Saturday, February 25, 2012

Gall Bladder Cancer

 पित्ताशय कैंसर

यह कैंसर पित्ताशय एक दुर्लभ प्रजाति का कपटी और कष्टप्रद कर्क रोग है जो इसकी श्लेष्मकला (Mucosal Layer) में होता है और बाहर की तरफ बढ़ता है। पित्ताशय एक नाशपाती के आकार की एक थैली है जिसमें यकृत से आकर पित्त इकट्ठा होता रहता है। यह रोग स्त्रियों को अधिक होता है।   इसकी भित्तियों में तीन निम्न परतें होती हैं।
1-   सबसे अन्दर की  श्लेष्मकला (Mucosal Layer), 
2-   बीच की स्निग्ध-पेशी परत और
3-   बाहर की सीरमीकला (Serosa) परत।
इन तीनों  परतों को संयोजी ऊतक (Connective Tissue) चिपका कर रखता है।
लक्षण
·        पीलिया,
·        ज्वर,
·        पेट में दर्द,
·        पेट में फुलाव,
·        मिचली और उलटी,
·        पेट में गांठ आदि।

निदान
प्रारंभिक अवस्था में बीमारी का पता नहीं चल पाता है, क्योंकि शुरू में इस रोग के लक्षण बड़े सामान्य होते हैं और फिर यह यकृत के पीछे भी छुपा रहता है। अक्सर जब पित्ताशय को पथरी रोग के कारण निकाला जाता है, तब बायोप्सी करने पर रोग का पता चलता है। इसके निदान के लिए निम्न परीक्षण किये जाते हैं।
·        भौतिक परीक्षण
·        सोनोग्राफी
·        यकृत कार्य परीक्षण
·        कारसिनोऐम्ब्रोयनिक एन्टीजन CEA
सामान्यतः 5 ng/ml या कम
·        CA 19-9 ट्यूमर मार्कर सामान्यतः 40 40 U/ml या कम
·        रक्त की रसायनिक जांच
·        CT स्केन
·        M R I
·        ERCP
·        बायोप्सी
·        लेपरोस्कोपी

चरण (Stages)

चरण 0  स्वस्थानी कैंसर  (Carcinoma in Situ) में सबसे अन्दर की की श्लेष्मकला (Mucosal Layer),  में असामान्य कोशिकाएं जो कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित और फैल सकती हैं।

चरण I       के दो उपचरण होते हैं।

चरण I A - में कैंसर संयोजी ऊतक या मांसल परत तक फैल चुका होता है।

चरण I B -  में कैंसर मांसल परत के बाहर की संयोजी ऊतक तक फैल चुका होता है।

चरण II      के दो उपचरण होते हैं।

चरण II A - में कैंसर  अंतरांगी उदरावरण (Visceral Peritoneum) को पार कर चुका या/और यकृत या/और पास के किसी अन्य अंग (आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, अग्न्याशय या पित्त वाहिकाएं) तक फैल चुका होता है।

चरण II B -  कैंसर निम्न संरचनाओं तक फैल चुका होता है।

·        आंतरिक श्लेष्मकला (Mucosal Layer) से संयोजी ऊतक (Connective Tissue) और पास के लसिकापर्व (Lymph node) तक।

·        मांसल परत और पास के लसिकापर्व (Lymph node) तक।

·        मांसल परत से संयोजी ऊतक और पास के लसिकापर्व तक।

·        अंतरांगी उदरावरण को पार कर और/या यकृत और/या पास को कसी अंग (आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, अग्न्याशय या पित्त वाहिकाएं) और लसिकापर्व तक।

चरण III  में कैंसर रक्त-वाहिकाओं द्वारा यकृत या पास के किसी अंग और लसिकापर्व तक फैल चुका होता है।

चरण IV में कैंसर के पास के लसिकापर्व और/या दूर के किसी अंग तक फैल चुका होता है।

 

उपचार की दृष्टि से इस कैंसर को निम्न चरणों में बांटा गया है।

स्थानीय (चरण I) कैंसर पित्ताशय से बाहर नहीं फैला है। इसे शल्य द्वारा निकाला जा सकता है।

अशल्य योग्य (चरण II, चरण III और चरण IV) आसपास की संरचनाओं, अंगों या पूरे पेट में फैल चुका हो। जो कैंसर सिर्फ लसिकापर्व तक फैला हो उसको छोड़ कर बाकी सभी  शल्य योग्य नहीं हैं अर्थात उन्हें शल्य द्वारा पूरी तरह निकालना संभव नहीं है। 

आवर्ती (Recurrent) पित्ताशय कैंसर   

उपचार

उपचार के पहले रोगी की स्वीकृति ली जाती है, इसका मतलब उपचार में खतरा है या प्रयोगात्मक उपचार दिया जा रहा है।

शल्य

पित्ताशय कैंसर में पित्ताशय-उच्छेदन उपचारात्मक शल्य-क्रिया है।

चरण 0  (Carcinoma in Situ), चरण I A और चरण I B में तो यह बहुत जरूरी उपचार है।
चरण II में पित्ताशय के साथ उसका बेड (3 से.मी. चौड़ी पट्टी), यकृत का कुछ हिस्सा (removal of segments IVb and V) और लसिकापर्व (Lymph node) निकाले जाते हैं। चरण III में  पित्ताशय के साथ पित्ताशय वाहिनी (Bile Duct) भी निकाली जाती है। बड़ी शल्य-क्रिया में ड्यूओडिनम और प्लीहा भी निकाल लिया जाते है, हालांकि इसके बाद जीवन कष्टमय हो जाता है।
अशल्ययोग्य कैंसर में निम्न उपशामक (palliative) उपचार दिये जाते हैं।
·        पित्त उपमार्ग शल्य -  यदि कैंसर आंत या पित्त-पथ पर दबाव डाल रहा हो तो शल्य द्वारा पित्ताशय या पित्त-वाहिका को काट कर आंत से जोड़ दिया जाता है।
·        दूरदर्शी द्वारा रुकावट की जगह कृत्रिम प्लास्टिक नलिका (Stent) डाल कर पित्त को शरीर से बाहर या आंत डाल कर वैकल्पिक पित्त-निकास व्यवस्था बना दी जाती है।
·        यदि दूरदर्शी द्वारा कृत्रिम प्लास्टिक नलिका डालना संभव नहीं हो तो त्वचा द्वारा नलिका डाल कर पित्त को शरीर से बाहर या आंत डाल कर  पित्त-निकास व्यवस्था बना दी जाती है। ऐसा सामान्यतः शल्य पूर्व किया जाता है।
रसायन उपचार (Chemotherapy)  
अभी तक कोई शोध यह साबित नहीं कर सकी कि इस कैंसर में कीमो से रोगी का कुछ भला हो सकता है। फिर भी यह उपचार दिया जा रहा है। आज यह साबित हो चुका है कि 5-FU और ल्यूकोवोरिन से रोगी की मृत्यु जल्दी होती है। दूसरा विकल्प स्थानीय कीमोथैरेपी है।  यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि निदान के समय अधिकतर कैंसर फैल कर पित्ताशय को पार कर चुके होते हैं। इस कैंसर में निम्न दवाएं दी जाती हैं।
·        जेम्सीटेबीन,
·        सिसप्लेटिन,
·        5-फ्लूरोयूरेसिल,
·        केपीलिटेबीन और
·        ऑग्जालिप्लेटिन।
पार्ष्व-प्रभाव - इनके पार्ष्व-प्रभाव निम्न हैं।
·        गंजापन
·        मुंह में छाले और फोड़े
·        भूख न लगना
·        मिचली और उलटी
·        दस्त
·        संक्रमण (श्वेत रक्तकण WBC कम हो जाने के कारण)
·        रक्त स्राव (बिंबाणु Platelets कम हो जाने के कारण)
·        रक्त-अल्पता और कमजोरी (लाल रक्तकण RBC कम हो जाने के कारण)
·        सिसप्लेटिन और ऑग्जालिप्लेटिन नाड़ियों को क्षतिग्रस्त करती हैं और हाथों और पैरों में कमजोरी, दर्द, स्पर्श या तापमान की अनुभूति न होना या अतिसंवेदनशीलता या सुन्न हो जाना आदि की शिकायत हो सकती है। 
रेडियोसेंसिटाइजर्स – रेडियोथैरेपी के साथ दिये जाते हैं, ये रेडियोथैरेपी के लिए कैंसर कोशिकाओं की संवेदनशीलता बढ़ाते हैं। और अभी प्रयोगात्मक दौर में ही हैं।  
रेडियोथैरेपी  
सामाय और स्थानीय रेडियो भी कीमोथैरेपी की तरह यह भी प्रभावशाली साबित नहीं हुई है और प्रयोगात्मक (Trials) तौर पर ही दी जाती है।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


2 comments:

dr.mahendrag said...

bahut hi upyogi jankari,
DHANYAVAD

Anonymous said...

Nice. I hope I can see this in English as well. Me and my alternative treatments to cancer center wishes to see this again in English in the future. Thanks.

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