Monday, July 11, 2011

Kidney Structure & Function




गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व



गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।

विश्व गुर्दा दिवस

इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ किडनी डिसीजेस और इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी द्वारा लगातार बढ़ रही गुर्दे संबंधी बीमारी को बढ़ता देख यह दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। विश्व गुर्दा दिवस सन् 2006 से प्रत्येक वर्ष मार्च माह के दूसरे गुरूवार को मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को गुर्दा संबंधी रोगों के प्रति जागरूक करना और समस्या का निदान करना है।
गुर्दों के गूढ़ रहस्य
1- गुर्दों में एक मिनट में 1200 एम.एल. और पूरे दिन में 1700 लीटर रक्त प्रवाहित होता है।
2- आधा गुर्दा दोनों गुर्दों का कार्य आसानी से कर सकता है।
3- एक गुर्दे में 10 से 20 लाख नेफ्रोन होते हैं।
4- पूरे विश्व में 15 लाख रोगी डायलिसिस या प्रत्यारोपित गुर्दे पर जीवित हैं।
5- यदि एक गुर्दे की सारी चलनी इकाइयों को जोड़ दिया जाये तो 8 किलो मीटर लम्बी नलिका बन जायेगी।
6- अमेरिका में दो करोड़ लोग जीर्ण वृक्क रोग (Chronic Kidney Diseases) से पीड़ित हैं और दो करोड़ को वृक्क रोग होने की सम्भावना है।
7- 40 वर्ष के बाद हर साल 1% नेफ्रोन कार्य करना बंद कर देते हैं, बचे हुए नेफ्रोन विवर्धित हो कर निष्क्रिय नेफ्रोन का कार्य संभाल लेते हैं।
8- गुर्दों का भार शरीर के भार का मात्र 0.5% होता है परन्तु वे हृदय द्वारा पंप किये गये रक्त का 20-25% हिस्सा उपयोग करते हैं।
9- यदि किसी को ईश्वर ने एक ही गुर्दा दिया हो तो वह विवर्धित हो कर दोनों गुर्दों का कार्य संपादित कर देता है।
10- विश्व में 50 करोड़ लोग (कुल जनसंख्या का 10%) किसी न किसी वृक्क रोग से पीड़ित हैं और लाखों लोग प्रति वर्ष जीर्ण वृक्क रोग से संबन्धित हृदय रोगों से समय पूर्व मरते हैं।
11- प्रत्यारोपण के लिए लगभग एक तिहाई गुर्दे निकट संबन्धियों द्वारा दिये जाते हैं बाकी दो तिहाई केडेवर से निकाले जाते हैं।
12- डॉ. जोसफ ई मूरे ने दिसंबर, 1954 में बोस्टन के पीटर बेन्ट ब्रिंघम अस्पताल में विश्व का पहला और सफल गुर्दा प्रत्यारोपण जुड़वां भाइयों में किया था।


संरचना




दोनों गुर्दे 12वीं वक्ष कशेरुका (12th Thoracic Vertebra) से तीसरी कटि कशेरुका (3rd Lumbar Vertebra) के स्तर पर मेरुदण्ड के दोनों तरफ उदरगुहा के पीछे सुरक्षित रहते हैं। दायां गुर्दा मध्यपट (Diaphragm) के ठीक नीचे और यकृत के पीछे स्थित होता है तथा बायां मध्यपट के नीचे और प्लीहा के पीछे होता है। प्रत्येक गुर्दे के शीर्ष पर एक अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland) स्थित होती है। यकृत के दबाव के कारण दायां गुर्दा बाएं की तुलना में थोड़ा नीचे होता है और बायां गुर्दा दाएं की तुलना में बड़ा और थोड़ा मध्य की ओर होता है। पूरा गुर्दा तथा अधिवृक्क ग्रंथि वसा (पेरीरीनल व पैरारीनल वसा) तथा रीनल फेशिया (renal fascia) द्वारा स्थिर रहते हैं। प्रत्येक वयस्क गुर्दे का भार 115 से 170 ग्राम के बीच तथा माप 11-14 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 3 सेमी होता है।




प्रत्येक गुर्दे में अवतल और उत्तल सतहें पाई जाती हैं। अवतल सतह, जिसे वृक्कीय नाभिका (renal hilum) कहा जाता है, वह स्थान है जहां से वृक्क धमनी इसमें प्रवेश करती है और वृक्क शिरा तथा मूत्रवाहिनी बाहर निकलती है। गुर्दा कठोर रेशेदार ऊतकों वाले रीनल कैप्सूल (renal capsule) से लिपटा होता है।


गुर्दे का पदार्थ या जीवितक (parenchyma) दो मुख्य संरचनाओं में विभक्त होता है। बाहरी भाग को वृक्कीय-प्रांतस्था (renal cortex) और इसके अंदर रे भाग को वृक्कीय-अंतस्था (renal medulla) कहते हैं। कुल मिलाकर ये संरचनाएं तिकोने आकार के आठ से अठारह वृक्कीय खण्डों की आकृति बनाती हैं, जिनमें से प्रत्येक में वृक्कीय-अंतस्था के एक भाग को ढंकने वाली वृक्कीय-प्रांतस्था होती है, जिसे वृक्कीय पिरामिड (Pyramids) कहा जाता है। वृक्कीय पिरामिडों के बीच कोर्टेक्स के उभार होते हैं, जिन्हें वृक्कीय स्तंभ कहा जाता है। नेफ्रॉन (Nephrons) गुर्दे की मूत्र उत्पादक इकाइयाँ, कोर्टेक्स से लेकर मेड्यूला तक फैली होती हैं। नेफ्रॉन का प्रारंभिक शुद्धिकरण भाग कोर्टेक्स में स्थित वृक्कीय कणिका (renal corpuscle) होता है जिसके बाद मेड्यूला से होकर मेड्यूलरी पिरामिडों में गहराई तक जानी वाली एक वृक्कीय नलिका (renal tubule) पाई जाती है। एक मेड्यूलरी-रे, वृक्कीय कोर्टेक्स का एक भाग, वृक्कीय नलिकाओं का एक समूह होता है, जो एक संग्रहण नलिका (Collecting Ducts) में जाकर रिक्त होती हैं।


प्रत्येक पिरामिड का सिरा या पेपिला (papilla) मूत्र को लघु पुटक (minor calyx) में पहुंचाता है, लघु पुटक मुख्य पुटकों (major calyces) में जाकर रिक्त होता है और रीनल पेल्विस (renal pelvis) में रिक्त होता है जो कि मूत्र-नलिका (Ureter) बन जाता है।


कार्यरक्तचाप का नियंत्रण


अम्ल-क्षार संतुलन, इलेक्ट्रोलाइट सान्द्रता, कोशिकेतर दृव मात्रा (extracellular fluid volume) को नियंत्रित करके और रक्तचाप पर नियंत्रण रखते हुए गुर्दे पूरे शरीर का संतुलन बनाये रखते हैं। गुर्दे इन कार्यों को स्वतंत्र रूप से व अन्य अंगों विशेषतः अंतःस्रावी तंत्र के अंगों के साथ मिलकर पूर्ण करते हैं। इन अंतःस्रावी कार्यों की पूर्ति के लिये विभिन्न अंतःस्रावी हार्मोन के बीच तालमेल की आवश्यकता होती है, जिनमें रेनिन, एंजियोटेन्सिस II, एल्डोस्टेरोन, एन्टीडाययूरेटिक हॉर्मोन और आर्टियल नैट्रियूरेटिक पेप्टाइड आदि शामिल हैं।


गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन (Filtration) , पुनर्अवशोषण (Reabsorption) और स्रवण (Secretion) की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं। परिशोधन जो कि वृक्कीय कणिका में होता है, एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाएं तथा बड़े प्रोटीन रक्त से छाने जाते हैं और एक निस्यंद या अल्ट्राफिल्ट्रेट का निर्माण होता है, जो अंततः मूत्र बनता है। गुर्दे एक दिन में 180 लीटर अल्ट्राफिल्ट्रेट उत्पन्न करते हैं, जिसका एक बहुत बड़ा प्रतिशत पुनर्अवशोषित कर लिया जाता है और मूत्र की लगभग 2 लीटर मात्रा की शेष बचती है। इस अल्ट्राफिल्ट्रेट से रक्त में अणुओं का परिगमन पुनर्अवशोषण कहलाता है। स्रवण इसकी विपरीत प्रक्रिया है, जिसमें अणु विपरीत दिशा में रक्त से मूत्र की ओर भेजे जाते हैं।


अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन


गुर्दे चयापचय के द्वारा उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं। इनमें प्रोटीन चयापचय से उत्पन्न नाइट्रोजन-युक्त अपशिष्ट यूरिया और न्यूक्लिक अम्ल के चयापचय से उत्पन्न यूरिक अम्ल शामिल हैं।


अम्ल-क्षार संतुलन


अंगों के दो तंत्र गुर्दे तथा यकृत अम्ल-क्षार संतुलन का अनुरक्षण करते हैं, जो कि पीएच (pH) को एक अपेक्षाकृत स्थिर मान के आस-पास बनाये रखने की प्रक्रिया है। बाइकार्बोनेट (HCO3-) की सान्द्रता को नियंत्रित करके गुर्दे अम्ल-क्षार संतुलन में योगदान करते हैं।


परासारिता नियंत्रण


रक्त की परासारिता (plasma osmolality) में यदि कोई उल्लेखनीय वृद्धि होती है तो मस्तिष्क में हाइपोथेलेमस को इसकी अनुभूति हो जाती है और वह सीधे पिट्युटरी ग्रंथि के पिछले खण्ड से संवाद करता है। परासारिता में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एन्टीडाययूरेटिक हार्मोन (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे द्वारा जल का पुनर्अवशोषण बढ़ जाता है और मूत्र भी सान्द्र हो जाता है। एडीएच संग्रहण नलिका में स्थित मुख्य कोशिकाओं (Principal Cells) से जुड़ कर एक्वापोरिन (aquaporins) को झिल्ली में स्थानांतरित करता है, ताकि जल सामान्यतः अभेद्य झिल्ली को पार कर सके और वासा रेक्टा (vasa recta) द्वारा शरीर में इसका पुनर्अवशोषण किया जा सके, जिससे शरीर में प्लाज़्मा की मात्रा में वृद्धि हो सके।


ऐसी दो प्रणालियां हैं जो मेडूला में सोडियम (नमक) की परासारिता बढ़ाती हैं। जिसके प्रभाव से पानी का पुनर्अवशोषण बढ़ता है और शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ती हैं। दूसरी है यूरिया पुनर्चक्रण तथा एकल प्रभाव (single effect)।


यूरिया सामान्यतः गुर्दों से एक अपशिष्ट पदार्थ के रूप में उत्सर्जित किया जाता है। लेकिन जब रक्त की मात्रा कम होती है तथा परासारिता बढ़ती है और एडीएच (ADH) का स्राव होता है। इससे खुलने वाले एक्वापोरिन्स (aquaporins) यूरिया के प्रति भी पारगम्य होते हैं। इससे यूरिया का संग्रहण नलिका से रक्त मेडूला में स्रवण होता है और मेडूला की परासारिता बढ़ती है जिससे पानी का पुनर्अवशोषण बढ़ता है। इसके बाद यूरिया नेफ्रॉन में पुनः प्रवेश कर सकता है और एडीएच (ADH) की उपस्थित या अनुपस्थिति आधार पर यह पुनः उत्सर्जित या पुनर्चक्रित हो जाता है।


‘एकल प्रभाव’ इस तथ्य का वर्णन करता है कि हेनली की मोटी आरोही बाँह पानी के लिए पारगम्य नहीं है, लेकिन सोडियम के लिए है। इसका अर्थ यह है कि एक प्रति-प्रवाही प्रणाली countercurrent system निर्मित होती है, जिसके द्वारा मेडूला अधिक सान्द्र बन जाता है और यदि एडीएच द्वारा संग्रहण नलिका के एक्वापोरिन्स को खोल दिया गया हो तो पानी का संग्रहण नलिका में अवशोषण होता है।



लंबी-अवधि में रक्तचाप का नियंत्रण मुख्यतः गुर्दे पर निर्भर होता है। मुख्यतः ऐसा कोशिकेतर द्रव उपखंड के अनुरक्षण के माध्यम से होता है, जिसका आकार रक्त में सोडियम सान्द्रता पर निर्भर करता है। हालांकि, गुर्दे सीधे ही रक्तचाप का अनुमान नहीं लगा सकते, लेकिन नेफ्रॉन के दूरस्थ नलिका में स्थित मेक्यूला डेन्सा कोशिकाएँ सोडियम और क्लोराइड का अवशोषण कम होने पर जक्स्टा ग्लोमेर्युलर सेल्स को रेनिन स्राव करने का आग्रह करते हैं।


रेनिन उन रासायनिक संदेशवाहकों की श्रृंखला का पहला सदस्य है, जो मिलकर रेनिन-एंजियोटेन्सिन तंत्र का निर्माण करते हैं। रेनिन के स्राव से अंततः इस तंत्र के उत्पाद मुख्य रूप से एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन स्रावित होते हैं। प्रत्येक हार्मोन अनेक कार्यप्रणालियों के माध्यम से कार्य करता है, लेकिन दोनों ही गुर्दों द्वारा किये जाने वाले सोडियम क्लोराइड के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और रक्तचाप बढ़ता है। इसके विपरीत जब रेनिन के स्तर कम होता है, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन के स्तर घट जाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का संकुचन होता है और रक्तचाप में कमी आती है।


हार्मोन स्राव


गुर्दे अनेक प्रकार के हार्मोन का स्राव करते हैं, जिनमें एरिथ्रोपोइटिन, कैल्सिट्रिऑल और रेनिन शामिल हैं। एरिथ्रोपीटिन को वृक्कीय प्रवाह में हाइपॉक्सिया (ऊतक स्तर पर ऑक्सीजन का निम्न स्तर) की प्रतिक्रिया के रूप में छोड़ा जाता है। यह अस्थि-मज्जा में एरिथ्रोपोएसिस (लाल रक्त-कणिकाओं के उत्पादन) को उत्प्रेरित करता है। कैल्सिट्रिऑल विटामिन डी का उत्प्रेरित रूप, कैल्शियम के आन्त्र में अवशोषण तथा फॉस्फेट के वृक्कीय पुनर्अवशोषण को प्रोत्साहित करता है।

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