयी है और उन्होंने अपने शोध में कैंसर, दिल की बीमारी, डिमेंशिया, गठिया एवं सोरायसिस समेत कई बीमारियों की राेकथाम में भारतीय मसालों की इस ‘सरताज’ को कारगर पाया है। राष्ट्रपति के निजी चिकित्सक पद्मश्री प्रोफसर (डॉ़ ) मोहसिन वली ने यूनीवार्ता के साथ खास बातचीत में आज कहा कि हल्दी का लोहा अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं। रंग में ही नहीं गुणों में भी ‘सोना’ हल्दी को सर्दी -जुकाम से लेकर कैंसर और दिल से जुड़ी बीमारियों से लड़ने में सक्षम पाया गया है। ह्रदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर वली ने कहा“ वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हल्दी का मुख्य घटक ‘करक्यूमिन’ न केवल कैंसर की कोशिकाओं को मारने और उनकी वृद्धि रोकने में सक्षम है बल्कि वह हमारे दिल का सबसे अच्छा दोस्त भी है। करक्यूमिन हमारे शरीर में पहुंच कर धमनियों के भीतर ‘प्लाक’नहीं जमने देता है जिससे खून में क्लॉट नहीं बन पाता है। क्लॉट बनने से ह्दयाघात का गंभीर खतरा हो जाता है। इसके अलावा प्लाक नसों को संकरा बना देता है जिससे खून का प्रवाह बाधित होने लगाता है।” सबसे कम उम्र (33)में राष्ट्रपति का चिकित्सक बनने वाले का गौरव हासिल करने वाले प्रोफेसर वली ने कहा “उचित मात्रा में सेवन करने से हल्दी का यह पीला घटक खराब कोलेस्ट्रॉल को 56 प्रतिशत तक घटाकर कोेलेस्ट्राॅल ऑक्सिडेशन को कम करता है। यह हमारे खून के सीरम ट्राइग्लिसराइड्स स्तर को भी 27 प्रतिशत तक कम करता है। कुल मिलकर यह टोटल कोलेस्ट्राॅल को भी 33़ 8 प्रतिशत कम करके दिल को मजबूती से धड़कने में अहम भूमिका निभाता है। इसमें एंटी-इन्फ्लैमटोरी और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण भी हैं। ” उन्होंने कहा “मसलन हर बीमारी की शुरुआत इन्फ्लैमेशन से ही होती है और कई तरह के ‘धारधार हथियारों से लैस’ हल्दी ऐसे दुश्मनों को तो पहले ही पटकनी दे देती है। यह हमारे शरीर से फ्री रेडिकल्स को निकाल बाहर करती है। फ्री रैडिकल्स शरीर के जोड़ों पर सूजन पैदा करते हैं जिससे हमें असहनीय दर्द होता है और कालांतर में जोड़ों काे बेहद नुकसान भी पहुंचता है। यह गठिया की बीमारी में भी कारगर है।”
जेरियाट्रिक्स (जरारोग)चिकित्सा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रोफेसर वली ने कहा कि कैंसर और करक्यूमिन का 36 का आंकड़ा है। करक्यूमिन तेजी से बढ़ते कैंसर की कोशिकाओं पर लगाम लगाता है। उन्होंने कहा“हल्दी पर हम वैज्ञानिकों ने जो शोध किए हैं उसके मद्देनजर हम यह कह सकते हैं कि यह एक शाहजादी की तरह है और सोने की तरह दमकती यह हमें स्वस्थ्य एवं सुंदर बनाकर लंबी जिंदगी देने में सक्षम है। हल्दी पर देश ही नहीं विदेशों में भी लगातार शोध हो रहे हैं। ब्रिटेन के कॉर्क कैंसर रिसर्च सेंटर में किए गए परीक्षण में करक्यूमिन का प्रयोग में गले की कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में बेहद कारगर पाया गया। डॉ़ शैरन मैक्केना और उनकी टीम के अनुसार करक्यूमिन ने 24 घंटों के भीतर कैंसर की कोशिकाओं को मारना शुरू कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि करक्यूमिन कैंसर के नए इलाज विकसित करने में सहायक हो सकता है। इसके अलावा हल्दी मधुमेह के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है। इसमें मौजूद एंटिओक्सीडेंट हड्डियो में होने वाली समस्याओं से भी बचाते हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली हल्दी सांस संबंधी बीमारियों में भी राहत पहुंचाती है। ” पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के चिकित्सक रहे प्रोफेसर वली ने कहा “हमने अंबा हल्दी और लाल मिर्च पर शोध किया है। लाल मिर्च में भी करक्यूमिन पाया जाता है लेकिन उसकी तीखी प्रकृति के कारण हम उसका उपयोग सीमित ही कर सकते हैं। हल्दी हर गंभीर बीमारी की रोकथाम में कारगर है और इस तरह की बीमारियों को जड़ से खत्म करने के लिए ‘कंसन्ट्रेट करक्यूमिन’ की खुराक पर हो रहे शोधों के बाद चिकित्सकों की राय से अच्छी तरह अमल में लाया जा सकेगा। ” यह पूछने पर कि आपके पास भी कैंसर के मरीज आते हैं और ऐसे मरीजों का आप कैसे उपचार करते हैं, प्रोफेसर वली ने कहा“ हां ,आज ही मेरे पास आंत में कैंसर का एक मरीज आया था और हमने उसे इस तरह की बीमारियों के इलाज करने वाले वैद्य के पास भेज दिया ताकि उसे उचित मार्गदर्शन और इलाज मिल सके। कैंसर के तीसरे अथवा चौथे स्टेज में पता लगने पर इलाज मुश्किल होता है लेकिन हां, इतना जरूर कह सकते हैं कि आयुर्वेद से जुड़े इलाज से कैंसर के रोगी को दर्दनाक मौत नहीं मिलती है और उसकी उम्र भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। यह कहा जा सकता है कि प्रकृति से जुड़कर और दादा-दादी की जीवन शैली को अपनाकर गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। हमारी अच्छाइयों को विदेशी अपना रहे हैं और हम उनकी बुरी आदतों की नकल करके स्वयं पर इठलाते हैं। सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करने की हमारी परम्परा रही है लेकिन अमेरिका में कई स्थानों पर लोग सूरज ढ़लने के बाद भोजन नहीं ग्रहण करते और होटल, रेस्तरा आदि भी बंद हो जाते हैं। जितना हम आयुर्वेदिक दवाओं का उपायोग करते हैं उससे 50 प्रतिशत अधिक दवाओं का हम निर्यात करते हैं।” उन्होंने कहा“ हमारे यहां आयुष मंत्रालय का गठन एक अच्छी पहल है। सरकार को गिलोए, मुलेठी, दालचीनी, कलौंजी ,अर्जुन की छाल, मेथी आदि “रत्नों ”का पेटेंट कराना चाहिए। औषधीय वृक्ष अर्जुन की छाल तो दिल की बाइपास सर्जरी तक कर सकती है। आयुर्वेद ने तो सदियों पहले इसे हृदय रोग की महान औषधि घोषित कर दिया था। आयुर्वेद के प्राचीन विद्वानों में वाग्भट, चक्रदत्त और भावमिश्र ने इसे हृदय रोग की महौषधि स्वीकार किया है। यह पूछने पर कि निरोगी बने रहने के लिए प्रतिदिन हल्दी कितनी मात्रा में लेनी चाहिए, प्रोफेसर वली ने कहा कि रोज के खाने में पांच ग्राम हल्दी आवश्यक है। दूध में उबालकर लेने से इसका बेहतर नतीजा मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि कच्ची हल्दी का रस त्वचा पर लगाने और उसका सेवन करने से सोरायसिस की बीमारी में भी बहुत लाभ मिलता है। इस बीमारी से परेशान लोगों को अपने चिकित्सकों से संपर्क करके यह तय करना चाहिए की हल्दी का उपयोग वे किस तरह करें।
तीन राष्ट्रपतियों के निजी चिकित्सक बनने वाले पहले डॉक्टर ने कहा कि हल्दी प्राकृतिक एंटीबायोटिक है। इसलिए यह पेट और त्वचा संबंधी बीमारियों को जड़ से खत्म करती है। इसके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और बीमार होने की संभावना कम हो जाती है। यह ऊर्जा देने के साथ खून को साफ रखती है। इसमें छिपे गुण सेहत और सौंदर्य दोनों के लिए लाभदायक हैं। प्रोफेसर वली ने कहा “धरती पर वरदान हल्दी में बढ़ती उम्र को रोकने की अद्भुत क्षमता है। यह आपकी बढ़ती उम्र के प्रभाव का पता नहीं लगने देती है। ” पूर्व राष्ट्रपति आर वेंटकरमण के निजी चिकित्सक रहे प्रोफेसर वली ने कहा“ हमें अगर जीवन शैली से जुड़े कुछ बढ़िया जानने और पढ़ने को मिलता है तो हम कुछ समय तक इसे अमल में लाने के लिए रोमांचित रहते हैं लेकिन आंखों से ओझल हो जाने के बाद प्रेरणा शक्ति खत्म हो जाती है। ”चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2007 में पद्मश्री से सम्मानित प्रोफेसर वली ने कहा “क्यों न महत्वपूर्ण जानकारियों को सुंदर फ्रेम में मढ़कर शयन कक्ष में जगह दें और इन्हें दैनिक जीवन में लाकर अपने जीवन को स्वस्थ्य बनाएं।” अमेरिका आैर ईरान में भी हल्दी पर नये शोध हुए हैं जिसमें करक्यूमिन को सोरायसिस की बीमारी में कारगर पाया गया है। इस संबंध में अमेरिकन एकेडमी ऑफ डरमाटोलोजी और ईरान की फार्मास्यूटीकल रिसर्च पत्रिका में शोध पत्र प्रकाशित हुआ है। इस बीच भोपाल में राजीव गांधी प्राैद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति पीयूष त्रिवेदी यूनीवार्ता को बताया कि करक्यूमिन के चिकित्सीय गुणों से प्रेरित होकर उनकी टीम कनाडा के एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ़ एच ली की टीम के साथ मिल कर रही है। प्रोफेसर त्रिवेदी ने कहा“हमने अपने पिछले शोध में हल्दी से दो एंटीकैंसर मॉलिक्यूल ढ़ूढ़ें हैं जो बिना किसी दुष्प्रभाव के कैंसर की कोशिकाओं को तेजी से मारने में सक्षम होगें। सीटीआर -17 और सीटीआर -20 मॉलिक्यूल विभिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार में कारगर साबित हो सकते हैं। ” उन्होंने कहा“ हल्दी एंटीसेप्टिक और हीलिंग प्रोपट्रीज पर 12 से अधिक सालों के शोध के बाद इन दो मॉलिक्यूल की खोज हो पायी है। हमने इसका यूएस पेटेंट भी करा लिया है। हम अब एडवांस शोध कर रहे हैं। हमने 30 साल के अपने अनुभव से सिंथेटिक रूप से नये मॉलिक्यूल तैयार किये हैं। कम्प्यूटर पर काम करके मॉल्कूल की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं कि यह कहां जाकर फिट होगा और किस तरह से काम करेगा। ”उन्होंने कहा“ हमने जो मॉलिक्यूल तैयार किए हैं वे नयाब हैं और यह किसी ‘लिटरेचर’ में मौजूद नहीं है। शोध एडवांस स्टेज में है और पूरा होने पर कैंसर के खिलाफ बेहद कारगर हथियार साबित हो सकता है। प्रोफेसर त्रिवेदी ने कहा कि कैंसर में विटामीन बी 17 बहुत कारगर है और एपरिकोट(खुबानी) के बीज में और गेहूं के जवारे में यह विटामिन अत्यधिक मात्रा में मिलता है। उन्होंने कहा “हल्दी के चिकित्सकीय गुणों के प्रति लोगों का रूझान बढ़ रहा है और बाजार में आज कल करक्यूमिन कैप्सूल के रूप में भी बिक रहा है ।” आशा आजाद उपाध्याय वार्ता

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